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अन्तर्वासना कहानी
दोस्तो, हिंदी इंडियन सेक्स स्टोरीज में आपने अब तक पढ़ा था कि पण्डित जी रीना की जवानी को भोगने के चक्कर में उसको पूजा करवाने के लिए फंसा चुके थे. अब पण्डित जी ने उसके साथ आसन लगाने की विधि शुरू कर दे थी जिससे रीना की चुदास बढ़ने लगी थी.
अब आगे..
रीना का नंगा पेट पण्डित की नंगी पीठ से चिपका हुआ था. रीना खुद ही अपना पेट पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.
पण्डित- रीना.. तुम्हारे पेट का स्पर्श ऐसे लगता है जैसे कि मैंने शनील कि रजाई ओढ़ ली हो.. और एक बात कहूँ.
रीना अब गर्म हो चली थी वो चुदास भरे स्वर में बोली- स्स.. कहिए ना पण्डित जी..
पण्डित- तुम्हारे स्तनों का स्पर्श तो..
रीना अपने मम्मों को और भी मस्ती से पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.
रीना- तो क्या पण्डित जी?
पण्डित- मदहोश कर देने वाला है.. तुम्हारे स्तनों को हाथों में लेने के लिए कोई भी ललचा जाये.
रीना- स्सह्ह..
पण्डित- अब मैं सीधा लेटूंगा और तुम मुझ पर पेट के बल लेट जाना.. लेकिन तुम्हारा मुँह मेरे चरणों की ओर और मेरा मुँह तुम्हारे चरणों की तरफ़ होना चाहिये.
पण्डित पीठ के बल लेट गया और रीना पण्डित के ऊपर पेट के बल लेट गई.
रीना की टांगें पण्डित के चेहरे की तरफ़ थीं. रीना की नाभि पण्डित के लंड पर थी.. वह उसके सख्त लंड को गड़ता सा महसूस कर रही थी.
पण्डित रीना की संगमरमरी टांगों पे हाथ फेरने लगा.
पण्डित- रीना.. तुम्हारी टांगें कितनी अच्छी हैं.
पण्डित ने रीना का पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और उसकी जांघें मसलने लगा.
उसने रीना की टांगें और फैला दीं. अब रीना की पेंटी साफ़ दिख रही थी.
पण्डित रीना की चूत के पास हल्के हल्के हाथ फेरने लगा.
पण्डित- रीना.. तुम्हारी जांघें कितनी गोरी और मुलायम हैं.
चूत के पास हाथ लगाने से रीना और भी गरम हो रही थी.
पण्डित- तुम्हें अब तक सबसे अच्छा आसन कौन सा लगा..?
रीना- स्स.. वो.. घुटनों के बल.. पीठ से पीठ.. नीचे से नीचे वाला.
पण्डित- चलो.. अब मैं बैठता हूँ.. और तुम्हें सामने से मेरे कंधों पर बैठना है.. मेरा सिर तुम्हारी टांगों के बीच में होना चाहिये.
रीना- जी..
रीना ने पण्डित का सिर अपनी टांगों के बीच लिया और उसके कंधों पर बैठ गई.
इस पोजीशन में रीना की नाभि पण्डित के होंठों पर आ रही थी.
पण्डित अपनी जीभ बाहर निकाल कर रीना की नाभि में घुमाने लगा. इससे रीना को बहुत मज़ा आ रहा था.
पण्डित- रीना.. आँखें बंद करके बोलो.. स्वाहा..
रीना- स्वाहा..
पण्डित- रीना.. तुम्हारी नाभि कितनी मीठी और गहरी है.. क्या तुम्हें ये वाला आसन अच्छा लग रहा है?
रीना- हाँ.. पण्डित जी.. ये आसन बहुत अच्छा है.. बहुत ही अच्छा अह..
पण्डित- क्या किसी ने तुम्हारी नाभि में जीभ डाली है?
रीना- आह्ह.. नहीं पण्डित जी.. आप पहले हैं.
पण्डित- अब तुम मेरे कंधों पर रह कर ही पीछे की तरफ़ लेट जाओ.. अपने हाथों से ज़मीन का सहारा ले लो.
रीना पण्डित के कंधों का सहारा लेकर लेट गई.
अब पण्डित के होंठों के सामने रीना की चूत थी.
पण्डित धीरे से अपने हाथ रीना के स्तन पे ले गया.. और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा.
रीना भी यही चाह रही थी.
पण्डित- रीना.. तुम्हारे स्तन कितने भरे भरे हैं बहुत ही अच्छे हैं.
रीना- आह्ह..
रीना ने एक हाथ से अपना पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और अपनी चूत को पण्डित के होंठों पे लगा दिया.
पण्डित कच्छी के ऊपर से ही रीना की चूत पे जीभ मारने लगा.
पण्डित- रीना.. अब तुम मेरी झोली में आ जाओ.
रीना फ़ौरन पण्डित के लंड पे बैठ गई.. उससे लिपट गई.
पण्डित- अह्ह.. रीना.. ये आसन अच्छा है?
रीना- स्स..स..सबसे.अच्छा.. ऊओ पण्डित जी..
पण्डित- ऊह्ह.. रीना.. आज तुम बहुत कामुक लग रही हो.. क्या तुम मेरे साथ काम करना चाहती हो..?
रीना- हाँ पण्डित जी.. स्सस.. मेरी काम अग्नि को शांत कीजिये.. ह्हह्ह.. प्लीज़..पण्डित जी..
पण्डित रीना के मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा.. रीना बार बार अपनी चूत पण्डित के लंड पे दबाने लगी.
पण्डित ने रीना का ब्लाउज उतार कर फेंक दिया और उसके निप्पलों को अपने मुँह में ले लिया.
रीना- आअह्ह.. पण्डित जी.. मेरा उद्धार करो.. मेरे साथ काम करो..
पण्डित- बहुत नहाई है मेरे दूध से.. सारा दूध पी जाऊंगा तेरी छातियों का..
रीना- आअह्ह.. पी जाओ.. मैं क्क..कब मना करती हूँ.. पी लो पण्डित जी.. पी लो..
कुछ देर तक दूध पीने के बाद अब दोनों से और नहीं सहा जा रहा था.
पण्डित ने बैठे बैठे ही अपनी लुंगी खोल के अपने कच्छे से अपना लंड निकाला.. रीना ने भी बैठे बैठे ही अपनी कच्छी थोड़ी नीचे कर दी.
पण्डित- चल जल्दी कर..
रीना पण्डित के सख्त लंड पर बैठ गई.. लंड पूरा उसकी चूत में चला गया.
रीना- आअह्हह्हह.. स्वाहा.. कर दो मेरा स्वाहा.. आ..
रीना पण्डित के लंड पे ऊपर नीचे होने लगी. चुदाई ज़ोरों पर शुरू हो गई थी.
पण्डित- आह्हह.. मेरी रानी.. मेरी पुजारन.. तेरी योनि कितनी अच्छी है.. कितनी सुखदायी.. मेरी बांसुरी को बहुत मज़ा आ रहा है.
रीना- पण्डित जी.. आपकी बांसुरी भी बड़ी सुखदायी है.. आपकी बांसुरी मेरी योनि में बड़ी मीठी धुन बजा रही है.
पण्डित- देवलिंग को छोड़.. पहले मेरे लिंग की जय कर ले.. बहुत मज़ा देगा ये तेरे को..
रीना- ऊऊआअ.. प्प.. पण्डित जी.. रात को तो आपके देवलिंग ने न जाने कहां कहां घुसने की कोशिश की!
पण्डित- मेरी रानी.. आअ.. फिकर मत कर.. स्स.. तुझे जहाँ जहाँ घुसवाना है.. मैं घुसाऊंगा.
रीना- आअह्हह्ह.. पण्डित जी.. एक विधवा को.. दिलासा नहीं.. मर्द का बदन चाहिए.. असली सुख तो इसी में है. क्यों.. आआ.. बोलिए ना पण्डित जी.. आऐई..
पण्डित- हांन..आ..
अब रीना लेट गई और पण्डित उसके ऊपर आकर उसे चोदने लगा.
साथ साथ वो रीना के मम्मों को भी दबा रहा था.
पण्डित- आअह्ह.. उस.. आज के लिए तेरा पति बन जाऊँ.. बोल..!
रीना- आऐए.. स्सस.. ई.. हाअन्न.. बन जाओ..
पण्डित- मेरा लिंग आज तेरी योनि को चीर देगा.. मेरी प्यारी रीना..
रीना- आअह्हह.. चीर दो.. आअह्ह.. आह्हह्ह.. चीर दो ना.. आआह्ह..
पण्डित- आअह्हह.. ऊऊऊऊ..
दोनों एक साथ झड़ गए और पण्डित ने सारा वीर्य रीना की चूत के ऊपर झाड़ दिया.
रीना- आह्ह..
अब रीना पण्डित से आँखें नहीं मिला पा रही थी.
पण्डित रीना के साथ लेट गया और उसके गालों को चूमने लगा.
रीना- पण्डित जी.. क्या मैंने पाप कर दिया है?
पण्डित- नहीं रीना.. पण्डित के साथ काम करने से तुम्हारी शुद्धता बढ़ गई है.
कुछ देर दोनों मौन पड़े रहे और फिर रीना कपड़े पहन कर और मेकअप उतार कर घर चली आई.
आज पण्डित ने उसे देवलिंग बांधने को नहीं दिया था.
रात को सोते वक्त रीना देवलिंग को मिस कर रही थी.
उसे पण्डित के साथ हुई चुदाई याद आने लगी. वो मन ही मन में सोचने लगी कि पण्डित जी.. आप बड़े वो हैं, कब मेरे साथ क्या क्या करते चले गए..पता ही नहीं चला.. पण्डित जी.. आपका बदन कितना अच्छा है.. अपने बदन की इतनी तारीफ़ मैंने पहली बार सुनी है. आप यहाँ क्यों नहीं हैं.
रीना ने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और अपनी चूत को रगड़ने लगी.
‘पण्डित जी.. मुझे क्या हो रहा है’.. वो ये बुदबुदाते हुए सोचने लगी.
चूत से हाथ की उंगली गांड पे ले गई.. और गांड को रगड़ने लगी.
‘ये मुझे कैसा रोग लग गया है.. टांगों के बीच में भी चुभन.. हिप्स के बीच में भी चुभन.. ओह..’
अगले दिन रोज़ की तरह सुबह 5 बजे रीना मन्दिर आई.. इस वक्त मन्दिर में और कोई नहीं हुआ करता था.
पण्डित ने रीना को इशारे से मन्दिर के पीछे आने को कहा.
रीना मन्दिर के पीछे आ गई.. आते ही रीना पण्डित से लिपट गई.
रीना- ओह.. पण्डित जी..
पण्डित- ओह्ह.. रीना..
पण्डित रीना को होंठों को चूमने लगा.. रीना की गांड दबाने लगा.. रीना भी कसके पण्डित के होंठों को चूम रही थी. तभी मन्दिर का घंटा बजा.. और दोनों अलग हो गए.
मन्दिर में कोई पूजा करने आया था.. पण्डित अपनी चूमा-चाटी छोड़ कर मन्दिर में आ गया.
जब मन्दिर फिर खाली हो गया तो पण्डित रीना के पास आया.
पण्डित- रीना.. इस वक्त तो कोई ना कोई आता ही रहेगा.. तुम वही अपने पूजा के समय पर आ जाना.
रीना अपनी पूजा करके चली आई.. उसका पण्डित को छोड़ने का दिल नहीं कर रहा था.
खैर.. वो 12:45 बजे का इन्तजार करने लगी. ठीक 12:45 बजे वो पण्डित के घर पहुँची.. दरवाज़ा खुलते ही वो पण्डित से लिपट गई.
पण्डित ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और रीना को लेकर ज़मीन पर बिछी चादर पे ले आया.
रीना ने पण्डित को कस के बांहों में ले लिया.. पण्डित के चेहरे पर किस पे किस किये जा रही थी. अब दोनों लेट गए थे और पण्डित रीना के ऊपर था. दोनों एक दूसरे के होंठों को कस कस के चूमने लगे.
पण्डित रीना के होंठों पे अपनी जीभ चलाने लगा.. रीना ने भी मुँह खोल दिया.. अपनी जीभ निकाल कर पण्डित की जीभ को चाटने लगी.
पण्डित ने अपनी पूरी जीभ रीना के मुँह में डाल दी.. रीना पण्डित के दांतों पर जीभ चलाने लगी.
पण्डित- ओह.. रीना.. मेरी रानी.. तेरी जीभ.. तेरा मुँह तो मिल्क शेक जैसा मीठा है.
रीना- पण्डित जी.. आअ.. आपके होंठ बड़े रसीले हैं, आपकी जीभ शरबत है.. आआह्ह..
पण्डित- ओह्हह.. रीना..
पण्डित रीना के गले को चूमने लगा..
आज रीना सफ़ेद साड़ी-ब्लाउज में आई थी.
पण्डित रीना का पल्लू हटा कर उसके स्तनों को दबाने लगा.. रीना ने खुद ही ब्लाउज और ब्रा को निकाल फेंका.
पण्डित उसके मम्मों पर टूट पड़ा.. उसके निप्पलों को कस कस के चूसने लगा.
रीना- अह्हह्ह.. पण्डित जी.. आराम से.. मेरे स्तन आपको इतने अच्छे लगे हैं.. आऐईए..
पण्डित- हाँ.. तेरे स्तनों का जवाब नहीं रानी.. तेरा दूध कितनी मलाई वाला है.. और तेरे गुलाबी निप्पलों.. इन्हें तो मैं खा जाऊंगा.
रीना- आअह्हह्ह.. अह.. उई.. तो खा जाओ ना.. मना कौन करता है..
पण्डित रीना के निप्पलों को दाँतों के बीच में लेकर दबाने लगा.
रीना- आऐई.. इतना मत काटो.. आह्ह.. वरना अपनी इस भैंस का दूध नहीं पी पाओगे.
पण्डित- ऊओ.. मेरी भैंस.. मैं हमेशा तेरा दूदू पीता रहूँगा.
रीना- उई.. त..आआ.. तो..पी..अह्ह.. लो ना.. निकालो ना मेरा दूध.. खाली कर दो मेरे स्तनों को..
पण्डित कुछ देर तक रीना के स्तनों को चूसता, चबाता, दबाता और काटता रहा.
फिर पण्डित नीचे की तरफ़ आ गया.. उसने रीना की साड़ी और पेटीकोट उसके पेट तक चढ़ा दिए.. उसकी टांगें खोल दीं.
पण्डित- रीना.. आज कच्छी पहनने की क्या ज़रूरत थी!
रीना- पण्डित जी.. आगे से नहीं पहनूँगी.
पण्डित ने रीना की कच्छी निकाल दी.
पण्डित- मेरी रानी.. अपनी योनि द्वार का सेवन तो करा दे..
ये कह कर पण्डित रीना की चूत चाटने लगा.. रीना के बदन में करंट सा दौड़ गया. रीना पहली बार चूत चटवा रही थी.
रीना- आआह्हह्ह.. म.. म्म..म.. मेरी योनि का सेवन कर लो पण्डित जी.. तुम्हारे लिए सारे द्वार खुले हैं.. अपनी शुद्ध जीभ से मेरी योनि का भोग लगा लो.. मेरी योनि भी पवित्र हो जाएगी.. आआह्हह्हह..
पण्डित- आअह्ह.. मज़ा आ गया..
रीना- आअह.. हाँ.. हाँन.. ले लो मज़ा.. एक विधवा को तुमने गरम तो कर ही दिया है.. इसकी योनि चखने का मौका मत गंवाओ.. मेरे पण्डित जी.. आआईई..
पण्डित ने रीना को पेट के बल लिटा दिया.. उसकी साड़ी और पेटीकोट उसके हिप्स के ऊपर चढ़ा दिये. अब वो रीना के हिप्स पे किस करने लगा. रीना के हिप्स थोड़े बड़े थे.. लेकिन बहुत मुलायम थे.
पण्डित- रीना.. मैं तो तेरे चूतड़ पे मर जाऊं.
रीना- पण्डित जी.. आह्ह.. मरना ही है तो मेरे चूतड़ों के असली द्वार पर मरो.. आपने जो देवलिंग दिया था, वो मेरे चूतड़ों के द्वार पे आकर ही फंसता था.
पण्डित- तू फिक्र मत कर.. तेरे हर एक द्वार का भोग लगाऊंगा.
यह कह कर पण्डित ने रीना को घोड़ी बनाया.. और उसकी गांड चाटने लगा.
रीना को इसमें बहुत अच्छा लग रहा था.. पण्डित रीना की गांड के छेद को चाटने के साथ साथ उसकी फुद्दी को रगड़ रहा था.
रीना- आअह्हह.. चलो.. पण्डित जी.. अब स्वाहा कर दो.. ऊस्सशह्ह ह्हह्ह..
पण्डित- चल.. अब मेरा प्रसाद लेने के लिए तैयार हो जा.
रीना- आह्हह.. पण्डित जी.. आज मैं प्रसाद पीछे से लूँगी.
पण्डित- चल मेरी रानी.. जैसे तेरी मर्जी.
पण्डित ने धीरे धीरे रीना की गांड में अपना पूरा लंड डाल दिया.
रीना- आआअहह्ह..
पण्डित- आअह.. रीना प्यारी.. बस कुछ सब्र कर ले.. आह्ह..
रीना- आआह्हह्ह.. पण्डित जी.. मेरे पीछे.. आऐई.. के द्वार में.. आपका स्वागत है.. ऊई..
पण्डित- आअह्ह.. मेरे लंड को तेरा पिछला द्वार बहुत अच्छा लगा है.. कितना टाईट और चिकना है तेरा पीछे का द्वार..
रीना- आअह्हह.. पण्डित जी.. अपने स्कूटर की स्पीड बढ़ा दो.. रेस दो ना.. आअह..
पण्डित ने गांड में धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.
फिर रीना की गांड से लंड निकाल कर उसकी फुद्दी में पेल दिया.
रीना- आई माँअ.. कोई द्वार मत छोड़ना.. आआह.. आपकी बांसुरी मेरे बीच के.. आह्ह.. द्वार में क्या धुन बजा रही है..
पण्डित- मेरी रीना.. मेरी रानी.. तेरे छेदों में मैं ही बांसुरी बजाऊंगा.
रीना- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. मुझे योनि में बहुत.. आअह.. खुजली हो रही है.. अब अपना चाकू मेरी योनि पे चला दो.. मिटा दो मेरी खुजली.. मिटाओ ना..
पण्डित ने रीना को लिटा दिया.. और उसके ऊपर आकर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया. साथ साथ उसने अपनी एक उंगली रीना की गांड में डाल दी.
रीना- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. प्यार करो इस विधवा लड़की को.. अपनी बांसुरी से तेज़ तेज़ धुनें निकालो.. मिटा दो मेरी खुजली.. आहहह्हह्ह.. अ.आ..ए.ए..
पण्डित- आआह्हह्ह.. मेरी रानी..
रीना- ऊऊह्ह्ह.. मेरे राज्जाअ.. और तेज़.. औऊर्रर तेज.. आआह्हह.. अन्दर.. और अन्दर आज्जजाआ.. आअह्ह.. प्पप.. स.स..स..
पण्डित- आह्हह.. ओह्हह.. रीना.. प्यारी.. मैं छूटने वाला हूँ.
रीना- आअहह्ह.. मैं भी.. आआ.. ई.. ऊऊऊ.. अन्दर ही.. गिरा.. द.. दो अपना.. प्रसाद..
पण्डित- आह्हह..
रीना- आआह्हह्हह.. अ..अह.. अह.. अह.. अह..
स्वाहा.. चुद गई चुत और हो गया कल्याण.
साथियो, आपने हिंदी अन्तर्वासना कहानी का मजा ले लिया, आप अपने कमेंट्स कर सकते हैं.
दोस्तो, मेरा नाम मनोज है Sex Stories और मैं अन्तर्वासना कहानी पढ़ता हूँ तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी आपनी आपबीती बात बताऊँ!
आज मेरी उम्र 21 साल की है और जो कहानी मैं आप लोगो को सुनाने जा रहा हूँ वो करीब 3 साल पुरानी है. आज तक आप लोगों ने सुना होगा कि एक लड़के ने लड़की का जबर चोदन किया तो क्या एक लड़की लड़के का जबर चोदन नहीं कर सकती?
जी हाँ! मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था!
मेरे एक दोस्त की चार बहनें है, चारों की शादी हो चुकी है पर तीन साल पहले वो चारों शादीशुदा नहीं थी. एक का नाम सोनू, दूसरी का नाम मोनू, तीसरी का नाम बबली और चौथी का नाम गीता है. गीता मेरी गर्लफ्रेंड थी और आज भी है. हम 7-8 लोग रोज़ छुपन छुपाई खेलते थे.
एक दिन हम बस पाँच लोग ही थे, मैं और वो चार लड़कियाँ!
सोनू बाजी दे रही थी और हम चार लोग छुपे हए थे, मैं और मेरी गर्लफ्रेंड एक साथ ही थे, वो बहुत ही सेक्सी थी वो मुझसे धीरे धीरे चिपकने लगी, मुझे होटों पर चूमने लगी. मुझे पहली बार किसी के होटों पर चूमा था. हम दोनों बेड के नीचे छुपे थे, वो धीरे धीरे मेरे ऊपर चढ़ने लगी, मुझे डर लगने लगा वो धीरे धीरे मेरे लंड की ओर अपना हाथ बढ़ाने लगी, मेरी पैंट की जिप खोल दी और मेरा लंड पकड़ लिया. मैं और डर गया!
मैंने उससे पूछा- यह क्या कर रही है तू?
तो वो बोली- आप चुपचाप लेटे रहो!
और उसने मेरे होटों पर आपने होंट रख दिए और मेरा मुँह बंद कर लिया. वो धीरे धीरे मेरे लंड को हिलाने लगी और मेरा लण्ड खड़ा हो गया. अब मुझे भी बहुत अच्छा लगने लगा था. उसने मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी. मुझे बहुत गुदगुदी हो रही थी पर मजा भी बहुत आ रहा था. वो मेरा लण्ड चूसती रही.
तभी उसकी तीन बहनें और आ गई और मैं और वो दोनों ही बहुत डर गए थे. उसकी तीनों बहनें गुस्से से मुझे और उसे देखने लगी. अब हम पाँचों एक दूसरे की ओर देखने लगे. वो तीनों बहनें धीरे से मुस्कुराई ओर बोली- बेड के नीचे क्या कर रहे हो तुम दोनों? चलो बाहर चलो! गीता तू क्या अकेले ही सारा मजा ले लेगी! हमें नहीं लेने देगी क्या!
और चारों बहनों ने मुझे बेड पर लिटा दिया, फिर सोनू बोली- तुम तीनों मज़े लो, मैं बाहर देखती हूँ कि कोई आना जाये! ठीक है?
सोनू बाहर चली गई, गीता तो मेरे लंड से ही चिपकी रही, मोनू मुझे होटों पर किस करने लगी और बबली मेरे हाथ की बड़ी उंगली को अपनी चूत में डालने लगी पर मैं तो कुछ कर ही नहीं पा रहा था. अब गीता झड़ने वाली थी इसलिए उसने अपने कपड़े उतारे, अपनी चूत मेरे लंड पर रख दी और मेरे लंड पर ऊपर-नीचे होने लगी. उसकी चूत बहुत ही टाइट थी मेरे लंड में दर्द होने लगा था पर चुदाई में बहुत मजा आ रहा था इसलिए मैं सारा दर्द सहन कर रहा था.
मोनू जोकि मेरे होटों को चाट रही थी, अब उसने भी अपने कपड़े उतार दिए थे पर अपनी चूत के मुँह को मेरे होटों पर रगड़ने लगी. मैंने भी उसकी चूत को जीभ से चाटना चालू कर दिया. तब तक बबली भी अपने कपड़े उतार चुकी थी. बबली तो बस मेरी उंगली से ही अपनी चूत चुदवा रही थी. तीनों ने मुझे अपने नीचे दबा रखा था.
मैं बहुत परेशान हो चुका था. मैंने तीनों को अपने ऊपर से हटाया और गुस्से में कहा- साली रंडियो! एक एक कर के आओ! कुत्तियो आओ!
तब मैंने पहले अपनी गर्लफ्रेंड गीता को पकड़ा और बेड पर दोनों हाथ रखवाये और घोड़ी बना कर उसे चोदना शुरू किया. 15 मिनट तक चोदा, फिर मैं झड़ गया. सारा का सारा वीर्य उसकी चूत में ही छोड़ दिया. वो भी झड़ चुकी थी, मैंने उसे कमरे से बाहर जाने को कहा तो वो बोली- क्यों जाऊँ?
मैंने बोला- तेरी दो बहनों को भी तो चुदना है!
तो गीता बोली- तो मेरे सामने ही चोदो न!
मैंने बोला- नहीं, तू चुदाई देखेगी तो फिर से चुदाने के लिए तैयार हो जायेगी और मुझमें इतनी ताकत नहीं है कि बार बार चोद पाऊँ!
और मैंने गीता को बाहर का रास्ता दिखाया. अब मोनू की बारी थी, वो बहुत देर से बेचैन थी. मेरा लंड ढीला पड़ गया था, मैंने मोनू से कहा- मोनू, मेरी जान! मेरे लंड को खड़ तो कर! जान, तभी तो तुझे चोद पाऊँगा!
इतना बोलने की ही देर थी कि उसने मेरा लण्ड पकड़ा और झट से मुँह में लेकर चूसने लगी. धीरे धीरे मेरा लंड खड़ा हो रहा था और बबली खड़ी खड़ी सब देख रही थी और अपनी बारी का इंतजार कर रही थी, अपनी चूत में उंगली भी कर रही थी. मैंने मोनू की एक टांग अपने कंधे पर रखी और दूसरी टांग जमीन पर ही थी, मैंने उसे एक हाथ से कमर पर पकड़ रखा था, एक हाथ से उसके चुचे दबा रहा था और जोर जोर के धक्के मरता जा रहा था. वो बहुत चिल्ला रही थी, मैंने उसके चुचे दबाना बंद कर उस हाथ से उसका मुँह बंद कर दिया और फिर 15-20 मिनट में मैं एक बार फिर झड़ गया और सारा वीर्य उसकी ही चूत में झाड़ दिया. लंड के निकलते ही उसने मेरा लंड फिर से चूसना शुरु कर दिया. मुझे लगा कि शायद वो अभी झड़ी नहीं है. फिर मैं जल्दी से उसकी चूत में उंगली करने लगा. 5 मिनट के बाद वो भी झड़ गई और बाहर चली गई.
अब बबली की बारी थी. बबली की चूत और गांड दोनों ही बहुत अच्छी थी. दोनों ही चीज बिना बाल के थी. पहले तो मैंने उसकी चूत में उंगली की, धीरे धीरे एक उंगली उसकी गांड में भी डाल दी. वो सिसकियाँ लेने लगी पर मेरे लंड पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. वो काम वासना के अंतिम चरण पर थी इसलिए उसने मुझसे कहा- मनोज प्लीज़! मुझ से ओर देर तक रुका नहीं जायेगा, मुझे जल्दी से चोदो!
मैंने कहा- रंडी, अभी तो मेरा लंड खड़ा ही नहीं है तो कैसे चोदूँ तुझे!
तभी उसने मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और जोर जोर से चूसने लगी. धीरे धीरे मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया. मैंने उसे बेड पर लिटाया, दोनों टाँगें अपने कंधे पर रखी और लंड उसकी चूत के मुँह पर रख कर एक जोर का धक्का मारा. वो बहुत जोर से चिल्लाई. आवाज़ सुन कर बाहर से आवाज़ आई- क्या हुआ बबली? तेरी चूत फट गई क्या?
मैं जोर जोर के धक्के लगाता रहा, वो चिल्लाती रही पर मैं तो अपने जोश में था, मैं कहाँ रुकने बाला था, धक्के मारता रहा, मारता रहा. मुझे उसकी गांड बहुत ही सुन्दर लग रही थी तो मैंने चूत को छोड़, गांड पर निशाना साधा. मैंने उसकी गांड पर बहुत सा थूक फेंका और उंगली से पूरी गांड पर लगा दिया. धीरे धीरे उंगली उसकी गांड में अन्दर बाहर करने लगा. गांड जब थोड़ी नरम हुई तो मैंने अपना लण्ड उसकी गांड में डाल दिया.
वो फिर चिल्लाई और अपनी गांड को टाइट कर लिया. मेरा लंड अब उसकी गांड में फंसा था, मुझे भी दर्द हो रहा था. मैं धीरे धीरे उसकी गांड में अपना लंड अन्दर बाहर कर रहा था. वो धीरे धीरे नर्म होती जा रही थी और मेरी स्पीड धीरे धीरे तेज़ होती जा रही थी.
अब वो पूरी तरह से नर्म हो चुकी थी, मैं जोर जोर से धक्के लगा रहा था, वो धीरे धीरे चिल्ला रही थी. मैंने उसकी गांड और चूत बहुत देर तक मारी और अलग अलग तरीकों से उसे चोदा. वो तो दो बार पहले ही झड़ चुकी थी, अब वो तीसरी बार झड़ गई और उसके साथ ही मैं भी झड़ने वाला था. मैंने अपना लंड जल्दी से बाहर निकला और उसके मुँह में डाल दिया. वो उसे चूसने लगी और मैं उसके मुँह में ही झड़ गया. वो मेरा सारा का सारा वीर्य पी गई. अब तीनों बहनें खुश थी, तीनों कमरे में आई और मुझे चूमने लगी. तीन ने तो मुझे चोद दिया पर चौथी का क्या? अभी तो वो भी तो बाकी है दोस्तो!
चौथी का क्या हुआ, मैं आप लोगों को जरूर बताऊँगा पर तब जब आप लोग मुझे बतायेंगे कि मेरी आपबीती कहानी कैसी लगी आपको! Sex Stories
मेरी शादी हुए करीब Hindi Sex Stories दस साल हो गये थे। इन दस सालों में मैं अपने पति से ही तन का सुख प्राप्त करती थी। उन्हें अब डायबिटीज हो गई थी और काफ़ी बढ़ भी गई थी। इसी कारण से उन्हें एक बार हृदयघात भी हो चुका था। अब तो उनकी यह हालत हो गई थी कि उनके लण्ड की कसावट भी ढीली होने लगी थी। लण्ड का कड़कपन भी नहीं रहा था। उनका शिश्न में बहुत शिथिलता आ गई थी। वैसे भी जब वो मुझे चोदने की कोशिश करते थे तो उनकी सांस फ़ूल जाती थी, और धड़कन बढ़ जाती थी। अब धीरे धीरे रणवीर से मेरा शारीरिक सम्बन्ध भी समाप्त होने लगा था। पर अभी मैं तो अपनी भरपूर जवानी पर थी, 35 साल की हो रही थी।
जब से मुझे यह महसूस होने लगा कि मेरे पति मुझे चोदने के लायक नहीं रहे तो मुझ पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव होने लगा। मेरी चुदाई की इच्छा बढ़ने लगी थी। रातों को मैं वासना से तड़पने लगी थी। रणवीर को यह पता था पर मजबूर था। मैं उनका लण्ड पकड़ कर खूब हिलाती थी और ढीले लण्ड पर मुठ भी मारती थी, पर उससे तो उनका वीर्य स्खलित हो जाया करता था पर मैं तो प्यासी रह जाती थी।
मैं मन ही मन में बहुत उदास हो जाती थी। मुझे तो एक मजबूत, कठोर लौड़ा चाहिये था ! जो मेरी चूत को जम के चोद सके। अब मेरा मन मेरे बस में नहीं था और मेरी निगाहें रणवीर के दोस्तों पर उठने लगी थी। एक दोस्त तो रणवीर का खास था, वो अक्सर शाम को आ जाया करता था।
मेरा पहला निशाना वही बना। उसके साथ अब मैं चुदाई की कल्पना करने लगी थी। मेरा दिल उससे चुदाने के लिये तड़प जाता था। मैं उसके सम्मुख वही सब घिसी-पिटी तरकीबें आजमाने लगी। मैं उसके सामने जाती तो अपने स्तनो को झुका कर उसे दर्शाती थी। उसे बार बार देख कर मतलबी निगाहों से उसे उकसाती थी। यही तरकीबें अब भी करगार साबित हो रही थी। मुझे मालूम हो चुका था था कि वो मेरी गिरफ़्त में आ चुका है, बस उसकी शरम तोड़ने की जरूरत थी। मेरी ये हरकतें रणवीर से नहीं छुप सकी। उसने भांप लिया था कि मुझे लण्ड की आवश्यकता है।
अपनी मजबूरी पर वो उदास सा हो जाता था। पर उसने मेरे बारे में सोच कर शायद कुछ निर्णय ले लिया था। वो सोच में पड़ गया …
“कोमल, तुम्हें भोपाल जाना था ना… कैसे जाओगी ?”
“अरे, वो है ना तुम्हारा दोस्त, राजा, उसके साथ चली जाऊंगी !”
“तुम्हें पसन्द है ना वो…” उसने मेरी ओर सूनी आंखो से देखा।
मेरी आंखे डर के मारे फ़टी रह गई। पर रणवीर के आंखो में प्यार था।
“नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है … बस मुझे उस पर विश्वास है।”
“मुझे माफ़ कर देना, कोमल… मैं तुम्हें सन्तुष्ट नहीं कर पाता हूं, बुरा ना मानो तो एक बात कहूं?”
“जी… ऐसी कोई बात नहीं है … यह तो मेरी किस्मत की बात है…”
“मैं जानता हूं, राजा तुम्हें अच्छा लगता है, उसकी आंखें भी मैंने पहचान ली है…”
“तो क्या ?…” मेरा दिल धड़क उठा ।
“तुम भोपाल में दो तीन दिन उसके साथ किसी होटल में रुक जाना … तुम्हें मैं और नहीं बांधना चाहता हूं, मैं अपनी कमजोरी जानता हूँ।”
“जानू … ये क्या कह रहे हो ? मैं जिन्दगी भर ऐसे ही रह लूंगी।” मैंने रणवीर को अपने गले लगा लिया, उसे बहुत चूमा… उसने मेरी हालत पहचान ली थी। उसका कहना था कि मेरी जानकारी में तुम सब कुछ करो ताकि समय आने पर वो मुझे किसी भी परेशानी से निकाल सके। राजा को भोपाल जाने के लिये मैंने राजी कर लिया।
पर रणवीर की हालत पर मेरा दिल रोने लगा था। शाम की डीलक्स बस में हम दोनों को रणवीर छोड़ने आया था। राजा को देखते ही मैं सब कुछ भूल गई थी। बस आने वाले पलों का इन्तज़ार कर रही थी। मैं बहुत खुश थी कि उसने मुझे चुदाने की छूट दे दी थी। बस अब राजा को रास्ते में पटाना था। पांच बजे बस रवाना हो गई। रणवीर सूनी आंखों से मुझे देखता रहा। एक बार तो मुझे फिर से रूलाई आ गई… उसका दिल कितना बड़ा था … उसे मेरा कितना ख्याल था… पर मैंने अपनी भावनाओं पर जल्दी ही काबू पा लिया था।
हमारा हंसी मजाक सफ़र में जल्दी ही शुरू हो गया था। रास्ते में मैंने कई बार उसका हाथ दबाया था, पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। पर कब तक वो अपने आप को रोक पाता… आखिर उसने मेरा हाथ भी दबा ही दिया। मैं खुश हो गई…
रास्ता खुल रहा था। मैंने टाईट सलवार कुर्ता पहन रखा था। अन्दर पैंटी नहीं पहनी थी, ब्रा भी नहीं पहनी थी। यह मेरा पहले से ही सोचा हुआ कार्यक्रम था । वो मेरे हाथों को दबाने लगा। उसका लण्ड भी पैंट में उभर कर अपनी उपस्थिति दर्शा रहा था। उसके लण्ड के कड़कपन को देख कर मैं बहुत खुश हो रही थी कि अब इसे लण्ड से मस्ती से चुदाई करूंगी। मैं किसी भी हालत में राजा को नहीं छोड़ने वाली थी।
“कोमल … क्या मैं तुम्हें अच्छा लगता हूं…?”
“हूं … अच्छे लोग अच्छे ही लगते हैं…” मैंने जान कर अपना चहरा उसके चेहरे के पास कर लिया। राजा की तेज निगाहें दूसरे लोगों को परख रही थी, कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा है। उसने धीरे से मेरे गाल को चूम लिया। मैं मुस्करा उठी … मैंने अपना एक हाथ उसकी जांघो पर रख दिया और हौले हौले से दबाने लगी। मुझे जल्दी शुरूआत करनी थी, ताकि उसे मैं भोपाल से पहले अपनी अदाओं से घायल कर सकूं।
यही हुआ भी …… सीटे ऊंची थी अतः वो भी मेरे गले में हाथ डाल कर अपना हाथ मेरी चूचियों तक पहुँचाने की कोशिश करने लगा। पर हाय राम ! बस एक बार उसने कठोर चूचियों को दबाया और जल्दी से हाथ हटा लिया। मैं तड़प कर रह गई। बदले में मैंने भी उसका उभरा लण्ड दबा दिया और सीधे हो कर बैठ गई। पर मेरा दिल खुशी से बल्लियों उछल रहा था। राजा मेरे कब्जे में आ चुका था। अंधेरा बढ़ चुका था… तभी बस एक मिड-वे पर रुकी।
राजा दोनों के लिये शीतल पेय ले आया। कुछ ही देर में बस चल पड़ी। दो घण्टे पश्चात ही भोपाल आने वाला था। मेरा दिल शीतल पेय में नहीं था बस राजा की ओर ही था। मैं एक हाथ से पेय पी रही थी, पर मेरा दूसरा हाथ … जी हां उसकी पैंट में कुछ तलाशने लगा था … गड़बड़ करने में मगशूल था। उसका भी एक हाथ मेरी चिकनी जांघों पर फ़िसल रहा था। मेरे शरीर में तरावट आने लगी थी। एक लम्बे समय के बाद किसी मर्द के साथ सम्पर्क होने जा रहा था। एक सोलिड तना हुआ लण्ड चूत में घुसने वाला था। यह सोच कर ही मैं तो नशे में खो गई थी।
तभी उसकी अंगुली का स्पर्श मेरे दाने पर हुआ। मैं सिह उठी। मैंने जल्दी से इधर उधर देखा और किसी को ना देखता पा कर मैंने चैन की सांस ली। मैंने अपनी चुन्नी उसके हाथ पर डाल दी। अंधेरे का फ़ायदा उठा कर उसने मेरी चूचियाँ भी सहला दी थी। मैं अब स्वतन्त्र हो कर उसके लण्ड को सहला कर उसकी मोटाई और लम्बाई का जायजा ले रही थी।
मैं बार बार अपना मुख उसके होंठों के समीप लाने का प्रयत्न कर रही थी। उसने भी मेरी तरफ़ देखा और मेरे पर झुक गया। उसके गीले होंठ मेरे होंठों के कब्जे में आ गये थे। मौका देख कर मैंने पैंट की ज़िप खोल ली और हाथ अन्दर घुसा दिया। उसका लण्ड अण्डरवियर के अन्दर था, पर ठीक से पकड़ में आ गया था।
वो थोड़ा सा विचलित हुआ पर जरा भी विरोध नहीं किया। मैंने उसकी अण्डरवियर को हटा कर नंगा लण्ड पकड़ लिया। मैंने जोश में उसके होंठों को जोर से चूस लिया और मेरे मुख से चूसने की जोर से आवाज आई। राजा एक दम से दूर हो गया। पर बस की आवाज में वो किसी को सुनाई नहीं दी। मैं वासना में निढाल हो चुकी थी। मन कर रहा था कि वो मेरे अंगों को मसल डाले। अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा डाले … पर बस में तो यह सब सम्भव नहीं था। मैं धीरे धीरे झुक कर उसकी जांघों पर अपना सर रख लिया। उसकी जिप खुली हुई थी, लण्ड में से एक भीनी भीनी से वीर्य जैसी सुगन्ध आ रही थी। मेरे मुख से लण्ड बहुत निकट था, मेरा मन उसे अपने मुख में लेने को मचल उठा। मैंने उसका लण्ड पैंट में से खींच कर बाहर निकाल लिया और अपने मुख से हवाले कर लिया। राजा ने मेरी चुन्नी मेरे ऊपर डाल दी। उसके लण्ड के बस दो चार सुटके ही लिये थे कि बस की लाईटें जल उठी थी। भोपाल आ चुका था। मैंने जैसे सोने से उठने का बहाना बनाया और अंगड़ाई लेने लगी। मुझे आश्चर्य हुआ कि सफ़र तो बस पल भर का ही था ! इतनी जल्दी कैसे आ गया भोपाल ? रात के नौ बज चुके थे।
रास्ते में बस स्टैण्ड आने के पहले ही हम दोनों उतर गये। राजा मुझे कह रहा था कि घर यहाँ से पास ही है, टैक्सी ले लेते हैं। मैं यह सुन कर तड़प गई- साला चुदाई की बात तो करता नहीं है, घर भेजने की बात करता है।
मैंने राजा को सुझाव दिया कि घर तो सवेरे चलेंगे, अभी तो किसी होटल में भोजन कर लेते हैं, और कहीं रुक जायेंगे। इस समय घर में सभी को तकलीफ़ होगी। उन्हें खाना बनाना पड़ेगा, ठहराने की कवायद शुरू हो जायेगी, वगैरह।
उसे बात समझ में आ गई। राजा को मैंने होटल का पता बताया और वहाँ चले आये।
“तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे भला…”
“तुम्हें क्या … मैं कोई भी बहाना बना दूंगी।”
कमरे में आते ही रणवीर का फोन आ गया और पूछने लगा। मैंने उसे बता दिया कि रास्ते में तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई, और हम दोनों होटल में रुक गये हैं।
“किसका फोन था… रणवीर का …?”
“हां, मैंने बता दिया है कि हम एक होटल में अलग अलग कमरे में रुक गये हैं।”
“तो ठीक है …” राजा ने अपने कपड़े उतार कर तौलिया लपेट लिया था, मैंने भी अपने कपड़े उतारे और ऊपर तौलिया डाल लिया।
“मैं नहाने जा रही हूँ …”
“ठीक है मैं बाद में नहा लूंगा।”
मुझे बहुत गुस्सा आया … यूं तो हुआ नहीं कि मेरा तौलिया खींच कर मुझे नंगी कर दे और बाथ रूम में घुस कर मुझे खूब दबाये … छीः … ये तो लल्लू है। मैं मन मार कर बाथ रूम में घुस गई और तौलिया एक तरफ़ लटका दिया। अब मैं नंगी थी।
मैंने झरना खोल दिया और ठण्डी ठण्डी फ़ुहारों का आनन्द लेने लगी।
“कोमल जी, क्या मैं भी आ जाऊं नहाने…?”
मैं फिर से खीज उठी… कैसा है ये आदमी … साला एक नंगी स्त्री को देख कर भी हिचकिचा रहा है। मैंने उसे हंस कर तिरछी निगाहों से देखा। वो नंगा था …
उसका लण्ड तन्नाया हुआ था। मेरी हंसी फ़ूट पड़ी।
“तो क्या ऐसे ही खड़े रहोगे … वो भी ऐसी हालत में … देखो तो जरा…”
मैंने अपना हाथ बढ़ाकर उसका हाथ थाम लिया और अपनी ओर खींच लिया। उसने एक गहरी सांस ली और उसने मेरी पीठ पर अपना शरीर चिपका लिया। उसका खड़ा लण्ड मेरे चूतड़ों पर फ़िसलने लगा। मेरी सांसें तेज हो गई। मेरे गीले बदन पर उसके हाथ फ़िसलने लगे। मेरी भीगी हुई चूचियाँ उसने दबा डाली। मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा था। हम दोनों झरने की बौछार में भीगने लगे। उसका लण्ड मेरी चूतड़ों की दरार को चीर कर छेद तक पहुंच गया था। मैं अपने आप झुक कर उसके लण्ड को रास्ता देने लगी। लण्ड का दबाव छेद पर बढ़ता गया और हाय रे ! एक फ़क की आवाज के साथ अन्दर प्रवेश कर गया। उसका लण्ड जैसे मेरी गाण्ड में नहीं बल्कि जैसे मेरे दिल में उतर गया था। मैं आनन्द के मारे तड़प उठी।
आखिर मेरी दिल की इच्छा पूरी हुई। एक आनन्द भरी चीख मुख से निकल गई।
उसने लण्ड को फिर से बाहर निकाला और जोर से फिर ठूंस दिया। मेरे भीगे हुये बदन में आग भर गई। उसके हाथों ने मेरे उभारों को जोर जोर से हिलाना और मसलना आरम्भ कर दिया था। उसका हाथ आगे से बढ़ कर चूत तक आ गया था और उसकी दो अंगुलियां मेरी चूत में उतर गई थी। मैंने अपनी दोनों टांगें फ़ैला ली थी।
उसके शॉट तेज होने लगे थे। अतिवासना से भरी मैं बेचारी जल्दी ही झड़ गई।
उसका वीर्य भी मेरी टाईट गाण्ड में घुसने के कारण जल्दी निकल गया था।
हम स्नान करके बाहर आ गये थे। पति पत्नी की तरह हमने एक दूसरे को प्यार किया और रात्रि भोजन हेतु नीचे प्रस्थान कर गये।
तभी रणवीर का फोन आया,” कैसी हो। बात बनी या नहीं…?”
“नहीं जानू, वो तो सो गया है, मैं भी खाना खाकर सोने जा रही हूँ !”
“तुम तो बुद्धू हो, पटे पटाये को नहीं पटा सकती हो…?”
“अरे वो तो मुझे भाभी ही कहता रहा … लिफ़्ट ही नहीं मार रहा है, आखिर तुम्हारा सच्चा दोस्त जो ठहरा !”
“धत्त, एक बार और कोशिश करना अभी … देखो चुद कर ही आना …।”
“अरे हां मेरे जानू, कोशिश तो कर रही हूँ ना … गुडनाईट”
मैं मर्दों की फ़ितरत पहचानती थी, सो मैंने चुदाई की बात को गुप्त रखना ही बेहतर समझा। राजा मेरी बातों को समझने की कोशिश कर रहा था। हम दोनों खाना खाकर सोने के लिये कमरे में आ गये थे। मेरी तो यह यात्रा हनीमून जैसी थी, महीनों बाद मैं चुदने वाली थी। गाण्ड तो चुदा ही चुकी थी। मैंने तुरंत हल्के कपड़े पहने और बिस्तर पर कूद गई और टांगें पसार कर लेट गई।
“आओ ना … लेट जाओ …” उसका हाथ खींच कर मैंने उसे भी अपने पास लेटा दिया।
“राजा, घर पर तुमने खूब तड़पाया है … बड़े शरीफ़ बन कर आते थे !”
“आपने तो भी बहुत शराफ़त दिखाई… भैया भैया कह कर मेरे लण्ड को ही झुका देती थी !”
“तो और क्या कहती, सैंया… सैंया कहती … बाहर तो भैया ही ठीक रहता है।”
मैं उसके ऊपर चढ़ गई और उसकी जांघों पर आ गई।
“यह देख, साला अब कैसा कड़क रहा है … निकालूँ मैं भी क्या अपनी फ़ुद्दी…” मैंने आंख मारी।
“ऐ हट बेशरम … ऐसा मत बोल…” राजा मेरी बातों से झेंप गया।
“अरे जा रे … मेरी प्यारी सी चूत देख कर तेरा लण्ड देख तो कैसा जोर मार रहा है।”
“तेरी भाषा सुन कर मेरा लण्ड तो और फ़ूल गया है…”
“तो ये ले डाल दे तेरा लण्ड मेरी गीली म्यानी में…।”
मैंने अपनी चूत खोल कर उसका लाल सुपाड़ा अपनी चूत में समा दिया। एक सिसकारी के साथ मैं उससे लिपट पड़ी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि किसी गैर मर्द का लण्ड मेरी प्यासी चूत में उतर रहा है। मैंने अपनी चूत का और जोर लगाया और उसे पूरा समा लिया। उसका फ़ूला हुआ बेहद कड़क लौड़ा मेरी चूत के अन्दर-बाहर होने लगा था। मैं आहें भर भर कर अपनी चूत को दबा दबा कर लण्ड ले रही थी। मुझमें अपार वासना चढ़ी जा रही थी। इतनी कि मैं बेसुध सी हो गई। जाने कितनी देर तक मैं उससे चुदती रही। जैसे ही मेरा रस निकला, मेरी तन्द्रा टूटी। मैं झड़ रही थी, राजा भी कुछ ही देर में झड़ गया।
मेरा मन हल्का हो गया था। मैं चुदने से बहुत ही प्रफ़ुल्लित थी। कुछ ही देर में मेरी पलकें भारी होने लगी और मैं गहरी निद्रा में सो गई। अचानक रात को जैसे ही मेरी गाण्ड में लण्ड उतरा, मेरी नींद खुल गई। राजा फिर से मेरी गाण्ड से चिपका हुआ था। मैं पांव फ़ैला कर उल्टी लेट गई। वो मेरी पीठ चढ़ कर मेरी गाण्ड मारने लगा। मैं लेटी लेटी सिसकारियाँ भरती रही। उसका वीर्य निकल कर मेरी गाण्ड में भर गया। हम फिर से लेट गये। गाण्ड चुदने से मेरी चूत में फिर से जाग हो गई थी। मैंने देखा तो राजा जाग रहा था। मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया और मैं एक बार फिर से राजा के नीचे दब गई। उसका लण्ड मेरी चूत को मारता रहा। मेरी चूत की प्यास बुझाता रहा। फिर हम दोनों स्खलित हो गये। एक बार फिर से नींद का साम्राज्य था। जैसे ही मेरी आंख खुली सुबह के नौ बज रहे थे।
“मैं चाय मंगाता हूँ, जितने तुम फ़्रेश हो लो !”
नाश्ता करने के बाद राजा बोला,”अब चलो तुम्हें घर पहुंचा दूँ…”
पर घर किसे जाना था… यह तो सब एक सोची समझी योजना थी।
“क्या चलो चलो कर रहे हो ?… एक दौर और हो जाये !”
राजा की आंखे चमक उठी … देरी किस बात की थी… वो लपक कर मेरे ऊपर चढ़ गया।
मेरे चूत के कपाट फिर से खुल गये थे। भचाभच चुदाई होने लगी थी। बीच में दो बार रणवीर का फोन भी आया था। चुदने के बाद मैंने रणवीर को फोन लगाया।
“क्या रहा जानू, चुदी या नहीं…?”
“अरे अभी तो वो उठा है … अब देखो फिर से कोशिश करूंगी…”
तीन दिनों तक मैं उससे जी भर कर चुदी, चूत की सारी प्यास बुझा ली। फिर जाने का समय भी आया। राजा को अभी तक समझ नहीं आया था कि यहाँ तीन तक हम दोनों मात्र चुदाई ही करते रहे… मैं अपने घर तो गई ही नहीं।
“पर रणवीर को पता चलेगा तो…?”
“मुझे रणवीर को समझाना आता है !”
घर आते ही रणवीर मुझ पर बहुत नाराज हुआ। तीन दिनों में तुम राजा को नहीं पटा सकी।
“क्या करूँ जानू, वो तो तुम्हारा सच्चा दोस्त है ना… हाथ तक नहीं लगाया !”
“अच्छा तो वो चिकना अंकित कैसा रहेगा…?”
“यार उसे तो मैं नहीं छोड़ने वाली, चिकना भी है… उसके ऊपर ही चढ़ जाऊंगी…”
रण्वीर ने मुझे फिर प्यार से देखा और मेरे सीने को सहला दिया।
“सीऽऽऽऽऽऽ स स सीईईईई …ऐसे मत करो ना … फिर चुदने की इच्छा हो जाती है।”
“ओह सॉरी… जानू … लो वो अंकित आ गया !”
अंकित को फ़ंसाना कोई कठिन काम नहीं था, पर रणवीर के सामने यह सब कैसे होगा…। उसे भी धीरे से डोरे डाल कर मैंने अपने जाल में फ़ंसा लिया। फिर दूसरा पैंतरा आजमाया। सुरक्षा के लिहाज से मैंने देखा कि अंकित का कमरा ही अच्छा था। उसके कमरे में जाकर चुद आई और रणवीर को पता भी ही नहीं चल पाया।
मुझे लगा कि जैसे मैं धीरे धीरे रण्डी बनती जा रही हूँ … मेरे पति देव अपने दोस्तों को लेकर आ जाते थे और एक के बाद एक नये लण्ड मिलते ही जा रहे थे … और मैं कोई ना कोई पैंतरा बदल कर चुद आती थी… है ना यह गलत बात !
पतिव्रता होना पत्नी का पहला कर्तव्य है। पर आप जानते है ना चोर तो वो ही होता है जो चोरी करता हुआ पकड़ा जाये … मैं अभी तक तो पतिव्रता ही हूँ … पर चुदने से पतिव्रता होने का क्या सम्बन्ध है ? यह विषय तो बिल्कुल अलग है। मैं अपने पति को सच्चे दिल से चाहती हूँ। उन्हें चाहना छोड़ दूंगी तो मेरे लिये मर्दों का प्रबन्ध कौन करेगा भला ?
मेरे जानू… मेरे दिलवर, तुम्हारे लाये हुये मर्द से ही तो मैं चुदती हूँ … Hindi Sex Stories
समय पीछे चला जाता है लेकिन Hindi Sex Stories उसकी कुछ खट्टी मीठी यादें जो मन पर अपना प्रभाव बनाए ही रखती हैं! और जब वे यादें बेचैन करने लगती हैं तो बस बेचैनी से बचने का एक ही मार्ग होता है वह यह कि उन्हें किसी से बांट दिया जाए! यह कुछ ऐसी ही याद है जो मैं आपसे बांटना चाहता हूँ!
मेरी बी-टेक की परीक्षा का अन्तिम से पहला सेमेस्टर बजाय दिसंबर जनवरी के अप्रैल महीने में समाप्त हुआ। तभी गोरखपुर से चाचा जी की बेटी यानि कि दीदी का फोन आ गया कि घर जाने से पहले तीन-चार दिन के लिए आ जाओ।
मैं बचपन से ही उनसे लगा था। लेकिन इधर कई साल हो गये उन्हें देखा भी नहीं था, उधर गांव से भी फोन आ गया कि गोरखपुर हो कर आना।
दीदी की शादी हुए लगभग दस साल हो गये थे। जीजा जी बिजली विभाग में क्लर्क हैं, ऊपरी आमदनी का प्रभाव घर के रखरखाव से तुरन्त ही लग गया।
स्कूल से लौटे तो मैंने देखा कि टीना और अनिकेत तो इतने बड़े हो गये कि पहचान में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन अनुमान लगाने में को कठिनाई नहीं हुई, मगर उनके आने के कुछ देर बाद जो अजनबी लड़की में आई उसे देखकर मैं चौंका। सामान्य से अधिक लम्बी, स्कर्ट के नीचे मेरी निगाह गई तो उसकी लम्बी और पतली सुन्दर और चिकनी टांगे देख कर मन अजीब सा हुआ।
उसने ‘मामा जी नमस्ते’ कहा तो मेरी दृष्टि ऊपर गई। देखा आंखें फट सी गईं। शरीर के अनुपात से कहीं भारी, लम्बी और भारी उसकी दोनों छातियां उसके खूबसूरत प्रिन्टेड ब्लाउज फाड़कर बाहर निकलने को आतुर दिखीं। उसने संभवतः मुझे देखते हुए देख लिया।
वह शरमाई तो मैंने निगाहें नीचे कर लीं। तभी अन्दर वाले कमरे से दीदी आ गईं। मैंने तब उनको भी ध्यान से देखा। जो दीदी पहले दुबली पतली थी अब उनका शरीर भर गया था और काफी सुन्दर लगने लगी थीं।
दीदी ने बताया- यह सोनम है जेठ की बेटी। गांव से आठ पास करके साथ ही है अबकी बार बी ए के प्रथम वर्ष की परीक्षा दे रही थी और आज ही अन्तिम पेपर था।
शाम तक सोनम मुझसे काफी घुलमिल गई। वह बेहद बातूनी और चंचल थी। अब तक कई बार वह किसी न किसी बहाने अपने शरीर को मेरे शरीर से स्पर्श करा चुकी थी।
उसकी बातों के केन्द्र में गर्लफ्रेन्ड और लड़के ही अधिक थे। दोनों बच्चे भी परीक्षा देकर अगली कक्षाओं में आ गये थे, अभी पढ़ाई का दबाव भी अधिक नहीं था।
सोनम तो मेरे आने से बहुत ही प्रसन्न थी। असल में मेरा गांव और दीदी के गांव से बहुत दूर नहीं था। दो दिन बाद उसे मेरे साथ उसे भी जाना था।
जीजा जी इधर काम के कारण काफी देर से आने लगे थे इस लिए सब्जी लेने दीदी ही जातीं। शाम में वह अनिकेत को लेकर मार्केट चली गई तो घर में मैं टीना और सोनम ही थे।
टीना अभी नादान थी। फर्श पर बिछे गद्दे पर मैं लेटा था। टीना मेरे पैर की उंगलियों को चटका रही थी।
बातें करते सोनम ने कहा- लाओ मैं सर दबा दूं।
फिर मेरे बिना कुछ कहे ही मेरे सिर के पास आकर बैठ गई। और सर में अपनी उंगलियां धीरे-धीरे चलाने लगी। धीरे-धीरे उसके शरीर की सुगंध मुझे मस्त करने लगी। मैंने आंखें ऊपर उठाकर देखा तो उसकी बड़ी नुकीली चूचियां मेरे सर पर तनी थी। संभवतः वह भी उत्तेजित सी थी, क्योंकि मुझे लगा कि उसके चूचुक भी तने हैं। उसने ब्रा नहीं पहनी थी।
मैंने अंगड़ाई लेने के बहाने हाथ पीछे किया तो मेरे पंजे उसकी चूचियों से छू गये। लेकिन मैंने रुकने नहीं दिया और टीना से कहा- अब बस, जाओ.
वह जाकर टीवी देखने लगी। सोनम उसी तरह मेरे बालों में उंगली किये जा रही थी। मैंने फिर सामने टीना की तरफ देखते हुए फिर हाथों को पीछे ले जाकर उसकी चूचियों से स्पर्श कराते हुए वहीं रोक दिया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, हां हाथ अवश्य रुक गये।
एक पल रुकने के बाद मैं हौले हौले उसकी चूचियों पर हाथ फिराने लगा। कुछ क्षणों बाद उसने मेरे हाथ को वहां से हटाकर धीरे से कहा- टीना छोटी नहीं!
उसके इस उत्तर से मेरी बांछें खिल उठीं। मैंने हाथ को अंगड़ाई के बहाने ले जाकर उसकी जांघों पर रख दिया। वह चिकनी और संभवतः बरफी की तरह सफेद थीं। मैं रह-रह कर उसके पेड़ू को भी छू देता। उसने कच्छी नहीं पहन रखी थी। उसकी झांटों और मेरे हाथों के बीच उसकी सलवार का झीना कपड़ा ही था।
सामने मेरा लिंग अकड़कर खड़ा हो गया और मेरे लोअर के अन्दर बांस की तरह तनकर उसे उठा दिया। जब सोनम की दृष्टि उस पर पड़ी तो वह मुस्कुराने लगी।
मैंने अपने हाथों को फिर ऊपर लेजा कर उसकी चूचियों से स्पर्श कराया तो लगा कि उसकी घुंडियां बिल्कुल तन कर खड़ी हो गई हैं।
छुआ-छुई का यह खेल चल ही रहा था तभी टीना फिर आ गई और पास बैठ गई। हम दोनों रुक गये। मैंने झट अपनी लम्बी टी-शर्ट को नीचे खींच दिया, लेकिन हमारे महाराज जी झुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो मैं झट से उठ गया।
सोनम भी मेरे साथ ही उठ गई। उसने चुन्नी अपने सीने पर नहीं रखी थीं। चूचियां कपड़े के ऊपर से ही वह पूरी तनी बिल्कुल स्तूप की तरह लग रही थीं।
रसोई की तरफ जाते हुए मैंने कहा- चाय पीने का मन हो रहा है।
“चलो बना दूं।” कहते हुए वह मेरे पीछे रसोई में आ गई।
अन्दर जाते ही मैंने उसे कचकचाकर लिपटा लिया और पूरी शक्ति से उसके शरीर को जकड़ लिया। वह कसमसाकर कुछ कहती इससे पहले ही अपने ओंठ उसके ओंठों पर रखकर जबरदस्ती उसके मुंह में अपनी जीभ डाल दी।
ह गों-गों कर उठी तो जीभ को निकाला। तब वह कांपते स्वर में बोली- छोड़ो अभी टीना आ जाये तो!
मैंने उसे छोड़कर कहा- भगवान कसम … अभी तक मैंने इतनी कसी और सुन्दर चूचियां तो फिल्मों की हीरोइनों तक की नहीं देखी!
वह अब स्थिर हो चुकी थी, बोली- तुम तो बहुत हरामी हो मामा!
मैंने धीरे से कहा- सोनम मैं बिना तुमको लिए छोड़ूंगा नहीं!
उसने ठेंगा दिखाते हुए कहा- बड़े आये लेने वाले!
और फिर मेरे अभी तक खड़े लन्ड को ऊपर से नौच कर भाग गई।
दीदी सामान लेकर आईं और रसोई में चली गईं। दोनों बच्चे पढ़ने बैठ गये तो मैं छत पर चला गया और कुछ देर बाद सोनम को भी पुकारकर ऊपर बुला लिया। हमारी दीदी का मुहल्ला निम्न-मध्यवर्गीय मुहल्ला था। छतें एक दूसरे से सटी थीं। अंधेरा पूरी तरह से घिर आया था, इसलिए इक्का-दुक्का लोग ही अपनी छत पर थे।
“सोनम दोगी नहीं?”
“क्या?”
“बुर! या अगर हो गई हो तो चूत!”
“मतलब?”
“मतलब यह कि अगर किसी से चुदवा चुकी हो तो चूत हो गई होगी नहीं तो अभी बुर ही होगी! बताओ क्या है?”
“हट!”
“हट नहीं! नहीं प्लीज सोनम! दे दो न!” मैंने उसे पलसाने के लिए कहा।
“बहुत बड़ा पाप है। फिर तुम तो मामा हो!”
“मैं कोई सगा मामा थोड़ी न हूं?”
“चाहे जो हो, मैं यह काम नहीं करूंगी। मुझे डर लगता है!”
उसने इस अन्दाज में कहा कि मुझे लग गया कि अभी तो बात बनने वाली नहीं, तो मैंने बातो को दूसरी तरफ मोड़कर कहा- अच्छा सच बताओ किसी से करवाया है कि नहीं?
“भगवान कसम नहीं।”
“मिंजवाई हो?”
“भला कौन लड़की होगी जिसकी किसी न किसी ने कभी मींजी न हो।”
फिर उसने कहा- तुमने मामा? तुमने मींजी हैं?
“हां, तुम्हारी ही!”
“धत! पहले?”
“मींजी तो कइयों की है, और ली भी है, लेकिन पूछना नहीं किसकी। कभी बाद में बताऊंगा। अच्छा बताओ तुम इसके बारे में ठीक से जानती हो?”
उसने मुस्कुराकर कहा- किसके?”
मैंने खीजकर कहा- बुर की पेलाई या कहो चुदाई के संबंध में!
“हाय राम यह भला कौन नहीं जानती होगी? इतना तो टीना को भी पता होगा!”
“अच्छा अपनी बताओ कि तुम को कैसे पता चला?”
“क्यों बताऊं?”
मैंने अन्त में कहा-सोनम मैं बिना लिए तुम्हारी छोड़ूंगा नहीं!
और फिर इधर उधर की बातें होने लगीं। बात फिर आकर पेलने, चोदने और लन्ड, बुर पर रुक गई। अन्त में सोनम ने यह वादा किया कि ऊपर से मैं चाहे जो कर लूं, लेकिन वह किसी भी कीमत पर मेरा लन्ड अपनी बुर में डालने नहीं देगी।
बाद के दो दिनों में वह सोई तो दीदी के कमरे में क्योंकि दीदी को माहवारी आ रही थी। यह भी उसी ने बताया, लेकिन दिन में जैसे ही अवसर मिलता हम दोनो एक दूसरे को नौचने चूसने में लग जाते। एकाध बार तो वह बुरी तरह से उत्तेजित भी हो गई, लेकिन उचित अवसर ही नहीं मिला। दीदी भी न जाने क्यों हमें अकेला नहीं छोड़ रही थीं।
यद्यपि मुझे अन्त तक यह लगने लगा कि अगर अकेले मिल जाए तो करवा लेगी।
मैं तीसरे दिन के बजाय चौथे जाने के लिए तैयार हुआ। उस दिन इतवार था। शहर से हमारे गांव की दूरी अधिक नहीं थी। तीन घण्टे बस से लगते थे। बीच में बदलकर अन्त में चार किलोमीटर का पैदल या फिर अपने निजी वाहन का रास्ता है। पैंसजर ट्रेन भी जाती थी, समय थोड़ा अधिक लगता था परन्तु आराम था।
बारह बजे की गाड़ी थी। प्रोग्राम यह बना कि चार बजे के लगभग गाड़ी पास के कस्बे पहुँच जायेगी फिर वहां से बस पकड़कर एकाध घंटे में अपने गांव की सड़क पर पहुंच जायेंगे। आगे अगर फोन लग गया तो कह दिया जायेगा कोई आ जायेगा, नहीं तो किसी रिक्शा या हम लोग पैदल ही निकल जायेंगे।
हमारा क्षेत्र बहुत शांत है। किसी तरह की चोरी डकैती या दूसरी घटनाओं से मुक्त! इसलिए हम लोगों को आने जाने का भय नहीं होता अक्सर किसी कारण से देर हो जाने के बाद लोग बारह-बारह बजे रात तक में अकेले आ जाते।
यद्यपि सोनम ट्रेन से आने में घबरा रही थी, कहीं लेट न हो जाये!
हुआ भी वही, बारह से एक बज गया फिर दो, तब जाकर कहीं गाड़ी आई। घर फोन से बात करने की कोशिश की लेकिन संभवतः सम्पर्क ना होने के कारण बात नहीं हो पाई। अभी हमारे यहां यह सुविधा उतनी अच्छी नहीं थी। जाते जाते चाचा कह गये कि मुहानी पर कोई आ गया तो आ गया, नहीं तो वहीं सम्पत साह के यहां सामान रख कर पैदल ही चले जाना।
हम लोग बैठे तो देर हो जाने की घबराहट थी लेकिन गाड़ी में बैठते ही हवा हो गई। सोनम खिड़की तरफ बैठी, फिर मैं। हम लोगों की यात्रा तो ऐसे कटी जैसे पति पति पत्नी हों। वह लगातार मेरे हाथों से खेलती रही। कभी-कभी अपने हाथों की कुहनियों को मेरे लंड पर पैंट के ऊपर से दबाती मेरे हाथ तो पूरी यात्रा में किसी न किसी तरह उसकी चूचियों के संपर्क में ही रहे।
अवसर देखकर कामुक बातें भी होती रहीं। मुझे उसकी जानकारियाँ सुनकर आश्चर्य हुआ। उसने बताया कि दीदी और जीजा कभी कभी गंदी फिल्म देखते हैं। जिसमे कभी दो आदमी एक की लेते हैं तो कभी एक दो की!
कहने लगी कि चाचा चाची की निरोध लगाकर ही करते हैं। उसने यह भी बताया कि उसने दरवाजे में एक छेद ऐसा कर रखा है कि जिससे वह जब चाहे उन लोगों की चुदाई देखे, मगर वह जान नहीं सकते।
ऐसे में यात्रा जब समाप्त हुई तो पता चला कि गाड़ी रास्ते और लेट हो गई। स्टेशन पर पहुंचते-पहुंचते सात बज गये। हल्का अंधेरा हो गया। सोनम डरने लगी। लेकिन बस जल्दी ही मिल गई। कुछ दूर जाने के बाद पहिया पंक्चर हो गया। और देर होती देख सोनम घबराने लगी, लेकिन मेरा मन प्रसन्नता से झूम उठा। मैंने निश्चय कर लिया अब सोनम को कुंआरी नहीं रहने दूंगा।
जब हम लोग मुहानी पर पहुंचे तो आठ का समय हो गया था। अंधेरा घिर आया था, लेकिन चांद भी निकलने की तैयारी में था। सोनम तो रोने लगी कि अब क्या होगा!
मैंने दिलासा दिया तो जाने को तैयार हुई।
सामान साह जी के यहां रखने गये तो योजना के अनुसार सोनम को थोड़ा दूर खड़ा करके कह दिया कि चाची हैं। वह अड़ गये कि सायकिल ले लो, लेकिन मैंने यह कहकर मना का दिया कि वह पैदल ही जायेंगी।
गांव में जाने का एक थोड़ा निकट का रास्ता था, लेकिन वह पलाश और कुश के छोटे से जंगल में से जाता था। मैंने वही रास्ता पकड़ा तो वह रुक गई।
क्योंकि उसे पता था कि एक सड़क भी है, लेकिन मेरे समझाने और डर समाप्त करने के बाद ही वह जाने को तैयार हुई। पगडंडियां तमाम थीं। मैंने जानबूझकर अलग पगडंडी पकड़ी। चूंकि बचपन से मैं इतनी बार इधर से गया था कि मुझे रास्ते का चप्पा चप्पा पता था। मेरे कंधे पर छोटा सा बैग था। जिसमे मेरे कपड़े थे। उसका सामान तो रख दिया था।
उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ लिया था।
थोड़ी दूर जाकर मैंने कहा- हाथ छोड़ो, मैं जरा मूत लूं!
वह बोली- नहीं मुझे डर लग रहा है, यहीं मूतो!
तब तक चांदनी के प्रकाश का प्रभाव वातावरण में उभर गया था। मैं उत्तेजित होने लगा। मुतास के कारण मेरा लंड पहले से ही खड़ा था मैंने उसी के सामने लंड को पैंट से निकाला और छल छल मूतने लगा। मूतने के बाद जब लंड हिलाकर बूंदें गिराने लगा तो वह बोली- बीज गिरा रहे हो मामा?
मैंने कहा- बीज तो तुम्हारी बुर में गिराऊंगा।
“कैसे?”
“तुम्हें चोदकर और कैसे?” इतना कह कर मैं लंड को यूं ही बाहर लटकाये चल पड़ा।
और हाथ उसके कंधे पर रखकर बगल से उसकी चूचियों को सहलाने लगा। वह कड़ी होने लगीं तो और तेज मलने लगा। वह उत्तेजित होकर मुझसे चिपकने लगी। चूचियां बड़े लम्बे आम का रूप धारण करने लगीं। मैंने रुककर मुंह में सटाकर अपनी जीभ उसके मुंह में डालकर जो चूसा तो बोली- मामा लगता है कि आज तुम मुझे खराब करके ही छोड़ोगे!
“मतलब?”
“मतलब न पूछो!” कहकर वह बोली- मुझे भी मूतना है!
कहकर वह वहीं सलवार खोलकर बैठ गई।
जानवरों को चारा खिलाने वाली नाद की तरह उसके चूतड़ सामने आ गये। वह सीटी बजाती शर-शर मूतने लगी। मैं अपने खड़े लन्ड को उसकी कनपटियों से रगड़ने लगा।
मूत कर उठी तो सलवार बांधने से पहले ही मैंने उसकी झांटों से भरी चूत को मुट्ठी में पकड़ लिया वह मूत से गीली हो रही थी। उसने हल्का सा प्रतिरोध किया- छोड़ो न!
अब तक चांदनी खिल चुकी थी। चारों तरफ सन्नाटा था। मुझे याद आया कि थोड़ा अन्दर एक छोटी सी पोखर है। मैं उसी तरफ उसे लिपटाये चला गया।
पोखर में पानी तो कम था, लेकिन उसके किनारे साफ स्थान था। पास में सफेद पुष्प खिले थे। वातावरण मादक था। उसने मस्ती भरे स्वर में कहा- यहां क्यों आये?
मैंने कहा- तुम्हें लेने के लिए।
फिर उससे खड़े ही खड़े ही लिपट गया।
वह मेरे ही बराबर थी। उसके बाल खुल गये थे। उसकी कड़ी होकर पत्थर चूचियां मेरे सीने से टकराकर मेरे अन्दर आग भर रही थीं। मैंने हाथ को पीछे ले जाकर उसके उभरे चूतड़ों को पकड़ लिया और मुंह को उसके मुंह से लगाकर उसके चेहरे और होंठों को चूसने लगा। उसने भी मुझे जकड़ लिया। मेरा लंड खड़ा होकर सलवार के ऊपर से उसकी चूत को चूमने लगा।
वह थोड़ी देर बाद अलग होकर बोली- अब चलो मुझे डर लग रहा है।
मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए बैग खोल कर अपनी लुंगी निकाल कर बिछा दी और कहा- अब न तो मैं बिना चोदे रह सकता हूं और नहीं तुम बिना चुदाये!
फिर मैंने उसे भूमि पर लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़कर उससे लिपट गया। उसने भी मुझे कस लिया। पांच मिनट की लिपटा-लिपटी के बाद मैं उठा और उसे उठाकर उसकी कुरती को शमीज़ सहित ऊपर खींच कर उतार दिया। वह ऊपर से नंगी हो गई। दोनों छातियां ऐसी गोरी चिकनी और फूलकर खड़ी हो गई थीं मानो उन्हें अलग से चिपका दिया गया हो। उन्हें नीचे से ऊपर मींजते सहलाते हुए कहा- सच बताओ सोनम मेरे अतिरिक्त तुम्हारे दो पपीतों को किसी और मींजा है?”
“भगवान कसम नहीं। जब मैं गांव में थी तो संध्या भाभी जरूर मींजती और कभी कभी चूसतीं भी थीं, लेकिन तब यह छोटी थीं। कामता भैया कलकत्ता रहते थे। वह अपनी चूचियां चुसाती भी थीं। यहां किसी ने कभी नहीं कुछ किया।”
“तो आज मैं सब कुछ करूंगा!”कहते हुए मैंने उसकी चूचियों को चूसना आरम्भ कर दिया। उसका सीना मेरे थूक भीग गया। वह वहीं लेट गई और अकड़ने लगी।
तब मैं उठा और अपनी पैंट और चड्ढी साथ उतार दी। बल्ल से मेरा लंड सामने आ गया। वह उसे ही देखने लगीं। मेरी झांटे काफी बड़ी हो गईं थीं। नसें तनकर अकड़ गई थीं। मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। वह वैसे ही पकड़े रही। उसकी खड़ी चूचियां मेरे होंठों के सामने तनी थीं। तब मैंने कहा- सहलाओ।”
वह बोली- शरम आती है।
“लो अभी मैं शरम मिटाता हूं।” कहकर मैंने उसके सलवार का नाड़ा पकड़कर खींच दिया।
सलवार खुल गई। नीचे से पकड़कर खींचा तो उतर गई। वह शरमाने लगी। उसकी भी झांटे काफी बड़ी थीं। उसकी बुर उसी में छुपी थी।
“कभी-कभी इसे साफ कर लिया करो।” कहकर मैं हथेली से उसकी बुर सहलाने लगा।
सोनम सिसियाते हुए बोली- तुम्हारी भी तो बड़ी है।
और फिर मेरे लंड पर अपनी हथेलियां चलाने लगी।
मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई, लगा कि अब मैं कही झड़ न जाऊं। उसकी बुर भी गीली हो गई थी। उसकी बुर का दाना उभर आया था। यद्यपि मैंने तो रास्ते में सोचा तो बहुत कुछ करने के लिए था, लेकिन लगा कि अब मैं कहीं बिना अन्दर डाले ही न झड़ जाऊं तो उससे कहा- टांगें फैलाकर लेटो।”
वह लेटते हुए बोली- छोड़ दो न मामा!
“पागल हूं मैं!” कहकर मैंने अपनी शर्ट उतार दी ओर उसके पूरे शरीर को सहलाया और फिर उसकी टांगों के बीच में जाकर उसकी बुर के छेद को हाथों से टटोलकर उसपर अपने लंड का सुपाड़ा रखकर औंधे मुंह उसपर लेट गया और कमर पर दबाव डाला तो भीग चुकी उसकी बुर में मेरा लंड सक से चला गया।
“हाय राम मैं मरी!” उसने कहा।
मैंने कहा- झिल्ली फट गई?
“पता नहीं!”
मैं एक पल के लिए रुका फिर कुहनियों को भूमि पर टिका कर उसकी चूचियों को मलते हुए कमर चलाते हुए सोनम को हचर-हचर चोदने लगा। सात आठ धक्के के बाद वह भी कमर चलाने लगी और अपने हाथों से मुझे कस लिया। मैं उसे चोदे ही जा रहा था। उसका शरीर महकने लगा। उसके मुंह से हों-हों का स्वर निकलने लगा।
मेरी कमर और तेज चलने लगी। उसने किचकिचाकर मुझे दबोच लिया। अन्त में मैं भल्ल से उसकी चूत में झड़ गया। मैं कुछ देर बाद उसके ऊपर से उठा। मेरा लंड बीज से सना था। उसकी चूत भी वैसे ही बीज से भरी थी। वह लम्बी लम्बी सांसे भर रही थी। मैंने पास पड़ी पैंट से रुमाल निकालकर पहले अपने गीले लंड को पौंछा फिर उसकी बुर को।
अब वह स्थिर हो गई थी। बोली- मामा अगर कहीं बच्चा ठहर गया तो?”
“पागल एक बार में बच्चा नहीं ठहरता है। उठो! बैठकर मूत दो! बीज नीचे गिर जायेगा।”
मूत कर वह उठी तो मैंने उसे अपनी टांगों को सीधे फैला लिया और उसकी टांगों को अपनी कमर के दोनो तरफ करवा कर बैठा लिया। उसकी चूत से मेरा सिकुड़ा लंड स्पर्श कर रहा था। मांसल चूचियां मेरे सीने से पिस रही थीं। उसके खुले बाल उसकी पीठ पर फैलकर वातावरण को मादक बना रहे थे।
वह बोली- अब चलो। अपनी तो कर ही ली। देर हो जायेगी।”
“देर तो हो गई। थोड़ी और सही। ऐसा सुनहरा अवसर अब तो कभी नहीं मिलेगा।”
उसने कोई उत्तर नहीं दिया इसका मतलब था कि उसकी भी मौन स्वीकृति थी। मेरे हाथ उसकी पीठ से लेकर उसके नाद जैसे भारी चूतड़ों की दरार तक चल रहे थे।
वह भी मेरे बालों में अंगुलियाँ चला रही थी। कभी कभी मेरी कनपटियों को भी सहलाने लगती।
मैंने यूं ही पूछा- सोनम कभी सोचा था कि तुम्हारी चुदाई ऐसे रोमांटिक वातावरण में होगी?
उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
मैंने उसे खड़ा किया तो वह रोबोट की भांति खड़ी हो गई। बिल्कुल नंगी! मैं भी मनुष्य के आदिम रूप में था। हम नंगे पोखर के किनारो पर टहलने लगे। उसके चूतड़ चलते में हिल रहे थे। चिकने थे। एक भी रोयां नहीं था। जांघ और पिंडलियां भी चिकनी थी। झांटें जरूर पेड़ू तक फैली थीं। चूची हिल नहीं केवल थरथरा रही थी।
मैंने टहलते हुए बुर पर हथेली रखते हुए कहा- सोनम झांट हेयर रिमूवर से बना लिया करो। अभी लगता है एक बार नहीं किया?
“नहीं साफ तो किया है, लेकिन मुझे शरम आती है। जब चाची को याद आता है तब लाकर देती हैं तो करती हैं, स्वयं तो एकदम चिकना किए रहती हैं।”
फिर दोनों हाथों की अंगुली और अंगूठे को मिलाकर चूत का आकार देते हुए कहा- भोंसड़ा हो गई है, फिर भी!
मैंने कहा- उन्हें चुदना जो होता है, जब तुम लगातार चुदोगी तो अपने आप साफ रखोगी।
“तुम तो चोदते हो तब भी जंगल उगा लिया है।”
कहकर वह मेरे लंड को पकड़ कर खेलने लगी और पेलड़ की गोलियों से खेलने लगी।
मुझे न जाने क्या सूझी कि मैंने उसे उठाकर सामने से उसे अपने कंधे पर बैठा लिया। उसकी टांगें पीठ की तरफ हो गईं। उसकी चूत मेरे मुंह के सामने आ गई और मन में आया कि लाओ चूम लूं, लेकिन सोचा पता नहीं क्या सोचे तो अपनी ठुड्डी उसकी बुर से रगड़ने लगा। उसकी झांट के बालों का स्पर्श चेहरे को अजब आनन्द दे रहा था।
इसी के साथ मैंने अपने हाथों को ऊपर उठाकर उसके दोनों दूधों को मसलने लगा। बुर चूत की बातें होती रहीं और हम फिर उत्तेजित हो गये। मेरा लंड दुबारा कील की तरह खड़ा होकर ऊपर उठ गया। इसी तरह पोखर का तीन चक्कर लगाते-लगाते वह उत्तेजित हो गई । तो बोली- मामा चलो फिर चोदो मगर दूसरी तरह से।”
मैं उसके इस खुले आमन्त्रण से हिल गया। कंधे से उतार कर ले जाकर लुंगी पर उसे झुका दिया और हथेली पर अपने और उसके मुंह से थूक लेकर अपने लण्ड पर मला और चूत को ढके झांटों को इधर-उधर करके छेद पर रखकर कसा तो एकदम अन्दर चला गया। फिर कमर हिलाहिलाकर उसे चोदने लगा।
कुछ पल बाद लंड निकाला तो देख कि उसकी बुर का छेद खुल चुका था। उसका चना भी फूल गया था। फिर मैं भूमि पर लेट गया। मेरा लंड हवा में तना था।
मैंने उससे कहा- सोनम आओ! इसपर टांगें फैलाकर बैठो।
वह बोली- नहीं! पूरा अन्दर चला जायेगा! दर्द होगा!
“यह सब कहने की बात है, और मजा आयेगा। बैठकर तो देखो!”
वह दोनों टांगों को इधर उधर करके बुर के छेद को लंड के निशाने पर लेकर बैठी तो एकाएक कमर को पकड़कर दबा दिया। वह घप्प से गिर गई। सट से लंड अन्दर पूरा उसकी बुर की जड़ तक चला गया। पहले मैंने नीचे से अपनी कमर को हिलाया फिर वह भी हचर-हचर अपनी कमर चलाने लगी। मैं सामने उसकी स्तूप की तरह हिल रही चूचियों को सहलाने लगा। बढ़ती उत्तेजना के साथ मेरी और उसकी गति तेज हो गई। अन्त में मैं फल्ल-फल्ल झड़ने लगा। वह अजब अजब स्वर निकालने लगी और औंधे मुंह मेरे ऊपर गिर पड़ी।
तो मित्रो मेरा यह अनुभव या अगर चाहें तो कहानी कहें कैसा लगा? मेल करें. Hindi Sex Stories
यह कहानी मुझे श्री Antarvasna Stories मुकेश श्रीवास्तव ने भेजी है जिसे उन्होंने मुझे कहानी के रूप में लिखने की विनती की है। जरा सुने तो कि श्रीवास्तव जी क्या कह रहे हैं!
भाभी, भैया और मैं मुम्बई में रहते थे। मैं उस समय पढ़ता था। भैया अपने बिजनेस में मस्त रहते थे और खूब कमाते थे। मुझे तब जवानी चढ़ी ही थी, मुझ तो सारी दुनिया ही रंगीली नजर आती थी। जरा जरा सी बात पर लण्ड खड़ा हो जाता था। छुप छुप कर इन्टरनेट पर नंगी तस्वीरे देखता था और अश्लील पुस्तकें पढ़ कर मुठ मारता था। घर में बस भाभी ही थी, जिन्हें आजकल मैं बड़ी वासना भरी नजर से देखता था। उनके शरीर को अपनी गंदी नजर से निहारता था, भले ही वो मेरी भाभी क्यो ना हो, साली लगती तो एक नम्बर की चुद्दक्कड़ थी।
क्या मस्त जवान थी, बड़ी-बड़ी हिलती हुई चूंचियाँ! मुझे लगता था जैसे मेरे लिये ही हिल रही हों। उसके मटकते हुये सुन्दर कसे हुये गोल चूतड़ मेरा लण्ड एक पल में खड़ा कर देते थे।
जी हाँ… ये सब मन की बातें हैं… वैसे दिल से मैं बहुत बडा गाण्डू हूँ… भाभी सामने हों तो मेरी नजरें भी नहीं उठती हैं। बस उन्हें देख कर चूतियों की तरह लण्ड पकड़ कर मुठ मार लेता था। ना… चूतिया तो नहीं पर शायद इसे शर्म या बड़ों की इज्जत करना भी कहते हों।
एक रात को मैं इन्टर्नेट पर लड़कियों की नंगी तस्वीरें देख कर लेटा हुआ लण्ड को दबा रहा था। मुझे इसी में आनन्द आ रहा था। मुझे अचानक लगा कि दरवाजे से कोई झांक रहा है… मैं तुरन्त उठ बैठा, मैंने चैन की सांस ली।
भाभी थी…
‘भैया, चाय पियेगा क्या…’ भाभी ने दरवाजे से ही पूछा।
‘अभी रात को दस बजे…?’
‘तेरे भैया के लिये बना रही हूँ… अभी आये हैं ना…’
‘अच्छा बना दो…!’
भाभी मुस्कराई और चली गई। मुझे अब शक हो गया कि कहीं भाभी ने देख तो नहीं लिया। फिर सोचा कि मुस्करा कर गई है तो फिर ठीक है… कोई सीरियस बात नहीं है।
कुछ ही देर में भाभी चाय लेकर आ गई और सामने बैठ गईं।
‘इन्टरनेट देख लिया… मजा आया…?’ भाभी ने कुरेदा।
मैं उछल पड़ा, तो भाभी को सब पता है, तो फिर मुठ मारने भी पता होगा।
‘हाँ अ… अह्ह्ह हाँ भाभी, पर आप…?’
‘बस चुप हो जा… चाय पी…’ मैं बेचैन सा हो गया था कि अब क्या करूँ । सच पूछो तो मेरी गाण्ड फ़टने लगी थी, कहीं भैया को ना कह दें।
‘भाभी, भैया को ना कहना कुछ भी…!’
‘क्या नहीं कहना… वो बिस्तर वाली बात… चल चाय तो खत्म कर, तेरे भैया मेरी राह देख रहे होंगे!’
खिलखिला कर हंसते हुए उन्होंने अपने हाथ उठा अंगड़ाई ली तो मेरे दिल में कई तीर एक साथ चल गये।
‘साला डरपोक… बुद्धू…! ‘ उसने मुझे ताना मारा… तो मैं और उलझ गया। वो चाय का प्याला ले कर चली गई। दरवाजा बंद करते हुये बोली- अब फिर इन्टर्नेट चालू कर लो… गुड नाईट…!’
मेरे चेहरे पर पसीना छलक आया… यह तो पक्का है कि भाभी कुछ जानती हैं।
दूसरे दिन मैं दिन को कॉलेज से आया और खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया। आज भाभी के तेवर ठीक नहीं लग रहे थे। बिना ब्रा का ब्लाऊज, शायद पैंटी भी नहीं पहनी थी। कपड़े भी अस्त-व्यस्त से पहन रखे थे। खाना परोसते समय उनके झूलते हुये स्तन कयामत ढा रहे थे। पेटीकोट से भी उनके अन्दर के चूतड़ और दूसरे अंग झलक रहे थे। यही सोच सोच कर मेरा लण्ड तना रहा था और मैं उसे दबा दबा कर नीचे बैठा रहा था। पर जितना दबाता था वो उतना ही फ़ुफ़कार उठता था। मैंने सिर्फ़ एक ढीली सी, छोटी सी चड्डी पहन रखी थी। मेरी इसी हालत में भाभी ने कमरे में प्रवेश किया, मैं हड़बड़ा उठा। वो मुस्कराते हुये सीधे मेरे बिस्तर के पास आ गई और मेरे पास में बैठ गई। और मेरा हाथ लण्ड से हटा दिया।
उस बेचारे क्या कसूर… कड़क तो था ही, हाथ हटते ही वो तो तन्ना कर खड़ा हो गया।
‘साला, मादरचोद तू तो हरामी है एक नम्बर का…’ भाभी ने मुझे गालियाँ दी।
‘भाभी… ये गाली क्यूँ दी मुझे…?’ मैं गालियाँ सुनते ही चौंक गया।
‘भोसड़ा के! इतना कड़क, और मोटा लण्ड लिये हुये मुठ मारता है?’ उसने मेरा सात इन्च लम्बा लण्ड हाथ में भर लिया।
‘भाभी ये क्या कर रही आप…!’ मैंने उनक हाथ हटाने की भरकस कोशिश की। पर भाभी के हाथों में ताकत थी। मेरा कड़क लण्ड को उन्होंने मसल डाला, फिर मेरा लण्ड छोड़ दिया और मेरी बांहों को जकड़ लिया। मुझे लगा भाभी में बहुत ताकत है। मैंने थोड़ी सी बेचैनी दर्शाई। पर भाभी मेरे ऊपर चढ़ बैठी।
‘भेन की चूत… ले भाभी की चूत… साला अकेला मुठ मार सकता है… भाभी तो साली चूतिया है… जो देखती ही रहेगी… भाभी की भोसड़ी नजर नहीं आई…?’ भाभी वासना में कांप रही थी। मेरा लण्ड मेरी ढीली चड्डी की एक साईड से निकाल लिया। अचानक भाभी ने भी अपना पेटिकोट ऊँचा कर लिया। और मेरा लण्ड अपनी चूत में लगा दिया।
‘चल मादरचोद… घुसा दे अपना लण्ड… बोल मेरी चूत मारेगा ना…?’ भाभी की छाती धौंकनी की तरह चलने लगी। इतनी देर में मेरे लण्ड में मिठास भर उठी। मेरी घबराहट अब कुछ कम हो गई थी। मैंने भाभी की चूंचियाँ दबाते हुये कहा- रुको तो सही… मेरा जबरन चोदन करोगी क्या, भैया को मालूम होगा तो वो कितने नाराज होंगे!’
भाभी नरम होते हुए बोली- उनके रुपयों को मैं क्या चूत में घुसेड़ूगी… हरामी साले का खड़ा ही नहीं होता है, पहले तो खूब चोदता था अब मुझे देखते ही मादरचोद करवट बदल कर सो जाता है… मेरी चूत क्या उसका बाप चोदेगा… अब ना तो वो मेरी गाण्ड मारता है और ना ही मेरी चूत मारता है… हरामी साला… मुझे देख कर चोदू का लण्ड ही खड़ा नहीं होता है!’
‘भाभी इतनी गालियाँ तो मत निकालो… मैं हूँ ना आपकी चूत और गाण्ड चोदने के लिये। आओ मेरे लण्ड को चूस लो!’
भाभी एक दम सामान्य नजर आने लग गई थी अब, उनके मन की भड़ास निकल चुकी थी। मेरा तन्नाया हुआ लण्ड देख कर वो भूखी शेरनी की तरह लपक ली। उसका चूसना ही क्या कमाल का था। मेरा लण्ड फ़ूल उठा। उसका मुख बहुत कसावट के साथ मेरे लौड़े को चूस रहा था। मेरे लण्ड को कोई लड़की पहली बार चूस रही थी। वो लण्ड को काट भी लेती थी। कुछ ही समय में मेरा शरीर अकड़ गया और मैंने कहा- भाभी, मत चूसो! मेरा माल निकलने वाला है…!’
‘उगल दे मुँह में भोंसड़ी के…!’ उसका कहना भी पूरा नहीं हुआ था कि मेरा लण्ड से वीर्य निकल पड़ा।
‘आह मां की लौड़ी… ये ले… आह… पी ले मेरा रस… भेन दी फ़ुद्दी…!’ मेरा वीर्य उसके मुह में भरता चला गया। भाभी ने बड़े ही स्वाद लेकर उसे पूरा पी लिया।
भाभी बेशर्मी से अब बिस्तर पर लेट गई और अपनी चूत उघाड़ दी। उसकी भूरी-भूरी सी, गुलाबी सी चूत खिल उठी।
‘चल रे भाभी चोद… चूस ले मेरी फ़ुद्दी… देख कमीनी कैसे तर हो रही है!’ तड़पती हुई सी बोली।
मुझे थोड़ा अजीब सा तो लगा पर यह मेरा पहला अनुभव था सो करना ही था। जैसे ही मुख उसकी चूत के पास लाया, एक विचित्र सी शायद चूत की या उसके स्त्राव की भीनी सी महक आई। जीभ लगाते ही पहले तो उसकी चूत में लगा लसलसापन, चिकना सा लगा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा। पर अभी अभी भाभी ने भी मेरा वीर्य पिया था… सो हिम्मत करके एक बार जीभ से चाट लिया। भाभी जैसे उछल पड़ी।
‘आह, भैया… मजा आ गया… जरा और कस कर चाट…!’
मुझे लगा कि जैसे भाभी तो मजे की खान हैं… साली को और रगड़ो… मैंने उसे कस-कस कर चाटना आरम्भ कर दिया। भाभी ने मेरे सर के बाल पकड़ कर मेरा मुख अपने दाने पर रख दिया।
‘साले यह है रस की खान… इसे चाट और हिला… मेरी माँ चुद जायेगी राम…!’ दाने को चाटते ही जैसे भाभी कांप गई।
‘मर गई रे! हाय मां की…! चोद दे हाय चोद दे…! साला लण्ड घुसेड़ दे!… मां चोद दे… हाय रे!’ और भाभी ने अपनी चूत पर पांव दोहरे कर लिये और अपना पानी छोड़ दिया। ये सब देख कर मेरा मन डोल उठा था। मेरा लण्ड एक बार फिर से भड़क उठा।
भाभी ने ज्योंही मेरा खड़ा लण्ड देखा- साला हरामी… एक तो वो है… जो खड़ा ही नहीं होता है… और एक ये है… फिर से जोर मार रहा है…’
‘भाभी, मैंने यह सब पहली बार किया है ना…! मुझे बार-बार आपको चोदने की इच्छा हो रही है!’
‘चल रे भोसड़ी के… ये अपना लण्ड देख…साला पूरा छिला हुआ है… और कहता है पहली बार किया है!’
‘भाभी ये तो मुठ मारने से हुआ है… उस दो रजाई के बीच लण्ड घुसेड़ने से हुआ है… सच…! ‘
‘आये हाये… मेरे भेन के लौड़े… मुझे तो तुझ पर प्यार आ रहा है सच… साले लण्ड को टिका मेरे गाण्ड के गुलाब पर… मेरे चिकने लौण्डे!’ भाभी ने एक बार फिर से मुझे कठोरता से जकड़ लिया और घोड़ी बन गई। अपनी भूखी प्यासी गाण्ड को मेरे लौड़े पर कस दिया।
‘चल हरामी… लगा जोर… घुसेड़ दे…तेरी मां की… चल घुसा ना…!’ मेरे हर तरफ़ से जोर लगाने पर भी लण्ड अन्दर नहीं जा रहा था।
‘भोसड़ी के… थूक लगा के चोद…नहीं तो तेल लगा के चोद… वाकई यार नया खिलाड़ी है!’ और भाभी ने अपने कसे हुये सुन्दर से गोल गोल चूतड़ मेरे चेहरे के सामने कर दिये। मैंने थूक निकाल कर जीभ को उसकी गाण्ड पर लगा दी और उसे जीभ से फ़ैलाने लगा। भाभी को जोरदार गुदगुदी हुई।
‘भड़वे… और कर… जीभ गाण्ड में घुसा दे… हाय हाय हाय रे… और जीभ घुमा… आह्ह्ह रे… गाण्ड में घुसा दे…बड़ा नमकीन है रे तू तो!’ उसकी सिसकारियाँ मुझे मस्त किये दे रही थी।
‘भाभी… ये नमकीन क्या?’ मैंने पूछा तो वो जोर से हंस दी।
‘तेरे लौड़े की कसम भैया जी… जीभ से गाण्ड मार दे राम…’ मैंने भी अपनी जीभ को उसकी गाण्ड में घुसा दी और अन्दर बाहर करने लगा। मैंने अपनी अपनी एक अंगुली उसकी चूत में भी घुसा दी। भाभी तड़प सी उठी।
‘आह मार दे गाण्ड रे… उठा लौड़ा… मार दे अब…भोसड़ी के ‘
मैंने तुरंत अपनी पोजिशन बदली और और उसकी गाण्ड के पीछे चिपक गया और तन्नाया हुआ लण्ड उसकी गाण्ड की छेद पर रख दिया और जोर लगाते ही फ़क से अन्दर उतर गया।
‘मदरचोद पेल दे… चोद दे गाण्ड… साली को… मरी भूखी प्यासी तड़प रही थी… चोद दे इस कमीनी को…’
मेरी कमर अब उसे चोदते हुये हिलने लगी थी। मेरा लण्ड तेजी से चलने लगा था। उसकी गाण्ड का छेद अब बन्द नहीं हो रहा था। जैसे ही मैं लण्ड बाहर निकालता, वो खुला का खुला रह जाता। तभी मैं जल्दी से फिर अपना लण्ड घुसेड़ देता… हाँ एक थूक का लौन्दा जरूर उसमें टपका देता था। फिर वापस से दनादन चोदने लगता था। बीच बीच में वो आनन्द के मारे चीख उठती थी। घोड़ी बनी भाभी की चूत भी अब चूने लग गई थी। उसमें से रति-रस बूंद बूंद करके टपकने लगा था। मैंने अपना लन्ड बाहर निकाल कर उसकी चूत में घुसेड़ दिया।
‘भोसड़ी के…धीरे से… मेरी चूत तो अभी तो साल भर से चुदी भी नहीं है… धीरे कर!’
‘ना भाभी… मत रोको… चलने दो लौड़ा…’
‘हाय तो रुक जा… नीचे लेट जा… मुझे चोदने दे अब…’
‘बात एक ही ना भाभी… चुदना तो चूत को ही है…’
‘अरे चल यार… मुझे मेरे हिसाब से चुदने दे…भोसड़ी तो मेरी है ना…’ उसके स्वर में व्याकुलता थी।
मेरे नीचे लेटते ही वो मुझ पर उछल कर चढ़ गई और खड़े लण्ड पर चूत के पट खोलकर उस पर बैठ गई। चिकनी चूत में लण्ड गुदगुदी करता हुया पूरा अन्दर तक बैठ गया। उसके मुख से एक आह निकल पड़ी। अब उसने मेरा लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर जोर लगा कर और भी गहराई में उतारने लगी। हर बार मुझे लण्ड पर एक जोर की मिठास आ जाती थी।
उसके मुँह से एक प्रकार की गुर्राहट सी निकल रही थी जैसे कि कोई भूखी शेरनी हो और एक बार में ही पुरा चुद जाना चाहती हो। अब तो अपनी चूत मेरे लण्ड पर पटकने लगी… मेरा लण्ड मिठास की कसक से भर उठा। उसके धक्के बढ़ते गये और मेरी हालत पतली होती गई… मुझे लगा कि मैं बस अब गया… तब गया… पर तभी भाभी ने अपने दांत भींच लिये और मेरे लण्ड को जोर से भीतर रगड़ दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। चूत की रगड़ खाते ही मेरी जान निकल गई और मेरे लण्ड ने चूत में ही अपना यौवन रस छोड़ दिया…
उसकी चूत में जैसे बाढ़ आ गई हो। मेरा तो वीर्य निकले ही जा रहा था… और शायद भाभी की चूत ने भी चुदाई के बाद अपना रस जोर से छोड़ दिया था। वो ऊपर चढ़ी अपना रस निकाल रही थी और फिर मेरे ऊपर लेट गई। सब कुछ फिर से एक बार सामान्य हो गया…
‘भाभी आपकी चुदाई तो…’
भाभी ने मेरे मुख पर हाथ रख दिया- अब नहीं… गालियाँ तो चुदाई में ही भली लगती है…अब अगली चुदाई में प्यारी-प्यारी गालियाँ देंगे!’
‘सॉरी, भाभी… हाँ मैं यह पूछ रहा था कि जब आप को मेरे बारे में पता था तब आपने पहल क्यों नहीं की?’
‘पता तो तुझे भी था… मैं इशारे करती तो तू समझता ही नहीं था… फिर जब मुझे पक्का पता चल गया कि तेरे मन में मुझे चोदने की है और तू मेरे नाम की मुठ मारता है तो फिर मेरे से रहा नहीं गया और तुझ पर चढ़ बैठी और मस्ती से चुदवा लिया।’
‘भाभी धन्यवाद आपको… मतलब अब कब चुदाई करेंगें…?’
‘तेरी मां की चूत… आज करे सो अब… चल भोसड़ी के चोद दे मुझे…! ‘ और भाभी फिर से मुझे नोचने खसोटने के लिये मुझ पर चढ़ बैठी और मुझे नीचे दबा लिया और मुझे गाल पर काटने लगी। मैं सिसक उठा और वो एक बार फिर से मुझ पर छा गई…
मेरा लण्ड तन्ना उठा… मेरा चेहरा उसने थूक से गीला कर दिया और मेरे गालों को काटने लगी… मेरा लण्ड उसकी चूत में फिर से घुस पड़ा… Antarvasna Stories
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