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शालीन को रात को ठीक से नींद Antarvasna नहीं आई…। रह रह कर उसे प्रगति का चेहरा और बदन दिखाई देता ! उसे अपने संयम टूटने पर भी ग्लानि हो रही थी। वह एक भद्र पुरुष था और अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। उसकी पत्नी भी उससे प्यार करती थी। उसका किसी और लड़की की ओर आकर्षित होना समझ नहीं आ रहा था।
शायद उसे मरदाना प्रवृति का ज्ञान नहीं था। पुरुष की प्रवृति उसे एक साथ कई यौन सम्बन्ध बनाने को आतुर करती है। उसका प्रजनन में जिम्मा सिर्फ अपना बीज डालने तक सीमित होता है। प्रकृति ने इसके बाद प्रजनन की सारी जिम्मेदारी नारी पर छोड़ दी है। इसीलिए नारी यौन सम्बन्धों को लेकर पुरुषों के मुकाबले अधिक गंभीर होती है। उसे अपने साथी चुनने में देर तो लगती है पर उसका चुनाव निर्णायक और दीर्घकालीन होता है। वह अक्सर अपने साथी के साथ अडिग सम्बन्ध कायम रखती है। इसका कारण प्रकृति के उस सिद्धांत पर निर्भर है जिसने नारी को मातृत्व के समस्त बोझ से लादा हुआ है। पुरुष का क्या है…..। किसी भी मादा के साथ सम्बन्ध बनाने को सदैव तत्पर रहता है ! यौन संबंधों में स्त्री-पुरुष के बीच यही एक बड़ा रूचि-विरोध है। मर्द को लगता है वह एक समय कितनी भी लड़कियों से प्यार कर सकता है और औरत को सिर्फ एक आदमी का प्यार पर्याप्त होता है।
खैर, शालीन की रात उधेड़बुन में ही निकल गई। सुबह दफ्तर जाते वक़्त मयूरी से आँखें नहीं मिला पा रहा था। वह फिर से किशोरावस्था में जा पहुंचा था जहाँ उसे उलझन, व्याकुलता और लज्जा का आभास हो रहा था। वह भौतिकता और आध्यात्मिकता के अंतर्द्वंद्व में फँस गया था। जब भी पुरुष पर ऐसी उलझन आई है देखा गया है कि अक्सर भौतिकता की ही विजय हुई है। काम, क्रोध, मोह और ईर्ष्या पर तो केवल साधू ही काबू पा सकते हैं। शालीन को यह निश्चित हो गया कि वह एक सामान्य पुरुष है, कोई साधू या देवता नहीं। उसका मस्तिष्क प्रगति की कामुक काया की छवि नहीं मिटा पाया और उसके जिस्म को हासिल करने की तीव्र लालसा को पूरा करने की ओर प्रेरित हो गया। कहते हैं यौनाकर्षण दुनिया की सबसे ताक़तवर शक्ति होती है। इसे हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है।
दफ्तर में भी शालीन का मन अपने काम में नहीं लग रहा था। दोस्तों की बातचीत, चुटकुले या दफ्तरी उथल-पुथल से परे वह अपने आप में गुम था। उसका दिमाग ऐसी तरकीब जुटाने में लगा था जिससे वह प्रगति के साथ यौन संसर्ग कर सके और किसी को पता ना चले। जब मन में किसी लक्ष्य को पाने की तीव्र इच्छा होती है, तो दिमाग उसका हल निकाल ही लेता है; खासतौर से अगर वह इच्छा जिस्म के निचले हिस्सों से सम्बंधित हो। ऐसा ही हुआ और शालीन को एक उपाय सूझ गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
घर लौटते समय वह बिजली के सामान की दूकान से कुछ सामान ले आया और एक कारीगर को भी साथ ले लिया। घर पहुँच कर सामान्य तरीके से मयूरी को बताया कि बिजली की बचत और उससे सुरक्षा के लिए वह नया फ्यूज़ बॉक्स लगवा रहा है जिससे बिजली की बचत भी होगी और आग लगने का खतरा भी नहीं रहेगा। मयूरी को कोई आपत्ति नहीं हुई और कारीगर ने अपना काम शुरू किया। शालीन ने उसे निर्देश दिया कि वह किस तरह से कमरों में बिजली और पॉवर के कनेक्शन चाहता है। हर कमरे के लिए बिजली का अलग और पॉवर का अलग स्विच नए फ्यूज़ बॉक्स में लगवा दिया। जिस से घर में जहाँ चाहें बिजली या पॉवर या दोनों को चालू या बंद कर सकते हैं।
यह होने के बाद, उसने सर्दी का आश्रय लेते हुए पूरे घर में कालीन या दरी बिछवाने का आदेश दे दिया। वह चाहता था कि रात को उसके चलने-फिरने की आहट ना हो। जिस कमरे में प्रगति सोती थी उसकी अलमारी में उसने टॉर्च, कुछ तौलिये, चादरें, के वाय जेली की ट्यूब, अपने कुर्ते-पजामे और प्रगति के लिए लूंगी और कुर्ती छुपा कर रख दीं। उसने यकीन किया कि मयूरी के बेडरूम में कोई टॉर्च, मोमबत्ती या माचिस नहीं है। जो थीं उसने छुपा दीं जिससे आसानी से मिल ना सकें। उसने सोच लिया था कि रात को, सबके सोने के बाद, वह प्रगति के कमरे को छोड़ बाकी सारे कमरों की लाइट फ़्यूज़ बॉक्स से बंद कर देगा। जिससे जब वह प्रगति के कमरे में हो और अगर रात को मयूरी या उसके बेटे की आँख खुले तो वे घर में उजाला ना कर पायें। वह चाहता था कि वे उसको मदद के लिए पुकारें और वह अँधेरे अँधेरे में वापस अपने बेडरूम पहुँच सके। इससे वह प्रगति के साथ रंगे हाथों नहीं पकड़ा जायेगा।
सब तैयारी होने के बाद शालीन बेसब्री से रात का इंतज़ार करने लगा। इस दौरान एक दो बार उसको प्रगति घर में दिखाई दी पर उसने उसके साथ आँखें चार नहीं कीं। उसकी अन्तरात्मा उसको कुरेद रही थी पर उसके तन-मन में लड्डू फूट रहे थे। खाना खाकर और थोड़ी देर टीवी देखकर सब सोने लगे। कुछ ही देर में घर में सन्नाटा सा छा गया और सबके सोने की आवाजें आने लगीं।
शालीन को इसी का इंतज़ार था। जब उसे यकीन हो गया मयूरी और आकाश सो गए हैं, वह चुपचाप उठा और अपनी सुनियोजित योजना को अंजाम देने लगा। उसे पता था एक बार आँख लग जाने के बाद मयूरी गहरी नींद सोती है और ज्यादातर सुबह ही जागती है। आकाश कभी कभी रात को सुसु के लिए उठता है पर वह भी 3-4 घंटे के बाद। शालीन निश्चिंत हो कर फ्यूज़ बॉक्स की ओर गया और प्रगति के कमरे के आलावा बाकी सभी कमरों की बिजली के स्विच बंद कर दिए। इससे घर में घुप अँधेरा हो गया पर कमरों के हीटर और फ्रीज वगैरह चलते रहे। अब सोने वालों की आँख अगर खुल भी गई तो वे कुछ देख नहीं पाएंगे और जल्दी से हिल-डुल नहीं पाएंगे।
अब उसने मयूरी और आकाश के बेडरूम का दरवाज़ा भेड़ दिया और प्रगति के कमरे में आ गया। कमरा बंद करके उसने बाथरूम की बत्ती जला ली और उसका दरवाज़ा भी लगभग बंद कर दिया जिससे दरवाज़े की दरार से कमरे को रोशनी मिलती रहे। इतनी रोशनी उसके लिए काफी थी। उसे प्रगति का सोता (या सोने का नाटक करता) शरीर साफ़ दिख रहा था।
वह प्रगति के पास आ कर बैठ गया और इस बार बिना हिचक के उसके ऊपर से कम्बल हटा दिया। उसे यह जान कर ख़ुशी हुई की प्रगति ने घुटने तक पहुँचने वाली फ्रॉक पहन रखी थी और बनियान की जगह ब्रा थी। इस पोशाक में उसका काम आसान हो जायेगा। उसे प्रगति की समझदारी पर गर्व हुआ और वह समझ गया कि प्रगति भी शालीन के कल के दुस्साहस को ख़ुशी से स्वीकार कर चुकी है।
हीटर की गर्मी कमरे को गर्म किये हुई थी और प्रगति के समीपन ने शालीन को गर्म कर दिया था। शालीन ने अपने हाथ हीटर से गर्म करके प्रगति की टांगों पर फेरने शुरू किये। उसके तलवों का रगड़ कर गरम किया और पांव की उँगलियों को मसला। फिर ऊपर आते हुए घुटने से नीचे की टांगों को सहलाने लगा और बाद में घुटनों की मालिश की। प्रगति आराम से आँखें बंद किये लेटी हुई शालीन की हरकतों का मज़ा ले रही थी।
वैसे शालीन को यह तो पता चल गया था कि प्रगति उसके नटखट इरादों से वाक़िफ़ है पर यह नहीं जानता था कि वह उसके साथ किस हद तक जा सकता है। आखिर (उसकी नज़र में) वह एक नादान और अल्हड़ बालिका थी। उसे यह नहीं पता था कि प्रगति का कौमार्य लुट चुका है और वह यौन सुख से अपरिचित नहीं है। (कृपया अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर “प्रगति का अतीत 1, 2, 3, 4 & 5” पढ़ें) वह तो उसके साथ ऐसे पेश आ रहा था मानो वह एक अबोध कन्या हो। वह उसके साथ जल्दबाजी करके उसको डराना नहीं चाहता था। वह उसकी कामुकता और यौन के प्रति उत्सुकता बढ़ाना चाहता था।
कुछ देर टांगें सहलाने के बाद उसने एक हाथ उसके सिर पर फेरना शुरू किया और दूसरे हाथ से घुटनों के ऊपर जाँघों के तरफ बढ़ने लगा। वह उसे गुदगुदा रहा था और पोले पोले हाथों से उसकी जाँघों के रोंगटे खड़े कर रहा था। प्रगति अब ज्यादा देर तक सोने का नाटक नहीं कर पाई क्योंकि उसकी गुदगुदी उसे हिलने-डुलने को मजबूर कर रही थी और उसके अंतर्मन से ऊह-आह निकलने को हो रही थी।
आखिर उसने आँखें खोल ही लीं और शालीन की तरफ झुकी झुकी नज़रों से देखते हुए अपनी आँखों पर अपनी कलाई का पर्दा डाल दिया। यह शालीन को इशारा था कि उसे कोई आपत्ति नहीं है और शालीन समझ गया।
शालीन ने ज्यादा समय बर्बाद ना करते हुए उसकी फ्रॉक को ऊपर की तरफ उठा दिया। प्रगति ने भी अपने कूल्हे ऊपर करके उसकी मदद की और फ्रॉक उसके स्तनों के ऊपर होकर गले तक आ गई। अब वह ब्रा और चड्डी में थी और उसने अपनी टांगें शर्म के कारण भींच लीं। शालीन ने उसकी टांगों को घुटनों से पकड़ कर अलग किया और आश्वासन के तौर पर उसके कन्धों को थपथपा दिया।
अब शालीन ने पोले पोले हाथों और उँगलियों से उसकी ब्रा के ऊपर से उसके मम्मों और पेट तथा जांघ के अंदरूनी हिस्सों को उकसाना शुरू किया। साथ ही उसने चड्डी के ऊपर से ही उसकी योनि के ऊपर भी हाथ फिराना शुरू कर दिया। दोनों को मज़ा आ रहा था और शायद दोनों ही प्रगति की ब्रा और चड्डी से जल्दी छुटकारा चाहते थे। दोनों उत्तेजित हो गए थे और उतावले और बेचैन भी। ऐसे में जब शालीन ने प्रगति को आधी करवट लिटा कर उसकी ब्रा के हुक ढीले किये तो मानो दोनों को राहत मिली। शालीन ने ब्रा एक तरफ रख दी और एक शर्मीली प्रगति को सीधा किया जो अपने हाथ आँखों पर से हटा कर अपने स्तनों पर ले आई थी। शालीन ने दृढ़ता के साथ उसके दोनों हाथ बगल में इस तरह कर दिए मानो उन्हें वहाँ से ना हिलाने का आदेश दे रहा हो। प्रगति इन मामलों में अब काफ़ी समझदार थी और उसने अपने हाथ परे कर लिए।
शालीन को प्रगति के यौवन भरे, मांसल, छरहरे और गदराये हुए स्तन बहुत मादक लगे। उनके अहंकारी चुचूक शालीन को निमंत्रित भी कर रहे थे और चुनौती भी दे रहे थे। शालीन ने कितने सालों से ऐसे मदभरे और कमसिन स्तन नहीं देखे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था पहले वह उन्हें छुए या मुँह में ले। उसने दुविधा दूर करते हुए, एक को मुँह में और एक को हाथ में ले लिया और सीधा स्वर्ग का अनुभव करने लगा।
वैसे अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुए होंगे पर इतने सुडौल, लचीले और उभरे हुए थे कि शालीन उन्हें छू और चूस कर फूला नहीं समा रहा था। एक भूखे बच्चे की तरह उसके चूचे चूसने लगा और दूसरे को अपनी हथेली से गोल गोल घुमाने लगा। एक स्तन पर कड़ा प्रहार और दूसरे पर कोमल स्पर्श का विरोधाभास प्रगति को विस्मय में डाल रहा था। शालीन ने आपे से बाहर हो कर जब उसकी चूची को काटने की कोशिश की तो प्रगति ने अनायास अपना स्तन उसके मुँह से निकाल लिया। साथ ही उसके मुँह से एक दर्द की ऊई.. निकल गई।
शालीन को जब अपनी करतूत का आभास हुआ तो उसने तत्काल प्रगति को हार्दिक संवेदना ज़ाहिर की और अपने कान पकड़ने का इशारा किया। प्रगति को मालूम था कि शालीन जान बूझ कर उसे दर्द नहीं पहुँचा रहा था पर यौन-वेग में ऐसा हो जाता है। तो उसने शालीन को कान पकड़ने से मना करते हुए सहज भाव से उसका सिर खींच कर अपने दूसरे स्तन के पास ले आई। शालीन ने प्रगति को आँखों ही आँखों में आभार प्रकट किया और आँखों के सामने परोसे हुए आकर्षक व्यंजन को भोगने लगा। जिस चूची को उसने यौनावेश में काट सा लिया था उसे प्यार से सहला कर मानो मना रहा था। प्रगति को शालीन का बर्ताव अच्छा लगा।
कुछ देर स्तनपान करने के बाद शालीन का चंचल मुँह अलग स्वाद की कामना करने लगा। उसने स्तन से मुँह उठा कर सीधा प्रगति के लरजते और रसीले होटों पर रख दिया। उसने यह नहीं सोचा था कि वह प्रगति का चुम्बन लेगा पर उसके मनमोहक आचरण को देखकर उससे रहा नहीं गया और उसने सच्चे प्यार की मोहर प्रगति के होटों पर लगा ही दी। प्रगति थोड़ी अचंभित तो हुई पर उससे ज्यादा उसे गौरव का अहसास हुआ। शालीन जैसे उच्च अधिकारी का चुम्बन उसके लिए बहुत मायने रखता था। शरीर को हाथ लगाना या सम्भोग करना लड़की को इतना मान नहीं देता जितना होटों पर दिया हुआ प्यारा चुम्बन। यह वासना और प्रेम में फ़र्क़ दर्शाता है।
अब शालीन ने प्रगति के कपड़े उतारने का अभियान जारी किया। प्रगति ने निर्विरोध उसका सहयोग किया और शीघ्र ही वह पूरी तरह निर्वस्त्र हो गई। शालीन के चुम्बन से मिले गौरव और उसके हाथों की हरकत से प्रगति का शरीर काफी रोमांचित हो चुका था और प्रमाण स्वरुप उसकी योनि काफी भीग गई थी। उधर प्रगति की नंगी काया को देख कर शालीन का लिंग अपनी शालीनता त्याग कर तामसिक रूप धारण करने लगा था। उसने अहतियात के तौर पर कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया और अपने कपड़े उतार कर प्रगति के पास आ गया।
प्रगति ने पहली बार शालीन का नग्न शरीर देखा और शरमा कर अपना मुँह फेर लिया। पर उसने छोटी सी झलक में ही शालीन के लिंग के आकार और उसके बाकी शरीर को देख लिया था। उसे यह देख कर अच्छा लगा कि शालीन अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखता होगा क्योंकि इतनी उम्र होने पर भी वह हृष्ट-पुष्ट था। उसके अंग तंदुरुस्त लग रहे थे, उसके सीने पर मुलायम बाल थे, पेट सपाट था और लिंग के आस-पास के बाल कतरे हुए थे। हालाँकि, वह कोई पहलवान या फिल्मी हीरो नहीं लग रहा था पर एक निरोग और स्वस्थ युवक समान ज़रूर नज़र आ रहा था। प्रगति उसको देख कर खुश हो गई। उसे ऐसा लगा शायद शालीन मास्टरजी के मुकाबले बहतर प्रेमी साबित होगा। (मास्टरजी के बारे में जानने के लिए “प्रगति का अतीत” कहानी पढ़िए) उसे ऐसा लगा मानो शालीन उसके साथ ज्यादा ज़ोरदार सम्भोग कर पायेगा।
शालीन ने प्रगति की योनि को छू कर देखा कि वह उसके साथ समागम के लिए पूरी तरह तैयार है। आम तौर पर वह सम्भोग के पहले ज्यादा से ज्यादा देर तक लड़की को उत्तेजित करने की क्रिया करता था पर आज उसके पास समय कम था। शालीन को पता था कि हर लड़की को यौन में उतना ही मज़ा आता है जितना कि मर्दों को। पर सदियों के सामाजिक बंधनों और संस्कारों की बंदिशों ने नारी-जाति को यौन आनंद का इज़हार करने पर पाबंदी सी लगा रखी है। उनको यह जताया जाता है कि यौन सुख का दिखावा सिर्फ बुरे आचरण की लड़कियाँ ही करती हैं। अच्छे संस्कारों वाली लड़कियाँ यौन ज्ञान से अपरिचित होती हैं और यौन सुख का आनंद वे बेधड़क नहीं ले सकतीं। यह हमारे समाज की मान्यताओं की विडम्बना है।
पर शालीन चाहता था कि वह जब किसी लड़की के साथ यौन करे तो उसको पूरा सुख दे और उसको मज़ा लेने का पूरा अधिकार हो। वह अपनी यौन-संगिनी की ख़ुशी की किलकारी सुनना चाहता था। उसने कहीं यह भी पढ़ा था कि लगभग हर लड़की यौन चरमोत्कर्ष (परम यौन आनन्द) को पाने की क्षमता रखती है बशर्ते उसे ठीक से उत्तेजित और उसके साथ धैर्य से सम्भोग किया जाये। आज वह इसी बात को आजमाना चाहता था। वह लिंग योनि सम्भोग के माध्यम से प्रगति को चरमोत्कर्ष प्राप्त करवाना चाहता था।
इसी आशय से उसने उत्सुकता से तपती प्रगति के नग्न बदन को अपने आलिंगन में जकड़ लिया और उसके होटों को चूमते हुए अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। प्रगति ने भी शालीन को कस कर पकड़ लिया और उसके मुँह का अपनी जीभ से मुआयना करने लगी। समय की कमी होने के कारण शालीन ने जल्दी जल्दी उसके पूरे जिस्म पर हाथ फेरा और उसको पीठ के बल लिटाने लगा। पर प्रगति ने नीचे झुक कर उसके लिंग को अपने मुँह में ले लिया। शालीन इसके लिए तैयार नहीं था वह पहले से ही उत्तेजित था और ऊपर से प्रगति के आकस्मिक हमले से उसके नियंत्रण को झटका लगा। उसके लाख ना चाहने के बावज़ूद वह एक-दो मिनट में ही अपना संतुलन खो बैठा और प्रगति के मुँह से लिंग निकालने का प्रयत्न करने लगा, वह उसके मुँह में वीर्योत्पात नहीं करना चाहता था।
पर प्रगति का इरादा कुछ और ही था उसने उसके लिंगमुख को अपने होटों में इस तरह दबा लिया कि वह बाहर नहीं आ पाया। इससे शालीन की व्याकुलता और बढ़ गई और वह और भी जल्दी और वेग के साथ वीर गति को प्राप्त होने लगा। उसका करीब दो हफ्ते का संजोया हुआ रस प्रगति के मुँह में बरसने लगा। वीर्य की हर फुहार के साथ शालीन का शरीर झकझोर रहा था। कोई पांच-छः पिचकारियों के बाद शालीन और उसका लिंग शांत हुआ। शालीन के जीवन में पहली बार किसी ने उसका लिंग-पान किया था। वह उत्कर्ष के शिखर पर था और उसने कृतज्ञता से प्रगति को उठा कर उसके वीर्य से सने होटों को चूमते हुए अपने गले लगा लिया। वे कुछ देर तक ऐसे ही रहे और फिर पकड़ ढीली करके बिस्तर पर लेट गए।
शालीन को बरसों से यह कामना थी कि कोई उसके लिंग को चूसे पर पत्नी के अरुचि के कारण ऐसा नहीं हो पाया था। आज जब वह बिल्कुल इसके लिए तैयार नहीं था, प्रगति ने न केवल उसका लिंग मुँह में ले लिया, बल्कि उसका रस-पान भी कर लिया। तो शालीन को तो मानो स्वर्ग मिल गया था। अब तो प्रगति को तृप्त करने के लिए शालीन और भी दृड़ संकल्प हो गया। वह जल्दी से जल्दी अपने मर्दांग को दोबारा आवेश में लाना चाहता था जिससे वह प्रगति का ऋण तत्काल चुका सके। प्रगति मानो शालीन की मनोस्थिति भांप गई थी। उसने शालीन के भाले में जान डालने के उद्देश्य से उसको हाथों में ले लिया और हौले-हौले सहलाने लगी।
कुछ देर में उसने शालीन को पीठ के बल लिटा कर उसके ऊपर आसन जमा लिया अपने मुँह और जीभ से उसके निम्नान्गों को चाटने लगी। प्रगति की पीठ शालीन की तरफ थी जिससे जब वह झुकती तो उसकी गांड शालीन को दिखाई देती। कभी कभी उसकी जांघों के बीच से उसके डोलते हुए स्तन भी दिख जाते। प्रगति की मौखिक क्रिया और उसके मादक अंगों के दृश्य से शालीन के शिथिल लिंग को मूसल बनने में ज्यादा देर नहीं लगी। जैसे ही उसके लंड में जान आई उसने प्रगति को अपने ऊपर से हटा कर पीठ के बल लिटा दिया और स्वयं उसके ऊपर आ गया। वह अपने कड़कपन को खोना नहीं चाहता था। बिना समय गंवाए उसने प्रगति की योनि पंखुड़ियों को अपने लिंग-नोक से रगड़ना शुरू किया। साथ ही अपने मुँह से उसके कसे हुए दूधिया टीलों पर आक्रमण कर दिया। उसकी जीभ का सामना उसके स्तनों पर विराजमान अहंकारी चुचूकों से हुआ जो किसी के सामने नतमस्तक नहीं होना चाहती थीं। शालीन की जीभ चोंच-समान चूचियों के चारों तरफ लपलपाने लगी।
उधर नीचे उसका लंड-शीर्ष धीरे धीरे जोर लगाते हुए प्रगति के योनि कपाट खोलने की चेष्टा कर रहा था। प्रगति ने मदद करते हुए अपनी जांघें थोड़ी और खोल दीं। शालीन का सुपारा योनि की कोपलों के ऊपर हल्का-हल्का वार कर रहा था और बीच बीच में उसके योनि-मुकुट पर टपकी मार रहा था।
प्रगति की ओखली शालीन के मूसल के लिए बिलकुल तैयार थी। उसके निम्न होटों से रस फूट चुका था जिससे गुफ़ा का रास्ता चिकना हो गया था। शालीन के दंड का मुकुट भी इस रस में भीग गया था जिस से जब वह प्रगति की सुरंग पर हल्का वार करता तो फिसलन के कारण अन्दर जाने लगता। पर शालीन अभी प्रवेश नहीं करना चाहता था। उसका उद्देश्य प्रगति को परमोत्कर्ष तक ले जाने का था। वह शनैः शनैः उसको कामुकता के शिखर पर ले जाना चाहता था। इसके लिए आत्म-नियंत्रण और धीरज की ज़रुरत थी। उसने अपने मुँह का ध्यान स्तनों से हटा कर प्रगति के पेट पर केन्द्रित किया। रेशम से रोएँ से ढका सपाट पेट शालीन के गालों को जब लगा तो उसकी हलकी दाढ़ी से प्रगति को बहुत गुदगुदी हुई। उसने अपने आप को इधर उधर हिलाया जिससे शालीन के लंड का सुपारा अपने लक्ष्य से हटकर यहाँ वहां लगने लगा।
शालीन ने गुदगुदाना बंद किया और प्रगति को काबू में करके फिर से उसकी म्यान में अपनी तलवार की नोक डालने लगा। शालीन ने तय कर लिया था कि वह जल्दबाजी में लंड को पूरा नहीं घोंपेगा। वह लगातार करीब आधा या एक इंच तक चूत में लंड डाल कर उसे मानो छेड़ रहा था। प्रगति की लालसा बढ़ रही थी और वह सांप रूपी लंड को जल्दी से उसके बिल में पहुँचाना चाहती थी। उसने अपनी टांगें और खोल दीं और शालीन के छोटे प्रहारों का जवाब अपने कूल्हे उठा उठा कर देने लगी जिससे उसका लट्ठ ज्यादा अन्दर चला जाये। पर शालीन होशियार था। उसने प्रगति को अपने प्रयास में सफल नहीं होने दिया। बस एक इंच तक का प्रवेश करता रहा जिससे प्रगति की योनि व्याकुल से व्याकुलतर होती गई। प्रगति अब किसी तरह अपनी चूत को लंड से भरना चाहती थी। अब शालीन ने प्रगति का हाथ लाकर उसकी एक ऊँगली उसके योनि-मटर पर रख दी और उसको हलके से सहलाने का इशारा कर दिया। प्रगति अपनी कलिका को सहलाने लगी। इससे उसकी उत्तेजना और भी बढ़ गई और वह कसमसाने लगी।
अब शालीन ने ब्रह्मास्त्र छोड़ते हुए अपनी तर्जनी ऊँगली को मुँह में गीला करके प्रगति की गांड में डाल दी और धीरे धीरे उसे अन्दर-बाहर करने लगा। प्रगति को इसकी अपेक्षा नहीं थी और वह सिहर उठी। उसके शरीर में मादकता का तूफ़ान उठने लगा और उसके धैर्य का बाँध टूटने लगा। वह हर हालत में शालीन के लंड को मूठ तक अपने कुंए में डलवाना चाहती थी। उसने अपने कूल्हों का प्रहार बढ़ाया और अपनी आँखों से अपनी इच्छ्पूर्ति की मानो भीख सी मांगने लगी। शालीन को इसी मौक़े का इंतज़ार था। उसने अपनी बरछी को पूरा बाहर निकाला और फिर पूरे वेग से उसे जड़ तक प्रगति की व्याकुल चूत में घुसेड़ दिया। जैसे बरसों से तपते रेगिस्तान को बारिश की झड़ी मिल गई हो, प्रगति की योनि लंड को पूरा अन्दर पाकर मानो मोक्ष को प्राप्त हो गई। उसके पूरे जिस्म में एक मरोड़ सी आई और वह एक ही पल में चरमोत्कर्ष को न्यौछावर हो गई। करीब आधे मिनट तक उसका जिस्म उत्कर्ष शिखर से उत्पन्न झटकों का सामना करता रहा और फिर धीरे से आनंद के सागर में डूब गया।
शालीन अपनी सफलता पर खुश था। प्रगति उसे अच्छी लग रही थी और उसके आनंद से उसे ख़ुशी मिल रही थी। उसे लगा कि उसने प्रगति का लिंग-पान वाला ऋण चुका दिया है। जब प्रगति को होश आया तो शालीन ने धीरे धीरे अपना पिस्टन फिर से चालू किया। उसका लंड इस दौरान थोड़ा शिथिल हो गया था पर एक दो झटकों के साथ ही अपनी पूरी मस्ती में आ गया। अब वह निश्चिन्त हो कर लम्बे लम्बे वार करने लगा। प्रगति को इतना यौन सुख पहले कभी नहीं मिला था। वह धन्य हो गई थी और उसका रोम रोम शालीन का आभारी हो रहा था। अब वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी। शालीन के झटकों से मेल खाते हुए वह अपने चूतड़ उठा रही थी जिससे लंड ज्यादा से ज्यादा गहराई तक अन्दर जा सके। उसको समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह वह शालीन को और अधिक मज़े दिलवाए। उधर शालीन एक बार फव्वारा छोड़ चुका था तो उसको जल्दी स्खलन का डर नहीं था। वह कभी तेज़ और कभी धीमी गति से तथा कभी हल्के तो कभी गहरे वारों से प्रगति की चूत-सेवा कर रहा था।
प्रगति ने सोचा शालीन को और अधिक खुश करने के लिए वह अपनी गांड उसे भेंट कर दे। पर उसे डर था कि कहीं शालीन उसके इस आचरण से उसे गलत ना समझ ले। पर अपनी इज्ज़त की परवाह ना करते हुए उसने पहल कर ही दी। जब शालीन अपने झटकों में थोड़ा रुका तो प्रगति ने अपने आप को उससे पृथक किया और इससे पहले कि शालीन कुछ सोचे उसने उसके लंड को मुँह में लेकर अपने थूक से अच्छी तरह गीला कर दिया। फिर थूक उँगलियों पे लेकर अपनी गांड के छेद में और उसके आस-पास लगा दिया। शालीन बिलकुल हतप्रभ रह गया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके जीवन की दो सबसे बड़ी मनोकामनाएँ एक ही दिन में पूरी हो जाएँगी। गांड मारने की लालसा उसे ना जाने कब से थी। उसने सोचा भी था कि किसी दिन वह प्रगति को इसके लिए मनाने की कोशिश करेगा पर कुंआ खुद प्यासे के पास आएगा इसकी उम्मीद नहीं थी।
उसका लंड प्रगति की गांड के छेद को देख कर एकदम तन गया। उसने गांड मारने की विधि अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रखी थी और वह जानता था कि केवल थूक से गांड में प्रवेश मुमकिन नहीं है। और अगर होगा भी तो प्रगति को बहुत दर्द होगा। तो उसने उठ कर अलमारी से के वाय जेली की टयूब निकाल ली और प्रगति को दिखाई। प्रगति ने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी और गांड मरवाने के लिए उपयुक्त कुतिया-आसन में आ गई। शालीन ने उँगलियों में जेली लगा कर उसकी गांड में अच्छी तरह लगा दी और फिर एक ऊँगली अन्दर डाल कर उसके छेद को ढीला करने लगा। प्रगति को गांड मरवाने का अनुभव था पर शालीन के लिए यह पहला अवसर था। तो प्रगति ने उसको इशारों से अनुदेश देने शुरू कर दिए। अपनी गांड की अंदरूनी मांसपेशी ढीली करते हुए उसने शालीन की ऊँगली पूरी अन्दर डलवा ली। फिर दो उँगलियाँ और बाद में तीन उँगलियों से गांड में प्रवेश करवा लिया।
इतना होने के बाद प्रगति ने शालीन के लंड के ऊपर अच्छे से जेली लगा दी। उसका लंड वैसे ही अच्छे से तना हुआ था। फिर उसने शालीन को उसकी गांड में अच्छे से जेली लगाने के लिए इशारा किया। जब यह हो गया तो प्रगति ने कुतिया आसन में आकर अपने चूतड़ खोल लिए और अपना सिर बिस्तर पर रख कर शालीन को प्रवेश करने का इशारा किया। शालीन ने प्रगति के कूल्हों की ऊँचाई को इस तरह व्यवस्थित किया जिससे उसका लंड आराम से उसकी गांड के छेद तक पहुँच जाये। फिर उसने एक नौसिखिये की तरह अपना लंड गांड में डालने का प्रयत्न किया। पर वह फिसल गया। जब एक दो और प्रयत्न भी विफल रहे तो प्रगति ने पलट कर शालीन को चिंता नहीं करने का संकेत किया और एक बार फिर जेली का लेप दोनों के गुप्तांगों पर कर दिया। उसने शालीन को कुछ नहीं करने का अनुदेश दिया और फिर से कुतिया आसन में आ गई। उसने अपनी गांड को शालीन के लंड के सुपारे के साथ लगाया और धीरे धीरे पीछे की तरफ जोर लगाने लगी। जब सुपारा छेद में घुसने को हुआ तो प्रगति ने गांड को थोड़ा ढीला किया और सुपारे को अन्दर ले लिया।
सुपारे के अन्दर जाते ही शालीन की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह चोदना शुरू करने वाला था कि प्रगति ने उसे रुकने का इशारा किया।
कुछ देर बाद प्रगति ने पीछे की ओर धक्का देना शुरू किया। लंड थोड़ा और अन्दर गया और रुक गया। अब प्रगति ने एक बार अपनी गांड की अंदरूनी मसल को ढीला करते हुए जोर से पीछे को धक्का मारा और लंड लगभग पूरा अन्दर चला गया। इसमें प्रगति की हल्की सी चीख निकल गई पर उसने पीछे की तरफ दबाव बनाए रखा और लंड को पूरा अन्दर डलवा लिया। शालीन को अत्यंत ख़ुशी हो रही थी। उसने खरबूजे को चाकू पर गिरते देखा था। उसका लंड प्रगति की तंग गांड में अन्दर तक फंसा हुआ था। गांड इतनी तंग थी कि लंड हरकत करने लायक नहीं था। पर इस गिरफ़्तारी में भी शालीन को मज़ा आ रहा था। उसने धीरे धीरे हरकत करनी शुरू की। पहले थोड़ा सा और फिर थोड़ा और उसका लंड अन्दर बाहर होने लगा। प्रगति को भी मज़ा आ रहा था। उसने भी अपने आप को आगे पीछे करके गांड मरवाना शुरू किया। बहुत लोगों में यह भ्रम है कि लड़कियों को गांड मरवाना अच्छा नहीं लगता। सच तो यह है कि अगर ठीक से किया जाये तो कई लड़कियों को गांड मरवाने में चुदवाने से ज्यादा मज़ा आता है। प्रगति भी ऐसी लड़कियों में से एक थी।
शालीन को लगा कि जेली सूख सी रही है और घर्षण में मज़ा नहीं आ रहा तो उसने लंड सुपारे तक बाहर निकाल कर उसकी छड़ पर और जेली लगा ली। अब गांड मारने में आसानी हो गई। उसने अपने वारों की रफ़्तार और गहराई बढ़ाई और लगभग चुदाई के बराबर अन्दर-बाहर करने लगा। उसके इस आक्रमण से प्रगति को और भी मज़ा आने लगा और उसने भी हिचकोले लेने शुरू कर दिए। शालीन ने प्रगति की दोनों चुटिया पकड़ ली और उनको अपनी तरफ खींच खींच कर गांड मारने लगा मानो घुड़सवारी कर रहा हो।
कुछ देर बाद उसने प्रगति को आगे की तरफ धक्का देते हुए उसको कुतिया आसन से निकाल कर पेट के बल लिटा दिया। उसके चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर उन्हें ऊपर उठा दिया और इस अवस्था में उसको पेलने लगा। यह आसन उसको बहुत ही मज़े दे रहा था क्योंकि इसमें उसका पूरा अगला शरीर प्रगति के पूरे पिछले शरीर के संपर्क में था। लंड को घर्षण भी अच्छा मिल रहा था। शालीन ने अपने हाथ प्रगति के नीचे से डालते हुए उसके बोबों को पकड़ लिया। अब उसके हाथों में स्तन थे और उसका लंड उसकी गांड में पूरा घुसा हुआ था। उसका सीना प्रगति की पीठ पर रगड़ खा रहा था और उसकी जांघें प्रगति के चूतड़ों को मल रहीं थीं। शायद इसी को स्वर्ग कहते हैं।
इस आसन में प्रगति कुछ ज्यादा नहीं कर पा रही थी पर शालीन अपनी मन मर्ज़ी कर रहा था। उसको गांड मारने में बहुत मज़ा आ रहा था। अब उसका फव्वारा दोबारा छूटने को हो रहा था। उसने अपने झटके और लम्बे कर दिए और लगभग पूरा लंड बाहर निकाल निकाल कर अन्दर घोंपने लगा। उसका लावा उमड़ने वाला था पर शालीन यह चरम आनंद के क्षण और बढ़ाना चाहता था। उसने अपनी पूरी आत्मशक्ति का उपयोग करते हुए अपने स्खलन पर नियंत्रण बनाये रखा और गांड मारता रहा।
प्रगति को यह आसन एक समर्पण सा लग रहा था क्योंकि वह कुछ नहीं कर सकती थी। उसका पूरा जिस्म शालीन ने मानो दबोच रखा था। वह शालीन को मज़ा दे रही थी और इसी में उसको मज़ा आ रहा था। यह अलग बात है कि गांड में भी उसे अत्यधिक आनंद की अनुभूति हो रही थी। आखिर वह क्षण आ ही गया जब शालीन अपनी परम कोशिश के बाद भी अपने चरमोत्कर्ष को और टाल नहीं पाया और उसने एक आखरी ज़ोरदार वार किया और अपनी पिचकारी प्रगति की गरम गांड में छोड़ दी।
फिर वह बहुत देर तक प्रगति के ऊपर ऐसे ही लेटा रहा जब तक उसका तृप्त लंड अपने आप गांड से बाहर नहीं आ गया। फिर उसने प्रगति को पलट कर उसके ऊपर पुच्चियों की बौछार कर दी !
आपको यह कहानी कैसी लगी? Antarvasna
मेरा नाम सुरेश है और मैं Sex Storiesअहमदाबाद, गुज़रात से हूं। मेरी उम्र 30 साल और कद 5’4′ है।
यह बात अभी की है जब मैं 3 साल के बाद विदेश से वापिस आया।
अहमदाबाद में जो मेरे पुराने साथी थे वे सभी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए थे इस लिए अहमदाबाद मेरे लिए एक नया शहर हो गया था और मुझे एक साथी की तलाश थी।
मेरे जो एक दो पुराने दोस्त मिले, उनसे इस बारे में बात कि तो एक ने मुझे एक फ़ोन नम्बर दिया जो वास्तव में एक विधवा का था और उसकी एक सात साल की बच्ची है।
तो मैंने उसको फ़ोन लगाया और बताया कि मैं कौन बोल रहा हूं और किसने मुझे उसका नम्बर दिया है, तो वो मुझसे बात करने लगी।
पहले पहले हम बस सीधी सीधी बातें करने लगे और हमें रोज़ बात करने की आदत सी हो गई।
बातों बातों में मुझे यह भी पता नहीं चला कि वो मुझसे इतनी प्रभावित हो गई कि उसने एक दिन मुझे अपने घर मिलने के लिए बुलाया और मैं चला गया।
जैसे ही मैं उसके घर गया तो उसकी बेटी ने दरवाज़ा खोला जो बहुत प्यारी थी। लेकिन मैंने जैसे ही उसकी मम्मी को देखा तो मेरे होश उड़ गए।
क्यों?
अरे ! वो इतनी खूबसूरत नहीं थी जितना मैंने सोचा था।
हाँ ! वो गोरी जरूर थी लेकिन उसकी सूरत मुझे जरा भी पसन्द नहीं आई।
फ़िर हम इधर उधर की बातें करने लगे। असल में मेरे बात करने के अंदाज़ से और मेरे विदेश में रहने के कारण वो मुझसे बहुत प्रभावित थी।
थोड़ी बातें करने के बाद उसने मुझे कोल्ड-ड्रिंक दिया और अपनी बेटी को कहा- जाओ ! चिराग के घर में जाकर खेलो जो कि उनके ऊपर वाली मंजिल पे रहता था।
असल में मैं उसके घर पर यह सोच कर गया था कि कोई अच्छा साथी मिल जाए जिससे मैं अपने दिल की बातें कर सकूँ।
यहाँ पर मैं आपको बता दूँ कि मैं भी एक शादीशुदा आदमी हूँ, पर जैसा कि आप जानते हैं कि आदमी की कई ऐसी बातें होती हैं जो वो अपनी पत्नी के साथ भी नहीं बाँट सकता।
मेरे विचार में जीवन में ऐसी कितनी ही बातें होती हैं जो आप अपने निकटतम मित्रों से ही बाँट सकते हैं( ऐसे ही एक मित्र की मुझे तलाश थी)। लेकिन यहाँ तो बात कुछ और ही निकली। मेरी जरूरत थी एक खूबसूरत दोस्त जो मुझे दिल से समझ सके (सिर्फ़ सेक्स नहीं)
यहाँ इस भाभी को देखने के बाद मैंने निश्चय किया कि कम से कम इसके साथ तो मैं आगे कोई सम्बंध नहीं रखूँगा।
लेकिन उल्टा यह हो गया कि जैसे मैंने आपको बताया कि भाभी कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गई थी मुझसे।
अब घर में सिर्फ़ हम दोनों थे और मेरे पास कोई बात नहीं थी उससे करने को।
इतने में उसने बोला कि आओ हमारा घर देख लो।
मैं और वो अपने हाथों में गिलास लिए खड़े हुए और पहले उसकी रसोई में गए जो कि अच्छा खासा पैसा खर्च करके बनाई थी, असल में उसके पति अच्छे पैसे वाले थे और उसकी मृत्यु के बाद भाभी ने भी अच्छी नौकरी कर ली थी।
उसने मुझे रसोई के बारे में पूरी जानकारी दी पर पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लगा कि वो जो भी बात कर रही थी वो दोहरे अर्थ में ही कर रही थी। मुझे एक और बात महसूस हुई कि जहां कहीं भी उसे मुझे छूने का मौका मिलता वो छोड़ती नहीं थी।
फ़िर वो मुझे बाहर लाई जहां हम पहले बैठे थे और हर बात बड़े विस्तार से बता रही थी। बात करते करते उसका हाथ मेरे हाथ से टकरा गया और मेरा कोल्ड ड्रिंक मेरे शर्ट पर गिर गया। उसने मुझ से माफ़ी मांगी और कहा कि आप जल्दी से शर्ट उतार दीजिए, मैं साफ़ कर देती हूं।
मैंने शर्ट उतार कर उसे दी तो उसकी नज़र मेरे सीने से हट नहीं रही थी क्योंकि मेरा सीना चौड़ा है, कोलेज़ के समय से ही मैं अखाड़े में जाया करता था।
मैंने उसे फ़िर कहा- भाभी जी ! शर्ट !
वो मेरे हाथ से शर्ट लेकर बेडरूम की ओर जाने लगी तो मेरी नज़र उसके पृष्ठ उभारों पर पड़ी जो कि मुझे पांच पांच किलो के नज़र आ रहे थे और ऊपर नीचे हो रहे थे। बेडरूम में जाकर उसने मुझे आवाज़ दी-सुरेश ! यहाँ आओ ! देखो यह मेरा बेडरूम है और बाथरूम भी यहीं पर है। फ़िर उसने कहा- तुम यहीं बेड पर बैठो, मैं आपका शर्ट मशीन में डाल देती हूँ। और वो बाथरूम में चली गई।
वहाँ बैठे बैठे मैं बोर हो रहा था और पता नहीं मुझे ज़रा नींद सी आ गई। मैं सोया नहीं था पर ज़रा आंख बंद हो रही थी। थोड़ी देर में मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे लण्ड पर किसी का हाथ घूम रहा है, पर मेरे मन में ऐसा कोई विचार था ही नहीं इसलिए मेरा लण्ड सामान्य ही था।
मैंने आंखें खोल कर देखा तो वो मेरे पूरे बदन को चूमने लगी तो मैं एकदम उसे रोकने लगा और कहने लगा कि आप यह क्या कर रही हैं। तो उसने कहा कि मैं तुमसे यौन सम्बंध बनाना चाहती हूँ और फ़िर मुझे जोर जोर से चूमने लगी।
दोस्तो ! विश्वास करना कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मेरे लण्ड पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि मैं उसे चोदना ही नहीं चाहता था।
मेरी कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर उसने मुझसे पूछा कि क्या तुम मुझसे कुछ भी करना नहीं चाहते?
मैंने साफ़ मना कर दिया कि नहीं मुझे तुम में कोई रुचि नहीं है, आप अच्छी हैं, आप का स्वभाव भी अच्छा है पर मैं आपके साथ सेक्स नहीं करना चाहता।
तो उसने कहा- तो फ़िर तुम मेरे घर क्यों आए और अब तक मुझसे बातें क्यों करते रहे?
मैंने उसे साफ़ बता दिया कि मैं उसके बुलाने पर ही उसके घर आया हूं और बातें इसलिए करता रहा कि आप अपनी किसी अच्छी सी खूबसूरत सहेली से मेरी दोस्ती करा दोगी, जैसा कि आपने वादा भी किया था।
यह सुन कर वो एकदम निराश हो गई और उसकी आंखों में आँसू आ गए। तभी उसने मुझे उसकी सारी बातें बताई और मुझे एकदम भावुक कर दिया और जोर जोर से रो रो कर मुझसे चिपक गई।
उसकी इतनी सालों की वासना की भूख सुन कर मुझे उस पर तरस आ गया और मैं उसके सिर पर हाथ फ़िराने लगा।
फ़िर उसने कहा-सुरेश ! मैं तुम्हें अपनी दो तीन अच्छी सहेलियों से मिलाऊँगी और दोस्ती भी करा दूंगी, पर तुम मुझे एक बार अच्छी तरह से संतुष्ट कर दो। जब से मैंने तुम्हारा यह गोरा और चौड़ा सीना देखा है मुझसे रहा नहीं जाता।
यह बात करते करते उसने फ़िर से मेरा लण्ड सहलाना शुरू कर दिया। मैंने सोचा कि यह औरत इतने सालों से भूखी है तो क्यों ना मैं इसकी आग ठण्डी कर दूँ!
मैंने अपनी ज़िप खोल कर अपना 4 इन्च का लण्ड उसके हवाले कर दिया जो कि अभी तक उठा नहीं था।
वो मेरे लन्ड से खिलवाड़ करने लगी जैसे किसी छोटे बच्चे को खिलौना मिल गया हो।
फ़िर उसने मेरे लण्ड को अपने मुंह में ले लिया और ऐसे चूसने लगी जैसे आम चूस रही हो। अब यह तो स्वाभाविक ही है कि इतना लण्ड चुसवाने के बाद तो सत्तर साल के बुढ्ढे का भी खड़ा हो जाए, मैं तो सिर्फ़ तीस का था।
वो मेरा 7′ का खड़ा लण्ड देख कर पागल सी हो गई और जोर जोर से चूसने लगी। चूसते चूसते उसने मेरी पैन्ट और अन्डरवीयर निकाल दी थी। लगातार बीस मिनट लण्ड चूसने के बाद उसने मुझे बेड पर लेटने को कहा और उसने खुद अपने सारे कपड़े उतार दिए।
और उसने मुझे बताया कि मुझे पता है कि मेरी सूरत तुमको पसंद नहीं है, पर आज के किए तुम मुझे खुश करो।
तो ना चाहते हुए भी मैंने उसके बड़े बड़े स्तन जो कि एकदम गोरे अड़तीस इन्च के थे, दबाए फ़िर उसने अपने स्तन चुसवाए। मैं करता रहा क्योंकि मैं उसको प्यासी नहीं रखना चाहता था।
थोड़ी देर बाद वो खुद मेरे ऊपर चढ़ गई और अपने आप ही मेरा लण्ड अपनी चूत पर लगा कर अन्दर डलवाने की कोशिश करने लगी, लेकिन अन्दर नहीं जा रहा था क्योंकि उसकी चूत बहुत समय से प्रयोग ही नहीं हुई थी।
तो उसने कहा- आप अपने लण्ड को ज़रा पकड़ो, मैंने पकड़ा, फ़िर उसने अच्छी तरह से मेरे लण्ड की टोपी अपनी गीली चूत के मुँह पर जमाई और ज़रा सा जोर लगाया तो सिर्फ़ मेरा टोपा ही अन्दर घुस सका और वो चिल्ला उठी। पर वो हटी नहीं और दर्द होने के बावज़ूद दो तीन झटके लगा कर मेरा पूरा लण्ड अन्दर ले ही लिया और बिना हिले पाँच मिनट तक चुपचाप मेरे ऊपर बैठी रही (शायद दर्द के कारण!)
फ़िर धीरे धीरे हिलना शुरू होकर जो शताब्दी एक्स्प्रेस वाली गति पकड़ी कि रुकने का नाम ही नहीं लिया।
दोस्तो ! वैसे मैं चोदने में माहिर हूं और किसी भी महिला को दुनिया का स्वर्ग दिखा सकता हूं, मैं तीस चालीस मिनट तक चोदने की ताकत रखता हूँ। पर यहाँ मेरी इच्छा के विरुद्ध काम चल रहा था। मुझे उत्तेज़ना नहीं थी, मैं तो सिर्फ़ एक भूखी औरत को संतुष्ट करना चाह रहा था।
वो करीब बीस मिनट लगातार झटके लगाने के बाद आह ऊह की जोरों की आवज़ों के बाद मुझ से चिपक कर ढेर हो गई पर मुझे और मेरे लण्ड को आज़ाद करने से मना कर रही थी।
फ़िर उसने मुझे बोला कि मैं उसे अलग अलग तरीके से चोदूँ, तो मैंने उसे पाँच छः तरीकों से खुश किया और पता नहीं वो कितनी बार झड़ चुकी होगी।
तब उसने कहा कि आज के बाद अगर मैं सात जन्म तक नहीं चुदवाऊंगी तो भी अफ़सोस नहीं होगा। और रही तुम्हारी बात तो मैं तुम्हें अपनी ऐसी ऐसी दोस्तों से मिलवाऊँगी कि मुझे चोदने के बाद तो तुम्हारा नहीं छुटा पर मेरी सहेलियों को देख कर ही तुम्हारा लण्ड पानी छोड़ देगा।
दोस्तो ! विश्वास करो कि मैंने अपना खड़ा लण्ड ऐसे ही वापिस अपनी पैन्ट में समेट लिया और वहाँ से निकल लिया।
करीब दो दिन के बाद मेरे मोबाईल पर उसका फ़ोन आया और…
आपको कैसी लगी मेरी सच्ची कहानी? Sex Stories
मैंने अपनी एक मस्त चुदाई Antarvasna पहले भाग में सबको बताई थी, उम्मीद है सबको अच्छी लगी होगी। दोस्तो, जिस तरहं मैंने बताया था कि मेरा सोचना अलग है, क्या पता बाद में अगला जन्म किसने देखा जाना है, मैं दिल खोल कर अपनी जवानी लूटना चाहती हूँ। मुझे अच्छा भी बहुत लगता है जब लड़के मुझे माल, गश्ती, चालू सी लड़की कहते हैं, मुझे बुरा नहीं लगता और मैं मज़ा लेती हूँ। यहाँ तक कि उनके कटाक्षों पर थैंक्स तक कह जाती हूँ जिससे वो शर्मिंदा हो जाते हैं।
मैने बताया था कि किस तरहं एक ट्रांसपोर्टर के लड़के के साथ मेरा अफेयर रहा और उससे चुदाई का खूब सुख लिया था और उसके जाने के बाद मेरा अफेयर जिस लड़के से हुआ यह तो मेरे पैसे के पीछे आया था यह मैं अच्छी तरह जानती थी, समझती थी, इसीलिए वो मुझे मेरे आलीशान बेडरूम में चोदना चाहता था। और यह बात मैं शुरु में जान गई थी।
खैर मेरे सर पर सेक्स का भूत सवार था, जब उसने अपने कज़न को साथ लाने को ही कह दिया था, मैंने उसको पिछले दरवाज़े से रिसीव किया और अपने बिस्तर पे ले आई। उसने कहा कि उसका कज़न बाहर ही उसकी प्रतीक्षा करेगा, वो उसको बियर बार में बिठा कर आया है। यह सुन मुझे राहत सी मिली की एक ही होगा।
आज मुझे अकेली को बिस्तर पर देख उसकी आँखों में नशा सा आने लगा। मैं बेड पर बैठ गई। उसने अपने जूते खोले और मेरे पास आकर लेट गया। अपने साथ लेटे हुए देख मेरा मन भी डोलने लगा। उसने मेरी टी-शर्ट उतार दी उसके समने दो कबूतर तने हुए चुचूकों के साथ देख उसका खडा हो गया। उसने बारी बारी दोनों स्तनों को चूस कर मुझे भी आपे से बाहर कर दिया। मैं पहले से पैंटी में ही थी, मेरी गोरी जांघों पर उसका हाथ फ़िरने लगा।
मैंने उसकी जींस उतार दी और उसका लौड़ा कच्छा को फाड़ने पर आया हुआ था। जैसे ही मैंने उसका कच्छा उतारा सामने काले नाग की तरह लम्बा सा लौड़ा था। वाह ! क्या हथियार पाया है जालिम तुमने !
साली पसंद आया?
मैंने कहा- बहुत पसंद आया !
अब चूसेगी भी कुतिया अपने कुत्ते का लौड़ा?
मैंने झट से मुँह में डाल लिया और पागलों की तरहं चूसने लगी। एक पक्की रंडी की तरह लगने लगी थी।
वाह रानी वाह ! उसने मेरी टांगे खुलवा अपने होंठ मेरी चूत पर टिका दिए, जिसे छूते ही मैं भड़क उठी और दिल करने लगा कि वो मेरी चूत चूसता ही जाए। मेरे चूतड़ उछलने लगे- अह अह !
उसने दोनों टांगें कन्धों पर रख ली और लौड़ा चूत पर रख दिया। मैंने अपने हाथ से लौड़े को चूत के छेद पर टिकाते हुए झटके के लिए कहा।
आऊच ! ओह अह ! उसका मोटा लम्बा लौड़ा मेरे अन्दर घुसने लगा। क्या स्वाद था दर्द का भी !
करते करते एक ज़बरदस्त धक्के से उसने पूरा डाल दिया। मैं हिम्मत से बेड की चादर को पकड़ दांतों में दांत दबाते हुए सह गई और उसका पूरा साथ देने लगी।
बहुत बढ़िया चोद रहा था, मैं भी अपनी चूत उछाल उछाल कर उसका उत्साह बढ़ा रही थी। वो पूरा लौड़ा जब अन्दर डालता वो मेरे गर्भाशय से टकराता तो मजे से आंखें बंद होने लगती।
उसके बाद उसने मुझे खड़ा कर दीवार से हाथ लगा झुकाते हुए लौड़ा डाला, कसा-कसा सा लगने लगा, बहुत मज़ा मिलने लगा= और चोद ! और रगड़ !
यह ले साली, कमीनी कुतिया ! साली रांड यह ले !
वहीं घोड़ी बना लिया और चोदने लगा। नीचे से मेरे दोनों मम्मे हिलने लगे उसने दोनों पकड़ लिए और स्पीड पकड़ कर मशीन की तरह चलने लगा।
फ़िर एक दम से उठाया, लौड़े को डाले रखा, गोद में उठा कर बिस्तर पे डाल मेरे ऊपर सवार हो गया और आखिर वो अपना सारा पानी मेरी चूत में डालते हुए मेरे ऊपर गिर गया।
उसने मुझे इतना संतुष्ट किया कि मैं खुश हो गई। उसके बाद वो बोला- अब किस दिन आऊँ?
मैंने कहा- अपने कज़न को भी ले आओ ! बेचारा !
क्यूंकि मेरा मूड अब एक साथ दोनों के डलवाने का बन चुका था।
वो बोला- दस मिनट में आया !
उसके बाद क्या हुआ, जानने के लिए इसका तीसरा भाग पढ़ें।
धन्यवाद ! Antarvasna
Xx हिंदी चुदाई कहानी में मेरे साथ एक लड़की काम करती थी. उसका उसके पति से झगड़ा हो गया तो उसे सेक्स की कमी लगने लगी. तब हम दोनों ने आपस में सेक्स करके मजा किया.
दोस्तो, मैं राजेंद्र कोटा से!
मेरी पिछली कहानी थी:
प्यासी विधवा मकान मालकिन की चूत चुदाई
आज मैं फिर से आपके लिए अपने जीवन की एक सच्ची सेक्स कहानी लेकर आया हूँ.
यह Xx हिंदी चुदाई कहानी करीब 10 साल पुरानी है.
उस समय मैं एक कॉलेज में लैब असिस्टेंट था.
मेरे साथ एक मैडम थी, वह भी लैब असिस्टेंट थी.
उस मैडम का नाम सीमा था.
हम दोनों का काम स्टूडेंट्स को मदद करना होता था.
वह मैडम देखने में बड़ी हॉट थी और स्कूल के कई टीचर्स उसकी लेने की फिराक में रहते थे.
लेकिन वह किसी को भाव ही नहीं देती थी.
जबकि वह हंसमुख बहुत ही ज्यादा थी.
उसकी इसी आदत के चलते मैं उससे काफी मजाक करता रहता था.
मेरी हमेशा मज़ाक करने की आदत भी थी, इसी वजह से मैं हमेशा कह देता था कि मैडम क्या डेट पर चलोगी?
वह मुस्करा देती थी.
उसने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा कि आप मुझसे ऐसी बात नहीं किया करो या कुछ भी गुस्सा वाली बात नहीं दिखाई दी थी.
यदि वह मुझसे एक बार भी कह देती कि आप मुझसे यह सब नहीं कहा करो तो मेरी उसके साथ मजाक करने की कभी हिम्मत ही न होती.
हालांकि मेरे मन में कुछ गलत नहीं था, बस इतना कहने का मन करता था और मैं हमेशा ही ऐसा कहकर उसको छेड़ देता था.
जब स्टूडेंट्स की और टीचर्स की छुट्टियां भी हो जाती थीं, तब भी हम दोनों की ड्यूटी होती थी क्योंकि हम दोनों टीचिंग स्टाफ में नहीं थे.
धीरे धीरे हम दोनों काफी नजदीक आते गए.
साथ में टिफिन शेयर करना, एक दूसरे के काम कर देना, यही सब चलता रहता था.
वह मेरे खाने की बड़ी तारीफ करती थी और मैं उसके हाथ के बने खाने की तारीफ करता था.
मैं रोजाना उसकी आदतों को लेकर तारीफ करता रहता था तो वह कहती- आप झूठे हो, मुझे यूं ही बनाते हो.
मैं भी कह देता- चलो झूठ को ही सच मान लो, क्या घट जाएगा!
इस पर वह हंस पड़ती थी.
एक बार उसने मेरे सामने अपना दुखड़ा रोया कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया और वह काफी अकेला महसूस कर रही है.
मैं समझ गया कि इसको क्या अकेलापन लग रहा है.
मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा- तुम मुझसे अपने दिल की बात कह कर अपना मन हल्का कर लिया करो.
उसने मेरी तरफ देखा और वह मेरे कंधे से सर लगा कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी.
इसी तरह से वह मेरे साथ काफी क्लोज हो गई थी.
गर्मी की छुट्टी में हम दोनों रोजाना कॉलेज जाते थे और लैब में ही होते थे.
उस दौरान टाइम निकालना मुश्किल होता था क्योंकि हमारे पास कोई काम तो होता नहीं था, बस यूं ही बैठ कर समय गुजार देते थे.
एक दिन सीमा मैडम ने कहा- सर आप रोज मुझे कहते हो कि डेट पर चलो, डेट पर चलो. आज बोलो कहां चलना है!
मैं उसकी इस बात को सुन कर एकदम से स्तब्ध रह गया.
मैंने उसकी तरफ सवालिया नजरों से देखा.
तो वह बोली- ये बात किसी से नहीं कहना, मैं सच में आपके साथ चलूँगी.
यह कहती हुई वह मेरे पास आकर बैठ गयी.
वह मेरे काफी करीब बैठी थी, बोली- आपने ही तो कहा था कि अपने दिल की बात मुझसे कह कर अपना मन हल्का कर लिया करो!
मैंने उसकी आंख में आंख डालकर देखा और पूछा- क्या सच में डेट पर चलना है?
वह बोली- हां!
मैंने कहा- मालूम है कि डेट पर चलने का अर्थ क्या होता है?
वह हंस दी और बोली- नहीं मालूम है … आप बताओ कि डेट पर चल कर क्या होता है?
जबाव में मैंने अपना हाथ उसकी जांघ पर रखा, तो उसने भी मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया.
मुझे समझ आ गया कि आज यह मुझसे कुछ चाह रही है.
मैंने उसे चूमा, तो वह उठकर गेट के पास गयी और इधर उधर देख कर वापस आ गयी.
आते ही वह मेरी गोद में बैठी और कुछ सेकंड के बाद उठ गयी.
वह वापस दरवाजे के पास चली गयी.
दुबारा से उसने इधर उधर झांक कर देखा और फिर से मेरे पास आकर बैठ गयी.
मैंने उसके गाल पर उंगली फिराई, वह शांत रही.
मैंने उंगली ऊपर से नीचे उसके 36 साइज के मम्मों पर फेरना चालू की, तब भी वह चुप रही.
तब मैंने उसके एक दूध को कसके पकड़ लिया.
उसने एक गहरी सांस ली और हवस भरी निगाहों से मुझे देखने लगी.
अब तक मेरे भी तन बदन में आग लग चुकी थी.
मेरा लंड फनफना रहा था, मेरी भी सांसें तेज हो चुकी थीं.
मैं बार बार लंड पर हाथ रख रहा था.
वह यह नजारा देख रही थी.
फिर मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर ले गया.
जैसे ही उसने मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड पर हाथ रखा, वह ऊपर से नीचे तक सिहर गयी.
उसने अपने होंठों को दांत से काटना शुरू कर दिया और आंख बंद करके लंड को सहलाने लगी.
मैं भी उसकी चूचियों को दबाता हुआ सहला रहा था.
उस दौरान वह अपने होंठों को अपने दांतों से काटती गयी.
उसने कहा- अब मुझसे रहा नहीं जाता!
मैंने कहा- अभी इधर ही डेट पूरी कर लें?
उसने हां में सर हिला दिया.
मैं झट से उठ कर फिर से दरवाजे पर आया और देखा कि बाहर कोई है तो नहीं.
उधर कोई नहीं था.
मैं वापस आया.
वह खड़ी थी.
मैंने पीछे से उसे पकड़ा और उसकी दोनों चूचियों को कस कसके दबाने लगा.
उसका हाथ मेरे हाथ के ऊपर था.
जब जब मैं उसकी मस्त चूचियों को दबा रहा था, वह इस्स्स आह की आवाज़ निकाल रही थी.
फिर वह झटके से मेरी तरफ घूम गयी और मुझे पकड़ कर मेरे होंठों पर अपने होंठ ले आयी.
वह मुझे किस करने लगी.
उसका किस एकदम वाइल्ड किस था.
वह अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसा रही थी, तो कभी हल्के से दांतों से काट रही थी.
उसके दोनों हाथ मेरे गाल पर आ गए थे और वह चुंबन का मजा ले रही थी.
मैंने भी अपने हाथ उसके पीछे किए और उसके दोनों उभरे हुए चूतड़ों को पकड़ कर जोर से दबाया. ताकि उसकी चूत मेरे लंड के करीब आ जाए.
जैसे ही वह मेरे लौड़े से चूत रगड़ने लगी, मैं जोर जोर से धक्का लगाने लगा.
हम दोनों की बेचैनी बढ़ रही थी, क्योंकि अभी तक हमारे जिस्म से जिस्म मिले नहीं थे. कपड़ों के ऊपर से ही ये सब हो रहा था.
उसने कहा- अब आगे बढ़ो न!
मैंने कहा- आगे बढ़ने के लिए कपड़े हटाने पड़ेंगे … हटा दूँ?
वह कुछ कहती कि तभी कोई कॉरीडोर में आता दिखाई दिया.
मैंने उससे अलग होते हुए कहा- यहां कुछ भी करना ठीक नहीं है.
वह भी अपने कपड़े ठीक करने लगी.
हम दोनों अलग अलग होकर बैठ गए और वह कुछ करने लगी, मैं किताब पढ़ने लगा.
थोड़ी देर बाद ही छुट्टी हो गयी थी.
उस दिन इससे अधिक कुछ भी नहीं हो पाया था.
बस यह था कि वह अपनी प्यास मुझसे बुझवाना चाहती थी, यह बात खुल कर सामने आ गई थी.
उसके बाद शाम को करीब 5 बजे सीमा का फ़ोन आया- सर, क्या कल आप छुट्टी कर सकते हो, मैं भी कल ऑफिस नहीं जाऊंगी … दोनों मिलकर कहीं चलते हैं.
मैंने कहा- हां ठीक है. मैं ऑफिस के लिए ही निकलूंगा, पर ऑफिस नहीं आऊंगा.
सीमा बोली- ठीक है, मैं भी वही करूंगी.
हम दोनों ने प्लान बनाया और एक जगह पर मिलने का तय किया.
मैं बाइक से उसी जगह पर पहुंच गया.
वह वहीं पर दुपट्टा से चेहरा ढक कर खड़ी थी.
फिर हम दोनों एनसीआर में एक होटल में गए.
उधर करीब 11 बजे पहुंच गए थे.
कमरा बुक किया.
हम दोनों जैसे ही कमरे के अन्दर पहुंचे, पागलों की तरह एक दूसरे को चाटने लगे.
एक एक करके सारे कपड़े उतार दिए.
अब वह सिर्फ पैंटी में थी और बेड पर लेटी नशीली आंखों से मुझे निहार रही थी.
क्या खूब लग रही थी.
फिर मैं उसके ऊपर चढ़ गया और उसके मम्मों को मसलने लगा, उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा.
हम दोनों के होंठ और गाल लाल हो गए थे.
मैंने उसके होंठों पर जीभ को फिराना शुरू किया और मम्मों से होते हुए नाभि पर, फिर पैंटी के पास पहुंच गया.
फिर एक गहरी सांस लेकर मैंने पैंटी को सूंघा तो मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.
मेरा तो लंड खड़ा हो गया था, लौड़े के ऊपर से थोड़ा लसलसा सा पानी भी निकलने लगा था.
मैंने उसकी पैंटी खोली तो देखा उसकी चूत भी पानी पानी हो चुकी थी.
उसकी चूत को मैंने थोड़ा फैला कर देखा तो एकदम टाइट चूत थी.
अन्दर का रंग एकदम गुलाबी था.
मैंने जीभ को लगाया तो वह सिहर गयी और गांड हिलाने लगी.
मैं उसकी चूत पर अपनी जीभ फिराने लगा.
वह अपने दोनों हाथ ऊपर करके तकिए को अपनी मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश कर रही थी.
फिर कुछ देर बाद वह अपनी चूत को उछालने लगी.
मैं एक उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगा.
वह काफी ज्यादा कामुक हो चुकी थी, उसके माथे से पसीना निकलने लगा था.
वह कहने लगी- अब बर्दाश्त के बाहर है, मुझे चोद दो … मेरी वासना की पूर्ति कर दो … मेरा मन भर दो … चोद दो मुझे … आज मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ.
तब वह मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
वह ऐसे लंड चूस रही थी कि न जाने कितनी प्यासी हो.
मेरे भी तन बदन में आग लग चुकी थी.
मैं उसकी ज्वाला को शांत करने के लिए तैयार था.
जैसे ही उसने मेरा लंड अपने मुँह से निकाला, मैंने उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसकी चूत पर लंड का सुपाड़ा रख दिया और एक ही झटके में अन्दर घुसा दिया.
वह ‘आआ अह मर गई …’ की आवाज़ निकालने लगी.
मैं झटके पर झटके दे रहा था और कुछ ही देर में वह भी मजा लेने लगी.
वह कभी अपने बूब मसलती तो कभी मेरे बालों में उंगली फिराती.
इस तरह से मैंने उसे काफी देर तक चोदा और झड़ कर हम दोनों निढाल होकर सो गए.
करीब एक घंटा बाद जब हम दोनों उठे तो एक दूसरे को चूम कर मुस्कुराने लगे.
बहुत तेज भूख लग आई थी.
फिर नीचे जाकर हम दोनों ने खाना खाया और मैंने वहीं मेडिकल स्टोर से सेक्स समय बढ़ाने वाली दवा ले ली.
अब तो हमारे बीच सेक्स और भी ज्यादा वाइल्ड और हार्डकोर हो गया था.
मैंने उसे हचक कर चोदा. उसकी चूत का सत्यानाश कर दिया.
शाम को ऑफिस के टाइम पर ही होटल से अपने अपने घरों को निकल गए.
उसके बाद मैंने कई बार सीमा को चोदा. कई बार उसके घर जाकर भी उसे चोदा.
मेरा नाम खुशबू है। अभी मैं २२ वर्ष की हूँ। इसी Sex Stories साल मैंने एम ए किया था। मेरे कॉलेज समय में यानि एक साल पहले मैं एक क्लास में पढ़ने वाले साथी के साथ प्यार कर बैठी थी, यह जानते हुए भी कि मेरी सगाई हो चुकी है।
आलोक एक सुन्दर और व्यवहारिक लड़का था। वो जिम में जाने वाला कसे जिस्म का लड़का था। मैं उसकी शरीर के कट देख कर उस पर मर मिटी थी। जब मैं उससे अधिक बात करने लगी तो वो भी मेरी तरफ़ आकर्षित हुआ। धीरे धीरे ये निकटता में बदल गई और एक दिन उसने मुझे प्रोपोज कर ही दिया। मैं तो पहले ही उस पर मरती थी। उसके प्यार को मैंने तुरन्त स्वीकार कर लिया। अब हम छुप छुप कर गार्डन में, झील के किनारे, लाइब्रेरी में या रेस्टोरेन्ट में मिलने लगे थे पर कॉलेज में सावधान रहते थे कि कही बदनाम ना हो जाये।
अभी तक बस उसने मेरा हाथ ही पकड़ा था। पर मेरी इच्छा तो अपनी हवस पूरी करने की थी, बस जिस्म की जरूरत को पूरा करना चाहती थी। मैं उसे हर तरह से उत्तेजित करती रहती थी कि वो मौका मिलते ही मेरी छातियाँ दबाये और मेरे दूसरे अंगों को मसल दे। कभी ऐसा भी हो जाये कि मुझे अकेले में चोद दे और मेरी प्यास बुझा दे। पर वो मेरे अंगो को हाथ लगाने से भी डरता था। वैसे मुझे चुदाई का कभी भी मौका नहीं मिला था। मैं एक दम अनछुई कली थी, जो खिलने को बेताब थी।
एक दिन आलोक ने मुझे बताया कि शाम को उसके मम्मी पापा एक दिन के लिये मथुरा जा रहे है। शाम को घर पर आ जाना। मेरे दिल में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। मुझे लगा कि आज मौका है, सारी इच्छायें पूरी कर लूंगी। मेरा जिस्म तरावट से भर उठा। मेरे बदन में झुरझुरी सी आने लगी, चुदाई की सोच से मैं बैचेन होने लगी, सपनों में डूबने लगी।
बड़ी मुशकिल से शाम हुई। मैंने मोबाईल से पता किया, उसके मम्मी पापा जा चुके थे। मैंने अपनी स्कूटी उठाई और आलोक के घर पहुंच गई। जैसे ही मैं उसके घर पहुंची, उसके चेहरे पर खुशी झलकने लगी। अन्दर आते ही उसने मेरा गर्म जोशी से स्वागत किया। फिर हम एक सोफ़े पर बैठ गये। उसने धीरे से मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया और बातें करने लगी। पर मेरे दिल में तो कुछ और ही था। मेरा तो जिस्म ही जल रहा था। मैं चाह रही थी कि आज हम दोनों अकेलेपन का भरपूर फ़ायदा उठायें। वो सब कर डालें जो हमारे मन में है।
मैंने ही पहल करना उचित समझा… आलोक तो बस अपना प्रेमालाप ही करता रहा। मैंने उसकी जांघों पर हाथ रख कर उसे दबाया और उसकी काम वासना को जगाने की कोशिश की। उसके जिस्म की कंपकंपी मैंने महसूस कर ली। वो बोलता रहा, मेरी आँखें बन्द होने लगी और जाने कब वो मेरे कब्जे में आ गया। उसके होंठ मेरे होंठो से लग गये और उसका बोलना बन्द हो गया। पुचकारी की आवाजें गूंजने लगी। जीभ मुँह में अन्दर बाहर आने जाने लगी। उसका लण्ड खड़ा हो गया और मेरा काम बन गया।
उसने मुझे चूमते हुए सोफ़े पर गिरा दिया और मेरे जिस्म पर उसका बोझ आ गया। मेरे सीने पर उसके हाथ घूमने लगे। मेरी दिल इच्छा पूरी होने लगी। मुझे सोफ़े में तकलीफ़ हो रही थी। मैंने उसे कहा कि मुझे बिस्तर पर ले चलो। उसने मुझे अपनी बाहों में एक खिलौने की तरह उठा लिया। उसके बाहों की ताकत मुझे मालूम हो गई। उसने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे जिस्म पर अपना बोझ डाल दिया।
उसकी काया मेरी काया से चिपकी जा रही थी और लण्ड नीचे मेरी चूत पर दबाव डाल रहा था। बिस्तर में मुझे सहजता लग रही थी। उसके हाथ मेरे स्तन दबाने लगे थे और मुझे असीम आनन्द दे रहे थे। मेरी चूत पनीली हो चुकी थी। मेरा जिस्म अब चुदाई मांग रहा था, पर कैसे कहूँ? मैंने इशारों से काम लेना बहतर समझा। मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और दबाने लगी।
इसका तेज असर हुआ और उसने अपनी पेन्ट उतार फ़ेंकी और नंगा हो गया। मैंने जानबूझ कर शरमाने की एक्टिंग की और उसे नंगा देख कर कहने लगी,’ये क्या आलोक? क्या कर रहे हो? ‘
‘प्लीज खुशबू, मुझे मत रोको… वर्ना मैं पागल हो जाऊंगा !’
‘नहीं, आलोक नहीं, देखो मेरी सगाई हो चुकी है, ये ठीक नहीं है?’ पर इतनी देर में वो मेरे कपड़े खींच चुका था। मैंने भी सरलता से उसे उतारने दिये, चुदना जो था।
‘बस खुशबू अब चुप हो जाओ, इस अन्तर्वासना की लजन में कुछ सही गलत नहीं होता है !’ कह कर वो मेरे ऊपर फिर से चढ़ गया।
मैंने अपनी दोनों टांगें खोल ली और चूत का द्वार खोल दिया। पहले तो वो मेरा जिस्म दबाता, मसलता रहा। फिर उसका लण्ड मेरी चूत में घुस पड़ा और उसने चूतड़ों का पूरा जोर लगा कर अन्दर तक उतार दिया। मेरे मुख से जोर की चीख निकल पड़ी। साथ में वो भी कराह उठा। जल्दी से उसने अपना लण्ड निकाल लिया।
‘हाय रे मुझे लग गई है… ! ‘ उसके लण्ड के सुपाड़े के पास की झिल्ली फ़ट गई थी। मेरी चूत में से भी खून निकल आया था।
‘अरे ये खून !’ मैंने भी घबरा गई, मुझे भी अन्दर दर्द हो रहा था। सारा नशा काफ़ूर हो गया था। हम दोनों बाथरूम की ओर भागे। पानी से साफ़ करने लगे, मैंने देखा तो उसके लण्ड की पतली सी स्किन थी, जो सुपाड़े के आस पार से चिर गई थी, साफ़ नजर आ रही थी। मेरी चूत में से बून्द बून्द करके अभी भी खून बह रहा था। मैं घबरा उठी। यह तो मैं जानती थी कि झिल्ली होती है और पहली बार चुदने पर वो फ़ट जाती है पर नहीं मालूम था कि उसके बाद क्या करना चाहिये।
मैंने तो अपने बेग में से सेनेटरी नेपकिन निकाला और नीचे लगा दिया। हमारा पहला अनुभव था इसलिये कुछ समझ में नहीं आया तो मन मार कर मैंने चुदाने का विचार अभी छोड़ दिया। हम दोनों आपस में यही सोचते रहे कि अब क्या करें। कुछ देर बाद मैं घर चली आई। दर्द अभी भी था।
सुबह मैंने पैड हटा कर देखा तो सभी कुछ सामान्य थ, दर्द भी नहीं था। कॉलेज जाने से पहले मैं आलोक के घर गई कि उसे बता दू कि मैं अब ठीक हूँ। उसने भी भी बताया कि वह भी अब ठीक है।
उसने कहा- क्या अब फिर से ट्राई करें?
मैंने सोचा- अगर दर्द नहीं हुआ तो ठीक है वर्ना नहीं करेंगे।
हम जल्दी से बिस्तर पर आ गये। आलोक ने और मैंने जल्दी से कपड़े उतार लिये। कपड़े उतारते ही हम एक दूसरे को देखते ही रह गये। आज तो मैं होश में थी, उसका नंगा जिस्म, मसल्स उभरी हुई, लण्ड मदमस्त सा लहराता हुआ मेरे होश उड़ाने के लिये काफ़ी था। मेरे सेक्सी बदन को देख कर उसका हाल भी बुरा होने लगा। हम भाग कर एक दूसरे से लिपट गये। दो जवान जिस्म टकरा उठे, आग बरसने लगी। उसका मर्द मेरी गहराईयों को ढूंढने लगा। हम बिस्तर पर गिर पड़े और एक दूसरे को ऊपर नीचे लोट लगाने कर मचलने लगे। मन चुदने के लिये मचल उठा।
लोट लगाते हुए वो मेरे ऊपर आ गया और अब उसके चूतड़ मेरी चूत पर अपने लण्ड को दबाने लगे… आश्चर्य हुआ कि इस बार बिना किसी तकलीफ़ के उसका लण्ड मेरी चूत में उतर गया। मेरी पनीली चूत ने सहजता से लण्ड को अपना लिया। मुझे मीठे से अहसास के साथ खुमारी चढ़ने लगी। आज लगा कि लड़कियाँ चुदने के लिये इतना मरती क्यूँ हैं। मैंने भी अपनी चूत का पूरा दबाव उसके लण्ड पर डाल दिया।
धक्के चल पड़े। आलोक की कमर आगे पीछे होने लगी। हम मस्ती की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। सिसकारियाँ निकलने लगी… आलोक का भी यह पहला अनुभव था और मेरा भी। धक्कों की तेजी बढ़ती गई। हम दोनों आनन्द की दुनिया में मस्त हो गये। चूत-लौड़े की मीठी मीठी आग में हम जलते रहे।
‘हाय मेरे राजा, मस्त कर दे मुझे… चोद दे… जरा और … हाय रे !’
‘मेरी जानू, मस्त है रे तू… कितना मजा आ रहा है !’ हम चुदाई करते रहे और कुछ कुछ मस्ती में बोलते भी जा रहे थे।
कुछ ही देर में मैं चरमसीमा पर आ गई। और मस्ती के मारे मेरा रस छूटने लगा। मैं झड़ने लगी। मेरी आंखें बन्द हो गई। झड़ने का सुहाना आनन्द आने लगा। कुछ ही देर में आलोक ने भी अपना लण्ड बाहर खींच लिया और मेरी छाती पर अपना वीर्य छोड़ने लगा। मुझे बड़ा गन्दा सा लगा। मैंने उसे कहा कि वो दूसरी तरफ़ अपना रस गिराये। मैंने पानी से साफ़ किया और हम अब सुस्ताने लगे। इस के बाद मैं कॉलेज चली गई।
इसके बाद हमारा इस तरह का कार्यक्रम कभी मौका मिलने पर ही होता था।
मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। एक साल बीतने को आ गया था। हम दोनों कितनी ही बार घर से भाग कर शादी करने का प्रोग्राम भी बना चुके थे। पर हममें इतनी हिम्मत ही नहीं थी। मेरी एम ए की डिग्री भी मिल चुकी थी। मेरी शादी भी कुछ दिनों बाद हो गई। मैं अपने पति के साथ एक अलग घर में रहने चली गई थी।
एक बार दिन को आलोक मेरे घर आ गया। मेरे पति काम पर गये हुए थे। उसने बताया कि टीचर की कुछ जगह निकली है, आवेदन भर दो। तब मैंने अपने पेपर टटोले और सभी निकाल कर आवेदन जमा करा दिया। आलोक ने एकान्त पाकर मुझसे एक बार चुदाई के कहा तो मैं मान गई। मेरा मन फिर मचल गया। आलोक का लण्ड ही इतना प्यारा था कि मन चुदने को बेकरार हो उठा।
हम दोनों ने अपने कपड़े उतारे और चुदाई में लग गये। मस्ती का सफ़र चल ही रहा था कि जैसे बिजली गिर पड़ी। आलोक का लण्ड मेरी चूत में ही था और मेरा पति सामने खड़ा था। हमारा सारा नशा गायब हो गया। आलोक तुरन्त उछला और अपनी पेन्ट पहनने लगा। मेरा पति आपे से बाहर हो चुका था। उसने पास में पड़ी कुर्सी उठा कर आलोक को दे मारी। वो पेन्ट पहन भी नहीं पाया था कि कुर्सी का वार उस पर आ पड़ा। वो बुरी तरह से गिर कर घायल हो गया। पर उसकी फ़ुर्ती गजब की थी। मेरा पति दूसरा वार करता उसने अपनी पेन्ट ठीक की और एक तरफ़ हो गया। दूसरे ही पल आलोक ने लपक कर उसे पकड़ लिया और उसके पेट पर जबर्दस्त घूंसा मारा और साथ में दूसरे हाथ से उसके चेहरे पर वार कर दिया। मेरा पति आलोक से कमजोर था। वो लहरा कर गिर पड़ा। आलोक ने फ़ुर्ती से छलांग लगाई और वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
मेरा पति जब उठा तो उसका चेहरा खून से भरा था। उसने डंडा उठाया और मुझे बुरी तरह से मारना चालू कर दिया। मैं जोर जोर से रो कर उससे पांव पड़ कर माफ़ी मांगती रही पर उस पर तो जैसे खून सवार था। मैं रोती रही, मेरे जिस्म पर डण्डों की मार से नील पड़ चुकी थी। मेरे बालों का एक गुच्छा टूट कर वहाँ पड़ा था। पीठ में असहनीय दर्द हो रहा था। मुझे उसने एक कमरे में बन्द कर दिया। मैं दरवाजा भड़भड़ाती रही और माफ़ी मांगती रही। वो मुझे माँ बहन की गालियाँ देता रहा। अचानक उसके बाहर जाने की आवाज आई। मेरी नजर खिड़की पर पड़ी, मैंने जल्दी से पट खोला और कूद कर बाहर निकल आई। भाग कर बाहर आई तो दो-तीन पड़ोसी बाहर खड़े थे। मेरी चीख पुकार से शायद वो वहाँ आ गये थे।
पड़ोसी ने कहा,’खुशबू बेटी, वो शायद पुलिस थाने गये हैं !’
मैं और डर गई। आलोक के बारे में वहाँ कोई कुछ नहीं जानता था। मुझे लगा अब मुझे यहाँ रहने में खतरा है। मैंने तुरन्त अन्दर गई और और एक एयर बैग में सलवार, कुर्ते जल्दी जल्दी भरे, तभी मेरी नजर मेरे सर्टिफ़िकेट्स पर पड़ी, उन्हें भी मैंने रखा और कमरे में जहाँ मैं पैसे रखती थी, रुपये पैसे लिये और अपने गहने उठा लिये, फिर पति कि अलमारी से उसके पैसे निकाले और बाहर आ गई। तब तक घर के बाहर आठ दस लोग इकठ्ठे हो गये थे।
मैंने कहा,’भाई साहब ! मैं मायके जा रही हूँ… और पिटाई नहीं सह सकती हूँ !’ पड़ोसियों मेरी मदद की और पास में जा रहे टूसीटर को रोका और मां के घर की तरफ़ रवाना हो गई। फिर मुझे लगा कि वो तो वहां भी आ जायेगा। आगे जाकर मैं टूसीटर से उतर गई। वही खड़ी खड़ी सोचती रही। मुझे अपनी जिन्दगी इस छोटी सी गलती के कारण अन्धकारमय नजर आने लगी थी।
मैंने एक बड़ा कदम उठाने का निश्चय कर लिया और रेलवे स्टेशन पहुंच गई। दिल्ली की ट्रेन खड़ी थी। टिकट लिया और बैठ गई। गाड़ी जाने में एक घंटा का समय और था। मैं एक कोने में चुन्नी सर पर डाल कर मुँह छुपाये हुए थी। दिमागी परेशानी के मारे मुझे पता ही नहीं चला कि ट्रेन कब चल दी और मैं दिल्ली कब आ गई। बिना किसी लक्ष्य के मैं निजामुद्दीन से बाहर आ गई। सवेरे का समय था। एक रेस्टौरेन्ट में चाय बिस्किट खाये और फिर मैं आगे बढ़ी। थक कर एक चर्च के बाहर बैठ गई। मुझे नहीं पता था कि दो नजरें मुझे कब से देख रही हैं। बैठे बैठे मेरी झपकी लग गई। अचानक मेरे सर पर किसी का हाथ लगा। मैं चौंक गईऔर घबरा गई। नींद से जाग गई।
‘उठो, बेटी, ये जीजस का घर है… सभी दुखियारों का आसरा… !’
सामने चोगा पहने कोई पादरी था। मुझे प्यार भरी नजरों से देख रहा था। मुझे लगा कि ये दया का फ़रिश्ता कौन है।
‘आ जाओ… मेरे साथ… ‘ उसने अपना हाथ बढ़ा दिया। उसके बूढ़े हाथों को मैंने थाम लिया और मेरी रुलाई अब जोर से फ़ूट पड़ी… ।
‘रो लो बेटी, मन हल्का हो जायेगा।’ मेरी रुलाई कम हुई तो मन मजबूत करके मैं उनका हाथ थामे चर्च परिसर में प्रवेश कर गई।
खुशबू जिंदगी के किस मोड़ पर पहुंची … पढ़े भाग 2 में Sex Stories
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