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Massage Girl in Kathua: Premium Relaxation Services

Our site can help you find a professional massage girl in Kathua who will help you relax in the best manner possible. We connect you with professional therapists who can offer you a massage that will make you feel better and more relaxed. The pros on our list are ready to provide you with a fantastic experience at your house or in one of their particular spots, whether you want to relax or get away from it all.

Introduction

Massage is currently one of the finest methods to relax your mind, body, and overall health. Our website makes it easy to locate the top massage services in Kathua that meet your demands. This will be a one-of-a-kind and calming experience for you.

Tottaa wants to make it simple for clients to find the top masseuse. The Kathua massage service providers on our list offer the greatest quality, comfort, and competence, whether you want a full-body massage or a massage for a particular location.

How Tottaa Helps Advertisers Reach More Customers

Tottaa is not only a list of masseuses, it’s also a secure location for them to show off what they can do. People in Kathua who are seeking massage services may find them on our website. This makes them easier to find and gets them more appointments.

Advertisers may simply put up profiles, offer their services, and talk about pricing and discounts on our sites. This makes sure that the relevant people notice your Kathua massage service, which makes it easier to obtain more customers.

Different Types of Massages We Offer

There are a lot of different types of massage services on our site, so you may choose one that works for you. You may choose the kind of treatment that works best for you, whether it’s profound rest or a particular type of therapy.

1. Swedish Massage

A calm and gentle way to ease muscular tension and improve blood flow. This Kathua massage is perfect for you if you want to relax and forget about your concerns.

2. Deep Tissue Massage

This approach employs a lot of pressure to get to deeper muscle layers. It’s helpful for folks who have muscular discomfort or stiffness that won’t go away. There are specialists on our profiles of massage girls in Kathua who are good at deep tissue treatments that function effectively.

3. Aromatherapy Massage

Calming massage strokes and essential oils are beneficial in making people feel improved both emotionally and physically. Most massage companies in Kathua employ the use of custom oil preparations to make you feel good.

4. Thai Massage

A therapy that wakes you up by using a mix of regular massage, stretching, and compression. This traditional massage in Kathua helps you relax, become more flexible, and get your mind and body back in harmony.

5. Hot Stone Massage

Heated stones are placed on various parts of the body to help with deep muscular tightness. People who want to feel good, relax, and help their muscles recover quickly can use this massage service in Kathua

How to Book Our Massage Services

Tottaa makes it simple and fast to book. With our listings, you can see what kind of massage you want, read about the providers, see that they are free and then contact them directly. After you choose, you can book a massage in Kathua at your convenient time and location. In order to get your desired massage services, apply the following simple steps:

Step 1: Browse Our Listings

Take a peek around our site to view a few massage professionals. Each listing gives you information about the many sorts of massages, how long they last, how much they cost, and where they are situated. This makes it easier to choose the finest ones.

Step 2: Compare and Shortlist

Examine the profiles carefully to compare how the services, talents, and reviews posted by customers differ. This phase makes sure you choose a business that has the style, pricing, and supply you desire.

Step 3: Connect with the Provider

When you have decided, use the information that you are offered so that you can contact them directly. One can communicate it to the massage giver thus making it understood what massage you want at what time and when.

Step 4: Confirm the Appointment

The date, time and place of the service, which could be your home, a hotel or the spa where the therapist may be found. You also need to agree on the payment method and any other accords prior to commencement of the course.

Step 5: Relax and Enjoy Your Massage

All you have to do on the day of the appointment is have your area ready for the house visit. The remainder will be handled by the expert. Take it easy and enjoy a massage that is made just for you.

Frequently Asked Questions

To locate a professional who can meet your needs, read our biography, reviews and advertising.

Yes, many of the therapists on our site will come to your house so you may feel safe and at ease.

You may pick based on talents since most adverts provide their qualifications in their profiles.

It would be advisable to make a reservation earlier to guarantee that you would be able to get a massage, particularly against the prevalent services of massage.

Not at all. Tottaa exclusively connects users with service providers. The doctor gets to choose how to handle payment.

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प्रथम भाग से आगे … Hindi Porn Stories

पारो: अभी करो ना। देखो Hindi Porn Stories तेरा ये फिर से खड़ा होने लगा है।

मैं: हाँ, लेकिन तेरी चूत का घाव अभी हरा है, मिटने तक राह देखेंगे, वर्ना फिर से दर्द होगा और ख़ून निकलेगा।

मेरा लंड फिर से तन गया था। पारो ने उसे मुट्ठी में थाम लिया और बोली: होने दो जो होवे सो। मुझे ये चाहिए।

मैं ना कैसे कहूँ भला? मुझे भी चोदना था। मैंने किताब निकाली। इनमें एक तस्वीर ऐसी थी जिसमें आदमी नीचे लेटा था और औरत उसकी जाँघों पर बैठी थी। मैंने ये तस्वीर दिखाकर कहा: तू ऐसा बैठ सकोगी?

पारो: हाँ, लेकिन इसमें आदमी का वो कहाँ है?

मैं: वो औरत की चूत में पूरा घुसा है, इसलिए दिखाई नहीं देता। आ जा।

मैं चित्त लेट गया। अपने पाँव चौड़े कर वो मेरी जाँघों पर बैठ गई, मैंने लंड सीधा पकड़ रखा था। उसने चूत लंड पर टिकाई। आगे सिखाने की ज़रूरत नहीं थी. कूल्हे गिरा उसने लंड चूत में ले लिया। लंड और चूत दोनों गीले थे इसलिए कोई दिक्कत ना हुई। पूरा लंड घुस जाने पर वो रुकी। लंड ने ठुमका लगाया। उसने चूत सिकोड़ी। नितम्ब उठा गिरा कर वो चोदने लगी।

चौड़े किए गए भोस के होंठ और बीच में तने भग्नों को मैं देख सकता था। मैंने अँगूठा लगाकर उसके भग्न सहलाए। आठ-दस धक्के में वो थक गई और मुझ पर ढल पड़ी।

लंड को चूत में दबाए रख मैंने उसे बाँहों में भर लिया और पलट कर ऊपर आ गया। तुरन्त उसने जाँघें पसारीं और ऊपर उठा लीं। दो-तीन धक्के मार कर मैंने पूछा: दर्द होता है?

पारो ने ना कही। मैं धीरे-गहरे धक्के से चोदने लगा। पूरा लंड निकालता था और घकच्च से डाल देता था। पारो अपने नितम्ब हिलाने लगी और मुँह से सी… सी… सी… करने लगी। योनि में फटाके होने लगे। मैंने धक्के की रफ्तार बढ़ाई।

वो बोली: उसस्सससस्सस… उस्सस्सससस मुझे कुछ हो रहा है रोहित, ज़ोर से चोदो मुझे।

मैं घचा छच्च्चच, घचा घच्चचचच धक्के से उसे चोदने लगा।

अचानक वह झड़ पड़ी। पर मैं रुका नहीं, धक्के देता चला। वो बेहोश सी हो गई। झड़ना शान्त होने पर उसकी चूत की पकड़ कम हुई। मैंने अब धीरे से पाँच-सात गहरे धक्के लगाए और अन्त मे लंड को चूत की गहराई में पेल कर ज़ोर से झड़ा।

एक-दूसरे से लिपट कर हम दोनों थोड़ी देर तक पड़े रहे। इतने में दीदी और जीजू आ गए। फटाफट हमने ताश की बाज़ी टेबल पर लगा दी। जब जीजू ने पूछा कि हमने क्या किया तो पारो ने फिर मुँह बिचकाया- हुँह… कहते हुए।

मैंने कहा: हम ताश खेल रहे थे, पारो एक बार भी नहीं जीती।

रात का खाना खाकर सब सो गए। आज पहली बार पारुल अपने भैया से अलग कमरे में सोई। मैं बिस्तर पर पड़ा, लेकिन नींद नहीं आई। सोचने लगा, क्या मैंने पारो को चोदा था, या कोई सपना था? उसकी चूत याद आते ही नर्म लौड़ा उठने लगता था और उसमें हल्का सा मीठा दर्द होता था। दर्द से फिर लौड़ा नर्म पड़ जाता था। इससे तसल्ली हुई कि वाक़ई मैंने पारो को चोदा ही था।

और दीदी और जीजू सारा दिन कहाँ गए थे? वापस आने पर दीदी इतनी खुश क्यूँ दिखाई दे रही थी। उसके चेहरे पर निखार क्यूँ आ गया था? जीजू भी कुछ गुनगुना रहे थे। और आज की रात जब पारो बीच में नहीं है तो जीजू दीदी को चोदे बिना छोड़ेंगे नहीं। मुझे पारो की भोस याद आ गई। दीदी की ऐसी ही थी ना? जीजू का लंड कैसा होगा? पारो को चोदने का मौक़ा कब मिलेगा? विचारों की धारा के साथ मेरा हाथ भी लंड पर चलता रहा। दीदी की और पारो की चुदाई सोचते-सोचते मैं झड़ पड़ा। नींद कब आई उसका पता न चला।

दूसरे दिन जीजू को तीन दिन वास्ते बाहर गाँव जाना हुआ। मैंने दीदी से पूछा कि वो लोग कहाँ गए थे। मुस्कुराती हुई वो बोली: रोहित, ये सब तेरी वज़ह से हो सका। तू था तो पारो ने हमें अकेले जाने दिया। हम गए थे अहमदाबाद। एक अच्छी सी होटल में। सारा दिन खाया-पिया, इधर-उधर घूमे और…

मैं: … और जो भी किया, चुदाई की या नहीं?

जवाब में उसने चोली नीची करके आधे स्तन दिखाए। चोट लगी हो, वैसे धब्बे पड़े हुए थे। जीजू ने बेरहमी से स्तन मसल डाले थे।

मैं: कितनी बार चोदा जीजू ने?

दीदी मुझ से बड़ी थी फिर भी शरमाई और बोली: तुझे क्या? तूने क्या किया सारा दिन?

मैंने सारी बात बता दी। पारो को मैंने चोदा, यह जानकर वह इतनी खुश हुई कि मुझसे लिपट गई और गालों पर चूमने लगी।

मैंने पूछा- क्यूँ। वो पारो को अपनी चुदाई देखने ना कहती थी।

वो बोली: तेरे जीजू अपनी बहन से शरमाते हैं। कहते हैं कि वो देखेगी तो उनका वो खड़ा नहीं हो पाएगा।

मुझे इस उलझन का रास्ता निकालना था। सबसे पहले मैंने जाकर दीदी का बेडरूम देखा। कमरा बड़ा था। एक ओर पलंग था, दूसरी ओर चौड़ी सीट थी। पलंग के सामने वाली दीवार में एक बन्द दरवाड़ा था। दरवाड़े पर एक बड़ा आईना लगा हुआ था। आईने की वज़ह साफ थी। सीट के सामने बड़ी स्क्रीन वाली टीवी थी, वीडियो-प्लेयर और सीडी-प्लेयर के साथ। एक कोने में बाथरूम का दरवाज़ा था।

मैंने मकान की टूर लगाई बेडरूम की बगल में एक छोटी सी कोठरी पाई। कोठरी में फालतू सामान भरा था। एक दूसरा दरवाज़ा बन्द था जो मेरे ख़्याल से बेडरूम में खुलता था। मैंने चाकू निकाला और बन्द दरवाज़े की पैनल में एक सुराख़ बना दिया। दरवाज़ा पुराना होने से सुराख़ बनाने में देर ना लगी। मैंने झाँका तो दीदी का बेडरूम साफ़ दिखाई दिया। मेरा काम हो गया।

मैं अब जीजू के लौट कर आने की राह देखने लगा। इसी बीच मैंने वो किताब ठीक से पढ़ ली। काफ़ी जानकारी मिली। कच्ची कुँवारी को चोदने के लिए कैसे गरम किया जाय, वहाँ से लेकर तीन बच्चों की शादीशुदा माँ कैसे झड़वाया जाए, वो सब तस्वीरों के साथ उसमें लिखा था। रोज़ किताब पढ़कर मैं हस्तमैथुन करता रहा, क्यूँकि पारो मुझसे दूर रहती थी।

एक दिन पारो को एकांत पा कर किस करके मैंने कहा: चल कुछ दिखाऊँ। हाथ पकड़ कर मैं उसे कोठरी में ले गया और सुराख़ दिखाई। उसने आँख लगाकर देखा तो दंग रह गई।

मैंने कहा: जीजू आएँगे, उसी दिन दीदी को चोदेंगे। तू रात को यहाँ आ जाना, चुदाई देखने मिलेगी।

मैं दीदी से कहूँगा कि वो रोशनी बन्द ना करे।

मेरे गाल पर चिकोटी काट कर वो बोली: बड़ा शैतान है तू।

मैं उसे चूमने गया, तब ठेंगा दिखा कर वह भाग गई।

जीजू शुक्रवार को आए। दूसरे दिन शनिवार था। जीजू सिनेमा के अन्तिम शो की टिकटें ले आए। दीदी ने मुझे पारो के साथ बिठाने का प्रयत्न लेकिन वो नहीं मानी। मुझे जीजू के साथ बैठना पड़ा।

फिल्म बहुत सेक्सी थी। जीजू एक हाथ से दीदी की जाँघ सहलाते रहे। दीदी का हाथ जीजू का लंड टटोल रहा था। शो छूटने के बाद जब घर वापस आए, तब रात के बारह बजे थे।

सिनेमा देखने से मैं काफ़ी उत्तेजित हो गया था। मुझे ये भी पता था कि आज की रात जीजू दीदी को चोदे बिना नहीं छोड़ने वाले थे। मैं सोचने लगा कि वो कैसे चोदेंगे, और मुझसे रहा नहीं गया। मैंने किताब निकाली और एक अच्छी सी तस्वीर देखते हुए मैंने मुठ मार ली।

बाद में मैं दबे पाँव कोठरी में पहुँचा। सुराख़ में से देखा तो बेडरूम में रोशनी जल रही थी। जीजू नंगे बदन पलंग पर बैठे थे और लौड़ा सहला रहे थे। इतने में बाथरूम से दीदी निकली। उसने ब्रा और पैन्टी पहनी हुई थी। आकर वो सीधी जीजू की गोद में बैठ गी, उनकी ओर पीठ करके। जीजू ने आईने के ओर ईशारा करके कान में कुछ कहा। दीदी ने शरमा कर अपनी आँखों पर हाथ रख दिए जैसे ही दीदी के हाथ ऊपर उठे, जीजू ने ब्रा में क़ैद उसके स्तनों को थाम लिया। दीद उनके ऊपर ढल पड़ी और ऊँगलियों के बीच से आईने में अपना प्रतिबिम्ब देखने लगी।

जीजू ने हुक खोल कर ब्रा निकाल दी और दीदी के नंगे स्तनों को सहलाने लगे। दीदी के स्तन इतने बड़े होंगे ये मैंने सोचा ना था। जीजू की हथेलियों में समाते ना थे। स्तन के मध्य में बादामी रंग का गहरा घेरा और उसके बीचों-बीच घुण्डी थी। आईने में देखते हुए जीजू घुण्डियों को मसल रहे थे। दीदी ने सिर घुमा कर जीजू के मुँह से मूँह चिपका दिया। जीजू का एक हाथ दीदी के पेट पर उतर आया। दीदी ने ख़ुद की जाँघें उठाईं और चौड़ी कर दीं।

इतने में पारो आ गई। मैंने इशारे से कहा कि सुराख़ में देख। वो आगे आ गई और आँख लगाकर देखने लगी। मैं उसके पीछ सटकर खड़ा हो गया। मैंने मेरा सिर उसके कंधे पर रख दिया। धीरे से मैंने – दीदी की भोस दिख रही है? तेरे जैसी है ना? आकार में ज़रा बड़ी होगी। मेरे हाथ पारो की कमर पर थे। हौले-हौले मेरा हाथ पेट पर पहुँचा और वहाँ से स्तन पर।

पारो ने नाईटी पहनी थी। अन्दर ब्रा नहीं थी। बड़ी मौसम्बी के आकार के स्तन मेरी हथेलियों में समा गए। दबाने से दबे नहीं, ऐसे कड़े स्तन थे। नाईटी के आर-पार कड़ी घुण्डियाँ मेरी हथेलियों में चुभ रहीं थीं। वो दीदी की चुदाई देखती रही और मैं स्तन से खेलता रहा। थोड़ी देर बाद मैंने उसे हटाया और नज़र लगाई।

दीदी अब पलंग पर चित पड़ी थी। ऊपर उठाई हुई और चौड़ी की हुई उसकी जाँघों के बीच जीजू धक्का दे रहे थे। कुल्हे उछाल कर दीदी जवाब दे रही थी। आईने में देखने के लिए जीजू ने मुद्रा बदली। अब दीदी का सिर आईने की ओर हुआ। जीजू फिर से जाँघों के बीच गए और दीदी को चोदने लगे। इस बार चूत में आता-जाता उनका लंड साफ़ दिखाई दे रहा था। मैंने फिर पारो को देखने दिया।

मेरा लंड कब का तन गया था और पारो के कुल्हों के बीच दबा जा रहा था। पेट पर से मेरा हाथ उसके पाजामे के अन्दर घुसा। पारो नें मेरी कलाई पकड़ कर कहा: यहाँ नहीं, तेरे कमरे में जाकर करेंगे। मैंने हाथ निकाल लिया लेकिन पाजामे के ऊपर से भोस सहलाने लगा। पारो खेल देखती हुई नितम्ब हिलाने लगी। थोड़ी देर बाद सुराख़ से हटकर बोली: खेल खत्म, ओह रोहित, मुझे कुछ हो रहा है। मुझे से खड़ा नहीं जा रहा।

मैं पारो को वहीं की वहीं चोद सकता था। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। मुझे अबकी बार पारो को आराम से चोदना था। थोड़ी देर पहले ही मैंने मूठ मार ली थी इसलिए मैं अपने आप पर नियंत्रण रख सका।

मैंने उसकी कमर पकड़ कर सहारा दिया। वो मुझ पर ढल पड़ी। मैंने उसे बाँहों में उठा लिया और मेरे कमरे में ले गया। पलंग पर बैठ मैंने उसे गोद में ले लिया।

मैंने कहा: देखी भैया-भाभी की चुदाई?

उसकी आँखें बन्द थीं। अपनी बाँहें मेरे गले में डालकर वो बोली: भैया का वो कितना बड़ा है! फिर भी पूरा भाभी की चूत में घुस जाता था ना?

मैंने कहा: तेरी चूत में भी ऐसे ही गया था मेरा लंड, याद है?

पारो: क्यों नहीं? इतना दर्द जो हुआ था।

मैं: अबकी बार दर्द नहीं होगा। चोदने देगी ना मुझे?

अपना चेहरा मेरी ओर घुमा कर वो बोली: शैतान, ये भी कोई पूछने की बात है?

पारो का कोमल चेहरा पकड़ कर मैंने होंठ से होंठ छू लिए, इसने चूमने दिया। मैंने अब होंठ से होंठ दबा दिए। उसके कोमल पतले होंठ बहुत मीठे लगते थे। थोड़ी देर कुछ किए बिना होंठ चिपकाए रखे। बाद में जीभ निकाल कर उसके होंठ चाटे और चूसे। मैंने कहा: ज़रा मुँह खोल।

डरते-डरते उसने मुँह खोला। मैंने उसके होंठ चाटे और जीभ उसके मुँह में डाली। तुरन्त उसने चूमना छोड़ दिया और बोली: छिः छिः ऐसा गन्द क्यूँ कर रहे हो?

मैं: इसे फ्रेंच किस कहते हैं। इसमें कुछ गन्द नहीं है। ज़रा सब्र कर और देख, मज़ा आएगा। खोल तो मुँह।

अबकी बार उसने मुँह खोला, तब मैंने जीभ लंड की तरह कड़ी कर ली और उसके मुँह में डाली। अपने होंठों से उसने पकड़ ली। अन्दर-बाहर करके जीभ से मैंने उसका मुँह चोदा। मुँह में जाकर मेरी जीभ चारों ओर घूम गई। तब मैंने मेरी जीभ वापस ली। फिर उसने ठीक इसी तरह अपनी जीभ से मेरा मुँह चोदा। मेरा लंड फिर तन गया, उसकी साँसें तेज़ चलने लगी।

चूमते हुए मेरे हाथ स्तन पर उतर आए। पाजामा तो हमने उतार दिया था। कमीज़ बाकी थी। देर किए बिना मैंने फटाफट हुकों को खोलकर कमीज़ उतार फेंकी। उसने मेरी कमीज़ के बटन खोल डाले। मैंने मेरी कमीज़ उतार दी। अब हम दोनों नंगे हो गए। शरम से उसने एक हाथ से चेहरा ढँक लिया, दूसरा चूत पर रख लिया। स्तन खुले हुए थे। मेरे हाथों ने नंगे स्तन थाम लिए।

क्या स्तन पाए थे उसने। बड़े आकार की मौसम्बी जैसे गोल-गोल। पारो के कुँवारे स्तन कड़े थे। मुलायम चिकनी त्वचा के नीचे खून की नीली नसें दिखाई दे रहीं थीं। बिल्कुल मध्य में एक इंच का गहरा घेरा था जिसके बीच छोटी सी कोमल घुण्डी थी। घेरा और घुण्डी बादामी रंग के थे और ज़रा सा उभर आए थे। उसका स्तन मेरी हथेली में ऐसे बैठ गया जैसे कि मेरे लिए ही बनाया हो।

स्तन को छूते ही दबोच लेने का दिल हुआ। लेकिन वो किताब की पढ़ाई याद आई। ऊँगलियों की नोक से पहले स्तनों को सहलाया। बाहरी भाग से शुरु करके स्तन के मध्य में लगी हुई घुण्डियों की ओर ऊँगलियाँ चलाईं। उसके बदन पर रोएँ खड़े हो गए। हौले से मैंने स्तन हथेली में भर लिया और दबाया। रुई के गोले जैसा नर्म होने पर भी उसके स्तन दबाए नहीं जा रहे थे, उत्तेजना से बहुत ही कड़े हो गए थे। छोटी सी घुण्डी सिर उठाए खड़ी थी। च्यूँटी में लेकर मैंने दोनों घुण्डियों को मसल दिया। पारों के मुँह से लम्बी आह निकल पड़ी।

मैंने उसे लिटा दिया। मैं बगल में लेट गया। वो मुझसे लिपट गई। मैंने मेरे होंठ घुण्डी से चिपका दिए। उसकी उँगलियाँ मेरे बालों में घूमने लगीं। एक-एक कर मैंने दोनों घुण्डियाँ काफी देर तक चूसीं। पारे ने मेरी घुण्डियाँ तलाश निकाली। जब मैंने उसकी घुण्डियाँ छोड़ दीं, तब उसने मेरी घुण्डियों को होंठों के बीच लेकर चूसीं। घुण्डियों से निकला करंट लंड तक पहुँच गया। लंड अधिक अकड़ कर लार बहाने लगा।

मैंने उसे चित्त लिटा दिया। हमारे मुँह फिर फ्रेंच किस में जुट गए। स्तन छोड़ करक मेरा हाथ उसके सपाट पेट पर उतर आया और भोस की ओर चला। जब मैंने नाभि को छुआ, उसे गुदगुदी हुई, वो छटपटाई और उस के पाँव ऊपर उठ गए।

मैंने उस किताब में पढ़ा था कि नई-नवेली दुल्हन किशोरी को लंड से दूर रखना चाहिए, ताकि उत्तेजित होने से पहले वह लंड देखकर घबरा न जाए। पारो तीन बार मेरा लंड पकड़ चुकी थी और अब उत्तेजित भी हो गई थी। इसलिए मैं रुका नहीं। उसका दाहिना हाथ पकड़ कर मैंने लंड पर रख दिया।

वो डरी नहीं, लंड पकड़ लिया। लेकिन आगे क्या करना, उसे पता नहीं था। वो लंड को पकड़े रही, कुछ भी किए बिना। फिर भी उसकी कोमल ऊँगलियों का स्पर्श मुझे बहुत मीठा लगता था। लंड अधिक कड़ा हो गया, ठुमके लगाने लगा और भरपूर लार बहाने लगा। मैंने उसकी कलाई पकड़ कर दिखाया कि मूठ कैसे मारी जाती है। धीरे-धीरे वो मूठ मारने लगी।

मुट्ठी से लंड दबोच कर वो बोली: कितना बड़ा और मोटा है तेरा ये? लोहे जैसा कठोर भी है, तुझे दर्द नहीं होता?

मैं: कड़ा ना हो, तो चूत में कैसे घुस पाएगा? मोटा और बड़ा है तेरी चूत के लिए।

पारो: मुझे तो पकड़ने से ही झुरझुरी हो जाती है।

उधर मेरा हाथ भोस पर पहुँच गया था। मेरी ऊँगलियाँ भोस की दरार में उतर पड़ीं। भोस ने भी भरपूर रस बहाया था और चारों ओर गीली-गीली हो गई थी। हल्के स्पर्श से मैंने भोस सहलाई। पारो ने पाँव उठा रखे थे, अब उसने जाँघें सिकोड़ दीं। फिर भी मेरी एक ऊँगली उसकी चूत के भग्न तक जा पाने में सफल रही। जैसे ही मैंने उसके भग्न को छुआ, पारो ने मेरा हाथ पकड़ कर हटा दिया।

अब चूमना छोड़ कर मैं बैठ गया और बोला: पारु, देखने दे तेरी भोस।

अपने हाथ से भोस ढँकने का प्रयत्न करते हुए वह बोली: ना, रहने दो, मुझे शर्म आती है।

मैं: मेरा लंड लेने में शर्म ना आई? अब शर्म कैसी? शरम आए तो मेरा लंड पकड़ लेना। चल, पाँव खुले कर।

वो ना-नुकर करती रही और मैं उसे पलंग के किनारे पर ले आया। मैं ज़मीन पर बैठ गया। जाँघें उठाकर चौड़ी की। शरमाते हुए भी उसने अपने पाँव चौड़े कर लिए। किताब में जैसी दिखाई थी वैसी ही उसकी भोस मेरे सामने आई।

मैंने पारो को दो बार चोदा था लेकिन उसकी भोस ठीक से देखी नहीं थी। इस वक़्त पहली बार ग़ौर से देखने का मौक़ा मिला था मुझे। उसकी भोस काफी ऊँची थी। बड़े होंठ मोटे थे और एक दूजे से सटे हुए थे। भोंस पर और बड़े होंठ के बाहरी हिस्से पर काले घुँघराले झाँटें थीं। बड़े होंठ के बीच तीन इंच लम्बी दरार रथी। मैंने हौले से बड़े होंठ चौड़े किए। अन्दर का कोमल हिस्सा दिखाई दिया। साँवली गुलाबी रंग के छोटे होंठ सूज गए मालूम होते थे। छोटे होंठ आगे जहाँ मिलते थे वहाँ उसकी भग्न थी। इस वक्त वही कड़ी हो गई थी, वह एक इंच लम्बी थी। उसका छोटा मत्था चेरी जैसा दिखता था। दरार के पिछले भाग में था योनि का मुख, जो अभी बन्द था। सारी भोस काम-रस से गीली-गीली हो चुकी थी।

मुझे फिर से किताब की शिक्षा याद आई, कैसे भोस चाटी जाती है। पहले मैंने बड़े होंठ के बाहरी भाग पर जीभ चलाई। आगे से पीछे और पीछे से आगे, दोनों ओर चाटी। पारो के नितम्ब हिलने लगे। होंठ चौड़े कर के मैंने जीभ की नोक से अन्दरी हिस्सा चाटा और भग्न टटोली। भग्न को मैंने मेरे होंठों के बीच लिया और चूसा।

पारो से सहा नहीं गया। मेरा सिर पकड़कर उसने हटा दिया और मुझे खींच कर अपने ऊपर ले लिया। उसने अपनी जाँघें मेरी कमर में डाल दीं तो भोस मेरे लंड के साथ जुट गईं। वह धीरे से बोली: चल ना, कितनी देर लगाता है?

राह देखने की क्या ज़रूरत थी? हाथ में पकड़ कर लंड का मत्था मैंने भोस की दरार में रगड़ा, ख़ास तौर पर भग्न पर। इस वक़्त मुझे पता था कि चूत कहाँ है। इसलिए लंड को ठीक निशाने पर लगाने में दिक्क़त नहीं हुई। लंड का मत्था चूत के मुँह में फँसा कर मैं पारो पर लेट गया।

मैंने कहा: पारो, दर्द हो तो बता देना।

हल्के दबाव से मैंने लंड चूत में डाला। सर्रर्रर्रर्रर्ररररररररर करता हुआ लंड जब आधा अन्दर गया तब मैं रुका। मैंने पारो से पूछा: दर्द हो रहा है क्या?

जवाब में उसने अपनी बाँहें गले में डालीं और सिर हिला कर ना कहा। अब मैं आगें बढ़ा और हौले-हौले पूरा लंड चूत में पेल दिया। उसकी सिकुड़ी चूत की दीवारें लंड से चिपक गईं।

ऊपरवाले ने भी क्या जोड़ी बनाई लंड-चूत की? अभी तो चूत में डाला ही था, चोदना शुरु किया नहीं था। फिर भी सारे लंड में से आनन्द का रस झड़ने लगा था। लंड से निकली हुी झुरझुरी सारे बदन में फैल जाती थी। थोड़ी देर लंड को चूत की गहराई में दबा रख मैं रुका और चूत का मज़ा लिया। मैंने उससे पूछा: पारो, मज़ा आ रहा है ना?

इतना कहकर मैंने लंड खींचा। तुरन्त उसने मेरे कूल्हे पर पाँव से दबाव डाला और चूत सिकोड़ कर लंड निचोड़ा। मैंने फिर कहा: अब तू मुँह से कहेगी, तभी चोदूँगा, वर्ना उतर जाऊँगा… क्या करना है?

वो बोली: क्यूँ सताते हो? मैं बोल नहीं सकती।

मैं: पाँव पसारे लंड ले सकती हो, और बोल नहीं सकती? एक बार बोल, मुझे चोदो।

हिचकिचाती हुई वो बोली: म…मुझे च… चो… दो।

फिर क्या कहना था? आधा लंड बाहर निकाल कर मैंने फिर से घुसा दिया। धीरे और लम्बे धक्के से मैं पारो को चोदने लगा। सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रररररररर बाहर, सर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रररर अन्दर। वो भी नितम्ब हिला-हिला कर इस तरह चुदवाती थी कि लंड का मत्था अलग-अलग से घिस पाए। किताब में मैंने भग्न के बारे में पढ़ा था। मैं भी इस तरह धक्के देता था जिससे भग्न में रगड़ पड़ सके।

तीन दिन के बाद ये पहली चुदाई थी पारो के लिए। हम दोनों जल्दी उत्तेजित हो गए। लंड चूत में आते-जाते ठुमक-ठुमक करने लगा। योनि में स्पंदन होने लगी। पारो ज़ोरों से मुझसे लिपट गई। मेरे धक्के तेज़ और अनियमित हो गए। मैं घचा-घच्च, घचा-घच्च चोदने लगा। एकाएक पारो का बदन अकड़ गया और वो चिल्ला उठी। मेरी पीठ पर उसने नाख़ून गाड़ दिए। ज़ोर-ज़ोर से चारों ओर नितम्ब घुमा कर झटके देने लगी। चूत में फटाके होने लगी। अपने स्तन मेरे सीने से रगड़ दिए। स्खलन तीस सेकेण्ड तक चला।

स्खलन के बाद भी वह मुझे हाथ-पाँव से जकड़ी रही। मैं झड़ने के क़रीब था इसलिए रुका नहीं। धना-धन, धना-धन धक्के लगाता रहा। लंड कठोर था और चूत गीली थी इसलिए ऐसी घमासान चुदाई हो सकी। ज़ोरों के पाँच-सात धक्के मार मैंने पिचकारी छोड़ दी। मेरे वीर्य से उसकी योनि छलक उठी।

कुछ देर तक हम होश खो बैठे। जब होश आया तो पता चला कि पारो चिल्लाई थी और हो सकता था कि दीदी और जीजू ने चीख सुन भी ली हो। घबरा कर मैं झटपट उतरा और बोला: पारो, जल्दी कर। चली जा यहाँ से। दीदी-जीजू आएँगे तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।

पारो का उत्तर सुनकर मैं हैरान रह गया, वो बोली: आने भी दे, तू डर मत। मैं ख़ुद भैया से कहूँगी कि तेरा कसूर नहीं है, मैं ही अपने-आप चु… चु… वो करवाने चली आई हूँ। अब लेट जा मेरे साथ।

हम दोनों एक-दूसरे से लिपट कर सो गए। दीदी या जीजू कोई भी नहीं आए।

सुबह पाँच बजे वो जागी और अपने कमरे में जाने को तैयार हुई। मुँह पर चूमकर मुझे जगाया और बोली: मैं चलती हूँ, सुबह के पाँच बजे हैं। तुम सोते रहो, और आराम करो। रात फिर मिलेंगे।

लेकिन मैं उसके कहाँ जाने देने वाला था! खींच कर आगोश में ले लिया। वो ना-ना करती रही। मैं जगह-जगह पर चूमता रहा। आख़िर उसने पाजामा उतारा और जाँघें फैलाईं। मेरा लंड तैयार ही था। एक झटके में चूत की गहराई नापने लगा। इस वक्त सावधानी की कोई ज़रूरत नहीं थी। धना-धन तेज़ी से चुदाई हो गई तीन मिनट तक। दोनों साथ-साथ झरे।

दूसरे दिन मैंन दीदी से पूछा: आईने में देखते हुए चुदाई का मज़ा कैसा होता है?

वो बोली: शैतान, तुझे कैसे पता चला कि हम… कि हम…?

मैं उसे कोठरी में ले गया और सुराख़ दिखाई। वो समझ गई।

शालिनी: तो तूने आख़िर हमारी चुदाई देख ही ली।

मैं: मैंने नहीं, हमने कहो।

शालिनी: ओह, तो पारो भी साथ थी?

मैं: हाँ थी।

शालिनी: तब तो तूने उसे… उसे…?

मैं: हाँ, मैंने उसे चोदा जी भर के।

शालिनी: चूत भर के कहो। कैसी लगी उसकी कुँवारी चूत?

मैं: बहुत प्यारी। मेरा लंड भी कुँवारा ही था ना!

शालिनी: अब क्या? शादी करेगा उससे?

दोस्तों, आ गए हम हमारी समस्या पर। मैं दीदी के घर अधिक दिनों तक नहीं रुका, लेकिन जितने दिन भी रहा, इतने दिन रोज़ाना रात को पारो को चोदा। किताब में दिखाए गए आसनों में से कोई-कोई आज़मा कर भी देखे। किताब के मुताबिक़ उसे लंड चूसना भी सिखाया। अकेले मुँह को भग्न से लगाकर उसे झड़वाया। छुट्टियाँ खत्म होने से पहले मैं घर लौट आया। Hindi Porn Stories

Antarvasna

मैं अन्तर्वासना का Antarvasna बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। आज मैं आप लोगों को अपनी पहली सेक्स कहानी सुनाने जा रहा हूँ। मुझे यकीन है कि आप सबको यह बहुत पसंद आएगी। कृपया अपने विचार मुझे मेल करें। अब आपका ज्यादा वक्त न लेते हुए मैं अपनी कहानी पर सीधे ही आ जाता हूँ।

मेरी उम्र बत्तीस साल है और मैं शादीशुदा हूँ। फ़िर भी मेरी यह अभी की घटना है जो आप लोगो को लंड और चूत को खुजलाने के लिए मजबूर कर देगी।

मैंने अहमदाबाद में नया रेस्तराँ खोला था जहाँ पर वो आया करती थी।
उसकी उम्र करीब 19 साल के रही होगी और वो एक छरहरे बदन वाली पतली और लम्बी सी लड़की थी।
वो हमेशा बहुत उदास लगती थी और बड़ी मुश्किल से उसके चेहरे पर हंसी देखने मिलती थी।

एक दिन वो अकेली ही आई और रोने लगी तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं उसके पास गया।

मैंने उससे उसका नाम पूछा और उसके रोने की वजह भी।

तब तक मेरे मन में उसके लिए कोई सेक्स के विचार नहीं थे, मैं तो बस इंसानियत के नाते ही उसकी मायूसी की वजह पूछने यूं ही उसके पास चला गया था।

मेरे पूछने पर उसने अपना नाम झलक बताया और वो मुझसे लिपट कर रोने लगी।

मैंने उसे तब तो दूर हटा दिया लेकिन फ़िर उसे बाहर बुलाकर अपनी गाड़ी में बिठाकर उसके रोने की वजह पूछी तो उसने बताया कि किसी जॉनी नाम के लड़के ने उसका दिल दुखाया था जिससे वो कभी बहुत प्यार करती थी।
जबकि वो लड़का अब दूसरी लड़की के साथ घूम रहा है, जो उससे बर्दास्त नहीं हुआ और वो उस दिन से उदास रहने लगी थी।

मुझसे उसका रोना नहीं देखा गया तो मैंने ऐसे ही उसे कह दिया कि वो दुखी न हो और जो हुआ उसे भूल जाए क्योंकि आगे भी बहुत लम्बी जिंदगी पड़ी है, उसकी किस्मत में कोई और अच्छा लड़का लिखा होगा।

मैंने गाड़ी में ही उसका बदन सहलाया और उसे सांत्वना देने लगा।

अनजाने में ही मेरा हाथ उसकी पीठ पर चला गया जहां पर उसके ब्रा की पट्टी मेरे हाथों को छू रही थी।

वो मुझे कहने लगी- आप बहुत अच्छे हैं ! मुझे आपकी कंपनी बहुत अच्छी लगती है।

तो मैंने उसे कहा- जब भी मायूसी महसूस हो तो मुझसे फ़ोन पर कर लिया करना।

और हम दोनों ने अपने फ़ोन नंबर का आदान प्रदान किया।

अब वो मुझे अक्सर फ़ोन करने लगी और मैं भी उसे बच्ची समझ कर उसे खुश रखने के चक्कर में उससे बातें करने लगा।

एक दिन मैं उसे फ़िल्म दिखने ले गया जिसका नाम था किलर।

इमरान हाशमी के चुम्बन दृश्य देखकर मैं पलभर के लिए भूल गया कि वो मेरे सामने एक छोटी बच्ची है और मुझे उस नजर से नहीं देखती।

पर मुझसे नहीं रहा गया और मैंने उसे बाहों में लेकर उसके होठों का गहरा सा चुम्बन ले डाला।

तो वो मुझसे नाराज हो गई और कहने लगी- आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े है और मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूँ, ऐसी गिरी हुई हरकत की मैंने आपसे उम्मीद नहीं की थी।

तो मैं सकते में आ गया और पूरी मूवी उससे एक निश्चित अन्तर बनाकर बैठा रहा और उससे कोई बात नहीं की।

फ़िल्म ख़त्म होते ही मैंने उसे गाड़ी में बिठाया और एक बार सॉरी बोलकर फ़िर उसके साथ कोई बातचीत नहीं की।
पूरे रास्ते हम चुप ही रहे।

मैंने उसे उसके घर उतरने के समय पर फ़िर एक बार सॉरी कहा और सोचने लगा कि मुझसे ऐसी छोटी हरकत कैसे हो गई।
मुझे उसका चुम्बन याद आने लगा।

दो दिन तक उसका फ़ोन नहीं आया तो मैं समझा कि झलक मुझसे उस दिन की बात को लेकर नाराज़ हो गई है और मुझसे रिश्ता तोड़ दिया है, लेकिन फ़िर एक दिन वो मेरे रेस्तराँ पर आई और मेरे पास बैठ गई।

मैं उसे देखकर बहुत खुश हुआ लेकिन बहुत ही सावधानी बरतने लगा कि कहीं फ़िर से कोई गलती ना हो जाए ताकि वो मुझसे फ़िर से नाराज ना हो जाए।

अचानक वो बोली- क्या मुझे अपनी कार में लॉन्ग ड्राइव पर नहीं ले जाओगे?

मैंने हाल ही में एक नई इम्पोर्टेड कार ली थी सो उसे ले गया।

बारिश का मौसम था और वो मेरी ड्राइविंग सीट के बाजू में बैठी थी, उसने मुझसे कहा- उस दिन की घटना के बारे में मैंने बहुत सोचा और फ़िर मुझे लगा कि तुमने कोई गलती नहीं की थी और काफ़ी सोचने के बाद मुझे सिर्फ़ आपका मेरे लिए प्यार ही दिखाई दिया।

मैं यह भूल गई हूँ कि तुम मुझ से उम्र में इतने बड़े हो, मैं भी अब तुमसे प्यार करने लगी हूँ।

बातों बातों में ही वो आप से तुम पर उतर आई थी, यह मुझे अच्छा लगा और मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और जोर से उसे चूमने लगा।

इस बार उसने कोई विरोध नहीं किया बल्कि मेरा साथ देने लगी।

मैंने बहुत ही लड़कियाँ चोदी थी लेकिन उसके जैसा चुम्बन का मज़ा मुझे कभी भी नहीं आया था सो मैं उसे करीब बीस मिनट तक चूमता रहा।

कार एक साइड पर रुकी हुई थी और बारिश की वजह से हाइवे पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था तो मैंने उसे कार की पिछली सीट पर जाने को कहा और मैं भी पीछे चला गया।

इम्पोर्टेड कार की पिछली सीट एक बड़ा सा बेड बन जाती है सो मैंने उसे बड़ा करके उसे अपनी बाँहों में ले लिया और फ़िर उसके होंठ चूसने लगा।

इस बार उसने भी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मुझे बेसब्री से चूमने लगी।
मेरे हाथ धीरे-धीरे उसके बदन पर रेंगने लगे थे।
मैंने उसकी टी-शर्ट ऊपर उठा दी और उसके स्तन एक हाथ से दबाने लगा तो वो मेरे और भी करीब आ गई, उसके मुँह से अब आहें निकलने लगी थी, उसका मुँह लाल हो गया था, उसकी आंखें बंद हो गई थी और वो मुझसे ऐसे लिपट गई थी जैसे कि कोई बेल पेड़ से लिपटी हो।

आखिर मैंने उसकी टी-शर्ट और ब्रा दोनों निकाल दिए। ओह माय गोड ! उसके स्तन क्या खूबसूरत थे ! छोटे से लेकिन बहुत ही ठोस !

अब उससे भी सब्र नहीं हो रहा था तो वो मुझे कहने लगी कि उसे कुछ हो रहा है।

उसका यह पहली बार था तो उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो रहा है।

मेरा भी वैसे तो इतनी कम उम्र की लड़की के साथ यह पहली बार ही तो था।

मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया जो फ़ूल कर एक सख्त लोहे की छड़ जैसा हो गया था।

पहले तो उसने उसे पकड़ने से मना किया लेकिन बाद में वो मान गई और उस पर हाथ लगाया।
लेकिन वो अभी भी शरमा रही थी और हाथों को कोई हरकत नहीं दे रही थी।

सो उसकी शर्म दूर करने के लिए मैंने आखिर में अपनी पैंट और अन्डरवीयर खोल कर पूरा लंड निकाल कर उसके हाथ में दे दिया जो कि अब तन कर करीब साढ़े सात इंच का हो गया था और फ़ूल कर तीन इंच के लोहे के पाइप जैसे सख्त भी हो गया था।

वो अभी भी हिचकिचा रही थी सो मेरे लंड पर हाथ रखकर बैठी रही।

अब मैंने देर न करते हुए उसकी जींस उतार दी।

उसने थोड़ी सी ना-नुकुर की, बाद में सहमत हो गई तो मैंने उसकी अन्डरवीयर भी निकाल दी।

अब हम दोनों नंगे थे।
मैंने उसके ठोस स्तनों को चूसना शुरू किया।

अचानक मैंने अपने लंड पर उसके हाथ का दबाव महसूस किया तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

मैंने उसकी चूत के दर्शन करने के लिए अपना सर नीचे किया- क्या चूत थी उसकी ! हल्के से सुनहरे रोएँ ही आए थे उसके ऊपर ! और इतनी कसी हुई थी की मुश्किल से मेरी एक उंगली भी उसमें न जा सके।

मैंने उसकी चूत को एक हाथ से रगड़ना शुरु किया तो दूसरे हाथ से उसके स्तन दबाने लगा और मेरे होंठ अभी भी उसके होठों को चूस रहे थे।

वो भी मुझे बराबर का साथ दे रही थी।
उसकी आंखें नशे में बंद हो गई थी और वो बेसब्री से मेरे लंड को हाथों मे लिए अपनी चूत पर रगड़ने लगी।

मैंने लंड को चूत से छूने दिया तो मुझे वहाँ पर गीलापन महसूस हुआ।

मैंने उंगली से देखा तो उसकी चूत पानी छोड़ कर एक दम चिकनी और मस्त हो गई थी।

मैंने अब देर न करते हुए उसे लिटा दिया और उसके ऊपर आ गया।

मैंने उसे पूछा- कभी सेक्स किया है?

तो उसने मुझे ना कहा।
मैंने अब हल्के से अपने लंड का सुपारा उसकी चूत में घुसेड़ा तो वो दर्द के मारे तिलमिला उठी और मुझे अपने ऊपर से धकेलने लगी।

लेकिन मैंने उसे ठीक से पकड़ रखा था इसलिए वो हिल नहीं सकी।
अब मैं ज्यादा लंड अन्दर करने की बजाये उतना ही डाले हुए उसके स्तन दबाने लगा, साथ में उसे चूमने लगा।

थोड़ी देर में ही उसकी चूत के पानी की वजह से लंड के सुपारे ने उसकी चूत में जगह बना दी तो वो नीचे से अपने कूल्हे ऊपर नीचे करने लगी। अब मेरे तर्जुबे ने मुझे कहा कि चूत तैयार है, पेल दो।

तो मैंने हल्का सा धक्का मारा और मेरा आधा लंड उसकी पनियाई चूत में घुस गया और वो जोर से चिल्लाई।

मैंने नीचे देखा तो उसकी चूत की ज़िल्ली फट गई थी और उसमें से खून की दो बूंदे छलक आई थी।

पर मैंने उसका मुँह अपने होठों से फ़िर एक बार बंद किया और आधा ही लंड उसकी चूत में डाले फ़िर से अपने मोटे लंड के लिए जगह बनाने लगा।

उफ़ क्या कसाव था उसकी चूत में ! ऐसा लगता था कि मेरा लंड छिल जाएगा। एकदम कस के उसकी चूत की दोनों फ़ांकों ने उसे जकड़ रखा था।

उसकी चूत बुरी तरह से चौड़ी होकर फ़ैल गई थी और वो मेरे बाहों में से निकलने के लिए छटपटा रही थी लेकिन मैं कहाँ उसे छोड़ने वाला था अब।

आहिस्ता से उसके प्यारे और मासूम से चेहरे पर से दर्द की लकीरें कम होने लगी और वो अपनी गांड उछाल बैठी तो मैंने कस के जो एक धक्का मारा कि मेरा पूरा लंड उसकी चिकनी चूत में समां गया और उसकी बच्चेदानी से जा टकराया।

उसने फ़िर एक बार चिल्लाने की कोशिश की लेकिन मेरे होठों ने उसे रोक दिया।

अब मैं उसके ऊपर बिना कोई हरकत किए पड़ा रहा।

थोड़ी देर के बाद जब वो सामान्य हुई तो मैंने धक्के मारने चालू किए।

वो भी अब अपने दांतों को अपने होठों से भींच कर होने वाले दर्द को बर्दाश्त करने लगी।

फ़िर उसे दर्द का एहसास कम हुआ तो उसने अपना मुँह खोल दिया और अपनी आंखें बंद कर ली और प्यार से अपनी गांड उचकने लगी।

अब मैंने भी धक्के थोड़े से तेज कर दिए थे।

थोड़ी देर में ही उसने मुझे जोर से जकड़ लिया और गहरी सांसें लेने लगी तो मुझे पता चला कि उसका पानी निकल गया है।

उसे उसकी चूत मे बुरी तरह से फंसे मेरे मोटे लंड का एहसास फ़िर एक बार होने लगा और वो मुझसे अपना लंड निकालने को कहने लगी।

मैंने उसे ढांढस बंधाया कि थोड़ा सा दर्द होगा, पहली बार है इसलिए, लेकिन फ़िर मज़ा आएगा।वो बहुत छटपटा रही थी लेकिन मैंने उसे कस के रखा हुआ था जिससे वो निकल नहीं सकती थी।

मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में बहुत कस के आ-जा रहा था।

इतनी टाइट चूत मुझे बहुत अरसे के बाद मिली थी और इधर मेरा लंड था कि पानी छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था।

इधर झलक की हालत बहुत ही ख़राब हो रही थी। मैंने अब जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।

मेरे धक्कों से वो और मेरी कार दोनों बुरी तरह से हिल रहे थे।

60 से 70 धक्कों के बाद आखिर में मेरे लंड ने पानी उगलना शुरू किया तो जैसे कि उसकी चूत में सैलाब ही आ गया।

मेरे लंड ने इतना सारा पानी छोड़ा कि उसकी टाइट चूत से भी रिस कर बाहर आकर उसकी गांड के ऊपर से बहने लगा।
मेरा लंड अभी भी टाइट था और सिकुड़ने का नाम नहीं ले रहा था…

आगे की कहानी दूसरे भाग में,

आपको मेरी और झलक की कहानी कैसी लगी, जरुर बताइयेगा। Antarvasna

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हाय दोस्तो, अब मैं भी अन्तर्वासना Sex Stories में अपनी कहानी लिखने लगा हूँ, पर बिल्कुल सच्ची. दोस्तों, ये भी मेरी सच्ची कहानी है. वैसे साला एक बार जिसे बुर का चस्का लग गया, तो साला लण्ड बिना चोदे रह ही नहीं सकता. मुझे भी बुर-चुदाई की लत अपनी एक गर्लफ्रेण्ड की चुदाई के कारण लग गई. पर शादी-शुदा की चुदाई करने का मजा कुछ अलग ही होता है, और ख़ास कर भाभी की चुदाई का मजा तो बस पूछिये ही मत.

मेरी भी एक दूर की भाभी है, उनका नाम रोशन है, उम्र 30 साल है. वो विधवा है और 3 बच्चों की माँ है. उसके पति यानि मेरे भाई की मृत्यु हो चुकी है. पर साली रोशन भाभी पर उसके मरने का असर 1-2 साल ही रहा. उसने मेरी तरफ नज़रें कीं. रोज़ मुलाक़ात हो जाती थी क्योंकि हमारा घर अगल बगल में ही है. मुझे भी चोदने का मन कर रहा था. और मैंने उसके इशारे समझ लिए थे, और सोचा कि साली भाभी है तो क्या हुआ, उम्र मेरे से थोड़ी अधिक है. उसका अपना लण्ड चुसवा कर चुदाई ज़रूर करूँगा.

एक रात उसने पेट में दर्द के कारण मुझे बुलाया. मैं दवा लेकर गया. उसके कहने पर मैं बैठ गया. धीरे-धीरे उसे सहलाने लगा. उसका दर्द कम हो गया था, और वो गरम हो रही थी. मैं भी धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ा रहा था पर उसने कुछ नहीं कहा.
मैंने जान लिया कि साली गरम हो रही है और अपने बुर में मेरा लण्ड पेलवाना चाहती है. मैंने झट से अपना लण्ड निकाल लिया और उसके ऊपर चढ़ गया. अपना लण्ड उसके मुँह में डालने लगा. पर वह इसे अपने मुँह में नहीं लेना चाहती थी. पर मैंने कहा कि साली रण्डी पहले इशारा करती थी, अब नखरे करती है. ज्यादा नखरे किये तो लण्ड केवल मुँह में ही नहीं, बुर और गांड में भी पेल दूँगा. इतना कहकर ज़बर्दस्ती अपने खड़े लण्ड को उसने मुँह में पेल कर चोदने लगा. उसके मुँह से गूँ-गूँ की आवाज़े आ रहीं थीं. कुछ देर में ही मेरे लण्ड ने अपना माल उसके मुँह में छोड़ दिया.

मैंने कहा ‘साली राँड, छिनाल, हरामज़ादी, कमीनी, लण्ड को चूसकर इसे फिर से खड़ा कर, अगर बाहर निकाला तो ऐसी गांड मारूँगा कि बाप-बाप करने लगोगी.’

मैंने पाया कि मेरी गालियाँ उसे अच्छी लग रहीं थीं, क्योंकि मेरी बातों का वह बुरा नहीं मान रही थी. मेरा लण्ड फिर खड़ा हो गया. मैंने उसे फिर ज़बर्दस्ती कुतिया बनाया और जानवर की तरह एक ही धक्के में पूरा लण्ड उसकी चूत में पेल दिया. वह ओहह्हह ह्ह्ह ओह्ह्ह ह्हहह ओह्ह्ह करने लगी, छोड़ दो… छोड़ दो… कहकर गिड़गिड़ाने लगी.

मैंने कहा कि साली छिनाल भाभी, अभी रो रही है, भोसड़ी की , तेरी चूत से तीन को निकाल कर पहले ही फड़वा चुकी हो, अब इसमें क्या दर्द होता होगा. साली इतना चोदूँगा कि पहली चुदाई याद आ जाएगी. इतना कह करक मैं ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा. वह कह रही थी, मेरे मालिक धीरे करो. ओह… ओह ह्ह्ह… उउम्म्महह… की आवाज़ें निकाल रही थी. मैंने कहा कि चुप साली हरामज़ादी, ज्यादा नखरे किये तो बुरा को चोद-चोद कर खून निकाल दूँगा.

वह समझ गई कि मैं रूकने वाला नहीं हूँ तो वह भी साथ देने लगी और अपनी चूतड़ आगे-पीछे करने लगी. मैंने महसूस किया कि उसके बुर से पानी टपक रहा था. मैंने 15 मिनटों तक उसकी चुदाई की. इसी दौरान वह 2 बार झड़ी. अन्त में मैंने भी जब महसूस किया कि मेरी भी निकलने वाला है तो मैंने अपना लण्ड बाहर निकालना चाह, तो उसने मुझे रोक दिया और कहा कि ‘देवर जी, तुमने तो मेरा देह शोषण कर ही दिया, पर अन्तिम काम कृपा करके मेरे मन से कर दो. मेरी चूत बहुत दिनों से प्यासी थी. इसे अपने लौड़े से निकलने वाले रस से भर दीजिए. और जब जब भी चोदने का मन करे, मुझे चोदते रहिए.’

मैंने भी अपना वीर्य उसकी चूत के अन्दर ही छोड़ दिया.

वह बोली ‘प्यारे राजा, अब मैं आपकी भाभी नहीं, सिर्फ रोशन हूँ. जब जी चाहे…’

‘मैं तुम्हें कल एक रेज़र दूँगा… तुम अपने चूत का जंगल साफ कर लेना- मैंने उसकी बात काटकर कहा. ‘मुझे चिकनी चूत अच्छी लगती है.’

तो दोस्तो, भाभियो कैसी लगी मेरी कहानी. कृपया मुझे मेल करें, ताकि उत्साहित होकर मैं पुनः कहानी लिख सकूँ! Sex Stories

लालमन Antarvasna

कहानी होती ही अतीत की है। समय का अनुमान पाठक स्वयं Antarvasnaलगा सकते हैं।

मैंने अपने बचपन का अधिकतर समय अपनी बुआ के गाँव में बिताया, लेकिन पिछले तीन वर्श से नहीं गया।

उनका गाँव बहुत छोटा सा है, लेकिन हमारे फूफाजी वहाँ के सम्मानीय व्यक्ति हैं। हमारी बुआ के यहां ससुर के समय की बनाई गई लखौरी ईटों की पुरानी दो मंजिल की बड़ी सी हवेली है। गाँव के आधे से अधिक खेत और बाग उन्हीं के हैं। लेकिन अब सन्नाटा रहता है।

बुआ के तीन बेटे और चार बेटियाँ हैं, अब वहाँ कोई भी नहीं रहता है। बेटे सभी कबके जाकर शहरों में बस गये। तीनों लड़किया का भी विवाह के बाद यही हाल हुआ।

सब अपने-अपने कार व्यापार में इतने में इतने व्यस्त हो गये कि दबंग व्यक्तित्व की मालकिन हमारी बुआ अकेले घुल-घुल कर समय से पहले ही बूढ़ी हो गयीं।

फूफा का तो खैर इधर-उधर में समय कट जाता, लेकिन हमारे चाचाओं और ताउओं में जो भी जाता अपनी बहन के अकेलेपन से घबरा जाता।

लोग समझाते भी कि जीजी बेटों के पास चली जाओ, लेकिन वह भला कहाँ जाने वाली थीं! बड़ी मुष्किलों से मझिले भय्या के यहाँ जाकर मोतियाबिन्द का आपरेशन करवाया और चली आयीं।

मेरी सरदियों की छुट्टियाँ हुई तो अम्मा ने जबरस्ती भेज दिया। जाकर एक महीने बुआ की सेवा कर आ।

हालाकि मन तो नहीं हो रहा था लेकिन इस वादे पर कि अगर मन लगा तो रुकूँगा नही तो दो-चार दिन में आ जाऊँगा। पहुचाँ तो पता चला कि कल ही बुआ के नन्द की बेटी अमिता दीदी आयी हैं।

उन्हें मैंने बहुत पहले देखा था। जव वह किशोर थीं, लेकिन वह पूरी तरह बदली गंभीर स्वभाव की एक समझदार लड़की थीं। आँखों पर चश्मा लग गया था। रंग गोरा था। लम्बाई दरम्यानी थी। शरीर भरा-भरा था।

संभवताः मुझे देखकर प्रसन्न हुईं। थोड़ा चुप-चुप रहने वाली लगीं। काम के लिए सोलह सत्तरह साल की लड़की सीमा थी। वह फिरिंगी की तरह दौड़ती भागती मुझे देखकर बेमतलब ही मुस्कुराती रहती।

बुआ ने कहा कि यह पुराने आदमी राम लखन की बेटी है। शादी तो हो गयी है, लेकिन अभी गौना नहीं हुआ है। दिन पाँच साल का बना है नहीं तो लखना इसे बिदा कर देता, यह कहते हुए उन्होंने ऊपर वाले को धन्यवाद भी किया कि है तो मुँहजोर लेकिन कोई बेटी क्या सेवा करेगी!

मैंने यह भी ध्यान दिया कि वह जितना मुस्कुरा रही थी उतना बोल भी रही थी। मैं कुछ संकोच भी कर रहा था, वह थी कि शाम तक राम भैय्या की ऐसी रट लगाने लगी कि जैसे मुझे कितने दिनों से जानती हो।

सीमा का रंग तो साँवला था, लेकिन लम्बाई निकलती हुई थी। उसका अंग-अंग मानों बोलता हो। साधरण से सवाल समीच पर उसकी चुन्नी रुकती ही नहीं थी।

मैंने महसूस किया कि उसे घर में मर्द के न रहने से ओढ़ने के आदत थी नहीं, इसलिए चुन्नी संभल नहीं रही थी।

अपनी चुन्नी में उलझते हुए एक बार मेरा मन हुआ कि लाओ उतार कर फेंक दुँ! जैसे यह बात ध्यान में आयी तो एकाएक मेरा ध्यान उसके सीने पर चला गया। हे राम! मैंने गौर किया तो शरीर में सनसनाहट सी हो गयी।

सीने की जगह लग रहा था जैसे दो कटोरे उलट कर रख दिये गये हों! उसकी छातियों के दाने तो इतने खड़े थे, कि कपड़े के ऊपर साफ दिख रहे थे। ऐसे मैं क्या कोई भी उसे देखकर बेकाबू हो जाय! यद्यपि मैं सीधा और ठीक-ठाक चरित्र का लड़का था, तबभी मेरा मन अजीब सा हो गया।

मैं पिछले तीन साल से हास्टल में रह रहा था। वहाँ मैंने दो-तीन बार नंगी पिक्चरें भी देखी थीं और कुछ दिनों सें अधनंगी पिक्चरों की शहर के सिनेमा हालों में तो बाढ़ सी आ गयी थी।

मैं जिन बातों से गाँव में अनभिज्ञ था वह सब मुझे पता चल गयी थीं। जब भी मैं छुट्टियों के बाद गाँव से लौटता तो सहपाठी खुले शब्दों में अपनी चुदाई की कहानियां बताते और मेरी भी पूछते, चूँकि मेरी कोई कहानी होती नहीं, फिर मुझे अपने आप पर क्रोध आता हर बार कुछ करने का इरादा लेकर जाता, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगती।

हस्त मैथुन जैसी स्वाभाविक गतिविधि ही मेरी काम भावना को शांत करने का एकमात्र साधन थी. लेकिन सीमा को देखते ही मैंने मन बना लिया कि चाहे मुझे यहाँ पूरी छुट्टियाँ ही यहाँ क्यों न बितानी पड़ जाये, इसे लिए बिना नहीं जाऊँगा। मैंने इसी भावना से संचालित आते-जाते दो-तीन बार उसके शरीर से अपने शरीर को स्पर्श किया तो उसने बजाय बचने के अपनी तरफ से एक धक्का देकर जवाब दिया।

शाम में चूँकि सर्दी थी इस लिए दिल ढलते बुआ ने आँगन से लगे बरामदे में अलाव की सिगड़ी जलवा दी तो मुहल्ले-पड़ोस की दो तीन औरतें आकर बैठ गयीं।

सीमा भी थी। अमिता दीदी भी थीं। बरामदे को एक किनारे दीवार बनाकर ढक दिया गया था। बुआ सरदी और बरसात वहीं सोतीं। बताने लगीं कि इधर काफी दिनों से सीमा की माँ आजाती थी, लेकिन अमिता के आने के बाद सीमा सोने लगी। उनक बिस्तर वहीं लगा था।

कुछ देर बाद लाइट चली गयी। अमिता दी उठकर बिस्तर पर बैठ गयीं। वह चुप थीं। यद्यपि उन्होंने मुझसे दिन में वह पढ़ाई-लिखाई की की थीं। इधर आग के पास औरतों की गप चल रही थी मै उठकर सोने के लिए बाहर बैठक में जाने लगा तो बुआ ने ही रोक लिया। जाना कहकर।

वास्तव में उन्होंने अभी तक अपने पीहर की तो बात ही नहीं की थी। उनके कहने पर मैं भी वहीं जाकर चारपाई पर दूसरी तरफ रजाई ओढ़कर बैठ गया। अमिता दी पीठ को दीवार से टिकाये बैठी हुई औरतों के प्रस्नों का उत्तर हाँ-न में दे रही थीं।

मैंने पैर फैलाये तो मेरे पैरों का पंजा उनकी जांघों से छू गया। मैंने उन्हें खींचकर थोड़ा हटाकर फिर फैलाया तो जाकर उनकी योनि से मेरा अँगूठा लग गया।

असल में उन्होंने अपने दोनों पैरों को इधर उधर करके लम्बा कर रक्खा था। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

न जाने किस भावना से संचालित होकर मैंने पैरों का दबाव थोड़ा बढ़ा दिया।

इस बार उन्होंने मेरे पैर के अँगूठे को पकड़कर धीरे से हटाया तो वह उनकी एक तरफ की जाघ से लग गया। एक क्षण बाद मैंने फिर पैरों को उसी जगह जान-बूझकर रख दिया।

रजाई के अन्दर ही अमिता दी ने फिर मेरे पैर का अँगूठा पकड़ लिया, लेकिन मैंने जब अपने पैर को वहाँ से हटाना चाहा तो उन्होंने मेरी आशा के विपरीत उसी जगह पर मेरे पैरों को दबाये तेज चिकोटी काटने लगीं।

मैंने उनके चेहरे को देखा तो वह मुस्कुराये जा रही थीं। वह आगे आकर मेरे पंजे को अपनी योनि को और सटाकर मुस्कुराते हुए मेरे पंजे को ऐंठ भी रही थीं।

यद्यपि वह जितना जोर लगा रही थीं मुझे उतनी पीड़ा की अनुभूति नहीं हो रही थी। बल्कि मैं उनकी योनि के भूगोल को परखने में लग गया। संभवता वह शलवार के नीचे चड्डी नहीं पहने थीं। क्योंकि उनके वहाँ के बालों का मुझे पूरा एहसास हो रहा था। निश्चित रूप से उनकी झाँटो के बाल बड़े और घने होंगे।

इस अनुभूति से मेरे अन्दर अजीब सी अकड़न होने लगी। वहीं बैठी किसी औरत ने कहा, सो जाओ बबुआ।

हाँ रे ललुआ! बेचारा थका आया है। इसके फूफा की तो अभी बैठक में पंचायत चल रही होगी। कल से इसका बिछौना अन्दर ही लगवाऊँगी।

बुआ ने कहा, गुड्डी जरा किनारे हो जा राम कमर सीधी कर ले। बुआ अमिता को गुड्डी कहती थीं।

न जाने सीमा मुझे देखकर मुस्कुराये जा रही थी। बिजली चली गयी थी। गाँव में रहती ही कितनी है! लालटेन के मद्धिम प्रकाश में मैंने अमिता दी के चेहरे को देखने की कोशिश की, लेकिन उनके भावों को समझ नहीं पाया।

वह बिस्तर से उठने लगीं तो बुआ बोलीं, तू क्यों उठ रही है गुड्डी, अभी यह तो चला ही जायेगा। और बाहर की तरफ के कमरे की ओर संकेत करके कहा, आज से मैंने सीमा को भी रोक लिया है।

वह थोड़ा सा एक तरफ खिसक कर बैठी रहीं। मैं जाकर उनकी बगल में लेट गया। और दो ही मिनट बाद अन्दर ही हाथ को उनकी जँघों पर रख दिया वह थोड़ा कुनमुनाईं और मेरे हाथों को पकड़ लिया पता नहीं क्यों वहाँ से हटाने के लिए या किसी इशारे के लिए लेकिन मैने उनके हाथों को अपने हाथों में दबोचकर सहलाने लगा।

फिर मैंने हाथों को अन्दर से ही उनके सीने की तरफ लेजाकर उनके स्वेटर के ऊपर से छू दिया। सीने का ऊपरी हिस्सा रजाई के बाहर था इसलिए जितना अन्दर था उसके स्पर्श का आनन्द मैं लेने लगा।

उनकी चूचियाँ ब्रेसरी मे कसी थीं। वह खाली हिल-डुल ही रही थीं। एकाधबार उन्होंने मेंरा हाथ अपने हाथ से झिटकना चाहा तो मैंने उनके प्रतिरोध को अनदेखा कर दिया। मुझे लगा कि यह उनका दिखावा है।

फिर मैंने नीचे से हाथ को कपड़े के अन्दर से डालकर सीधे हाथों को ब्रेसरी में बंधी छातियों के निचले हिस्से से लगा दिया और जोरभर के सहलाने लगा। मन तो हो रहा था कि हाथों को ऊपर लेजाकर पूरी छातियों को सहलाऊँ, लेकिन भय था कि कहीं कोई देख न ले। मुझे लग रहा था कि सीमा संभवतः अनुमान लगा रही है। मैंने महसूस किया कि उनकी चूचियां कड़ी हो रही हैं।

तभी उन्होंने रजाई को खींचकर गले तक ओढ़ लिया। फिर तो मुझे मानों मनचाही वस्तु मिल गयी।

मैंने हाथ निकालकर उनके स्वेटर के बटन खोल दिए और उनकी जम्पर को ऊपर सरकार रजाई के नीचे उनकी चूचियों को खोल दिया उनके ऊपर सिर्फ ब्रेसरी ही रह गयी। और मैं उनकी बदल-बदलकर दोनों छातियों को मलने-दबाने लगा। वह कड़ी ही होती जा रही थीं।

तभी वहाँ बैठी एक औरत बात करते हुए उनकी मम्मी और भाई बहनों का हाल पूछने लगी। वह गड़बड़ाने लगीं। मुझे मजा आने लगा।

मैं और जोर लगाकर उनकी चूचियां मसलने लगा। अनुमान किया तो लगा कि वह देसी पपीते के आकार की हैं। फिर मैंने दूसरे हाथ को पीछे से लेजाकर उनकी ब्रेसरी के हुक को खोल दिया। दुसरे हाथ से आगे से खींचा।

ब्रेसरी ढीली होने के कारण उनकी दोनों चूचियां अब आजाद हो गयी थीं। और मेरी हथेलियों में खेलने लगीं।

तभी मैंने महसूस किया कि उन्होंने मेरी तरफ वाला अपना हाथधीरे से मेरे सीने पर रख दिया। मैंने उनके फैले पैरों को अपने हाथ से खींचकर अपनी टांगों से चिपका लिया।

मैंने लुंगी ही पहन रक्खा था। उसके नीचे चड्डी थी। मेरा खड़ा होकर तन गया लिंग उनकी फिल्लियों से रगड़ने लगा। वह अपने हाथों को मेरे सीने पर फेरने लगीं। यूँ ही लगभगआधे घंटे बीत गये।

मैंने हाथों को उनकी छातियों से हटाकर जब दोंनों टांगों के बीच लेजाकर उनकी झाँटों से आच्छादित योनि पर कपड़े के ऊपर से लगया तो देखा कि वहाँ का कपड़ा गीला है। तभी वहाँ रह गयी अन्तिम दोनों औरतें यह कहते हुए उठ गयीं कि अब ठकुराइन हम सोने जा रहे हैं।

अमिता दी जल्दी से कपड़े सही किये। ब्रेसरी तो खुली ही रह गयी। उठ गयीं। मुझे भी मन मार कर उठना पड़ा। मेरा लंड अभी भी उसी तरह तना था। किसी तरह संभालकर उठा।

बाहर बैठक में ही मेरा बिस्तर बिछा था। वहां अभी भी तीन चार लोग बैठे थे। गप्प चल रही थी। बिस्तर पर रजाई नहीं थी तो मैं अन्दर लेने आया।

बिस्तर को बक्सा ऊपर छत की कोठरी में था।

बुआ ने बड़बड़ाते हुए सीमा से कहा, जाकर निकाल दे। और मुझसे बोलीं, कि तू भी चला जा लालटेन दिखा दे।

आगे-आगे मैं और पीछे सीमा, ऊपर पहुँचकर कोठरी का द्वार खोलकर बड़े वाले बक्से का ढक्कन खोलने के लिए वह जैसे ही झुकी मैंने लालटेन जमीन पर रखकर उसे पीछे अपनी बाहों में समेट लिया।

अमिता दीदी के साथ इतनी हरकत के बाद तो मेरी धड़क खुल ही गयी थी। वह चैकी तब तक हाथ को आगे से उसकी लेकर उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसकी चूचियों को हथेलियों की अँजुरी बनाकर उसे कस लिया और उसके कानों को होंठों मे दबाकर चूसने लगा।

उसने पकड़ से आजाद होने का प्रयत्न किया, लेकिन मैंने इतनी जोर से कसा कि वह हिल भी नहीं सकती थी वह घबराकर बोली, राम भय्या छोड़िये अभी कोई आ जायेगा।

उसकी यह बात सुनकर मेरा मन गदगद हो गया। मैंने उसकी चूची के चने को दो अँगुलियों से छेड़ते हुए कहा, यहाँ कौन आने वाला है मैं तुम्हारी ले तो रहा नहीं हूँ। बस भींच ही रहा हूँ।

अब तक वह संभवतः अपने ऊपर नियन्त्रण कर चुकी थी। बोली, हाय राम तुम तो बड़े हरामी हो!

जो भी कहो। मैंने उसे झटके अपनी तरफ घुमाकर चप्प से उसके मुँह को अपने मुँह में लेकर होठों को चूसने लगा और उसकी समीच में हाथ डालकर चूचियों को सीधे स्पर्श करने लगा।

धीरे-धीरे वह पस्त सी पड़ने लगी। वह मस्ताने लगी। उसकी स्तन के चने खड़े होन लगे। जब उसके मुँह को चूसने के बाद अपने मुँह को हटाया तो मादक स्वर में बोली कि, अब छोड़िये मुझे डर लग रहा है। देर भी हो रही है।

एक वादा करो।

क्या

देने का!

उसने चंचल स्वर में फिर सवाल किया, क्या

बुर और क्या

उसने अँगूठे के संकेत से कहा, ठेंगा।

मैंने हाथ को झटके से नीचे लेजाकर उसकी बुर को दबोचते हुए कहा, ठेंगा नहीं यह! तुम्हारी रानी को माँग रहा हं।

मेरे नीचे से हाथ हटाते ही उसने बक्सा खोलकर रजाई निकालकर कहा, उसका क्या करना है

चोदना है!

वह रजाई को कंधे पर रख लपक कर मेरे लंड को चड्डी के ऊपर से नोचते हुए बोली, अभी तो!

नहीं कल! और वह नीचे चली गयी। मैं भी जाकर बाहर बैठक मैं सोया। फूफा तो खर्राटे भरने लगे, लेकिन मुझे नीद ही नहीं आ रही थी। अन्दर से प्रसन्नता की लहर सी उठ रही थी।

एक साथ दो-दो शिकार! हे राम! फिर दोनों को लेकर तरह-तरह की कल्पनाएं करते हुए न जाने कब नीद आयी।

जब आँख खुली तो पता चला कि सुबह के नौ बज गये हैं। चड्डी गीली लगी। छूकर देखा तो पता चला कि मैं सपने में झड़ गया था। तभी अमिता दीदी आ गयीं। उन्होंने मेरे उठने के बाद लुगी को थोड़ा सा गीला देखा तो मुस्कुराने लगीं। और धीरे से कहा, यह क्या हो गया।

मैंने भी उन्ही के स्वर में उत्तर दिया, रात में आपको सपने में चोद रहा था। नाइटफाल हो गया।

वह हाथों से मारने का संकेत करते हुए निगाहें तरेरते अन्दर चली गयीं। सर्दी तो थी लेकिन धूप निकल आई थी।

पता चला कि सीमा कामों को निपटाकर अपने बाप के साथ अपने खेतों पर चली गयी। मैं नित्य क्रिया से निपटकर चाय पीने के बाद नाश्ता कर रहा था तो पास में ही आकर अमिता दीदी बैठ गयीं। दूसरी तरफ रसोई में चूल्हे पर बैठी बुआ पूरी उतार रही थीं। वहीं से बोलीं, अमिता तूं नहा धोकर तैयार हो जा। चलना बालेष्वर मन्दिर आज स्नान है। महीने का दूसरा सोमवार है।

वह जवाब देतीं उससे पहले ही मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा, प्लीज अमिता दीदी न जाइए। कोई बहाना बना दीजिए।

क्यों धीरे से मुस्कुराकर कहा।

मेरा मन बहुत हो रहा है।

क्या

मैंने झुँझलाकर कहा, तुम्हें लेने का!

मैं दे दूँगी!

हाँ!

आप को जाना नहीं है।

तब वह बोलीं, मामी मेरी तबियत ठीक नहीं।

अकेले कैसे रहेगी।

राम तो है न!

वह रुकने वाला है घर में!

हाँ बुआ मैं तो चला घूमने। मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा।

मामी! फिर वह धीरे से बोलीं, तो मै जाऊँ!

प्लीज.प्लीज नहीं।

चुपकर रे ललुआ! कहाँ गाँव भागा जा रहा है! मैं बारह बजे तक तो आ ही जाऊँगी तेरे फूफा तो निकल गये शहर। सीमा का बाबू का आज गन्ना कट रहा है नहीं तो मैं उसे ही रोक देती। मैं रात से ही देख रही हूँ इसकी तबियत ठीक नहीं देर तक सोई नहीं। बुआ ने कहा।

और अन्तिम पूरी कड़ाही से निकालकर आँच को चूल्हे के अन्दर से खीच कर उठ

गयीं।

बुआ के जाते ही मैंने मुख्य द्वार की सांकल को बन्द किया और और अमिता दीदी का हाथ पकड़कर कमरे में लेगया। बिजली थी। बल्ब जलाकर उन्हें लिपटा लिया। उन्होंने अपना चश्मा उतार कर एक तरफ रख दिया।

वह भी सहयोग करने लगीं। मेरे मुंह से मुंह लगाकर मेरी जीभ चूसने लगीं। मैं उनके चूतड़ों की फांक में अंगुली धंसा कर उन्हे दबाने लगा।

मेंरा मुंह उनके थूक से भर गया। मेरा शरीर तनने लगा। वह चारपाई पर बैठ गयीं। मैंने उनकी समीच को उतरना चाहा तो बोलीं, नहीं ऊपर कर लो।
मजा नहीं आयेगा। कहते हुए मैंने हाथों को ऊपर करके समीज उतार दी। ब्रेसरी में कसी उनकी छोटे खरबूजे के आकार की चूचियां सामने आ गयीं।

फिर मैंने थोड़ी देर उन्हें ऊपर से सहलाने के बाद ब्रेजरी खोलना चाहा तो उन्होंने खुद ही पीछे से हुक खोल दिया। बल्ल से उनकी दोनों गोरी-गोरी चूचियां बाहर आ गयीं। चने गुलाबी थे। थोड़ी सी नीचे की तरफ ढलकी थीं। मैं झट से पीछे जाकर टांगे उनके कमर के दोनों तरफकरके बैठ गया। और आगे से हाथ ले जाकर उनकी चूचियां मलने लगा। चने खड़े हो गये।

उन्हें दो अंगुलियों के बीच में लेकर छेड़ने बहुत मजा आ रहा था। मेरा पूरी तरह खड़ा हो गया लिंग उनकी कमर में धंस रहा था। वह बोलीं, पीछे से क्या धंस रहा है
अब इससे आगे नहीं!

उनको अनसुना करके मैंने अपनी लुंगी खोल दी नीचे कुछ नहीं था। चारपाई से उतर कर उनके सामने आ गया।

मेरे पेड़ू पर काली-काली झांटे थीं। पेल्हर नीचे लटक रहा था। चमड़े से ढका लाल सुपाड़ा बाहर निकल आया। उसे उनकी नाक के पास हिलाते हुए कहा, अमिता दीदी इसे पकड़ो।

उन्होंने लजाते हुए उसे पकड़ा और सहलाने लगीं। थोड़ी ही देर में लगा कि मैं झड़ जाऊंगगा। मैंने तुरन्त उनकी पीठपर हाथ रखकर उन्हें चित कर दिया और हाथ को द्यालवार के नारे पर रख दिया। वह बोलीं, नहीं।

मैंने उनकी बात नहीं सुनी और और उसके छोर को ढूंढने लगा। वह बोलीं, आगे न बढ़ों मुझे डर लग रहा है। मैंने नारे का छोर ढूंढ लिया।

वह फिर बोलीं, अगर कहीं बच्चा ठहर गया तो। आज नहीं कल निरोध लाना।

बुर मे नहीं झड़ूंगा। कसम से । मैंने कहा।

राम मुझे डर लग रहा सच! यह मैं पहली बार करवा रही हूं।

मैं भी। इसी के साथ मैंने उनका नारा ढीला कर दिया और दूसरे हाथ से उनकी चूचियां मले जा रहा था। वह ढीली पड़ती जा रही थीं। कुछ नहीं होगा। कहकर मैंने सर्र से उनकी शलवार खींच दी।

नीचे वह चड्डी नहीं पहने थीं। उनकी बुर मेरे सामने आ गयीं। उन्होंने लज्जा से आं बंद कर लीं। उनका पेड़ू भी काली झांटों से भरा था।

मैंने ध्यान से देखा तो उनकी बुर का चना यानी क्लीटोरिस रक्त से भरकर उभर गया दिखा। मैं सहलाने के लिए हाथ ले गया तो वह हल्का से प्रतिरोध करने लगीं, लेकिन वह ऊपरी था।

मुझसे अब बरदास्त नहीं हो रहाथा। मैंनें जांघे फैला दी और उनके बीच में आ गया। फिर अमिता दीदी के ऊपर चढ़कर हाथों से लन्ड पकड़कर उनकी बुर के छेद पर रक्खा और दबाव दिया तो सक से मेरा लन्ड अन्दर चला गया।

निशाना ठीक था। उन्होंनं सिसकारी भरी। और धीरे से कहा, झिल्ली फट गयी।

मैं कमर उठाकर हचर-हचर चोदने लगा।

उन्होंने मुझे अपनी बाहों में कस लिया और मेरे चेहरे पर अपने मुंह को रगड़ने लगीं।उनका गोरा नरम शरीर मेरे सांवले थोड़ा भारी शरीर से दबा पिस रहा था। थोड़ी देर बाद उनकी बुर से पुच्च-पुच्च का स्वर निकलने लगा।

मैं झड़ने को हुआ तो झट से लन्ड को निकाल दिया ओर भल्ल से वीर्य फेंक दिया। सारा वीर्य उनके शरीर पर गिर गया।

थोड़ी देर बाद वह उठ गयीं ओर वैसे ही कपड़े पहनने लगीं। मैंने कहा, एक बार और।

नहीं!

अब कब

कभी नहीं।

यह पाप है!

पाप नहीं मेरा लन्ड है। मैंने इस तरह कहा कि, वह मुस्करा उठीं और कपड़े पहनने के बाद कहा, राम सच बताओ इससे पहले किसी की लिए हो।

कभी नहीं। बस चूची दबाई है। वह भी यहीं।

किसकी। उन्होंने आंखें खोलकर पूछा।

सीमा की।

कब।

रात जब हम लोग ऊपर गये थे।

तुम पहुँचे हो! वह बोलीं और बाहर निकल गयीं।

दोपहर तक बुआ क आने से पहले हम दोनों चूत बुर और लन्ड की बातें करते-करते इतने खुल गये कि मैंने तो सोचा भी नहीं था।

उन्होंनं बताया कि उनके चाचा के लड़के ने कई बार जब वह सोलह की थीं तो चोदने की कोशिश की लेकिन अवसर नहीं दिया।

लेकिन मैंने रात में उनकी भावनाओं को जगा दिया और अच्छा ही किया। क्यों की अभी तक वह इस स्वर्गीय आन्नद से वंचित थीं। चुदाई के बाद हम लोगों ने मुख्य द्वार तुरन्त ही खोल दिया, तभी पड़ोस की एक औरत आ गयीं।

वह थोड़ी देर बैठी रहीं। मैं धूप में नहाने बाहर नल पर चला गया।

वह भी जब नहाकर आयीं तो बारह बनजे में आधे घंटे रह गये थे। इसका अर्थ था बुआ बस आने वाली होंगीं। मैंनें एक बार ओर चोदने के लिए कहा तो वह नहीं मानी, लेकिन मेरे जिद करने पर ठीक से वह अपनी बुर दिखाने के लिए तैयार हो गयीं। बुर को खोल दिया। चुदाई के कारण अभी तक उनकी बुर हल्की सी उठी थी।

मैंने झांट साफ करने के लिए कहा तो हंसकर टाल गयीं। उन्होंने मेरा लन्ड भी खोलकर देखा। वह सिकुड़कर छुहारा हो रहा था। लेकिन उनके स्पर्श से थोड़ी सी जान आने लगी तो वह पीछे हट गयीं, और बोलीं कि, अब बाद में अभी यह फिर तैयार हो गया तो मेंरा मन भी तो नहीं मानेगा!

दोपहर में बुआ के साथ ही सीमा भी आयी। वह हमे देखकर अकारण मुस्कुराये जा रही थी। मैं गाँव घूमकर तीन बजे आया तो बाहरी बैठक में लेट गया। वह धीरे से आकर बोली, आज तो अकेले थे, राम भय्या अमिता दीदी को लिया तो होगा।

तूने दे दिया कि वह देंगी ! बता न कब देगी और कहाँ, कहकर मैंने इधर उधर देखकर उसे वहीं बिस्तर पर गिरा दिया चढ़बैठा और लगा उसकी चूचियां कपड़े के ऊपर से मीजने, वह भी मुझे नोच रही थी। तभी न जाने कैसे वहां अमिता दी आ गयीं। चूंकि मकली नीचे थी इसलिए उसने उन्हें पहले देखा वह नीचे निकलकर भागने का प्रयत्न करने लगी।

मैं ओरतेजी से उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे दबाने लगा तो वह घबराये स्वर में बोली, अमिता दीदी! मैंने मुडकर देख तो न जाने क्यों मुझे हंसी आ गयी। मनही में सोचा चली अच्छा हुआ। लेकिन मैंने घबराने का बहाना करके कहा, अमिता दी किसी से कहना नहीं।

वह हक्की बक्की हो गयीं। मैंने आंख मारी तो समझ गयीं। तब तक हम दोनो अलग हो गये थे। वह आंखे नीचे झुकाकर खड़ी हो गयी और बोली, राम भय्या जबरदस्ती कर रहे थे।

मैं एक शर्तपर किसी से नहीं कहूँगी। वह मुझसे भी उतावली के साथ बोली। हां!

जो मैं कहूंगी करना होगा। तुम मेरे सामने राम से करवाओगी।

मुझे तो इसकी आषा भी नहीं थी। मैंने सिर झुकाकर हामी भर दी, वह भी हल्का सा मुस्कुराई।

हम लोग अन्दर आ गये। सीमा काम में लग गयी। अमिता दी ने अवसर मिलते ही धीरे से कहा, इसको भी मिला लेंगे तो मजा भी आयेगा और डर भी नहीं रहेगा। Antarvasna

हाय दोस्तो ! Sex Stories

मैं पंजाब से अंश आज मैं आपको Sex Stories एक ऐसी बात बताने जा रहा हूँ जो मेरे साथ हुआ था।
पहले मैं आपको अपने बारे में बता दूं ! मैं २४ साल का हूँ। मेरा कद ६” फीट है। दिखने में ठीक ठाक हूँ। मेरी एक गर्ल-फ्रेंड हुआ करती थी उसका नाम मीना था। वो बहुत खूबसूरत थी।

अब असली बात पर आता हूँ। जहा हमलोग रहते थे वहां से थोड़ी ही दूरी पर मेरी गर्ल-फ्रेंड मीना का घर था, उसके मम्मी को मैं आंटी कहा कर बुलाता था, असल में वो लोग पंजाबी है और आप लोग तो जानते ही हैं कि पंजाबी महिलाएँ कितनी गर्म और सेक्सी लगती हैं, मीना से ज्यादा अच्छी उसके मम्मी लगती थी, उनका नाम उषा था, आंटी की उम्र ३५ के आस पास थी। लेकिन देखने में बिल्कुल भी इतनी उम्र की नहीं लगती थी, गोरी लम्बी और बहुत खूबसूरत थी, हम लोगों को यह पता था कि उनके पति उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाते हैं।

आज से ६ साल पहले की बात है, नवम्बर का महीना था, मैं आपने घर पर अकेला ही था। मैं जब भी नहाता हूँ तो काफी समय लगाता हूँ। मुझे नहीं मालूम था की आंटी कब मेरे घर में आ गई। मैं अपनी ही धुन में गाना गाते हुए बाथरूम से बाहर निकला। मैं बिल्कुल नग्न था और मेरा लण्ड खड़ा था।

आंटी को मालूम था कि मेरे घर पर कोई नहीं है। बाहर आते ही सबे पहले मैंने अपने लण्ड पर तेल लगाना शुरू कर दिया। मुझे नहीं पता था कि आंटी मुझे दरवाजे से देख रही हैं। मैं तेल लगाने के बाद बेड पर लेट गया बिल्कुल नंगा ही। आंटी ने जब मेरा पूरा खड़ा हुआ लण्ड देखा तो उन्होंने अपनी सलवार में हाथ डाल कर अपनी चूत में ऊँगली करनी चालू कर दी और आंटी के मुँह से आ आअ आआआ आअ …। येस येस येस येस येस येस की आवाजे आ रही थी।

मैं डर गया कि कोई आ गया है। मैंने जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहन लिए और दरवाजे पर देखने के लिए चला तो देखा कि आंटी जा रही हैं।

दोस्तों ! आप तो समझ ही गए होंगे कि जब कोई आपसे बड़ा आपको ऐसी हालत में देख ले तो क्या होगा। मैं बिल्कुल ही डर गया था कि आंटी मेरी मम्मी को बता ना दें।

मैं डर के मारे अपनी गर्ल-फ्रेंड को मिलने भी नहीं गया और ना ही उससे बात की। आंटी को पता था कि मैं उनकी बेटी से प्यार करता हूँ। ३-४ दिन निकल गए। मीना रोती हुई मेरे पास आई और कहने लगी कि तुम आजकल मु्झसे बात क्यों नहीं करते हो?

मैं कुछ नहीं बोला और वहां से चला गया। मीना ने अपनी मम्मी से बात की और उनको बताया कि अंश मुझसे बात नहीं कर रहा और रोती हुई अपने कमरे में चली गई। आंटी ने कहा- मैं अंश से बात करती हूँ !

मेरी मोम घर पर थी तो इसी वजह से ठीक तरह से बात नहीं हुई ! तो आंटी ने कहा कि मैंने तुमसे मीना के बारे में करनी है।

मैंने कहा मैंने भी आपसे बात करनी है।

तो वो मेरा मोबाईल नम्बर ले कर चली गई और जाते जाते कह गई कि मैं रात को कॉल करूंगी ११बजे।

मैंने कह दिया- ओके !
मैं डरा हुआ था कि कहीं उन्होंने मेरी बात मोम से तो नहीं कर दी ! मैं रात की इन्तज़ार करने लगा ! आंटी का कॉल आई ! मैंने डरते डरते फ़ोन उठाया और बात करनी शुरू कर दी। उनसे पहले मैंने कहा- आपसे मैं एक बात पूछ सकता हूँ कि उस दिन जब आपने मुझे नंगा देखा था तो आपने मेरी मोम से कोई बात तो नहीं की?

इस बात पर आंटी हँस पड़ी और कहने लगी कि ये बातें भी कोई किसी से बताता है लल्लू !
आंटी की बात सुन कर मेरी जान में जान आई !
फ़िर मैंने कहा कि किसी को नंगा देखना भी गलत बात है।
वो फ़िर से हँसी !
मैंने कहा- मैंने कोई मज़ाक नहीं किया है !
वो कहने लगी- जब एक अच्छा लण्ड मुझे देखने को मिल रहा है तो मैं क्यों ना देखूँ !

मैं एकदम अचम्भे में आ गया कि आंटी कैसी बातें कर रही हैं।

आंटी ने कहा- अपनी बातें हम दोनों बैठ कर करेंगे ! तुम मीना से कोई भी बात ना करना हम दोनों की !

मैंने कहा- ठीक है और आप भी किसी से मत करना !
ओके ! यार तुम प्लीज़, मीना से बात करना चालू रखो !
मैंने कहा- ठीक है !
आंटी ने पूछा- तुम शनिवार को क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- मैं बिल्कुल फ्री हूँ ! आपको कोई काम है तो मुझे बता दो, मैं कर दूंगा !
आंटी ने कहा- तुम ही कर सकते हो !

मैंने अंदाजा लगाया कि आंटी ने मेरे से घर का कुछ काम करवाना होगा इसी वजह से आंटी ने मुझे बुलाया है !
मैंने कहा- घर का काम ही करना है कर दूंगा !

मैं मीना से मिलने लगा, मीना बहुत खुश थी ! मुझे मीना ने शुक्रवार को ही बताया कि शनिवार को मीना ने आपने मामा के यहाँ जाना है !
मैंने कहा- ठीक है तुम हो आओ पर मुझसे मोबाईल पर बात जरूर करना। और वो चली गई !

शनिवार को मीना का फ़ोन आया कि मैं जा रही हूँ !
मैं उसे सी ओफ़ के लिए मीना के घर पर गया, एक स्मूच किया और उसे जाने दिया !
आंटी ने कहा- कब आओगे तुम !
मैंने कहा- मैं बीस मिनट के बाद आता हूँ !

मैं बीस मिनट के बाद गया तो आंटी ने एक गाउन पहना हुआ था ! मैंने पूछा तो कहने लगी- मैं घर पर यही पहनती हूँ !
मैंने पूछा- बताओ आंटी ! मैं क्या करूं आपके लिए?
तुमको मुझे कुछ करना होगा !
मैंने पूछा- आपको हँसाना है? ये भी कोई बड़ी बात है आंटी ! ये तो अभी लो !

आंटी को गु्स्सा आ गया और कहने लगी- ८” का लण्ड है और २.५” मोटा है और कहता है कि मैं आपको अभी हँसा देता हूँ और गालियाँ देने लगी ! मैं डर गया और चुपचाप सब कुछ सुनता रहा !
आंटी को लगा कि उन्होंने मुझे काफी डरा दिया है ! फ़िर उसने कुछ नहीं देखा और सीधे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रख दिया ! मैं तो बिल्कुल हक्का बक्का रह गया ! और अपना हाथ मेरे लण्ड पर रख दिया और कहने लगी- अंश ! मैंने जब से तुम्हारा लण्ड देखा है मैं तुमसे चुदवाने के लिए तड़प रही थी। कितने दिनों के बाद आज मौका मिला है। अंश मुझे प्यार करो और मुझे तृप्त कर दो !

मैंने कहा- आप मेरी गर्ल-फ्रेंड की मोम हो !
कहने लगी- अगर तूने मुझसे प्यार नहीं किया तो मैं तुझे बदनाम कर दूंगी !
मैंने कहा- आप जो कहोगी मैं करूंगा ! पर आप मुझसे एक वादा कीजिए कि आप मीना को कुछ नहीं बताएंगी !
आंटी ने कहा- मैं वादा करती हूँ !

आंटी ने मेरी पैंट उतार दी और मेरे लण्ड को अपने मुँह में ले लिया और पूरा लण्ड उनके मुँह में नहीं जा रहा था।
मैंने कहा- आंटी ! आराम से चूसो !

तो कहने लगी- बड़ी मुद्दतों के बाद ऐसा लण्ड मिला है, आज तो इसे नहीं छोड़ूंगी !
आंटी ने सारा ही लण्ड अपने मुँह में ले लिया उनकी आंखें बाहर आ रही थी पर फ़िर भी वो लण्ड को मुँह से बाहर नहीं निकाल रही थी ! अब मुझे मजा आने लगा था ! मैंने आंटी का मुँह पकड़ा और अंदर बाहर करने लगा ! मैं अब झड़ने वाला था।

मैंने कहा- आंटी ! मैं झड़ने वाला हूँ तो आंटी ने कहा कि मेरे मुँह में ही झड़ना !
मैंने एक जोर का धक्का लगाया और उनके मुँह में ही सारा झड़ गया !
आंटी ने कहा- अब तुम्हारी बारी है !

मैंने आंटी की चूत में मुँह दे दिया ! आंटी की चूत में मैं इतना मग्न हो गया कि आंटी कह रही थी मुझे- साले बस कर आ आआआ आआ आआ आ आ बस कर चूत को खा जाएगा क्या ?आंटी झड़ने वाली थी, उन्होंने मेरा मुँह पकड़ लिया और पानी छोड़ दिया !
हम दोनों ऐसे ही घर में घूमते रहे ! आंटी ने मुझे पानी पिलाया और खुद भी पानी पीया ! आंटी रसोई में गई तो मैं भी उनके पीछे पीछे चला गया ! आंटी कहने लगी- पहले तो आता नहीं था, अब मेरे पीछे ही हो अपना लण्ड हाथ में लिए !

मैंने आंटी को झुकाया और कहा कि मैं आपकी पीछे से चूत मारना चाहता हूँ !
आंटी ने कहा- यह भी कोई पूछने की बात है ! मेरे राजा ये सारा जिस्म ही तुम्हारा है !

मैंने आंटी को झुकाया और अपना लण्ड अंदर डालने लगा तो आंटी कहने लगी कि यह तो बहुत बड़ा है, मैं मर जाऊंगी !
मैंने कुछ नहीं सुना और लण्ड अंदर डालने लगा ! आंटी की चूत का साइज़ काफी छोटा था या फ़िर कहो कि अंकल के लण्ड का साइज़ छोटा था ! आंटी ने चिल्लाना शुरू कर दिया !
मुझे तो एसा लगा कि मैं किसी कुँवारी की चूत में अपना लण्ड डाल रहा हूँ ! ३” ही अंदर गया था और आंटी चिल्ला रही थी-आ आ आआ आ आअ….आ आआ आ…आआआ धीरे धीरे !

अभी आधा ही अंदर गया था कि आंटी ने रुकने को कहा और कहने लगी- मार दिया जालिम तूने आज ! पर मुझे पता है कि बाद में म़जा भी आएगा ! आंटी ने थोड़ी देर बाद कहा- देख ! अब रुकना नहीं जितना चाहे मैं कहूं रुकने को !
मैंने कहा- ठीक है ! मैंने लौड़े को अंदर करना शुरू कर दिया ! आंटी की आँखों से आंसू आ रहे थे पर फ़िर भी आंटी मुझे रोक नहीं रही थी ! जब पूरा लण्ड आंटी की फ़ुद्दी में चला गया तो आंटी ने कहा- बस रुको और मैं रुक गया !
५-७ मिनट के बाद आंटी हिलना शुरु हो गई !

मैंने कहा- आंटी ! बड़े मजे कर रही हो मेरे लण्ड से !
बाते ना करो ! बस अब चोदो ! आ आआ आआआ… आआअ… चोदो… चोदो… फार डाल आज इस चूत को छोड़ना मत !
आआआ… आआआआ आअ… चोदो… चोदो… फाड़ डाल आज ! इस चूत को छोड़ना मत ! जियो मेरे राजा ! मैं बारे मजे से लण्ड चूत में अंदर बाहर कर रहा था ! अब मैंने उसकी एक लात को हाथ में पकड़ लिया ! अब पूरा लण्ड उसकी चूत में जा रहा था और उसके मूमे भी जोर जोर से दबा रहा था !
आंटी अब एक ही बात कह रही थी ….चोदो ….चोदो ….फाड़ डाल आज इस चूत को छोड़ना मत जियो मेरे राजा !

मै बोला- इतनी चिकनी फ़ुद्दी देख कर मेरा लण्ड पागल हो गया है। इसे धीरे का मतलब नहीं मालूम। और मै उसके चूत में फचा-फच करके अपना लण्ड तेजी से अन्दर-बाहर करने लगा। वो भी अपनी गांड पीछे करके धक्को में साथ देने लगी और साथ-साथ बोले जा रही थी। आआआआ… चोदो ओ ओ… अंश. ओ. अपनाए लण्ड से .. फाड़ डालो ओ.. आअज मेरी चो .. चूत को ओ.. बहुत मज़ा आ रहा है…आआह्ह्ह ऐसे ही …
इधर मै भी पूरे जोश में उसकी चूत में अपना लण्ड ठोक रहा था। और फ़िर अपने हाथ को आगे ले जाकर उसके झूलते मुम्मो को थाम के तेज़ी से चोद रहा था..। आ अ अह ह ह !
इस बीच वो एक बार झड़ चुकी थी..

फ़िर जब मै झड़ने के करीब आया तो उसकी कमर को पकड़ के ताबड़तोड़ झटके मारने लगा और २०-२५ धक्को के बाद हम दोनों साथ-साथ झड़ गए। उनकी चूत दोनों के रस से भर गई और उसके जांघो पे नीचे बहने लगा। ५ मिनट बाद हम अलग हुए और अपने कपड़े ठीक करने लगे। फ़िर उसने मुझे गले लगाकर एक लंबा चुम्मा किया। फ़िर उसने कहा- डार्लिन्ग ! आज सच में चुदाई का सही मज़ा आया…
फ़िर हमारे बीच ये चुदाई का खेल चलता रहा। उसने मुझे २ और चूत दिलाई। एक तो सील थी। फ़िर जैसे मेरे लिए तो जन्नत के दरवाजे ही खुल गए। Sex Stories

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