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कई बार सपने में मैं अपनी सोनू भाभी को Antarvasna उनकी तारीफ में कहता था ..” भाभी आप बहुत खूबसूरत हो आपके रसीले होंठों का रस पीने के लिए कोई भी मर्द चाहेगा गोल गोल बड़ी आँखों में अजीब सी उलझन है आपकी पतली कमर देख कर कोई भी छूने को चाहेगा काजोल की जैसे बड़ी बड़ी चुचियां है आपकी दो मोटे कूल्हों को देखकर हर कोई दीवाना हो जाएगा सच कहूं भाभी आप एक हसींन हिरोइन जैसे दिखती हो.” वो मुस्कुरा कर कहती हैं-“बस बस बहुत तारीफ करते हो वो भी झूठी ” ये क्या कहा आपने मैं भी कुर्बान जाऊँ आप पर अगर झूठा निकला तो।
भैया को अक्सर शहर से बाहर जाना पड़ता है। एक बार भाभी ने काले रंग की साड़ी और ब्लाऊज पहना। भाभी गोरी हैं इसिलिए मैंने उसकी खूब तारीफ की और कहा- भाभी आप तो काले कपड़ो में बहुत ही खूबसूरत दिखाती हो वो मुस्कुरा के बोली झूठे कहीं के।
फिर कई दिनों तक मन में एक सपना सजाता रहा कि कब भाभी को पा लूं और कस के उनकी गरम नरम चूत में अपना मोटा लन्ड डाल के उन्हें चीखने पर मज़बूर कर दूं।
एक दिन भैया ने सुबह जल्दी बाहर जाना था और मैंने उन्हें स्टेशन तक छोड़ने जाना था। मैं केवल अंडरवीयर पहने कसरत कर रहा था कि अचानक भाभी आ गई। मुझे एक झटका सा लगा और मैंने एकदम अपनी कमर पर एक तौलिया लपेट लिया। भाभी मेरे पास आईं और बोली- देवर जी ! आपकी बोडी तो बहुत जानदार है। मेरी बाजू पकड़ कर कहा- क्या सख्त बाजू है। मेर लन्ड भाभी के नर्म हाथों का स्पर्श पाते ही मचलने लगा। भाभी ने तौलिये में मेरे लन्ड को फ़ूलते हुए देख लिया। फ़िर वो जल्दी से बोली- जल्दी तैयार हो जाओ, चलो तुम्हारे भैया राह देख रहे हैं, उनकी गाड़ी का वक्त हो रहा है। वो चली गई पर मेरा लन्ड गर्म हो चुका था। मैं भैया को स्टेशन छोड़ आया और फ़िर कालेज चला गया।
शाम को जब घर आया तो भाभी पड़ोस में गप्पें हान्क रही थी। मुझे देख कर वो अन्दर आ गई। आज उन्होंने गहरे नीले रंग का गाऊन पहन रखा था और अन्दर आ कर दरवाजा बंद करते ही उन्होंने कहा- क्यों देवर जी मैं काले कपडों में सुंदर लगती हूँ ना !
मैंने कहा- हाँ. तो उन्होंने मैं कैसी दिखती हू इन काले कपड़ो में ?
मैंने हँसते हुए कहा- भाभी तुमने तो नीले रंग का गाऊन पहना है.
उन्होंने शरारत से कहा उस दिन तो कहते थे भाभी तुम काली साड़ी और काले ब्लाऊज में अप्सरा लगती हो. आज क्या हुआ ? मैंने कहा- लेकिन भाभी आपने नीला गाऊन पहना हुआ है काला नहीं.
तभी मेरा ध्यान भाभी के कंधे पर दिख रहे ब्रा स्ट्रैप पर गया। मैंने आगे बढ़ कर ब्रा स्ट्रैप के नीचे उंगली डाल कर ऊपर को उठाया और कहा- अच्छा तो ये है काले रंग की ब्रा। लेकिन दिख तो नहीं रही, भाभी जरा दिखाओ ना।
” कुछ नहीं ! कुछ नहीं ! मैं तो मज़ाक कर रही थी “भाभी बोली।
मैंने कहा- भाभी प्लीज! दिखाओ ना ! प्लीज भाभी प्लीज ! बस एक झलक एक बार !
इतना सुनते ही भाभी ने अपना गाऊन निकल दिया मैं उसे देखते ही दंग रह गया सच भाभी काले रंग की चोटी सी ब्रा और काले रंग की बिल्कुल छोटी सी पैन्टी में थी। उसकी दोनों चूचियां आधी से ज्यादा नंगी थी जब पैन्टी उसकी आधी चूत को ही ढक पा रही थी दोनों ओर से चूत नंगी दिखाई दे रही थी ये नजारा देख कर मेरा लंड अंडरवियर में खड़ा होने लगा.
भाभी ने कहा ” उस दिन तो बड़ी तारीफ करते थे आज क्या हो गया ”. मैंने कहा “भाभी तुम्हारी चूचियां और चूत का कोई जवाब मेरे पास नहीं पहली बार किसी औरत का आधा बदन नंगा देखा है सच कह रहा हूँ तुम्हारी कसम भाभी इतनी खूबसूरत गदराई हुई जवानी पहली बार देख कर मैं बाग बाग हो गया हूँ ”
ये कहते हुए मैंने आगे कदम बढाया तो भाभी हिली नहीं अपनी जगह से. मैंने भाभी को कंधो से पकड़ कर अपने से चिपटा लिया।
उन्होंने मुझसे कहा- क्या कर रहे हो, पहले अन्दर चलो !
मैं समझ गया कि आज भाभी दावत दे रही हैं। अन्दर जाते ही मैंने अपनी शर्ट निकल दी ,ऊपर का बदन नंगा हो गया फिर बिना सोचे अपनी पैंट उतार दी सिर्फ़ अंडरवियर में आ गया मेरी नजर भाभी की चुचियों पर गई छोटी सी ब्रा और बड़े कद की चूचियां कब तक छुपाती. मैंने पीछे जा के हूक खोल दी। दो नंगे फल भाभी के बदन पर झूलने लगे .वो कसमसाई मैंने उनकी बिना परवाह किए पैंटी को एक ही झटके में उतार दी और अपना अंडरवियर को निकाल दिया.
उन्होंने नकली गुस्से से कहा- यह क्या कर रहे हो?
मैंने कुछ सुना नहीं मैंने अपनी बाहों में नंगी भाभी के जिस्म को दबोच लिया वो कराहने लगी की मैंने दोनों होंठों को उसके रसीले होंठों पर रख दिए और जी भर के उसका रस पान करने लगा एक हाथ से चुचियों को दबाता मसलता रहा दूसरे हाथ से उसका जिस्म पूरा कस के मेरे जिस्म से चिपकाया ये सब अचानक हो जाने से वो हाथ पाँव मारने लगी लेकिन उसका कुछ न चला ओर मैं भाभी के जिस्म को बुरी तरह रौंदने लगा होंठों के बीच जीभ डाल के मैंने उसे बुरी तरह चूमा उसके मुह में .. आह्ह्ह उफ़. .मोनू .. मैं तुम्हारी भाभी हूँ .. ये ग़लत है .. छोड़ दो मुझे ..जग गगग ..की आवाज निकलने लगी पर मैं पूरी तरह से उनकी भरी भरी चूचियों को दबाता रहा उसकी कड़ी निप्पल को दो उंगली के बीच ले के मसलने लगा भाभी अब सिस्कारियां भरने लगी ..नही .. प्लिज्ज़ ..उईई ईई… धीरे ..मोनू ऊउऊ ..लेकिन अब उसका विरोध ख़तम हो गया था.
हम दोनों की सांसे तेज होने लगी मैंने जम कर भाभी के पूरे बदन को बेतहाशा चूमा .. .. मेरे होंठ उसके बदन पर फिसलने लगे .. एकदम गोरा और चिकना बदन था .अभी तक मैंने उसकी चूत पर हाथ नहीं लगाया था .. वो दोनों जांघो को सिकोड़े हुए थी .. मेरे हाथ और होंठो के स्पर्श से वो… ऐसी आवाजे निकलने लगी थी. सोनू भाभी अब मीठी मीठी आहें भरने लगी मेरी ध्यान अब उसके पेट से होते हुए गहरी नाभि पर गया मैंने वहाँ सहलाया तो उन्होंने सिहर कर अपनी जांघे खोल दी और अब मेरी नजर उन की चूत पर पड़ी मैं झूम उठा एक भी बाल नहीं था गुलाबी रंग की चूत के बीच में एक लाल रंग का होल दिखाई दिया ये देख कर मुह में पानी आ गया.
भाभी के जिस्म को चारो ओर से चूमने सहलाने और दबाने के बाद चूचियों को प्यार से मुंह में लेकर कई बार चूसा भाभी का अंग अंग महक ने लगा उसकी दोनों चूचियां कड़ी ओर बड़ी हो गई उसके लाल लाल निप्प्ल उठ कर खड़े हो गए तीर की तरह नुकीले लग रहे थे. तब मेरी भाभी मुझसे जोर से लिपट गई। दो बदन एक दूसरे से रगड़ने लगे मेरी सांसे फूलने लगी हम दोनों तेजी से अपने मकसद की ओर आगे बढ़ने लग॥ 10 मिनट तक हम दोनों ने एक दूसरे को पूरा चूमा सहलाया। भाभी ने पहली बार शरमाते शरमाते लंड को पकड़ा तो बदन में बिजली सी दौड़ गई पहली बार मैंने कहा “मेरी जान उसके साथ खेलो शरमाओ मत अब हम दोनों में शर्म कैसी .”
मेरा बदन बहुत ही गरमा चुका था तब मैंने भाभी को फर्श पर लिटा दिया ओर उसके ऊपर आके जोर से चुचियों को फिर से दबाया पर बाद में मैंने चूत की तरफ़ देखा. चूत तो पूरी गीली थी. उसमे से जूस ऐसे निकल रहा था जैसे नल से पानी बह रहा हो. अब मैंने भाभी के पावों को चौडा किया तो उनकी फूली हुयी गुलाबी चूत पूरी तरह दिखने लगी .भाभी की गुलाबी चूत को देख कर मैंने कहा “भाभी सच बहुत ही चिकनी है तेरी ये चूत बिना बाल की गोरी उभरी हुई। दिल कर रहा है इसे खा जाऊँ ” इतना कह कर मैं उसकी चूत पर झुका और चूत के होठों को अपने होठों से चूमने लगा।
भाभी तो जैसे उछल पड़ी। ओह आ मोनू…॥अऽऽऽ ये क्या कर रहे हो…ऐसा तो तुम्हारे भैया भी नहीं करते कभी.. ओह मुझे अजीब सा लग रहा है। भाभी की सिस्कारियों से पूरा कमरा गूंजने लगा। मैं बड़े प्यार से भाभी की चूत को चूसता, चूमता चाटता रहा। वो अपने होठों पर जीभ फ़ेर रही थी और मचल रही थी कि अचानक चिल्लाई- मोनू छोड़ मुझे… आहऽऽमेरा हो रहा है…जोर से…कहते हुए मेरा सिर अपनी जान्घों में दबा लिया और मेरे बाल खींचने लगी।…भाभी ने आह ऽऽ भरते हुए जल्दी जल्दी तीन चार झटके पूरे जोरों से अपने चूतड़ उठा कर मारे। मैंने फ़िर भी उनको नहीं छोड़ा और अपनी जीभ से उनकी चूत से बहने वाले रस को चाट गया।
वो कह रही थी- अब हट जाओ मोनू, अब सहन नहीं हो रहा। अब अपनी प्यारी भाभी को चोदो। फ़ाड़ दो मेरी चूत को अपनी भाभी की चूत में घुस जाओ। मैं पहले से जानती थी कि तुम मुझे चोदना चाह्ते हो, मैं भी तुम से चुदना चाहती थीअब मैं भी भाभी की चूत का स्वाद अपने लौड़े को चखाना चाहता था। मैं भाभी के ऊपर आया तो भाभी ने सिर उठा कर मेरे लौड़े कि तरफ़ देखा। उन्होने कहा- देवरजी ! मैं तो मर जाऊँगी इतने मोटे और लम्बे से।
मैंने पूछा किस मोटे और लम्बे से?
वो शरमाते हुए बोली तुम्हारे लो ऽऽऽ लौड़े से !
मैंने कहा-कुछ नहीं होगा… और भाभी की टांगें चौड़ी की तो उनकी चूत के होंट ऐसे खुल गये जैसे किसी फ़ाइव स्टार होटल के दरवाजे अपने आप खुल जाते हैं किसी के आने पर। मैंने अपनी दो अंगुलियों से चूत को थोड़ा और खोला और अपना लन्ड का सिर उस पूरे खिले गुलाब के फ़ूल में रख दिया। भाभी ने कहा- थोड़ा अन्दर तो करो !
मैंने कहा- अभी करता हूं। यह कह कर मैं अपना लौड़ा धीरे धीरे बाहर ही रगड़ने लगा। भाभी बेचैन हो उठी। वो अपने चूतड़ ऊपर को उठा उठा कर लौड़े को अपनी चूत में डलवाने की कोशिश कर रही थी। मैं उनको तड़फ़ाते हुए उनकी सारी कोशिशें नाकाम कर दिए जा रहा था।
“अब डालो ना !” भाभी बोली।
“क्या डालूं… और कहाँ…” मैंने भाभी से पूछा।
“अच्छा बताऊँ तुझे? बहनचोद ! अपनी भाभी की चूत में अपना लौड़ा डाल और चोद साले ! भाभी तड़फ़ते हुए बोली।
भाभी के मुंह से ऐसी गालियां सुन कर मैं हैरान रह गया।
तभी भाभी ने एक ऐसा झटका दिया ऊपर की तरफ़ अपने चूतड़ों को कि एक बार में ही मेरा पूरा का पूरा लौड़ा भाभी की चूत की गहराई में उतर गया। भाभी के मुख से निकला- आह हय-मार दिया ! एक दर्द मिश्रित आनन्द भरी चीख !
अब मैं भाभी के ऊपर गिर सा गया और उनको हिलने का मौका ना देकर उनके होंट अपने होंटों से बंद कर दिये और अपने चूतड़ ऊपर उठा कर एक जोर का धक्का मारा तो भाभी फ़िर तड़प गई।
इसके बाद तो बस आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्… आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…धीरे…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्… आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…रुक जरा… हाँ… आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…जोर से… आऽऽह्…आऽऽह्…आऽऽह्…हाँऽऽअः…हाँऽऽअः…हाँऽऽअः…ह्म्म… हाँऽऽअः
हम दोनों की एक जैसी आवाजें निकल रही थी। काफ़ी देर ऐसे ही चलता रहा। बीच बीच में भाभी बड़बड़ाती रही- मज़ा आ रहा है ! करते रहो ! चूसो !
भाभी की चूत लगातार पानी छोड़ रही थी और मेरा लौड़ा बड़े आराम से अन्दर बाहर आ जा रहा था। भाभी भी अपने चूतड़ उठा उठा कर सहयोग कर रही थी। वो मदहोश हुई जा रही थी। उनके आनन्द का कोई पारावार ना था। ऐसा मज़ा शायद उन्हें पहले नहीं मिला था।
अब मैं चरमोत्कर्ष तक पहुंचने वाला था। मैंने भाभी को कहा- ले सोनू ! ले ले मेरा सारा रस ! पिला दे अपनी चूत को !
“हाँ ! भर दे मेरी चूत अपने रस से मेरे मोनू भैया ! ” भाभी बोली।
और मैंने पूरे जोर से आखिरी धक्का दिया तो मेर लन्ड भाभी के गर्भाशय तक पहुंच गया शायद और वो चीख पड़ी- मार डालेगा क्या?
मेरे मुंह से निकला- बस हो गया ! मेरा लन्ड भाभी की चूत में पिचकारियां मार रहा था। भाभी भी चरम सीमा प्राप्त कर चुकी थी। फ़िर कुछ रुक रुक कर हल्के हल्के झटके मार कर मैं भाभी के ऊपर ही लेटा रहा। हम दोनों अर्धमूर्छित से पड़े रहे काफ़ी देर। पता नहीं कब नींद भी आ गई।
जब मेरी नींद खुली तो देखा कि भाभी उसी तरह नंगी मेरी बगल में बेसुध हो कर सो रही थी। उनके मुख पर असीम तृप्ति का आभास हो रहा था। उनके लबों पर बहुत हल्की सी मुस्कान भी दिख रही थी। मैं धीरे से उठा और रसोई में जाकर दो कप चाय बना कर लाया तो देखा भाभी वैसे ही सो रही थी। मैं उनके पास गया और उनके लबों को हल्के से चूम लिया। जैसे ही मेरे होंठ ने उनके होंठों को स्पर्श किया, भाभी ने आंखें खोल दी और मुस्कुरा कर मेरी आंखों में झांकने लगी।
मैंने भाभी से कहा- “तो सोने का बहाना कर रही थी आप?”
भाभी बोली- मैं तो तभी जाग गई थी जब तुम यहाँ से उठ कर गए थे, लाओ अब चाय तो पिला दो जो प्यार से बना के लाए हो।
हमने चाय पी। तब तक रात के आठ बज चुके थे। मैंने भाभी से पूछा- कैसा लगा?
भाभी ने शरमा कर नज़रें झुका ली, कुछ बोली नहीं।
मैंने उनकी ठोडी पकड़ कर उनका चेहरा ऊपर को उठाया और फ़िर पूछा कि कैसा लगा आज मेरे साथ।
भाभी शर्मिली मुस्कान के साथ बोली- बहुत मज़ा आया, मज़ा तो तुम्हारे भैया के साथ भी बहुत आता है, पर तुम्हारे अन्दर नया जोश है
“पहले ऐसा ही मज़ा आता था भैया के साथ?” मैंने पूछा।
” सच कहूं तो ऐसा मज़ा मुझे कभी नहीं आया, मुझे तो पता भी नहीं था कि इतना मज़ा भी आता होगा चुदाई में” भाभी ने कहा।
भाभी के मुंह से चुदाई शब्द सुन कर मैं अवाक रह गया। फ़िर मैंने भाभी से कहा- भाभी ! मैंने आपको इतना आनन्द दिया है, मुझे ईनाम मिलना चाहिए
” हाँ ! ईनाम के हकदार तो तुम हो। बोलो क्या चाहिए तुम्हें ईनाम में?” भाभी ने पूछा।
“मैं तो ऐसे ही कह रहा हूं, आप मिल गई, मुझे तो मेरा ईनाम मिल गया” मैंने कहा।
” नहीं, फ़िर भी मैं तुम्हें कुछ ना कुछ ईनाम जरूर दूंगी” भाभी ने कहा।
” जैसी आपकी मरजी ! अगर मैंने अपनी तरफ़ से कुछ मांग लिया तो देना पड़ेगा भाभी ! ” मैंने कहा।
” हाँ हाँ जरूर ! मेरे बस में हुआ तो जरूर दूंगी” भाभी ने आश्वासन दिया।
” अच्छा अब बताओ रात के खाने में क्या बनाऊँ? ” सोनू भाभी ने पूछा।
“अब क्या बनाओगी, मैं बाज़ार से ले आता हूं कुछ, वैसे भी मैं अभी सारी रात बाकी है। आप मुझे खाना, मैं आपको खाऊँगा” मैंने भाभी को छेड़ा।
मैंने बाज़ार जाने के लिए उठते हुए कहा- भाभी ! मैं बाज़ार से खाना ले कर आता हूं। आप बस ऐसे ही नंगी रहना, कपड़े नहीं पहनना।
भाभी भी मेरे साथ खड़ी हो गई यह कहते हुए कि दरवाजा भी तो बंद करना होगा। भाभी मेरे पीछे पीछे आईं और मुझे कहा देखो बाहर कोई है तो नहीं, मैं दरवाजा बंद कर लूं।
जब मैंने बाज़ार से आकर दरवाजे की घण्टी बजाई और भाभी ने दरवाजा खोला तो वो वही नीला गाऊन पहने थी।
अन्दर आते आते मैंने पूछा कि गाऊन क्यों पहना?
तो कमरे में पहुंच कर भाभी बोली- आज तो बस बच गई। अभी अभी थोड़ी देर पहले दरवाजे की घण्टी बजी थी और मैंने समझा तुम ही होगे और मैं बिना गाऊन पहने दरवाजा खोलने ही वाली थी कि मुझे पड़ोस वाली रितु की आवाज सुनाई दी। वो मुझे ही पुकार रही थी। मैंने दौड़ कर गाऊन पहना और फ़िर दरवाजा खोला।
क्या करने आई थी रितु? रितु वही जो चार पांच घर छोड़ कर रहती है, नमिता आन्टी की बेटी?
हाँ वही, तू तो सबको जानता है?
बड़ी मस्त चीज है वो, एक बार मिल जाए तो साली को चोद चोद कर चार छः बच्चों की माँ बना दूं।
“तेरा बस चले तो तू सारी दुनिया की लड़कियों को चोद चोद कर माँ बना दे” भाभी बोली।
“सारी दुनिया को नहीं तो भाभी आपको तो अब जरूर माँ बना दूंगा” मैंने कहा।
यह सुन कर भाभी भावुक हो उठी, उनकी आंखें गीली हो गई, वो बोली- तीन साल हो गए शादी को ! अब तक तो कोई आस बंधी नहीं, पता नहीं कब मैं माँ का शब्द सुनूंगी अपने लिए। और तुम क्या सोचते हो कि मैंने ये सारी रासलीला तुम्हारे साथ शारीरिक आनन्द के लिए रचाई है? यह सब मैंने औलाद का सुख पाने के लिए किया है। भाभी रोती जा रही थी और बोलती जा रही थी-” वैसे तो तुम्हारे भैया में कोई कमी नहीं है, वो मुझे सहवास का पूरा पूरा मज़ा देते हैं, पर पता नहीं क्यों मैं गर्भवती क्यों नहीं हो रही। अब देखो तुम क्या गुल खिलाते हो? इतना कह कर भाभी के चेहरे पर कुछ मुस्कुराहट आई।
मैंने आगे बढ़ कर भाभी को अपनी बाहों में भर लिया और कहा- भगवान ने चाहा तो अगले साल तक मैं चाचाऽऽ… नहीं आपके बच्चे का पापाऽऽ… नहीं बस चाचा… हाँ… चाचा ही ठीक है, बन जाऊँगा।
अगर ऐसा हो गया तो मैं तुम्हें मुंह मांगा ईनाम दूंगी- भाभी ने भरे गले से कहा।
तो अब दो ईनाम हो गये- एक तो आपने चाय पीते हुए वायदा किया था आज ही और दूसरा अब जो अगले साल या उससे भी पहले मिल सकता है। Antarvasna
दोस्तो, मेरी कहानियाँ Sex Stories सभी को ख़ूब पसन्द आई; बहुत से ईमेल आए।
मेरी सभी कहानियाँ किसी और के जीवन से ली गई हैं, जिन्हें मैं आपसे बाँटता हूँ।
इस बार फिर आपको एक मस्त कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
रामजीलाल एक 58 साल के व्यक्ति हैं जिनकी पत्नी इस दुनिया में नहीं हैं।
उनकी दो बेटी हैं जिनका नाम सरिता और सीमा हैं।
बड़ी बेटी सरिता की उम्र 24 साल हैं जो शादीशुदा है।
छोटी लड़की अभी 19 साल की है जो पढ़ाई कर रही है।
बड़ी बेटी सरिता की शादी को एक साल ही हुआ था। उसके ससुराल में जाने के बाद रामजीलाल अपने घर में अपनी लड़की के साथ रहते हैं। लड़की छोटी होने के कारण उन्होंने जल्दी वी आर एस ले लिया जिससे लड़की की पढ़ाई तथा परवरिश में कोई कमी न होने पाए।
रामजीलाल दिन का समय तो किसी तरह निकाल लेते लेकिन रात निकालनी उनके मुश्किल हो जाती।
इस उम्र में भी उन्हें सेक्स का कीड़ा काटता था। कभी-कभी अंग्रेज़ी फिल्म देख लिया करते।
लेकिन इससे उनकी सेक्स की भूख और भी बढ़ जाती। इसलिए अपना हाथ जगन्नाथ मानकर किसी तरह अपनी बेचैनी को कम करना उनकी मज़बूरी थी।
सेक्स का कीड़ा तो बाथरूम में जाते और मूठ मारकर अपना पानी निकाल लेते। इसी तरह उनके दिन कट रहे थे।
एक दिन उनकी बड़ी बेटी सरिता घर पर आई। साथ में सरिता का देवर अमर तथा उसकी सासु माँ अनुपमा भी थी।
अनुपमा देखने में तेज़-तर्रार और सेक्स बदन की मालकिन थी।
उम्र तो उसकी 40 के आसपास थी लेकिन उसका भरा-पूरा बदन और उस पर गोरी रंगत कमाल ढाती थी। वह चलती तो उसकी चूतड़ इस अन्दाज़ में हिलती कि देखने वाला भी हिल जाए।
इसके विपरीत अमर, जो अनुपमा का बेटा तथा सरिता का देवर है, वह देखने में सीधा-सादा मासूम बच्चा नज़र आता है। उसकी उम्र 18-19 के आसपास है।
सीमा अपनी बहन को देखकर खुश हो गई।
रामजीलाल भी उन्हें देखकर खुश हो गए क्योंकि बहुत दिनों बाद वे घर पर आए थे।
पूरा दिन सबने बातों में ही निकाल दिया। सरिता, सीमा और अमर आपस में ख़ूब बातें करते रहे।
इधर रामजीलाल भी अनुपमा से गप्पे लड़ाने में कम नहीं थे।
रामजीलाल को अनुपमा से बातें करके अपनी पत्नी की याद आ रही थी। उन्हें लगा कि वह जैसे उनकी पत्नी ही है, बस चोदने की देर है।
लेकिन वह अनुपमा के गुस्से से डरते थे। अनुपमा के सामने अच्छे-अच्छों की बोलती बन्द हो जाती थी फिर रामजीलाल क्या चीज़ है।
शाम को सभी ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए। सरिता और सीमा एक ही कमरे में सोने चले गए तथा अमर और उसकी माँ अनुपमा भी एक कमरे में चले गए।
रामजीलाल भी अपने कमरे में जाकर सोने का प्रयास करने लगे।
लेकिन उन्हें नींद कहाँ आने वाली थी। आज फिर अपने को तड़पता हुआ पाया।
अनुपमा से बातें करके उन्हें अपनी पत्नी की याद आ रही थी कि किस तरह वह अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर उसके नरम नरम होंठों को चूसा करते थे।
अपनी पत्नी के साथ बिताए सेक्स के पलों को याद करके वह और भी अधिक तड़पने लगे। उनका लंड खड़ा हो गया।
वे फिर मूठ मारने बाथरूम में गए, पर आज उनका मूड इसमें भी नहीं लगा। वे हॉल में आकर सोफे पर बैठ गए।
अभी घड़ी में 12 बज रहे थे और पूरी रात उनके सामने पड़ी थी।
रामजीलाल ने टीवी चालू कर लिया और फिल्म देखने लगे।
तभी अमर भी हॉल में आ गया। वह भी बोर हो रहा था। इसलिए टीवी देखने हॉल में आ गया था। वह भी सोफे पर बैठ गया। दोनों टीवी देखने लगे।
फिल्म में एक चुम्बन-दृश्य आया। रामजीलाल ने यह दृश्य देखा तो बेचैन हो गए। उनका लौड़ा उनकी पैन्ट में ही खड़ा होकर अपनी उपस्थिति बताने लगा।
इधर अमर भी यह दृश्य देखकर बेचैन तो हुआ पर उसने जाहिर नहीं होने दिया।
रामजीलाल ने अमर से पूछा- बेटा, पढ़ाई कैसी चल रही है?
अमर- अच्छी चल रही है।
रामजीलाल- अच्छा तुम्हारी मम्मी क्या कर रही है?
अमर- मम्मी थक गई थी इसलिए जल्दी नींद आ गई।
रामजीलाल- अच्छा। और तुम्हारी कितनी गर्लफ्रेण्ड हैं?
अमर थोड़ा चौंका … लेकिन फिर सँभल कर बोला- एक भी नहीं है।
रामजीलाल- क्या बात कर रहे हो बेटा! इतने बड़े हो गए और एक भी गर्लफ्रेण्ड नहीं! भई मैं जब तुम्हारी उम्र का था तो मेरी चार-चार गर्लफ्रेण्ड हुआ करती थीं।
अमर- अच्छा? मैं अभी-अभी कॉलेज में गया हूँ। इसलिए कोई गर्लफ्रेण्ड नहीं है मेरी।
रामजीलाल- वह तो ठीक है। मैं तुम्हें बताऊँगा कि गर्लफ्रेण्ड कैसे पटाते हैं। लड़कियों को प्रभावित करने के लिए अच्छे साफ-सुथरे और स्टाईलिश कपड़े पहनो और अपनी एक अलग पहचान बनाओ। लड़कियाँ ख़ुद तुम्हारे साथ दोस्ती करेगी और तुम जो चाहोगी वह भी करेगी।
अमर- आप तो बहुत अनुभवी लगते हैं। पर गर्लफ्रेण्ड हमारे लिए क्या कर सकती है?
रामजीलाल- बेटा तुम बहुत भोले हो। लड़कियाँ यदि ख़ुद आकर पटेंगी तो तुम जो कहोगे वह करेगी। मेरा मतलब सेक्स से है। तुम्हें भी सेक्स का अनुभव होना चाहिए। वरना शादी के बाद तुम्हारी पत्नी तुम्हें ताना देगी कि तुम्हें कुछ भी नहीं आता।
अमर- वह तो ठीक है। लेकिन शादी के पहले यह सब करना ठीक होता है क्या?
रामजीलाल- बेटा, अनुभव बुहत बड़ी चीज़ होती है। शादी के पहले यह करना ठीक तो नहीं है लेकिन यदि लड़कियाँ ख़ुद अपनी मर्ज़ी से दें तो इसमें बुरा क्या है? तुम्हें कुछ करना आता भी है या नहीं?
अमर शरमाकर बोला- नहीं। थोड़ा बहुत जानता हूँ लेकिन पूरी तरह मालूम नहीं है कि क्या करते हैं।
अमर अब थोड़ा सा खुल गया था।
रामजीलाल- तो मैं तुम्हें बताता हूँ कि सेक्स में क्या करते हैं। सेक्स में किसका महत्त्व है। लड़की के गालों पर, माथे पर, गर्दन पर, और होंठों पर किस करने का मज़ा ही कुछ और है। फिर उनका नाज़ुक चिकना बदन तो पागल कर देता है। उनकी चूचियाँ दबाओ, उन्हें चूसो। उनके पूरे कपड़े खोलकर नंगा कर देना अपने-आप में बहुत मज़ेदार होता है। उनकी चूत में अपना लंड डालो तो समझो कि स्वर्ग जीत लिया।
अमर हकलाते हुए- हाँ यह सब तो बहुत मज़ेदार होगा।
रामजीलाल- अरे … इससे ज़्याद मज़ा तब आता है जब वो तुम्हारा लंड मुँह में लेकर चूसती है। इस आनन्द की तो बात ही निराली है।
अमर- क्या? वह हमारी इस गंदी चीज़ को भी मुँह में लेती है।
रामजीलाल- गंदी चीज़? अरे इससे प्यारी चीज़ तो कोई होती ही नहीं है। तुम कैसे मर्द हो? औरतें तो इसे लॉलीपॉप की तरह चूसती हैं।
अमर- आप मुझसे बहुत गंदी-गंदी बातें कर रहे हैं। मैं आपकी बातों का भरोसा नहीं कर सकता।
रामजीलाल- यदि तुम्हें यकीन नहीं आता तो तुम ख़ुद चूसकर देख लो।
रामजीलाल ने अपना पत्ता फेंका था। वह सोच रहे थे कि अनुपमा न सही, उसका बेटा तो कम से कम मेरा लंड चूस सकता है।
अमर- मैं तो जा रहा हूँ, अपने कमरे में। आपसे मुझे कोई बात नहीं करनी।
रामजीलाल अमर के गुस्से से डर गए। यदि कहीं उसने अपनी माँ अनुपमा को बता दिया तो गज़ब हो जाएगा।
रामजीलाल- बेटा मैं सच कह रहा हूँ। यदि तुम अभी नहीं सीखोगे तो कब सीखोगे। तुम ख़ुद अनुभव लेकर देखो। यदि मैं झूठा निकला तो कभी भी बात मत करना।
अमर पशोपेश में था। आख़िरकार उसने रामजीलाल का लंड मुँह में लेने का निश्चय कर लिया।
रामजीलाल ने टीवी बंद कर दिया और अमर को अपने कमरे में ले गए। रामजीलाल ने अपनी पूरी पैंट खोल दी। उनका 6 इंच लम्बा और मोटा लंड अपनी पूरी औक़ात में तना हुआ था। रामजीलाल बिस्तर पर लेट गए और अमर को लंड मुँह में लेने को कहा।
अमर ने धीरे से लंड को पकड़ा। उसके हाथों में लंड की गर्मी आने लगी। उसे लंड पकड़ना अच्छा लगा।
थोड़ी देर लंड को सहलाने के बाद अमर ने लंड के सुपाड़े को अपने मुँह में ले लिया। उसके मुँह में लंड की गर्मी भरने लगी।
सुपाड़ा चूसते-चूसते उसने लंड को मुँह में भर लिया और मजे ले-लेकर चूसने लगा।
रामजीलाल तो आँखें बन्द करके ज़न्नत की सैर कर रहे थे। अचानक रामजीलाल का लंड कड़क हो गया।
वह समझ गए कि पानी निकलने ही वाला है, लेकिन लंड मुँह से निकालने के पहले ही सारा माल अमर के मुँह में चला गया। माल मुँह में जाते ही अमर का दिमाग ख़राब हो गया। उसने वहीं पर उल्टी कर दी।
रामजीलाल भी उसकी हालत देखकर डर गए।
किसी तरह अमर सँभला और रामजीलाल पर बिगड़ गया और यह कहकर चला गया- आप बहुत गंदे इंसान हो।
इसके जाने के बाद रामजीलाल ने राहत की साँस ली।
वे यही सोच रहे थे कि यह लड़का समझदार निकले और इस बारे में किसी से कहे नहीं। वर्ना उनकी इज्ज़त ख़राब होगी और अच्छा-ख़ासा हंगामा हो जाएगा।
रामजीलाल ने सारे कपड़े खोल दिए और दूसरी अण्डरवियर पहनकर पलंग पर लेट गए।
तभी दरवाज़े पर उनकी समधन अनुपमा ने आवाज़ लगाई।
रामजीलाल उनकी आवाज़ सुनकर डर गए; घबराते हुए दरवाज़ा खोला।
वह यह भी भूल गए कि वे सिर्फ अण्डरवियर में ही हैं।
अनुपमा दरवाज़ा धकेलते हुए अन्दर आई और बोली- क्या पिला दिया है तुमने मेरे छोरे को? वह उल्टी पर उल्टी किए जा रहा है। अपनी उम्र देखो और मासूम बच्चे को देखो। ज़रा सा भी ख़्याल नहीं आया आपको यह गंदी हरक़त करते हुए।
रामजीलाल डर गए और गिड़गिड़ाकर अनुपमा से बोले- मुझे माफ़ कर दो। आइन्दा मैं कभी ऐसी ग़लती नहीं करूँगा। कृपया मेरी पहली और आख़िरी भूल समझकर मुझे क्षमा कर दो। मैं क़सम खाता हूँ कभी अमर से अकेले में भी नहीं मिलूँगा। अब मेरी इज्ज़त आपके हाथ में है।
रामजीलाल को गिड़गिड़ाता हुआ दखकर अनुपमा बोली- आपका काम माफ़ करने के लायक नहीं है। ज़रा मैं भी तो देखूँ कि तुम्हारे लंड में कितना दम है।
रामजीलाल यह सुनकर बुरी तरह चौंककर बोले- आप यह क्या कह रही हैं? Sex Stories
बीकानेर के होटल में एक ही Hindi Sex Stories रात में तीन बार मेरी गाण्ड मारने के बाद बड़े जीजाजी को एक सप्ताह तक फ़िर मेरी गाण्ड मारने का मौका ना मिल सका। उन्होंने कई बार मौका निकाला पर वह सफ़ल नहीं हो सके।
हालांकि मुझे गाण्ड मराने में आनन्द तो आया था परन्तु मुझे यह सब अच्छा नहीं लगा था। मन में डर भी था। सेक्स के बारे में मुझे उस समय कोई जानकारी भी नही थी । पहली बार मैंने मुत्तु (लण्ड) और गांड का ऐसा उपयोग होते देखा था। गाण्ड के छेद में लण्ड घुसने पर मुझे बड़े जोर का दर्द होता था तथा टायलेट में भी तकलीफ होती थी इसलिए गांड मराने में मजा आने के बाद भी मैं बड़े जीजाजी से बच के रहता था पर वह कहाँ मानने वाले थे। उन्होंने मौका निकाल ही लिया।
जंगल की सैर कराने के बहाने वह मुझे अपने साथ जंगल ले आए। सुबह सुबह वह और मैं जीप से जंगल के लिए निकले। करीब चार घंटे के सफर के बाद हम जंगल में उनकी ड्यूटी-पॉइंट पर पहुँचे। यह बड़ी ही खूबसूरत जगह थी। बीच जंगल में उनके रहने के लिए दो वृक्षो पर जमीन से करीब दस फीट ऊपर लकड़ी का दो कमरों वाला मकान बना था, जिसमें उपयोग के लिए सभी सामान था। बड़े जीजाजी जब भी जंगल में रहते वह इसी काष्ठ-घर में रुकते थे।
उन्होंने अपनी सेवा के लिए दो छोकरे रख रखे थे उनमें से एक नेपाली था तथा एक आदिवासी, लेकिन दोनों ही चिकने और आकर्षक थे। नेपाली का नाम शिव था तथा आदिवासी लड़के का नम शायद मथारू था। उनकी चाल ढाल देख कर ही मुझे लगा कि जीजाजी ने गांड मारने के लिए ही इन्हें रख रखा है।
जंगल में पहुँच कर जीजाजी ने दोनों से खाने की व्यवस्था करने को कहा तथा मुझे लेकर वह ऊपर कमरे में आ गए। आते ही वह बोले- योगेश तुम नहा कर तैयार हो जाओ।
मैं नहाने के लिए बाथरूम में चला गया पर वहां दरवाजा नहीं था, सिर्फ़ एक परदा लगा था। मैं नहाने लगा, तभी जीजाजी भी वहां आ गए। उन्होंने मुझे पकड़ कर मेरी चड्डी उतार दी तथा मेरी पीठ, जांघ और गाण्ड पर साबुन मलने लगे। बीच बीच में वह मेरी मुत्तु को भी सहला देते तथा मेरे गाण्ड के छेद में भी साबुन भर कर उंगली डाल देते।
मुंह पर साबुन लगा होने के कारण मेरी आँखें बंद थी। मैंने महसूस किया कि जीजाजी भी पूरी तरह नंगे हैं तथा मेरा हाथ पकड़ कर वह अपने लण्ड को सहला रहे हैं। मैंने पहली बार उनका लण्ड पकड़ा था। उसकी लम्बाई और मोटापन महसूस कर मैं डर सा गया कि इतना बड़ा और मोटा लण्ड कैसे मेरे छोटे से छेद में घुस जाता है।
जब उनका लण्ड पूरे जोश में आ गया तो उन्होंने थोड़ा और साबुन मेरे गाण्ड के छेद में लगा दिया तथा अपने लण्ड को मेरे छेद से टिका दिया।
उन्होंने एक जोर का धक्का दिया लण्ड का सुपारा अब मेरी गांड के अन्दर था। दर्द के मारे मेरी चीख निकल गई। बेरहम जीजाजी ने मेरी गाण्ड को थोड़ा सा दबाया और दोनों दोनों फांको को फैला कर छेद में अपना पूरा लण्ड घुसेड़ दिया तथा धीरे धीरे धक्के लगाने लगे।
थोड़े दर्द के बाद अब मुझे भी मजा आने लगा। जीजाजी पूरे जोश में थे। मुझे घोड़ा बनाकर लगातार लण्ड अन्दर बाहर कर रहे थे। बाथरूम फच फच की आवाज़ से गूँज रहा था। 15 मिनट बाद उन्होंने पिचकारी मेरे गाण्ड के छेद में ही छोड़ दी। उन्होंने ही मेरी गाण्ड साफ की तथा नहलाया। नहाने के बाद उन्होंने पूछा- योगी मजा आया। में शरमा गया, कोई जवाब नही दिया।
इसी बीच शिव और मथारू ने खाना तैयार कर लिया था। खाना खाने के बाद जीजाजी ने थोड़ी देर आराम किया। मुझे भी अपने पास लिटा कर मेरे लण्ड को सहलाया तथा उसे मसला भी। मेरे गाण्ड के छेद में उंगली डाली, मुझे मजा तो आ रहा था पर न जाने क्यूँ यह सब मुझे बहुत अच्छा नहीं लगा। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया। वह पूरी तरह तन्नाया हुआ था।
उन्होंने मेरे मुत्तु को मसला तथा फिर मुझे तिरछा कर मेरी चड्डी नीच खिसका दी और मेरे गाण्ड के छेद में उंगली करने लगे। फिर उन्होंने कोई तेल मेरे छेद पर मला तथा अपने लण्ड पर भी लगाया। तिरछा लेटे होने के कारण वह मेरी गांड में अपना लण्ड नहीं घुसा पा रहे थे।
उन्होंने मुझे पलट कर उल्टा कर दिया तथा वह मेरी टांगों के बीच में आकर बैठ गए। मेरे दोनों गाण्ड को मसला तथा उन्हें फैला कर मेरी गांड के छेद में एक जोर का धक्का मार कर एक ही बार में पूरा का पूरा लण्ड घुसेड़ दिया।
मैं दर्द से बिलबिला उठा। मेरी चीख निकल गई पर वह नहीं माने। वह लगातार धक्के पर धक्के मरे जा रहे थे। मुझे मजा तो आने लगा पर मेरे आंसू भी भी निकले। करीब 15 मिनट बाद वह झड़ गए और सारे का सारा रस मेरे गाण्ड के छेद में ही निकाल दिया।
जंगल में जीजाजी का चार दिन रुकने का प्रोग्राम था। दो घंटो में ही उन्होंने दो बार मेरी गांड मार ली। मैंने मन ही मन हिसाब लगाया कि यदि जीजाजी ने इसी रफ्तार से मेरी गांड मारी तो मैं तो मर ही जाऊंगा। उनका मोटा लण्ड घुसते समय बड़ा दर्द देता था तथा मेरी गांड से खून भी निकाल आता था। लेकिन मेरे पास कोई चारा नहीं था चुपचाप गांड मराते रहने के।
पहले ही दिन संध्या समय तक जीजाजी ने एक बार मेरी गांड और मारी तब वह मुझे जंगल की सैर कराने ले गए। जंगल काफी खूबसूरत था। प्राकृतिक सुन्दरता, हिरण, बारहसिंगे, नीलगाय और मोर देख कर मन खुश हो गया।
लौटते लौटते रात के आठ बज गए। खाना तैयार था। हमने खाना खाया और मैं सोने के लिए लेट गया। मैं बहुत थक भी गया था। पर जीजाजी तो मेरी गांड का भुरता बनाने पर तुले थे। उस रात उन्होंने चार बार और मेरी गांड मारी। मेरी गांड का छेद फूल कर कुप्पा हो गया। पर मैं कर भी क्या सकता था। जंगल में मेरी सुनने वाला भी कोई नहीं था। वैसे भी मैं यह सब किसी से कह भी नहीं सकता था।
अगले दिन मेरी किस्मत से ख़बर आई कि जंगल में एक वन-रक्षक पर भालू ने हमला कर दिया है। जीजाजी को सुबह सुबह ही वहां जाना पड़ा। मैंने रहत की साँस ली। पर क्या मैं सचमुच राहत की साँस ले पाया, पढ़िये अगले अंक में…Hindi Sex Stories
दोस्तों Hindi sex stories, लड़की को सीड्यूस करके चोदने में बड़ा मज़ा आता है। बस सीड्यूस करने का तरीका ठीक होना चाहिये। मैंने अपनी घर की नौकरानी को ऐसे ही सीड्यूस करके खूब चोदा। अब सुनाता हूं उसकी दास्तान। मेरा नाम है वही आपका अपना जाना पहचाना ‘होम अलोन’ सुमित।
मेरे घर में उल ज़लूल नौकरानियों के काफ़ी अरसे बाद एक बहुत ही सुन्दर और सेक्सी नौकरानी काम पर लगी। उसका नाम अनीषा था। 22-23 साल की उमर होगी। सांवला सा रंग था। मध्यम ऊंचायी की और सुडौल बदन, और फ़िगर उसका रहा होगा 33-26-34। शादी शुदा थी। उसका पति कितना किस्मत वाला था, साला उसे खूब चोदता होगा।
बूबस यानि चूंचियां ऐसी कि हाय, बस दबा ही डालो। ब्लाऊज में चूंचियां समाती ही नहीं थी। कितनी भी साड़ी से वो ढकती, इधर उधर से ब्लाऊज से उभरते हुए उसकी चूंचियां दिख ही जाती थी। झाड़ू लगाते हुए, जब वह झुकती, तब ब्लाऊज के ऊपर से चूचियों के बीच की दरार को छुपा ना पाती थी।
एक दिन जब मैंने उसकी इस दरार को तिरछी नज़र से देखा तो पता लगा कि उसने ब्रा तो पहना ही नहीं था। कहां से पहनती, ब्रा पर बेकार पैसे क्यों खर्च किये जायें।
जब वो ठुमकती हुयी चलती, तो उसके चूतड़ बड़े ही मोहक तरीके से हिलते और जैसे कह रहे हों कि मुझे पकड़ो और दबाओ। अपनी पतली सी साटन की साड़ी को जब वो सम्भालती हुयी सामने अपने बुर पर हाथ रखती तो मन करता की काश उसकी चूत को मैं छू सकता, दबा सकता।
करारी, गरम, फ़ूली हुयी और गीली गीली चूत में कितना मज़ा भरा हुआ था। काश मैं इसे चूम सकता, इसके मम्मे दबा सकता, और चूचियों को चूस सकता। और इसकी चूत को चूसते हुए जन्नत का मज़ा ले सकता। और फिर मेरा तना हुए लौड़ा इसकी बुर में डाल कर चोद सकता। हाय मेरा लण्ड ! मानता ही नहीं था। बुर में लण्ड घुसने के लिये बेकरार था। लेकीन कैसे। वो तो मुझे देखती ही नहीं थी। बस अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुयी चली जाती।
मैंने भी उसे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसे चोदने के लिये बेताब है। अब चोदना तो था ही। मैंने अब सोच लिया की इसे सीड्यूस करना ही होगा। धीरे धीरे सीड्यूस करना पड़ेगा वरना कहीं मचल जाये या नाराज हो जायें तो भाण्डा फ़ूट जायेगा। मैंने अनीषा से थोड़ी थोड़ी बातें करना शुरु किया। एक दिन सुबह उसे चाय बनने को कहा। चाय उसके नरम नरम हाथों से जब लिया तो लण्ड उछला।
चाय पीते हुए कहा- अनीषा, चाय तुम बहुत अच्छी बना लेती हो।
उसने जवाब दिया, “बहुत अच्छा बाबूजी।”
अब करीब करीब रोज़ मैं चाय बनवाता और उसकी बड़ाई करता। फिर मैंने एक दिन कॉलेज जाने के पहले अपनी कमीज इस्त्री करवायी।
“अनीषा तुम इस्त्री भी अच्छी ही कर लेती हो।”
“ठीक है बाबूजी,” उसने प्यारी सी अवाज़ में कहा। जब घर में कोई नहीं होता, तब मैं उसे इधर उधर की बातें करता। जैसे,
“अनीषा, तुम्हारा आदमी क्या करता है?”
“साहब, वो एक मिल मैं नौकरी करता है।”
“कितने घण्टे की ड्यूटी होती है?” मैंने पूछा।
“साहब, 10-12 घण्टे तो लग ही जाते है न। कभी कभी रात को भी ड्यूटी लग जाती है।”
“तुम्हारे बच्चे कितने है?” मैंने फिर पूछा।
“अभी कितने बच्चे हैं?”
शरमाते हुए उसने जवाब दिया, “अभी तो एक लड़की है, 2 साल की।”
“उसे क्या घर में अकेला छोड़ कर आती हो?” मैं पूछता रहा।
“नही, मेरी बूढी सास है ना। वो सम्भाल लेती है।”
“तुम कितने घरों में काम करती हो?” मैंने पूछा।
“साहब, बस आपके और एक नीचे घर में।”
मैंने फिर पूछा, “तो तुम दोनो का काम तो चल ही जाता होगा।”
“साहब, चलता तो है, लेकीन बड़ी मुश्किल से। मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बरबाद कर देता है।”
अब मैंने एक इशारा देना उचित समझा। मैंने सम्भलते हुए कहा, “ठीक है, कोई बात नही। मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”
उसने मुझे अजीब सी नज़र से देखा, जैसे पूछ रही हो ‘क्या मतलब है आपका?’
मैंने तुरन्त कहा, “मेरा मतलब है, तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊंगा।”
“ठीक है साहब.” कहाते हुए उसने ठण्डी सांस भरी।
इस तरह, दोस्तों मैंने बातों का सिलसिला काफ़ी दिनो तक जारी रखा और अपने दोनो के बीच की झिझक को मिटाया। एक दिन मैंने शरारत से कहा,
“तुम्हारा आदमी पागल ही होगा। अरे उसे समझना चाहिये। इतनी सुन्दर पत्नी के होते हुए, उसे शराब की क्या ज़रूरत है।”
औरत बहुत तेज़ होती है दोस्तों। उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी तक अहसास नहीं होने दिया अपनी ज़रा सी भी नाराजगी का। मुझे भी ज़रा सा हिन्ट मिला कि अब तो ये तस्वीर पर उतर जायेगी। मौका मिले और मैं इसे दबोचूं। चुदवा तो लेगी और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा। कहते है ऊपर वाले के यहां देर है लेकीन अन्धेर नहीं।
रविवार का दिन था। पूरी फ़ेमिली एक शादी में गयी थी। मैंने पढायी का नुक्सान की वजह बताकर नहीं गया। कह कर गयी थी “अनीषा आयेगी, घर का काम ठीक से करवा लेना।”
मैंने कहा, “ठीक है.”
मेरे दिल में लड्डू फ़ूटने लगे और लौड़ा खड़ा होने लगा। वो आयी, उसने दरवाज़ा बन्द किया और काम पर लग गयी। इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बन्द कर दिया था। मैंने हमेशा की तरह चाय बनवायी और पीते हुए चाय की बड़ाई की। मन ही मन मैंने निश्चय किया की आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी। कैसे पहल करे? आखिर में ख्याल आया कि भैया सबसे बड़ा रुपैया। मैंने उसे बुलया और कहा,
“अनीषा, तुम्हे पैसे की ज़रूरत हो तो मुझे ज़रूर बताना। झिझकना मत।”
“साहब, आप मेरी तनखा काट लोगे और मेरा आदमी मुझे डांटेगा।”
“अरे पगली, मैं तनखा की बात नहीं कर रहा। बस कुछ और पैसे अलग से चाहिये तो मैं दूंगा मदद के लिये। और किसी को नहीं बताऊंगा। बशर्ते तुम भी ना बताओ तो।”
और मैं उसके जवाब का इनतज़ार करने लगा।
“मैं क्यों बताने चली। आप सच में मुझे कुछ पैसे देंगे?” उसने पूछा।
बस फिर क्या था। कुड़ी पट गयी। बस अब आगे बढना था और मलाई खानी थी।
“ज़रूर दूंगा अनीषा। इससे तुम्हे खुशी मिलेगी ना,” मैंने कहा।
“हां साहब, बहुत आराम हो जायेगा।” उसने इठलाते हुए कहा।
अब मैंने हल्के से कहा, “और मुझे भी खुशी मिलेगी। अगर तुम भी कुछ ना कहो तो और जैसा मैं कहूं वैसा करो तो? बोलो मंज़ूर है?”
ये कहते हुए मैंने उसे 500 रुपये थमा दिये।
उसने रुपये टेबल पर रखा और मुसकुराते हुए पूछा- क्या करना होगा साहब?
“अपनी आंखे बन्द करो पहले।” मैं कहते हुए उसकी तरफ़ थोड़ा सा बढा, “बस थोड़ी देर के लिये आंखे बन्द करो और खड़ी रहो।”
उसने अपनी आंखे बंद कर ली। मैंने फिर कहा, “जब तक मैं ना कहूं, तुम आंखे बंद ही रखना, अनीषा। वरना तुम शर्त हार जाओगी।”
“ठीक है, साहब,” शरमाते हुए आंखे बंद कर वो खड़ी थी।
मैंने देखा की उसके गाल लाल हो रहे थे और होंठ कांप रहे थे। दोनो हाथों को उसने सामने अपनी जवान चूत के पास समेट रखा था।
मैंने हल्के से पहले उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन लिया। अभी मैंने उसे छुआ नहीं था। उसकी आंखे बंद थी। फिर मैंने उसकी दोनो पलकों पर बारी बारी से चुम्बन लिया। उसकी आंखे अभी भी बन्द थी। फिर मैंने उसके गालों पर आहिस्ता से बारी बारी से चूमा। उसकी आंखे बन्द थी। इधर मेरा लण्ड तन कर लोहे की तरह कड़ा और सख्त हो गया था।
फिर मैंने उसकी ठोड़ी (चिन) पर चुम्बन लिया।
अब उसने आंखे खोली और सिर्फ़ पूछते हुए कहा, “साहब?”
मैंने कहा, “अनीषा, शर्त हार जाओगी। आंखे बन्द।”
उसने झट से आंखे बन्द कर ली। मैं समझ गया, लड़की तैयार है, बस अब मज़ा लेना है और चुदायी करनी है।
मैंने अब की बार उसके थिरकते हुए होठों पर हल्का सा चुम्बन किया। अभी तक मैंने छुआ नहीं था उसे। उसने फिर आंखे खोली और मैंने हाथ के इशारे से उसकी पलको को फिर ढक दिया। अब मैं आगे बढा, उसके दोनो हाथों को सामने से हटा कर अपनी कमर के चारो तरफ़ लपेट लिया और उसे अपनी बाहों में समेटा और उसके कांपते होठों पर अपने होठ रख दिये और चूमता रहा। कस कर चूमा अबकी बार।
क्या नरम होठ थे मानो शराब के प्याले। होठों को चूसना शुरु किया और उसने भी जवाब देना शुरु किया। उसके दोनो हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे और मैं उसके गुलाबी होठों को खूब चूस चूस कर मज़ा ले रहा था। तभी मुझे महसूस हुआ कि उसकी चूंचियां जो कि तन गयी थी, मेरे सीने पर दब रही थी। बायें हाथ से मैं उसकी पीठ को अपनी तरफ़ दबा रहा था, जीभ से उसकी जीभ और होठों को चूस रहा था, और दायें हाथ से मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दिया।
दांया हाथ फिर अपने आप उसकी दायीं चूंची पर चला गया। और उसे मैंने दबाया। हाय हाय क्या चूंची थी। मलायी थी बस मलायी। अब लण्ड फुंकारे मार रहा था। बांये हाथ से मैंने उसके चूतड़ को अपनी तरफ़ दबाया और उसे अपने लण्ड को महसूस करवाया।
शादीशुदा लड़की को चोदना आसान होता है क्योंकि उन्हे सब कुछ आता है। घबराती नहीं है। ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, ब्लाऊज के बटन पीछे थे, मैंने अपने दांये हाथ से उन्हें खोल दिया और ब्लाऊज को उतार फेका। चूंचियां जैसे कैद थी, उछल कर हाथों में आ गयी। एकदम सख्त लेकिन मलायी की तरह प्यारी भी। साड़ी को खोला और उतारा। बस अब साया बचा था। वो खड़ी नहीं हो पा रही थी। उसकी आंखे अभी भी बन्द थी। मैं उसे हल्के हल्के से खींचते हुए अपने बेडरूम मैं ले आया और लेटा दिया। अब मैंने कहा, “अनीषा रानी अब तुम आंखे खोल सकती हो।”
“आप बहुत पाजी है साहब”, शरमाते हुए उसने आंखे खोली और फिर बन्द कर ली। मैंने झट से अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया। लण्ड तन कर उछल रहा था। मैंने उसका साया जल्दी से खोला और खींच कर उतारा। जैसे वो चुदवाने को तैयार ही थी। कोई अन्डरवियर नहीं पहना हुआ था। मैंने बात करने के लिये कहा,
“ये क्या, तुम्हारी चूत तो नंगी है। चड्डी नहीं पहनती क्या।”
“नहीं साहब, सिर्फ़ महीना में पहनती हू।” और शरमाते हुए कहा, “साहब, परदे खींच कर बन्द करो ना। बहुत रोशनी है।” मैंने झट से परदों को बन्द किया जिससे थोड़ा अन्धेरा हो गया और मैं उसके ऊपर लेट गया। होठों को कस कर चूमा, हाथों से चूंचियां दबायी और एक हाथ को उसके बुर पर फिराया। घुंघराले बाल बहुत अच्छे लग रहे थे चूत पर।
फिर थोड़ा सा नीचे आते हुए उसकी चूंची को मुंह मैं ले लिया। अहा, क्या रस था। बस मज़ा बहुत आ रहा था। अपनी एक अंगुली को उसकी चूत के दरार पर फिराया और फिर उसके बुर में घुसाया। अंगुली ऐसे घुसी जैसे मक्खन मैं छुरी। चूत गरम और गीली थी। उसकी सिसकारियां मुझे और भी मस्त कर रही थी। मैंने उसकी चूत चीरते हुए कहा, “अनीषा रानी, अब बोलो क्या करूं?”
“साहब, मत तड़पाईये, बस अब कर दीजिये।” उसने सिसकारियां लेते हुए कहा।
मैंने कहा, “ऐसे नहीं, बोलना होगा, मेरी जान।”
मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा, “साहब, डाल दीजिये ना।”
“क्या डालूं और कहां?” मैंने शरारत की। दोस्तो चुदायी का मज़ा सुनने में भी बहुत आता है।
“डाल दीजिये ना अपना ये लौड़ा मेरी चूत के अन्दर।” उसने कहा और मेरे होठों से अपने होठ चिपका लिये। इधर मेरे हाथ उसकी चूचियों को मसलते ही जा रहे थे। कभी खूब दबाते, कभी मसलते, कभी मैं चूचियों को चूसता कभी उसके होठों को चूसता।
अब मैंने कह ही दिया- हां रानी, अब मेरा ये लण्ड तेरी बुर में घुसेगा। बोलो चोद दूं?
“हां हां, चोदिये साहब, बस चोद दीजिये।” और वो एकदम गरम हो गयी थी।
फिर क्या था, मैंने लण्ड उसके बुर पर रखा और घुसा दिया अन्दर। एकदम ऐसे घुसा जैसे बुर मेरे लण्ड के लिये ही बनी था। दोस्तों, फिर मैंने हाथों से उसकी चूचियों को दबाते हुए, होठों से उसके गाल और होठों को चूसते हुए, चोदना शुरु किया। बस चोदता ही रहा। ऐसा मन कर रहा था की चोदता ही रहूं। खूब कस कस कर चोदा। बस चोदते चोदते मन ही नहीं भर रहा था। क्या चीज़ थी यारों, बड़ी मस्त थी। वो तो खूब उछल उछल कर चुदवा रही थी।
“साहब, आप बहुत अच्छा चोद रहे हैं, चोदिये खूब चोदिये, चोदना बन्द मत कीजिये”, और उसके हाथ मेरी पीठ पर कस रहे थे, टांगे उसने मेरी चूतड़ पर घुमा कर लपेट रखी थी और चूतड़ से उचल रही थी। खूब चुदवा रही थी। और मैं चोद रहा था। मैं भी कहने से रुक ना सका,
“अनीषा रानी, तेरी चूत तो चोदने के लिये ही बनी है। रानी, क्या चूत है। बहुत मज़ा आ रहा है। बोल ना कैसी लग रही है ये चुदायी।”
“बस साहब, बहुत मजा आ रहा है, रुकिये मत, बस चोदते रहिये, चोदिये चोदिये चोदिये।” इस तरह हम ना जाने कितनी देर तक मज़ा लेते हुए खूब कस कस कर चोदते हुए झड़ गये।
क्या चीज़ थी, वो तो एकदम चोदने के लिये ही बनी थी। अभी मन नहीं भरा था।
20 मिनट के बाद मैंने फिर अपना लण्ड उसके मुंह में डाला और खूब चुसवाया। हमने 69 की पोजिशन ली और जब वो लण्ड चूस रही थी मैंने उसकी चूत को अपनी जीभ से चोदना शुरु किया। खास कर दूसरी बार तो इतना मज़ा आया की मैं बता नहीं सकता। क्योंकि अब की बार लण्ड बहुत देर तक चोदता रहा। लण्ड को झड़ने में काफ़ी समय लगा और मुझे और उसे भरपूर मज़ा देता रहा।
कपड़े पहनने के बाद मैंने कहा, “अनीषा रानी, बस अब चुदवाती ही रहना। वरना ये लण्ड तुम्हे तुम्हारे घर पर आकर चोदेगा।”
“साहब, आप ने इतनी अच्छी चुदायी की है, मैं भी अब हर मौके में आपसे चुदवाऊंगी। चाहे आप पैसे ना भी दो।”
कपड़े पहनने के बाद भी मेरे हाथ उसकी चूचियों को हल्के हल्के मसलते रहे। और मैं उसके गालों और होठों को चूमता रहा। एक हाथ उसके बुर पर चला जाता था और हल्के से उसकी चूत को दबा देता था।
“साहब अब मुझे जाना होगा।” कह कर वो उठी।
मैंने उसका हाथ अपने लण्ड पर रखा- रानी एक बार और चोदने का मन कर रहा है। कपड़े नहीं उतारूंगा।
दोस्तो, सच में लण्ड कड़ा हो गया था और चोदने की लिये मैं फिर से तैयार था। मैंने उसे झट से लेटाया, साड़ी उठायी, और अपना लौड़ा उसके बुर में पेल दिया। अबकी बार उसे भचाभच करके खूब चोदा और कस कर चोदा और खूब चोदा और चोदता ही रहा। चोदते चोदते पता नहीं कब लण्ड झड़ गया और मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। चूमते हुए चूचियों को दबाते हुए, मैंने अपना लण्ड निकाला और अन्त में उसे विदा किया।
कैसी लगी ये नौकरानी के सथ मेरी मस्ती भरी Hindi sex stories चुदायी, सच सच बताना। बताना ज़रूर। मैं इन्तज़ार करूंगा।
आपका प्यारा दोस्त सुमित
मैंने अन्तर्वासना डॉट Antarvasna कॉम पर बहुत सी कहानियाँ लिखी हैं। ये कहानियाँ आपके मनोरंजन के लिए हैं। अब पेश है एक नई कहानी आपके लिए !
मेरी बहन मुझसे लगभग तीन साल बड़ी है। वो एम ए में पढ़ती थी और मैंने कॉलेज में दाखिला लिया ही था। मैं भी जवान हो चला था। मुझे भी जवान लड़कियाँ अच्छी लगती थी। सुन्दर लड़कियाँ देख कर मेरा भी लण्ड खड़ा होता था।
मेरी दीदी भी चालू किस्म की थी। लड़कों का साथ उसे बहुत अच्छा लगता था। वो अधिकतर टाईट जीन्स और टीशर्ट पहनती थी। उसके उरोज 23 साल की उम्र में ही भारी से थे, कूल्हे और चूतड़ पूरे शेप में थे।
रात को तो वो ऐसे सोती थी कि जैसे वो कमरे में अकेली सोती हो। एक छोटी सी सफ़ेद शमीज और एक वी शेप की चड्डी पहने हुये होती थी। फिर एक करवट पर वो पांव यूँ पसार कर सोती थी कि उसके प्यारे-प्यारे से गोल चूतड़ उभर कर मेरा लण्ड खड़ा कर देते थे। उसके भारी भारी स्तन शमीज में से चमकते हुये मन को मोह लेते थे। उसकी बला से भैया का लण्ड खड़ा होवे तो होवे, उसे क्या मतलब ?
कितनी ही बार जब मैं रात को पेशाब करने उठता था तो दीदी की जवानी की बहार को जरूर जी भर कर देखता था। कूल्हे से ऊपर उठी हुई शमीज उसकी चड्डी को साफ़ दर्शाती थी जो चूत के मध्य में से हो कर उसे छिपा देती थी। उसकी काली झांटे चड्डी की बगल से झांकती रहती थी। उसे देख कर मेरा लण्ड तन्ना जाता था। बड़ी मुश्किल से अपने लण्ड को सम्भाल पाता था।
एक बार तो मैंने दीदी को रंगे हाथों पकड़ ही लिया था। क्रिकेट के मैदान से मैं बीच में ही पानी पीने राजीव के यहाँ चला गया। घर बन्द था, पर मैं कूद कर अन्दर चला आया। तभी मुझे कमरे में से दीदी की आवाज सुनाई दी। मैं धीरे से दबे पांव यहाँ-वहाँ से झांकने लगा। अन्त में मुझे सफ़लता मिल ही गई। दीदी राजीव का लण्ड दबा रही थी। राजीव भी बड़ी तन्मयता के साथ दीदी की कभी चूचियाँ दबाता तो कभी चूतड़ दबाता। कुछ ही देर में दीदी नीचे बैठ गई और राजीव का लण्ड निकाल कर चूसने लगी। मेरे शरीर में सनसनाहट सी दौड़ पड़ी। मेरा मन उनकी यह रास-लीला देखने को मचल उठा। उनकी पूरी चुदाई देख कर ही मुझे चैन आया।
तो यह बात है … दीदी तो एक नम्बर की चालू निकली। एक नम्बर की चुदक्कड़ निकली दीदी तो।
मैं भारी मन से बाहर निकल आया। आंखों के आगे मुझे अब सिर्फ़ दीदी की भोंसड़ी और राजीव का लण्ड दिख रहा था। मेरा मन ना तो क्रिकेट खेलने में लगा और ना ही किसी हंसी मजाक में। शाम हो चली थी … सभी रात का भोजन कर के सोने की तैयारी करने लगे थे। दीदी भी अपनी परम्परागत ड्रेस में आ गई थी।
मैं भी अपने कपड़े उतार कर चड्डी में बिस्तर पर लेट गया था। पर नींद तो कोसों दूर थी … रह रह कर अभी भी दीदी के मुख में राजीव का लण्ड दिख रहा था। मेरा लण्ड भी फ़ूल कर खड़ा हो गया था।
अह्ह्ह… मुझे दीदी को चोदना है … बस चोदना ही है।
मेरी चड्डी की ऊपर की बेल्ट में से बाहर निकला हुआ अध खुला सुपारा नजर आ रहा था। इसी हालत में मेरी आंख जाने कब लग गई।
यकायक एक खटका सा हुआ। मेरी नींद खुल गई। कमरे की लाईट जली हुई थी। मुझे लगा कि मेरे पास कोई खड़ा हुआ है। समझते देर नहीं लगी कि दीदी ही है। वो बड़े ध्यान से मेरे लण्ड का उठान देख रही थी। दीदी को शायद अहसास भी नहीं हुआ होगा कि मेरी नींद खुल चुकी है और मैं उसका यह तमाशा देख रहा हूँ।
उसने झुक कर अपनी एक अंगुली से मेरे अध खुले सुपारे को छू लिया। फिर मेरी वीआईपी डिज़ाइनर चड्डी की बेल्ट को अंगुली से धीरे नीचे सरका दिया। उसकी इस हरकत से मेरा लण्ड और भी फ़ूल कर कड़क हो गया। मुझे लगने लगा था- काश ! दीदी मेरा लण्ड पकड़ कर मसल दे। अपनी भोंसड़ी में उसे घुसा ले।
उसकी नजरें मेरे लण्ड को बहुत ही गौर से देख रही थी, जाहिर है कि मेरी काली झांटे भी लण्ड के आसपास उसने देखी होगी। उसने अपने स्तनों को जोर से मल दिया और उसके मुँह से एक वासना भरी सिसकी निकल पड़ी। फिर उसका हाथ उसकी चूत पर आ गया। शायद वो मेरा लण्ड अपनी चूत में महसूस कर रही थी। उसका चूत को बार बार मसलना मेरे दिल पर घाव पैदा कर रहे थे। फिर वो अपने बिस्तर पर चली गई।
दीदी अपने अपने बिस्तर पर बेचैनी से करवटें बदल रही थी। अपने उभारों को मसल रही थी। फिर वो उठी और नीचे जमीन पर बैठ गई। अब शायद वो हस्त मैथुन करने लगी थी। तभी मेरे लण्ड से भी वीर्य निकल पड़ा। मेरी चड्डी पूरी गीली हो गई थी। अभी भी मेरी आगे होकर कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
दूसरे दिन मेरा मन बहुत विचलित हो रहा था। ना तो भूख रही थी… ना ही कुछ काम करने को मन कर रहा था। बस दीदी की रात की हरकतें दिल में अंगड़ाईयाँ ले रही थी। दिमाग में दीदी का हस्त मैथुन बार बार आ रहा था। मैं अपने दिल को मजबूत करने में लगा था कि दीदी को एक बार तो पकड़ ही लूँ, उसके मस्त बोबे दबा दूँ। बार बार यही सोच रहा था कि ज्यादा से ज्यादा होगा तो वो एक तमाचा मार देगी, बस !
फिर मैं ट्राई नहीं करूंगा।
जैसे तैसे दिन कट गया तो रात आने का नाम नहीं ले रही थी।
रात के ग्यारह बज गये थे। दीदी अपनी रोज की ड्रेस में कमरे में आई। कुछ ही देर में वो बिस्तर पर जा पड़ी। उसने करवट ले कर अपना एक पांव समेट लिया। उसके सुडौल चूतड़ के गोले बाहर उभर आये। उसकी चड्डी उसकी गाण्ड की दरार में घुस गई और उसके गोल गोल चमकदार चूतड़ उभर कर मेरा मन मोहने लगे।
मैंने हिम्मत की और उसकी गाण्ड पर हाथ फ़ेर कर सहला दिया। दीदी ने कुछ नहीं कहा, वो बस वैसे ही लेटी रही।
मैंने और हिम्मत की, अपना हाथ उसके चूतड़ों की दरार में सरकाते हुये चूत तक पहुँचा दिया। मैंने ज्योंही चूत पर अपनी अंगुली का दबाव बनाया, दीदी ने सिसक कर कहा,”अरे क्या कर रहा है ?”
“दीदी, एक बात कहनी थी !”
उसने मुझे देखा और मेरी हालत का जायजा लिया। मेरी चड्डी में से लण्ड का उभार उसकी नजर से छुप नहीं सका था। उसके चेहरे पर जैसे शैतानियत की मुस्कान थिरक उठी।
“हूम्म … कहो तो … ”
मैं दीदी के बिस्तर पर पीछे आ गया और बैठ कर उसकी कमर को मैंने पकड़ लिया।
“दीदी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं !”
“ऊ हूं … तो… ”
“मैं आपको देख कर पागल हो जाता हूँ … ” मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुये उसकी छातियों की ओर बढ़ने लगे।
“वो तो लग रहा है … !” दीदी ने घूम कर मुझे देखा और एक कंटीली हंसी हंस दी।
मैंने दीदी की छातियों पर अपने हाथ रख दिये,”दीदी, प्लीज बुरा मत मानना, मैं आपको चोदना चाहता हूँ !”
मेरी बात सुन कर दीदी ने अपनी आंखें मटकाई,”पहले मेरे बोबे तो छोड़ दे… ” वो मेरे हाथ को हटाते हुये बोली।
“नहीं दीदी, आपके चूतड़ बहुत मस्त हैं … उसमें मुझे लण्ड घुसेड़ने दो !” मैं लगभग पागल सा होकर बोल उठा।
“तो घुसेड़ ले ना … पर तू ऐसे तो मत मचल !” दीदी की शैतानियत भरी हरकतें शुरू हो गई थी।
मैं बगल में लेट कर अनजाने में ही कुत्ते की तरह उसकी गाण्ड में लण्ड चलाने लगा। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ कि मेरी किसी भी बात का दीदी ने कोई विरोध नहीं किया, बल्कि मुझे उसके गाण्ड मारने की स्वीकृति भी दे दी। मुझे लगा दीदी को तो पटाने की आवश्यकता ही नहीं थी। बस पकड़ कर चोद ही देना था।
“बस बस … बहुत हो गया … दिल बहुत मैला हो रहा है ना ?” दीदी की आवाज में कसक थी।
मैं उसकी कमर छोड़ कर एक तरफ़ हट गया।
“दीदी, इस लण्ड को देखो ना … इसने मुझे कैसा बावला बना दिया है।” मैंने दीदी को अपना लण्ड दिखाया।
“नहीं बावला नहीं बनाया … तुझ पर जवानी चढ़ी है तो ऐसा हो ही जाता है… आ यहाँ मेरे पास बैठ जा, सब कुछ करेंगे, पर आराम से … मैं कहीं कोई भागी तो नहीं जा रही हूँ ना … इस उम्र में तो लड़कियों को चोदना ही चहिये… वर्ना इस कड़क लण्ड का क्या फ़ायदा ?” दीदी ने मुझे कमर से पकड़ कर कहा।
मेरे दिल की धड़कन सामान्य होने लगी थी। पसीना चूना बंद हो गया था। दीदी की स्वीकारोक्ति मुझे बढ़ावा दे रही थी। वो अब बिस्तर पर बैठ गई और मुझे गोदी में बैठा लिया। दीदी ने मेरी चड्डी नीचे खींच कर मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया।
“ये … ये हुई ना बात … साला खूब मोटा है … मस्त है… मजा आयेगा !” मेरे लण्ड के आकार की तारीफ़ करते हुये वो बोल उठी। उसने मेरा लण्ड पकड़ कर सहलाया। फिर धीरे से चमड़ी खींच कर मेरा लाल सुपारा बाहर निकाल लिया।
अचानक उसकी नजरें चमक उठी,”भैया, तू तो प्योर माल है रे… ” वो मेरे लौड़े को घूरते हुये बोली।
“प्योर क्या … क्या मतलब?” मुझे कुछ समझ में नहीं आया।
“कुछ नहीं, तेरे लण्ड पर लिखा है कि तू प्योर माल है।” मेरे लण्ड की स्किन खींच कर उसने देखा।
“दीदी, आप तो जाने कैसी बातें करती हैं… ” मुझे उसकी भाषा समझने में कठिनाई हो रही थी।
“चल अपनी आंखें बन्द कर … मुझे तेरा लण्ड घिसना है !” दीदी की शैतान आंखें चमक उठी थी।
मुझे पता चल गया था कि अब वो मुठ मारेगी, सो मैंने अपनी आंखें बंद कर ली।
दीदी ने मेरे लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर कर आगे पीछे करना चालू कर दिया। कुछ ही देर में मैं मस्त हो गया। मुख से सुख भरी सिसकियाँ निकलने लगी। जब मैं पूरा मदहोश हो गया था, चरम सीमा पर पहुंचने लगा था, दीदी ने जाने मेरे लण्ड के साथ क्या किया कि मेरे मुख से एक चीख सी निकल गई। सारा नशा काफ़ूर हो गया। दीदी ने जाने कैसे मेरे लण्ड की स्किन सुपारे के पास से
अंगुली के जोर से फ़ाड़ दी थी। मेरी स्किन फ़ट गई थी और अब लण्ड की चमड़ी पूरी उलट कर ऊपर आ गई थी। खून से सन कर गुलाबी सुपाड़ा पूरा खिल चुका था।
“दीदी, ये कैसी जलन हो रही है … ये खून कैसा है?” मुझे वासना के नशे में लगा कि जैसे किसी चींटी ने मुझे जोर से काट लिया है।
“अरे कुछ नहीं रे … ये लण्ड हिलाने से स्किन थोड़ी सी अलग हो गई है, पर अब देख … क्या मस्त खुलता है लण्ड !” मेरे लण्ड की चमड़ी दीदी ने पूरी खींच कर पीछे कर दी। सच में लण्ड का अब भरपूर उठाव नजर आ रहा था।
उसने हौले हौले से मेरा लण्ड हिलाना जारी रखा और सुपाड़े के ऊपर कोमल अंगुलियों से हल्के हल्के घिसती रही। मेरा लण्ड एक बार फिर मीठी मीठी सी गुदगुदी के कारण तन्ना उठा। कुछ ही देर में मुठ मारते मारते मेरा वीर्य निकल पड़ा। उसने मेरे ही वीर्य से मेरा लण्ड मल दिया। मेरा दिल शान्त होने लगा।
मैंने दीदी को पटा लिया था बल्कि यू कहें कि दीदी ने मुझे फ़ंसा लिया था। मेरा लण्ड मुरझा गया था। दीदी ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। मेरे होंठों पर अपने होंठ उसने दबा दिये और अधरों का रसपान करने लगी।
“भैया, विनय से मेरी दोस्ती करा दे ना, वो मुझे लिफ़्ट ही नहीं देता है !”
“पर तू तो राजीव से चुदवाती है ना … ?”
उसे झटका सा लगा।
“तुझे कैसे पता?” उसने तीखी नजरों से मुझे देखा।
“मैंने देखा है आपको और राजीव को चुदाई करते हुये … क्या मस्त चुदवाती हो दीदी!”
“मैं तो विनय की बात कर रही हूँ … समझता ही नहीं है ?” उसने मुझे आंखें दिखाई।
“लिफ़्ट की बात ही नहीं है … सच तो यह है कि उसे पता ही नहीं है कि आप उस पर मरती हैं।”
“फिर भी … उसे घर पर लाना तो सही… और हाँ मरी मेरी जूती … !”
“अरे छोड़ ना दीदी, मेरे अच्छे दोस्तों से तुझे चुदवा दूँगा … बस, सालों के ये मोटे मोटे लण्ड हैं !”
“सच भैया?” उसकी आंखें एक बार फिर से चमक उठी।
दीदी के बिस्तर में हम दोनों लेट गये। कुछ ही देर मेरा मन फिर से मचल उठा।
“दीदी, एक बार अपनी चूत का रस मुझे लेने दे।”
“चल फिर उठ और नीचे आ जा !”
दीदी ने अपनी टांगें फ़ैला दी। उसकी भोंसड़ी खुली हुई सामने थी पाव रोटी के समान फ़ूली हुई। उसकी आकर्षक पलकें, काली झांटों से भरा हुआ जंगल … उसके बीचों बीच एक गुलाबी गुफ़ा … मस्तानी सी … रस की खान थी वो …
उसने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा ली… नजरें जरा और नीचे गई। भूरा सा अन्दर बाहर होता हुआ गाण्ड का कोमल फ़ूल …
एक बार फिर लण्ड की हालत खराब होने लगी। मैंने झुक कर उसकी चूत का अभिवादन किया और धीरे से अपनी जीभ निकाल कर उसमें भरे रस का स्वाद लिया। जीभ लगते ही चूत जैसे सिकुड़ गई। उसका दाना फ़ड़क उठा … जीभ से रगड़ खा कर वो भी मचल उठा। दीदी की हालत वासना से बुरी हो रही थी। चूत देख कर ही लग रहा था कि बस इसे एक मोटे लण्ड की आवश्यकता है। दीदी ने
मेरी बांह पकड़ कर मुझे खींच कर नीचे लेटा लिया और धीरे से मेरे ऊपर चढ़ गई और अपनी चूत खोल कर मेरे मुख से लगा दी। उसकी प्यारी सी झांटों भरी गुलाबी सी चूत देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने उसकी चूत को चाटते हुये उसे खूब प्यार किया। दीदी ने अपनी आंखें मस्ती में बन्द कर ली। तभी वो और मेरे ऊपर आ गई। उसकी गाण्ड का कोमल नरम सा छेद मेरे होंठों के सामने था। मैंने अपनी लपलपाती हुई जीभ से उसकी गाण्ड चाट ली और जीभ को तिकोनी बना कर उसकी गाण्ड में घुसेड़ने लगा।
“तूने तो मुझे मस्त कर दिया भैया … देख तेरा लण्ड कैसा तन्ना रहा है… !”
उसने अपनी गाण्ड हटाते हुये कहा,” भैया मेरी गाण्ड मारेगा ?”
वो धीरे से नीचे मेरी टांगों पर आ गई और पास पड़ी तेल की शीशी में से तेल अपनी गाण्ड में लगा लिया।
“आह … देख कैसा कड़क हो रहा है … जरा ठीक से लण्ड घुसेड़ना… ”
वो अपनी गाण्ड का निशाना बना कर मेरे लण्ड पर धीरे से बैठ गई। सच में वो गजब की चुदाई की एक्सपर्ट थी। उसके शरीर के भार से ही लण्ड उसकी गाण्ड में घुस गया। लण्ड घुसता ही चला गया, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
लगता था उसकी गाण्ड लड़कों ने खूब बजाई थी … उसकी मुख से मस्ती भरी आवाजें निकलने लगी।
“कितना मजा आ रहा है … ” वो ऊपर से लण्ड पर उछलने लगी …
लण्ड पूरी गहराई तक जा रहा था। उसकी टाईट गाण्ड का लुत्फ़ मुझे बहुत जोर से आ रहा था। मेरे मुख से सिसकियाँ निकल रही थी। वो अभी भी सीधी बैठी हुई गाण्ड मरवा रही थी। अपने चूचों को अपने ही हाथ से दबा दबा कर मस्त हो रही थी। उसने अपनी गाण्ड उठाई और मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और थोड़ा सा पीछे हटते हुये अपनी चूत में लण्ड घुसा लिया। वो अब मेरे पर झुकी हुई थी … उसके बोबे मेरी आंखों के सामने झूलने लगे थे।
मैंने उसके दोनों उरोज अपने हाथों में भर लिये और मसलने लगा। वो अब चुदते हुये मेरे ऊपर लेट सी गई और मेरी बाहों को पकड़ते हुये ऊपर उठ गई। अब वो अपनी चूत को मेरे लण्ड पर पटक रही थी। मेरी हालत बहुत ही नाजुक हो रही थी। मैं कभी भी झड़ सकता था। वो बेतहाशा तेजी के साथ मेरे लण्ड को पीट रही थी, बेचारा लण्ड अन्त में चूं बोल ही गया। तभी दीदी भी निस्तेज सी हो गई। उसका रस भी निकल रहा था। दोनों के गुप्तांग जोर लगा लगा कर रस निकालने में लगे थे। दीदी ने मेरे ऊपर ही अपने शरीर को पसार दिया था। उसकी जुल्फ़ें मेरे चेहरे को छुपा चुकी थी। हम दोनों गहरी-गहरी सांसें ले रहे थे।
“मजा आया भैया… ?”
“हां रे ! बहुत मजा आया !”
“तेरा लण्ड वास्तव में मोटा है रे … रात को और मजे करेंगे !”
“दीदी तेरी भोंसड़ी है भी चिकनी और रसदार !” मैं वास्तव में दीदी की सुन्दर चूत का दीवाना हो गया था, शायद इसलिये भी कि चूत मैंने जिन्दगी में पहली बार देखी थी।
पर मेरे दिल में अभी भी कुछ ग्लानि सी थी, शायद अनैतिक कार्य की ग्लानि थी।
“दीदी, देखो ना हमसे कितनी बड़ी भूल हो गई, अपनी ही सगी दीदी को चोद दिया मैंने!”
“अहह्ह्ह्ह … तू तो सच में बावला ही है … भाई बहन का रिश्ता अपनी जगह है और जवानी का रिश्ता अपनी जगह है … जब लण्ड और चूत एक ही कमरे में मौजूद हैं तो संगम होगा कि नहीं, तू ही बता!” उसका शैतानियत से भरा दिमाग जाने मुझे क्या-क्या समझाने में लगा था। मुझे अधिक तो कुछ समझ में आया … आता भी कैसे भला। क्यूंकि अगले ही पल वो मेरा लौड़ा हाथ में लेकर मलने लगी थी … और मैं बेसुध होता जा रहा था। Antarvasna
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