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हाय दोस्तों!
यह मेरी पहली कहानी है, मुझे सेक्सी कहानियाँ पढ़ने बहुत मजा आता Sex Stories है मेरा नाम सुरेश है गोंडा में मेरा घर है एक बार मैं अकेले घर पर था उस दिन मेरे घर पर कोई नहीं था मैं सेक्सी बुक देख रहा था मेरा लंड खड़ा था मेरे घर का दरवाजा खुला था तभी पड़ोस में रहने वाली आंटी जी अन्दर आ गयीं और मुझे लगा कि कोई आ रहा है मैं ने शीशे में देख लिया कि आंटी खड़ी मुझे देख रही थी
मैने अपना मोटा लाल और चिकना लंड अपने हाथ में पकड़ रखा था मैने कुछ नहीं पहना था एक दम नंगा था आंटी बहुत ध्यान से देख रही थी मैं ने लंड को और ऊपर कर दिया अब आंटी को मेरा लम्बा लंड साफ़ दिख रहा था वो मस्त हो रही थी बहुत देर देखने के बाद वो आगे आकर पीछे से आकर पकड़ लिया मैं खड़ा हो गया तभी मेरा लंड आंटी के पेट में गड़ने लगा तभी वो देख कर बोली कि कितना सेक्सी है तुम्हारा और झट से पकड़ लिया वो बोले तुम भी प्यासे हो और मैं भी चलो दोनो की प्यास बुझ जायेगी
मैने कहा क्यों अंकल आप को नहीं करते है वो बोली कभी नहीं मैने कहा मैं तैयार हूं। आंटी बोली क्या करने के लिये, मैं शरमाया, तभी वो बोली चोदने के लिये। फिर मैं आंटी को गोद में ले जाकर बेड पर लिटा दिया और कपड़े उतारने लगा सच में उनकी चूची एक दम कड़ी थी मैने दबाना शुरु किया वो एक दम मदमस्त हो रही थी जब मैने उनकी चूत में उंगली डाली तो इतनी गरम थी कि मैं बता नहीं सकता आंटी बोली पहली बार तो जल्दी चोद दो दोबारा आराम से चोदना मैं भी ताव में था अपना लंड आंटी की चूत पर रख दिया धीरे धीरे चूत में डालने लगा आंटी को दर्द हुआ, आवाज़ निकाल रही थी आह आआहह अहह ओहो होहह्हूऊऊ मैने ५-६ धक्के में लंड को अन्दर कर दिया और धक्के मारने लगा, पहले धीरे धीरे फिर तेज़ और तेज़ और फिर खूब जोर जोर से धक्के मारने लगा आंटी एक दम नशे में थी बोली एतनी अच्छी चुदाई कैसे कर लेते हो मेरे पति तो कभी करते नहीं जब करते भी हैं तो उनका लंड इतना छोटा है कि मेरी चूत में जाता ही नहीं।
मैं धक्के मारता जा रहा था आंटी बोली पहली बार तो ऐसे ही जल्दी जल्दी चोद दिया है, अब भरपूर मजा दुंगी तुमको कि तुम मस्त हो जाओगे। मैं आंटी को चोदता रहा फिर लंड को चूत से बाहर निकाल कर चूत को देखने लगा और सहलाने लगा, आंटी बोली पहली बार चूत देख रहे हो, मैने कहा हाँ आज़ मैने चूत देखी पहले फोटो देखता था आज़ सामने है आप की चूत तो बहुत रसीली है बहुत रस निकल रहा है, वो बोली जब से तुम्हारा लंड देखा है तभी से पानी निकल रहा है और मेरा मन कर रहा था के झट से पकड़ कर मुँह में डाल लूं और सारा रस पी जाऊं। आंटी बोली कि इस बार चोद दो फिर तुम मेरी चूत चाटना। मैं तुम्हारा मोटा लंड पीउंगी।
मैने आंटी की चूत से थोड़ा सा रस निकाल कर अपनी लंड पर लगाया और फिर चूत में डाल दिया आंटी आआहह्ह ऊह्ह करती रही मैने स्पीड तेज़ कर दी और तेज़ कर खूब तेज़ कर दी आंटी के ऊपर लेटा रहा और आंटी को झड़ने लगी थी तभी आंटी बोली स्पीड और तेज़ करो मैं झड़ने वाली हूं, मेरी चूत का रस निकलने वाला है। मैने स्पीड और तेज़ कर दी तभी आंटी ने मुझे कस के पकड़ लिया। मैने भी आंटी को कस के पकड़ लिया दोनो झड़ गये थे। मेरे लंड का रस आंटी की चूत में गिर रहा था मुझे बहुत मजा आया। Sex Stories
एक बार मैं फिर हाजिर हूँ Antarvasna Stories अपनी एक नई कहानी लेकर। दरअसल मैं जिस कंपनी के लिए काम करता हूँ वो एक प्रोफेशनल जिगोलो और एस्कोर्ट सुविधा देने वाली कंपनी है।
एक बार मेरे ऑफिस से फोन आया कि ग्रेटर कैलाश की एक महिला को चुदाई की सर्विस देनी है जिसके लिए मुझे शाम के छः बजे जाना था। हालाँकि मैं एक दिन पहले ही गोवा से बंगलोर ट्रेन सर्विस देकर आया था लेकिन यह असाइनमेंट मैं नहीं छोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि यह ग्रेटर-कैलाश का था और हाई-प्रोफाइल को सर्विस देने का मजा ही कुछ और है। यही सोच कर मैंने हामी भर दी।
ठीक समय पर पहुँच कर घंटी बजाई तो सामने एक 38-40 साल की महिला ने मेरा स्वागत किया। देखने में ठीक-ठाक ही थी, चूचियाँ भी तनी थी लेकिन उम्र का तकाजा था, जिसे वो वह चाहकर भी छुपा नहीं सकती थी।
खैर मैं अंदर दाखिल हुआ, घर देख कर ही पता चल गया कि महिला ने भले ही चुदवाने के लिए मुझे बुलाया है लेकिन ठाट-बाट सब अमीरों वाले हैं। थोड़ी देर इधर उधर के बातों में उसने अपना नाम चंदा बताया। वो एक विधवा है और उसके पति को गुजरे हुए तक़रीबन दस साल हो गए हैं तब से आज तक वो प्यासी है, जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो आज उसने हमारी सर्विस का याद किया। हमारी सर्विस का पता अक्सर किटी पार्टियो में एक से दूसरे तक पहुँच जाता है।
थोड़ी देर बात करने के बाद उसने पूछा- क्या पियोगे?
और मैंने भी हमेशा की तरह बोल दिया- आप जो लेंगी, वही मैं भी ले लूँगा।
आंटी दो ग्लास में विस्की लेकर आई जिसे हम धीरे धीरे पीने लगे और इसी बीच उन्होंने बताया कि उनकी एक 18 साल की बेटी है जो होस्टल मैं रह कर बी ए कर रही है और अक्सर छुट्टी में ही घर आती है। उनका कोई भी रिश्तेदार दिल्ली में नहीं है। कभी साल में एक आध बार कोई आ गया तो ठीक, वरना वो अकेली ही रहती हैं।
फिर मैंने ही शुरु किया क्योंकि मैं तो एक असाइनमेंट पूरा करने आया था।
विस्की पीते हुए मैंने चंदा को अपनी तरफ खींचा तो वो बिना किसी विरोध के मेरे करीब आ गई। फिर मैं अपनी ड्रिंक का ग्लास वहीं मेज़ पर रख कर चंदा के गुलाबी होंठ पीने लगा। मेरे हाथ अपना करतब दिखाते हुए उसकी चूचियों को मसल रहे थे। कभी चंदा मेरा होंठ पीती तो कभी मैं उसके होंठ पीता। इस तरह लगभग एक घंटा तक हम एक दूसरे से चिपक कर चूमा-चाटी करते रहे।
फिर मैं अपने कपड़े उतार कर केवल चड्डी में आ गया। मेरा ७ इंच का लंड काले नाग की तरह उछल रहा था। फिर मैंने चंदा के टॉप को उससे अलग किया तो मैं देखता रह गया क्योंकि काली ब्रा में उसकी गोरी गोरी चूचियों का कुछ अलग ही सौंदर्य था जिसे मैं देखता ही रह गया।
यह देख कर चंदा बोली- क्या देख रहे हो राजा! अब तो ये तुम्हारे हैं!
और वो हंस दी।
मैं साथ ही बोल पड़ा- रानी तुम्हारी चूचियों को देख कर तो साली किसी की भी नियत डोल जायेगी।
फिर उसे झुका कर अपने लंड को चुसाने लगा। वो एक तजुरबेकार की तरह जीभ से चाट चाट कर अलग ही मजा देने लगी। फिर 69 के पोज में आने के लिए मैंने उसे बोला तो उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उसने तुरंत अपनी जींस को अलग कर डाला। अब वो भी चड्डी में थी और मैं भी। पहले तो फिर हम एक दूसरे की बाजुओं में काफी देर तक चूमते रहे, फिर मैंने उसे 69 पोजिशन में लाते हुए चड्डी से मुक्त कर दिया, उसने भी मुझे चड्डी-मुक्त कर दिया।
अब 69 पोजिशन में वो मेरा लंड चूस रही थी और मैं जीभ उसके चूत की शिश्निका को छेड़ रहा था। वो थोड़ी ही देर में झड़ गई तो मुझे थोड़ी बुरा सा जरुर लगा। फिर भी वो बोली- एक पग विस्की के बाद फिर उसमें वही जोश होगा और सच मुच ऐसा ही हुआ। वो फिर तैयार थी, बल्कि पहले से ज्यादा जोश उसमें आ गया था, मुझे भी संतुष्टि हुई कि अब ये साली ज्यादा मजा और माल देगी। थोड़ी देर तक चूमा-चाटी के बाद मैंने सीधे उसकी चूत को अपने लंड से खोलने का मन बना लिया, साथ ही उसकी चूत पर अपने लंड को रगड़ते हुए एकदम जोर से उसकी बुर में पेल दिया। चंदा शायद मेरे हमले को तैयार नहीं थी और उसके मुंह से निकल गई- अह्ह ………….अह्ह! प्लीज धीरे धीरे चोदो! दर्द हो रहा है!
लेकिन मेरे ऊपर इसका कोई प्रभाव न देखकर बोली- साले चूतिये! आराम से पेल! नहीं तो मेरी चूत फट जायेगी!
तो मैं थोड़ा धीमा हुआ लेकिन चोदना चालू रखा। वो भी अब सामान्य हो गई थी और अपनी कमर को उछाल-उछाल कर चुदा रही थी। यह मस्ती दो घंटे तक चली। उसके बाद उसका बदन अकड़ने लगा तो मैं समझ गया कि अब यह झड़ने वाली है। फिर मैंने अपनी गति बढ़ा दी। हम दोनों एक साथ झड़ गए, उसकी चूत की कटोरी मेरे वीर्य से लबालब हो गई।
दस मिनट तक हम एक दूसरे से चिपके रहे, उसके बाद अलग हुए तो चंदा बोली- बाथ लेने जा रही हूँ!
तो मैं बोला- मैं भी बाथ लूँगा!
इतना सुन के वो खुश हो गई और बोली- तब तो और मजा आयेगा।
हम दोनों नंगे ही बाथरूम में घुस गए और शॉवर के नीचे एक दूसरे से चिपक गए। वो मेरे शरीर में साबुन लगा रही थी और मैं उसके शरीर में!
थोड़ी देर में ही मेरा लंड फिर अपने विकराल रूप में आ गया। जिसे देख कर वो और खुश हो गई और होंठ लगा पर चूसने लगी- बिल्कुल जैसे छोटा बच्चा लॉलीपोप चूसता है।
उसने फिर चुदाई की मांग कर दी तो मैं बोला- इस बार तुम्हारी गांड में पेलना है!
वो थोड़ा डरने लगी।
फिर मैंने उसे समझाया- थोड़ा सा मुंडी घुसने के वक्त दर्द होगा फिर उसके बाद मजा ही मजा है!
थोड़ी ना-नुकुर के बाद वो तैयार हो गई। मैंने अपने लंड पर साबुन का झाग लगाया जिससे चंदा को दर्द काम हो।
बाथरूम में उसे कुतिया की तरह झुका कर उसकी गांड में पेलना चालू किया।
जैसे ही थोड़ा सा घुसा, वो दर्द से चिल्लाने लगी और गालियां देने लगी, साथ ही आगे बढ़ना चाहा, लेकिन मैंने उसकी कमर को पकड़ कर जोर का झटका मारा जिससे पूरा का पूरा लंड चंदा की गांड में था। बदले में था- वोह… वोह वो माँ …साले ने मेरी गांड फा दी… अबे साले बाहर निकाल… वोह वोह… चूतिये बाहर निकल! नहीं तो मेरी गांड फट जायेगी।
लेकिन सब सुन कर भी मैंने झटके धीरे धीरे चालू रखे।
थोड़ी देर चोदने के बाद वो सामान्य हो गई और मजे लेने लगी।
एक घंटे तक हमारा यह चुदाई का प्रोग्राम फिर चला, तब जाकर मैं भी झड़ गया।
चलने के वक्त एक दूसरे को चूम कर चल दिया इस वादे के साथ कि चंदा जब चुदने को बुलाएगी मैं हाजिर हो जाऊंगा।
यह थी चंदा की चुदाई!
लेकिन अभी तो उसकी मस्त माल बेटी जिसका नाम छवि है को चोदना बाकी है, शायद मेरी आने वाली कहानी में चुद जायेगी।
कृपया अपना राय और सुझाव जरूर भेजें। Antarvasna Stories
मेरा नाम सोनू है। मेरी उम्र छब्बीस Indian Sex Stories वर्ष है। मै यहां के अस्पताल में नर्स हूं। मेरी शादी हो चुकी है। मेरे पति भी सरकारी नौकरी में हैं। यू तो हमारी एक अच्छी निश्चिन्त जिन्दगी है। एक सुखी परिवार है। लेकिन मन का क्या करे वो तो चन्चल है, कभी न कभी भटक ही जाता है, कही भी फ़िसल जाता है।
अस्पताल में मेरे साथ एक कम्पाउन्डर रमेश काम करता है। देखने में सुन्दर है, हंसमुख है, कभी कभी तीखे सेक्सी मजाक भी करता है जिससे दिल में मीठी सी गुदगुदी भी होने लगती है और मै उसकी और बरबस ही खिन्च जाती हूं। रमेश दिल ही दिल में सब समझता था। मुझे अकेले में कभी कभी छेड़ता भी था। उसे मालूम था कि मैं कुछ नही कहूंगी। मैं मन से तो चाह्ती थी कि मुझे छेड़े… मेरा हाथ पकड़ ले। इस्के लिये मुझे ज्यादा इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। क्योंकि जब दोनो तरफ़ आग बराबर हो तो दिल मिल ही जाते हैं।
मैं स्टोर में मेडीसिन लेने गई तो वहां पर रमेश कुछ काम कर रहा था। मैंने उसे मेडीसिन की लिस्ट दे दी। उसने सारी दवाईयाँ निकाल दी और एक पेकेट बना कर मुझे दे दिया। मैं जैसे ही मुड़ी रमेश ने मेरा हाथ पकड़ लिया। मुझे पता था कि रमेश अकेला पा कर कुछ तो करेगा ही। मैंने भी आज दिल मजबूत कर लिया। मैंने भी अपना हाथ नही छुड़ाया। मैंने पीछे मुड़ कर उसे देखा … वो एकटक मुझे निहार रहा था। मैंने शरम से अपना सर झुका लिया। हां… पर हाथ नहीं छुड़ाया। मैंने मुस्करा कर तिरछी निगाहों से उसे देखा।
रमेश ने तीर छोड़ा -‘मेडम… हंसी तो फंसी …’
‘मैं कहां फंसी … फ़से तो तुम हो…’ मैंने भी तीर छोड़ा।
‘मेडम … एक बात कहूं … मैं तो मर गया… खास कर आपकी मुसकराहट पर…’ उसने अपनी तरफ़ हाथ पकड़ कर खीन्चा । मै जान कर के रमेश से टकरा गयी।
‘हाय … दूर रहो…’ मैंने रमेश को प्यार से धकेल दिया और अपने को छुड़ा लिया।
मैं मुसकराती हुयी बाहर चली आयी। मुझे लगा आज काम फ़िट हो गया। मुझे उसके हाथों का स्पर्श अभी भी महसूस हो रह था। दिल में एक गुदगुदी सी उठ रही थी। मेरे जिस्म में वासना जागने लगी। मेरा दिल अब उस से अकेले में मिलने को आतुर हो उठा।
मेरे दिल में खलबली हो रही थी। दवाईयां मैंने वार्ड में आकर डाक्टर को दे दिया। वहां से मैं डाक्टर के रेस्ट रूम में चली आयी।
इतने में रमेश भी पीछे आ गया। मैं समझ गयी थी कि रमेश की तेज निगाहों ने मुझे यहां आते हुए देख लिया था। आते ही उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच लिया। मैं जान कर के उससे चिपक गयी। उसने धीरे से अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये। मुझे एक गहरा किस किया। मेरा पल्लू नीचे गिर गया, उसने मेरी चूचियां दबा डाली, मेरे ब्लाउज के बटन खोल दिये और एक हाथ मेरी ब्रा में डाल दिया और मेरे चूंचक को हाथ में लेकर मलने लगा।
‘आऽऽऽह रमेश …प्लीज़ अभी नहीं…’ वो समझ गया। मैंने अपनी साड़ी और ब्लाउज़ ठीक किया और उसकी तरफ़ मुस्करा कर देखा। उसे छेड़ते हुए बोली,’कर दी ना गड़बड़ …… ‘
‘सुनो सोनू … कल पिक्चर देखने चले …’
‘कब… सवेरे दस बजे के शो में…’
‘ हां… कल सवेरे नौ बजे मैं आपको पिक कर लूंगा…’ मैं उसका मतलब समझ रही थी। वो पिक्चर हाल में मुझे दबायेगा… मेरे अंगों से खेलेगा। मेरा मन भी भटकने लगा। मेरी आंखो दे सामने सारा नजार घूमने लगा। मेरा मन तड़प उठा।
सवेरे मैंने घर का काम निपटा लिया। अब मैं तैयार होने लगी… मैंने जान करके ब्रा और पेंटी नहीं पहनी। पर एक शाल ले लिया। मैं रमेश का इन्तज़ार करने लगी। वो ठीक नौ बजे अपनी मोटर बाईक लेकर आ गया। हम लोग पहले एक अच्छे रेस्टोरेन्ट में गये। वहां हमने चाय नाश्ता किया, फ़िर सोचा कि कौन सी पिक्चर देखी जाये। यह निश्चित करके हम दोनों एक हाल में चले गये। हाल लगभग खाली था।
दस बजे फ़िल्म शुरू हो गयी। फ़िल्म क्या शुरू हुई रमेश भी शुरू हो गया। चूंकि हमारे आसपास की सीटें खाली पड़ी थी इसलिये कोई देख लेने का खतरा भी नही था। उसने मेरे ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। मैंने सुरक्षा को नजर में रखते हुए शाल अपने पर डाल लिया। रमेश ने मेरी चूंचियों को पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगा। मैंने अपना एक हाथ उसके कन्धे पर रख दिया।
वो अब खुल कर मेरी चूंचियां मसल रहा था, कभी कभी वो मेरे चूंचक को खींच देता था। मैं मस्ती में धीमी आहें भर रही थी। अब रमेश ने नीचे से मेरा पेटीकोट उठा लिया। उसके हाथ मेरी जांघों से फ़िसलते हुये मेरी चूत से जा टकराये। मैंने थोड़ा नीचे सरक कर चूत आगे को निकाल दी।
अब मैंने भी अपना हाथ उसके लन्ड पर रख दिया और दबाने लगी। मैंने पेन्ट की ज़िप खोली ……उसने भी मेरी तरह अन्दर अन्डरवियर नहीं पहनी थी। मैंने उसका लन्ड खींच कर बाहर निकाल लिया। मैं भी अब उसका लन्ड सहलाने लगी। उसका सुपाड़ा निकाला और पूरा लन्ड हिलाने लगी। पर मेरी हालत उत्तेज़ना से खराब होने लगी थी।
उसने मेरी चूत में उन्गली घुसा दी थी। मेरे दाने को भी सहला रहा था। जोश में मैं भी उसके लन्ड का मुठ मारने लगी। वो अपना चेहरा मेरे गालों से रगड़ने लगा और उसके मुख से तेज सिसकारी निकल रही थी। उसके बदन में अचानक ऐंठन होने लगी। मैंने मुठ मारने की रफ़्तार और तेज कर दी। तभी रमेश ने अपना रूमाल निकाला और अपने लन्ड पर लगा लिया। वो चरमसीमा पर पहुंच चुका था। तभी उसका वीर्य निकल पड़ा। मैंने तुरन्त ही उसका लन्ड रूमाल से पोंछ दिया। रूमाल पूरा गीला हो गया था… मैंने उसका लन्ड अब छोड़ दिया था।
मैंने अपनी चूत को देखा…रमेश अभी भी तेजी से उन्गली अन्दर बाहर कर रहा था… साथ में दाना भी रगड़ खा रहा था। अब मैं भी नीचे से चूत उठा कर उसकी सहायता कर रही थी। और …और …हाय मैं भी कहां तक रोक पाती… अन्तत: मैं भी झड़ने लगी। मैं चुपचाप उत्तेजना सहती रही और झड़ती रही। फिर सीट पर ठीक से साड़ी करके बैठ गयी। अपने ब्लाउज के बटन ठीक से लगाये और हम सीट पर आराम से बैठ गये। हमारा काम हो गया था… इसलिये हम सिनेमा हाल से बाहर आ गए। हम दोनो एक दूसरे को देख कर मुस्करा रहे थे…जैसे कोई किला फ़तह कर लिया हो।
‘सोनू… मजा आया ना…’ मैं शरमा गयी।
‘चुप रहो…अब…’ मेरी नजरे अब भी झुकी जा रही थी।
हम सिनेमा हाल से सीधे अस्पताल आ गये… और अपनी ड्यूटी जोईन कर ली। हम दोनों ने रात की ड्यूटी ले ली। रमेश मुझे वापस घर छोड़ कर चला गया।
मुझे शाम का बेकरारी से इन्तेज़ार होने लगा। मेरे शरीर में रह रह कर वासना और उत्तेजना की लहर दौड़ जाती थी। मुझे उत्तेजना के कारण बार बार अंगड़ाई भी आ रही थी। एक एक पल घण्टों के समान लग रहा था।
समय होने पर मैंने घर के बाहर से टूसीटर लिया और अस्पताल आ गयी। अन्दर आते ही मेरी नज़रे रमेश को ढूंढने लगी। उसे देखते ही मेरी जान में जान आयी। मेरे शरीर में तरावट आने लगी। मेरी चूंचियां कसने लगी, चूत में खुजली होने लगी। मुझे लग रहा था कि आज में किसी तरह से चुदा लूं बस।
रमेश डाक्टर साहब से कुछ परामर्श कर रहा था। मैंने अपना समान रेस्ट रूम में रखा और अस्पताल की यूनिफ़ार्म पहन ली। पर हां मैंने फिर अपनी ब्रा और पेन्टी नही पहनी। मुझे नहीं मालूम था कि ऐसा करने से मेरे चूतड़ और बोबे की लचक अधिक नजर आयेगी। डाक्टर साहब रमेश को कुछ समझा कर बाहर निकल गये। रमेश मेरे चूतड़ों की लचक देख रहा था… मेरी चूंचियां भी बिना ब्रा के हिल रही थी। मैं जान कर रेस्ट रूम में आ गयी… रमेश भी वहीं आ गया। रमेश ने मुझे बताया कि डाक्टर साहब को किसी पार्टी में जाना है सो वो अब रात को नहीं आयेंगे ।
रात के ग्यारह बज रहे थे हमने सब ठीक से चेक कर लिया कि सारे मरीज आराम से हैं । तब मैं रेस्ट रूम में सुस्ताने आ गयी। रमेश ने भी अपना काम निपटा लिया और वहीं रेस्ट रूम में आ गया। उसे देखते ही मेरा शरीर कसमसाने लगा। रमेश ने मुझे आंख मारी …… मैं शरमा गयी।
उसने मुझे गले लगाते हुये और मेरे शरीर को अपने शरीर से चिपकाते हुए शरारत से कहा,’ सोनू जी…आंख मारी है अभी … और तो कुछ नहीं मारी ना…बस शरमा गयी…?’
‘और क्या मारोगे…?’ मैं शरमाते हुए बोली। उसके होंट मेरे कांपते होटों से मिल गये। मेरे सफ़ेद ब्लाउज़ के बटन एक एक कर खोलने लगा। मेरा बदन कांपने लगा… मुझे पता चल गया था कि अब थोड़ी देर में मेरी चुदाई हो जायेगी। मेरे नंगे उरोज पर उसके हाथ पहुंच गये थे। मेरे भारी और बड़ी चूंचियों को उसने अपने हाथों में भर ली।
मैं थोड़ा सा कसमसाई, पर उससे दूर नहीं हटी। उसने मुझे कस कर चिपका रखा था। मेरे शरीर में वासना उठने लगी, मेरे शरीर में सनसनाहट होने लगी। मैं रमेश से चिपकने लगी। उसका लन्ड धीरे धीरे खड़ा होने लगा और मेरी चूत के आसपास गड़ने लगा। मैं उसके लन्ड के टकराने के अहसास से ही आनन्द से भर उठी। मैंने भी अपनी चूत को उससे और चिपका दी। उसने मेरे दोनों बोबे को दोनों हाथों में भर लिया और मसलने लगा। मैं अपने होंठ उसके होंठों से रगड़े जा रही थी।
तभी रूम की बेल बजी। रमेश अलग हो गया। मैंने उसे देखा तो हंस पड़ी… उसका हाल बेहाल हो रहा था… उसका लन्ड फ़ूल कर पैन्ट में जोर मार रहा था। रमेश ने कहा,’मैं जरा देख कर आता हूं…’
मैंने दोनों हाथों को उठा कर एक भरपूर अंगड़ाई ली और बिस्तर पर लेट गयी। मैं अपनी चूंचियों से खेलने लगी। नोकों को उन्गलियों से गोल गोल मसलने लगी। फिर उल्टी लेट कर तकिये को दबाने लगी। तभी रेस्ट रूम का दरवाजा रमेश ने अन्दर से बन्द कर दिया। मैं आंखे बन्द करके उसका इन्तज़ार करने लगी। रमेश ने इत्मिनान से अपना पैन्ट खोला और फिर अन्डरवियर भी उतार दी, अन्त में फिर बनियान भी उतार दी। मेरे बिस्तर पर नज़दीक आ कर बोला,’सुनो जी…… तैयार हो…।’
मैंने शरमा कर तकिये में चेहरा छिपा लिया। उसने मेरी सफ़ेद साड़ी और पेटीकोट खोल कर अलग कर दिया। फिर खुले हुए ब्लाउज़ को प्यार से उतार दिया। मैंने अपना चेहरा अभी भी शरम से छिपा रखा था। अब मैं पूरी नंगी थी और रमेश भी पूरा नंगा था। वो धीरे से मेरी पीठ पर लेट गया। उसका भार मेरे ऊपर बढ गया। उसका कड़क लन्ड मेरी चूतड़ों पर रेन्गने लगा। शायद दरारों में छिपने की कोशिश कर रहा था। अन्तत: उसका लन्ड मेरी चूतड़ की दरार में घुस पड़ा।
‘हाय…क्या कर रहे हो…?’
‘उस समय आंख मारी थी… अब गान्ड मारूंगा… क्यों ठीक है ना…’
‘हाय… मेरे राजा… कुछ भी करो…बस मुझे रगड़ दो…।’ मैं वासना के नशे में बेशरम होती जा रही थी। मेरे पति भी मेरी गान्ड जम कर मारते थे… उन्हे तो पूरी संतुष्टी मिलती ही इससे थी। मेरी गान्ड इस काम के लिये पूरी अभ्यस्त थी। मेरी गान्ड का छेद भी खुला हुआ था। रमेश का कड़कड़ाता हुआ लन्ड मेरे गान्ड के छेद की खोज में था। आखिर में लन्ड छेद ढूढने में सफ़ल हो गया। रमेश की कमर थोड़ी सी उठी और उसने अपने लन्ड पर जोर लगा दिया। उसका मोटा और कड़ा लन्ड अपनी पूरी कड़ायी के साथ छेद में घुस पड़ा। मेरे मुंह से सीत्कार निकल पड़ी।
‘पहली बार गान्ड मरा रही हो ना… तकलीफ़ तो होगी मेरी जान…’ रमेश ने अपनी पन्डिताई झाड़ी।
‘ मांऽऽ…रीऽऽऽ… रमेश… घुसेड़ दो पूरा…’ मैं तड़प उठी।
उसने जोर लगा कर अपना पूरा लन्ड ही अन्दर घुसेड़ दिया। पूरा घुसते ही मुझे चैन आया…… मुझे पता चल गया कि शरीफ़ सा दिखने वाला रमेश कितना चालू है। इतने सलीके से तो कोई एक्स्पर्ट ही गान्ड मार सकता है। उसने हौले हौले धक्के मारने शुरु कर दिये। फिर वो तेज करता गया। मात्र हल्की सी तकलीफ़ हुई। मैंने अपनी पांव और चूतड़ और फ़ैला दिये। उसे और गान्ड मारने की सहूलियत दे दी। अब वह अपनी कोहनी और घुटनों के बल पर आ गया था।
उसका शरीर मेरे शरीर से फ़्री हो चुका था। अब उसका लन्ड फ़्री स्टाईल में मेरी गान्ड चोद रहा था। मैं भी अब अपनी गान्ड को उछाल उछाल कर उसका साथ दे रही थी। उसके मुंह से तेज सिस्कारियां निकल रही थी। मैं इतमिनान से तकिये पर अपना सर रखे आंखे बन्द करके गान्ड चुदाई का आनन्द ले रही थी। रमेश ने मेरे सर के नीचे से तकिया हटाया और मेरी चूत के नीचे रख कर मेरी गान्ड और ऊपर उठा दी। मेरी चूत अब उसे दिखने लग गयी थी…
उसने अपना लन्ड मेरी गान्ड से निकाला और मेरी पनीली चूत पर रख दिया। थोड़ा सा उसने लन्ड को चूत पर घिसा और चूत के अन्दर घुसा दिया। मेरे मुँह से आनन्द की सिसकारी निकल पड़ी। उसने मेरी गान्ड थपथपाई और घोड़ी बनने का इशारा किया। मैंने धीरे से गान्ड ऊंची की और घोड़ी बन गयी, पर लन्ड को बाहर नहीं निकलने दिया। अब उसका लन्ड मेरी चूत में पूरा घुस गया।
मेरे मुख से हाय निकल पड़ी। उसका मोटा लन्ड अब तेजी पकड़ रहा था। उसकी चमड़ी का घर्षण मेरी चूत की दीवारों पर बहुत उत्तेजना दे रहा था। मीठी मीठी सी गुदगदी तेज लग रही थी। मैं मदहोश होती जा रही थी। रह रह कर मेरा शरीर कांप उठता था। मुझे सुख की अनुभूति स्वर्ग का अनुभव करा रही थी।
अचानक रमेश के धक्के तेज होने लगे… उसकी सिस्कारियां बढने लगी। मैं समझ रही थी कि उसका वीर्य स्खलित होने वाला है। मुझे उससे पहले झड़ना था। मैंने अपने पांव अन्दर दबाते हुये अपनी चूत को टाईट कर ली, जिससे लन्ड का घर्षण तेज हो गया और मेरा पानी छूटने लगा। मैं आहिस्ता आहिस्ता झड़ने लगी।
पर इसका असर ये भी हुआ कि उसके लन्ड ने भी अपना लावा उगल दिया। उसका लन्ड टाईट चूत नही झेल पाया। उसकी पिचकारी निकल पड़ी…और उसका वीर्य मेरी चूत में भरने लगा। मैं भी पूरी झड़ चुकी थी। मैं निढाल हो कर बिस्तर पर ही लेट गयी। पर रमेश उठा और तौलिया लेकर मेरी चूत के नीचे रख दिया। वीर्य रिस रिस कर तोलिये पर गिरता रहा… मैं भी उठ कर बैठ गयी। मैंने रमेश को पास आने का ईशारा किया… उसे मैंने अपनी तरफ़ खींच कर गले से लगा लिया…
‘थैन्क यू… रमेश… आज तुमने मुझे अच्छी तरह से संतुष्ठ कर दिया…’
‘अभी कहां… अभी तो शुरूआत है… अभी मेरा कमाल तुमने देखा कहां है…’
‘ ये तो साधारण सी चुदाई थी… अभी तो तुम्हे खड़े खड़े चोदना है… फिर नहाते हुए चोदना है… और…’
‘अरे… अरे… बस बस… चुदेगी तो मेरी चूत ही ना…।’
हम दोनो हंस पड़े… और हम कपड़े पहनने लगे…
मैंने रमेश से धीरे से पूछा,’ रमेश… कल का क्या…’
रमेश उत्साहित होत हुआ बोला,’ आज … क्या बस इतना ही… अभी तो पूरी रात बाकी है…’
‘धत्त… हटो … इतना क्या कम है …’
मैं एक बार फिर रमेश से लिपट पड़ी… Indian Sex Stories
मैं, मेरी बीवी और मेरा छोटा Sex Stories सा करीम पाँच साल का, हम तीन लोग हमारे घर में, घर कानपुर के तल्सोयी मोहल्ले में और उसी मोहल्ले में मेरी सालीजान निकाह कर आई। अब साली और बीवी दोनों अच्छी तरह कभी उसके घर कभी हमारे घर गपशप करतीं। हाँ, मैं भी कभी कभार बात कर लिया करता!
एक दिन साली ‘फरेज़’ आई, उस समय मैं अकेला घर पर था, बीवी ‘तारेज़’ बच्चे को स्कूल ले गई थी।
फरेज़ ने मुझसे बोला- जीजू, ये चार दिनों के लिए बाहर जा रहें हैं, मैं यहाँ रह सकती हूँ क्या?
मेरे मन में कुछ भी ख़राब नहीं था, मैंने कह दिया- तेरा घर है! बस गैस की टंकी और सब्जी-भाजी का खर्चा तेरे मियाँ से ले लूँगा या वो मुझे एक दिन ‘ग्रीन लेबल’ पिला दे!
तो फरेज़ बोली- वो तो दारू-शारू छूते भी नहीं हैं! मुझसे ही ले लेना आप!
और मुँह बना कर घर के अन्दर आ गई।
मैं फिर अपने काम में लग गया, तारेज़ आई, उसे सब बताया गया।
उसने मुझसे पूछा- क्यों जी! मेरी बहन से तुम दारु पीना चाहते हो या कोई और इरादा है?
मैंने कहा- क्या फ़िज़ूल की बात करती हो? तुझे मालूम है मैं इन बातों से दूर रहता हूँ!
मेरी बीवी यह सोचती थी कि मैं उसके साथ कुछ ज्यादा करता नहीं हूँ तो मैं वो हूँ! पर बात ऐसी है कि मेरी बीवी को मैं कितना भी करूँ, मुझे कोई मजा ही नहीं आता।
दूसरे ही दिन से मेरी परीक्षा चालू हो गई जिसमें मेरा पास होना जरूरी था।
मैं सब समझ गया था!
हुआ यूँ ..
तारेज़ रोज़ की तरह हमारे छत वाले बिना कुण्डी के बाथरूम में नहा रही थी, तभी फरेज़ मेरे पास बोली- जीजू, मेरे लिए शम्पू लेकर आओ, मुझे नहाना है।
मैंने कहा- तू कहाँ नहाएगी? अभी तेरी जीजी तो नहा ले!
उसने कहा- मैं आपके बाथरूम में नहा लूंगी!
मैंने कहा- उसमें तो दरवाजा नहीं है! सिर्फ परदे से काम चलाना पड़ेगा!
उसने कहा- आप तो बस शैम्पू ले आओ!
मेरा क्या! मैं शैम्पू लेने नीचे दुकान पर गया, शैम्पू ख़रीदा और लौट कर देखा कि मेरी साली फरेज़ तो पर्दा लगाकर नहाने लगी थी। अंदर बल्ब जलने के कारण उसका छरहरा बदन साफ दिख रहा था। उसने सब कुछ उतार दिया था।
मेरी इच्छा हुई कि अंदर चला जाऊँ क्योंकि पिछले तीन महीनों से कुछ भी नहीं किया था। पर मैं सिर्फ देखता रहा।
थोड़ी देर में मैंने कहा- फरेज़, मैं शैम्पू ले आया हूँ! तुम्हें चाहिए क्या?
फरेज़ बोली- जीजू, अंदर फेंक दो!
मैंने अंदर फेंका पर बाथरूम की रेक पर जा गिरा।
फरेज़ बोली- जीजू अब क्या करूँ? वो तो ऊपर चला गया है! एक काम करो आप उसे उतार दो!
मैं इसी बात का इंतज़ार तो कर रहा था, मैं अंदर गया और बिना कुछ देखे मैंने शैम्पू उतार दिया और जब मैं शैम्पू उसके हाथ में रख रहा था तो उसने सिर्फ एक तौलिया लपेटा था ऊपर से नीचे तक!
मैंने कहा- तू तो बहुत सुंदर दिखती है अंदर से! तेरे मियाँ को तो बहुत मजा आता होगा!
उसने शरमा कर कहा- कहाँ! उनके पास मुझे देखने का समय नहीं है!
मैंने कहा- तो मेरे पास समय है ना! मैं पूरा देख सकता हूँ!
फ़रेज़ शरमा गई और मुझे बाहर धक्का दे दिया। मेरा सामान बहुत दिनों बाद एकदम कड़क हो गया था, अब मेरे पास मुठ मारने के अलावा कोई हल नहीं था।
रात को तारेज़, फरेज़ एक ही बिस्तर में सोई और मैं और बच्चा एक बिस्तर में!
मुझे नींद नहीं आ रही थी, मेरी बीवी बहुत गहरी नींद सोती है, उसके सोते समय मैंने उसे कई बार चोदा है, उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। मैंने सोच लिया कि फरेज़ को चोदूँगा।
मैंने धीरे से तारेज़ को उठाने की कोशिश की, मैंने कहा- करीम बार बार उठ रहा है! तू उसके पास सो जा!
तारेज़ नींद में उठ कर करीम के पास आकर सो गई और खुर्राटे मारने लगी। एक नशे की दवा मैंने एक कपड़े में मसल के फरेज़ को सुंघा दी और मैं बेफिक्र हो गया। मैंने फरेज़ को बाँहों में भरा और हाथों से उठा कर छत पर ले गया। वहाँ उसके पूरे कपड़े उतार कर देखा!
दूध तो माशा! अपने मुँह से इतने पिए कि दोनों दूध लाल हो गये, कमर चूसी, इतनी चूसी कि दांत के निशान बन गए और अपने साढ़े सात इन्च के लण्ड को उसकी गुलाबी चूत में डाल दिया।
तब फरेज़ ने थोड़ी उम-अहा की। पर उसे कहाँ पता चलने वाला था! आधे घंटे तक चोदने के बाद मैंने उसे जैसे के तैसे कपड़े पहना कर जहाँ के तहाँ सुला दिया और मैं अपनी संतुष्टि की नींद छत पर लेता रहा।
सुबह मैंने देखा कि फरेज़ जब उठी तो उसका रवैया बदला नहीं पर मेरी तरफ देखकर हंसी।
मैंने उससे पूछा- कैसी तबीयत है? कैसा लग रहा है?
उसने कहा- जीजू मेरी तबियत को क्या हुआ! और हाँ जीजू! ये परसों आ जायेंगे!
कह कर चली गई।
मैंने बिल्कुल पिछली रात की तरह तीनों रात किया।
चौथे दिन तारेज़ ने सुबह मुझसे बोला- साहब, करीम तो रोज़ अच्छा सोता है, तुम मुझे उठाते हो! मैं समझती नहीं हूँ क्या?
कल रात मैंने सब देख लिया- तुम फरेज़ को नशा देकर चोदते हो! अरे मुझसे बोल देते! मैं बिना नशे के चुदवा देती! कोई बात नहीं! फ़रेज़ को भी पता है!
कह कर फरेज़ के मियाँ के आ जाने पर वो अपने घर चली गई और तारेज़ उस दिन से रोज और फ़रेज़ भी कभी-कभी मुझसे चुदवाने लगी। Sex Stories
दोस्तों मैं अन्तर्वासना का Antarvasna Sex Stories एक नियमित पाठक हूँ। मैं इसकी सारी कहानियाँ बहुत मज़े से पढता हूँ। आज मेरे दिल में भी यह ख्याल आया कि मैं भी अपनी कहानी आप लोगों के समक्ष पेश करुँ। मेरा मकसद सिर्फ वोट पाना नहीं है अपितु आप सब के समक्ष अपने दिल की बात व्यक्त करने का है। यह एक ऐसी कहानी है जिसे मैं सब के साथ शेयर नहीं कर सकता हूँ पर मेरी इच्छा थी कि लोग यह जाने कि इस दुनिया में हर किसी के नसीब में एक चूत होती है।
तो अब आप सबका ज्यादा समय न लेते हुए मैं अपनी कहानी आपके सामने रखना चाहता हूँ, यह कहानी सच्ची है या नहीं यह आप ही फ़ैसला करें तो बेहतर होगा।
तो कहानी शुरू होती है मेरे परिचय से:- मैं बिहार का रहने वाला एक सीधा सादा बीस साल का हट्टा कट्टा नौजवान हूँ और दिल्ली में आई आई टी से इंजीनियरिंग कर रहा हूँ। मैं द्वीतीय वर्ष का छात्र हूँ और पढ़ाई लिखाई में ठीक ठाक हूँ। बचपन से ही मैं अपनी पढ़ाई को लेकर गंभीर था सो कभी भी पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं सोचता था। मैं पुरुष और नारी सम्बन्ध के बारे में बस किताबी ज्ञान ही रखता था, हालांकि थोड़ा बहुत व्यावहारिक ज्ञान भी था मुझे पर मैं चूंकि सीधा सादा था सो मैं आज तक कुंवारा ही था पर मैंने आपको पहले ही बताया कि हर किसी के नसीब में एक चूत होती है सो आखिरकार मुझे भी एक दिन चूत मिल ही गई। हाँ दोस्तो, एक बात और जो मैं बताना भूल गया था वो यह कि मैं पियानो अच्छा बजता हूँ और इसीलिए मैं अपने कॉलेज के बैंड में पियानो बजाता हूँ और यही बात मेरे किस्मत की चाबी बनी।
दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बाद मेरे इंस्टिट्यूट में डेढ़ महीने की छुट्टी हुई और मैं अपने घर आ गया जो पटना में राजेंद्र नगर में है। अभी मुझे घर आये एक महीना ही हुआ था कि मुझे खबर आई कि मेरे इंस्टिट्यूट के बैंड का एक कंसर्ट है जो पाँच दिन के बाद होना है और मुझे तुंरत वहां पहुंचना है। अब आप तो जानते ही हैं कि दिल्ली जाने वाली ट्रेनों में कितनी भीड़ होती है सो मुझे किसी भी आम ट्रेन में रिज़र्वेशन नहीं मिल पा रहा था।
मैंने अपने बैंड के लीडर को अपनी असमर्थता बताई तो उसने कहा “भाई तेरा आना बहुत ज़रूरी है क्यूंकि अगर पियानो बजाने वाला नहीं होगा तो फिर हमारा बैंड अधूरा ही है। “
फिर मैंने तय किया कि अब मैं तत्काल में रिज़र्वेशन करा कर जाऊंगा पर अब चार दिन ही बाकी बचे थे सो तत्काल में भी वही हालत थी और मुझे कंसर्ट से एक दो दिन पहले ही पहुंचना था सो आखिरकार मैंने राजधानी एक्सप्रेस में अपना रिज़र्वेशन कराया वो भी सेकंड एसी में। मेरे जेब से पैसे लगे थे सो मैं परेशान था पर दिल में एक तसल्ली थी कि चलो सेकंड एसी में कभी गया नहीं हूँ तो अच्छा ही अनुभव रहेगा। मैं नियत दिन, नियत समय पर ट्रेन पकड़ने राजेंद्र नगर जंक्शन चला गया। ट्रेन वहां पहले से लगी होती है इसलिए मैं सीधा अपने सीट पर चला गया पर राजेंद्र नगर में ज्यादा लोग नहीं चढ़ते हैं इसलिए ज्यादा भीड़ नहीं थी।
ट्रेन अपने समय पर खुली और ट्रेन के खुलने के बाद मुझे ख्याल आया कि इतना लम्बा सफ़र कैसे कटेगा, तो मैंने सोचा कि पटना जंक्शन पर कोई नोवल खरीद लूँगा। पटना जंक्शन पर ट्रेन रुकी तो मैं ट्रेन से नीचे उतर गया और प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े एक व्हीलर के पास गया वहां पर सामने एक नोवल रखी थी जिसका नाम था फाइव पॉइंट समवन ! मैं काफ़ी दिन से वो नोवल पढ़ना चाहता था और उस नोवल का लेखक एक आईआईटीअन था इसलिए मैंने कुछ सोचे बिना वह नोवल खरीद ली।
और फिर ट्रेन खुलने से पहले मैं वापस अपने कंपार्टमेंट में पहुंचा तो देखा कि मेरे सामने वाली सीट पर एक चौबीस-पच्चीस साल की लड़की बैठी थी और वह फ़ोन पर किसी से बात कर रही थी। मैं चुप चाप आकर अपनी सीट पर बैठ गया और नोवल के पन्ने पलटने लगा और पढ़ने में तल्लीन हो गया कि अचानक उसने मुझसे पूछा- क्या आप भी दिल्ली जा रहे हो?
मैंने कहा- हाँ।
तो उसने मुझसे पूछा- क्या आप वहां जॉब करते हो?
मैंने उसे बताया- नहीं, मैं तो आई आई टी दिल्ली में पढ़ता हूँ और मेकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहा हूँ।
तो उसने बताया कि उसका भाई भी पुणे के किसी इंस्टिट्यूट से मेकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहा है और वो अभी सेकंड इयर में गया है।
मैंने उससे कहा- मैं भी सेकंड इयर में ही हूँ।
फिर उसने मुझसे पूछा- क्या तुम चेतन भगत के फैन हो?
तो मैंने कहा- नहीं मैं तो बस इसीलिए यह नोवल लेकर आया क्यूंकि चेतन भगत भी आई आई टी का ही छात्र था।
इसी तरह हमारी बात-चीत का सिलसिला चल पड़ा। पर मैंने आपको पहले ही बताया कि मैं एक निहायती शरीफ और सीधा सादा बन्दा हूँ इसीलिए मैं उसके साथ कोई काम की बात नहीं कर रहा था मेरे सवाल कुछ इस तरह के थे : आप क्या करती हो? जिसका जवाब था मैं एक आकिर्टेक्ट हूँ।
मैंने पूछा- दिल्ली में ही?
जिसका जवाब था- नहीं, मेरा पटना में ही एक ऑफिस है जहाँ मैं क्लिएंट्स के साथ डील करती हूँ।
फिर मैंने पूछा- आप दिल्ली क्यूँ जा रही हो?
जिसका जवाब था- मैं अपने दोस्तों के साथ बर्थडे मनाने जा रही हूँ और हम लोग मौज मस्ती करेंगे।
फिर मेरे इन सवालों से परेशान हो कर उसने कहा- तुम कोई काम का सवाल क्यूँ नहीं पूछ रहे हो?
मैंने कहा- मतलब?
तो उसने कहा- छोड़ो ! तुम अभी बच्चे हो।
मैंने उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम श्रेया बताया।
हम बातचीत कर ही रहे थे कि तभी हमारा खाना आ गया और मैं खाना खाने लगा। खाना खा कर मैंने अपने बर्थ पर अपना बिस्तर लगाया और सोने की कोशिश करने लगा पर हर आईआईटीअन की आदत देर तक जागने की होती है सो नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। धीरे धीरे पूरी बोगी की रोशनी बन्द हो गई और खर्राटों की आवाज़ पूरी बोगी में गूंजने लगी। अब तो सोना और भी मुश्किल हो गया। पर फिर भी मैं सोने की कोशिश करने लगा। मुझे लगा कि अब तक तो श्रेया भी सो गई होगी पर शायद मैं गलत था। अभी मुझे नींद का पहला ही झोंका आया था कि मुझे लगा कि मेरे बर्थ पर कोई और आ गया है और वो पर्दा खींच रहा है पर नींद से मेरी आँखें बोझिल थी सो मैंने कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मैंने नज़रंदाज़ कर दिया।
पर थोड़ी ही देर में मेरी आँखों से नींद गायब हो गई जब मुझे मेरे लंड पर किसी का हाथ होने का एहसास हुआ मैंने आँखें खोली तो देखा- श्रेया मेरे बगल में सोई हुई है और उसका हाथ मेरे लंड पर हरकतें कर रहा है।
मुझे जागता देख कर उसने मुझे चुप रहने का इशारा किया। अब मैं इन सब चीज़ों के बारे में इतना भी अनजान तो नहीं था सो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा और मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। मेरा लंड बिल्कुल तन गया और मेरी पैंट फाड़ कर बाहर आने की कोशिश में लग गया जिसकी वजह से मुझे हलके दर्द का एहसास होने लगा। पर आज मैं भी उस आनंद की अनुभूति लेना चाहता था जिसके पीछे सारी दुनिया दीवानी है।
मैं आँखें बंद कर के लेटा रहा और मज़ा लेटा रहा क्यूंकि मुझे पता ही नहीं था कि आगे करना क्या है?
तभी उसने मेरे पैंट की जिप खोल दी और मेरा लंड बाहर निकाल लिया और अपने हाथों से उसे सहलाने लगी।
अब तक मेरा लंड पूरी तरह से कड़ा हो गया था और ६-१/२ इंच लम्बा और २ इंच मोटा हो गया था। फिर उसने मेरा हाथ अपने मम्मों पर रख दिया और मुझे उसे दबाने को कहा। मैंने जब उसके मम्मे दबाये तो वो बिल्कुल नर्म थे रुई के फाहे जैसे और बिल्कुल गोल और बड़े बड़े।
मुझे मज़ा आने लगा। मैंने उसकी टॉप उतारी और ब्रा उतारी और उसके मम्मों को चूमने चाटने लगा। उसके चूचुक सख्त हो गए बिलकुल मटर के दानों की तरह। मैं अभी उसके मम्मों में खोया हुआ था और उन्हें चूमता जा रहा था, तभी उसने मुझसे कहा- सिर्फ इन्हीं से खेलते रहोगे या असली खेल भी खेलना है?
तो मैंने कहा- यह असली खेल कैसे खेलते हैं?
उसने मेरी तरफ देखा और कहा- धत्त ऽऽ ! कैसे मर्द हो तुम ? अब तुम्हें यह भी सिखाना पड़ेगा? चलो अब जब इतना कुछ सिखा ही दिया है तो यह भी सिखा देती हूँ ताकि आगे से तुम किसी लड़की के सामने अनाड़ी न रहो।
फिर उसने अपने और मेरे सारे कपड़े उतार दिए। हम दोनों बिल्कुल ही नग्न अवस्था में आ गये। फिर उसने मेरा हाथ अपनी चूत के ऊपर रख दिया और कहा- यही तो है वो स्टेडियम जहाँ असली खेल खेलते हैं। फिर उसने अपने रति द्वार के ऊपर मेरी ऊँगली रख दी जो कि काफी गीला लग रहा था। मैंने उसकी योनि में अपनी ऊँगली घुसा दी और अपनी ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा तो उसने मुझे कहा- रुको मैं तुम्हें एक नया एहसास दिलाती हूँ !
वो पलट गई और अपनी चूत मेरे मुँह के पास और मेरा लंड अपने मुँह के पास ले गई। फिर उसने मुझे कहा- अब तुम मेरी फुद्दी चूसो !
मैं तो बस जैसे उसका गुलाम ही बन गया था। खुद मुझे तो कुछ आता नहीं था सो वो जो कह रही थी मैं वही करता जा रहा था। मैंने उसकी फुद्दी चाटनी और चूसनी शुरू की और उसका नमकीन रस मुझे मजेदार लगने लगा। मैंने चूसता रहा चाटता रहा। तभी अचानक मुझे लगा कि अब मैं झड़ जाऊँगा और मैं झड़ गया उसके मुह में ही ! उसने मेरा सारा कामरस पी लिया। तभी उसका बदन ऐंठने लगा और वो भी झड़ गई। पहले तो मुझे अच्छा नहीं लगा पर फिर मुझे उसकी चूत का नमकीन पानी स्वादिष्ट लगने लगा और मैं सारा पानी पी गया।
मैंने उससे पूछा- क्या यही था असली खेल?
तो उसने कहा- नहीं ! अभी तो असली खेल बाकी है ! यह तो पूर्व-क्रीड़ा थी, या यह समझ लो कि यह तो डिनर के पहले लिया गया सूप है।
मैंने कहा- तो फिर असली खेल खेलो ना !
उसने कहा- उसके लिए तुम्हारे लंड को फिर से तैयार करना पड़ेगा !
और उसने फिर से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से तन गया। अब मैं फिर से तैयार था और मुझे वाकई बड़ा मज़ा आया था। मैंने सोचा कि अगर यह असली खेल नहीं था तो फिर असली खेल में कितना मज़ा आएगा !
उसने मुझसे पूछा- क्या यह तुम्हारा पहली बार है ?
तो मैंने कहा- हाँ ! क्यूँ ? तुम्हें क्या लगता है?
तो उसने कहा- मुझे भी तुम्हारा पहली बार ही लगता है।
फिर मैंने उससे पूछा- क्या तुम्हारा भी पहली बार ही है?
तो उसने कहा- नहीं ! मैंने तो कई बार मज़ा लिया है इसका।
फिर उसने अपने पर्स से निवेया क्रीम की डिब्बी निकली और उसमें से क्रीम निकाल कर मेरे लंड पर लगा दी।
फिर उसने कहा- अब असली खेल के लिए तैयार हो जाओ।
मैं तो तैयार ही था क्यूंकि मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। फिर वो बर्थ पर लेट गई और मुझे अपने ऊपर आने को कहा। मैं उसकी टांगों के बीच में बैठ गया और फिर उसने मेरा लंड अपनी फुद्दी के मुहाने पर रख दिया और कहा- अब जोर लगाओ।
मैंने जोर लगाया तो मेरा लंड उसकी फुद्दी में आराम से चला गया यह उसकी क्रीम का असर था। अब वो गांड उठा उठा कर धक्के लगाने लगी। उसकी देखा-देखी मैंने भी अपने कमर के जोर से धक्के लगाने शुरू किये तकरीबन पांच मिनट की चुदाई के बाद उसका शरीर ऐंठने लगा और वो झड़ गई मेरे लंड को बहुत ही गरम एहसास हुआ और फिर दो मिनट के बाद मैं भी उसकी फुद्दी में ही झड़ गया। और उसके ऊपर ही लेट गया। धीरे धीरे मेरा लंड अपने आप उसकी चूत से बाहर आ गया।
इस तरह मैंने अपनी ज़िन्दगी की पहली चुदाई पूर्ण की और वो राजधानी एक्सप्रेस मेरे लिए राजधानी सेक्स्प्रेस बन गया।
फिर तो उस रात हमने दो बार और चुदाई की। सुबह उठा तो मैं बिलकुल फ्रेश महसूस कर रहा था। उसने उतरने से पहले मेरा नंबर लिया और मुझसे वादा लिया कि आज मैं उसकी दोस्त के फ्लैट में उसका जन्मदिन मनाने ज़रूर आऊँ !
मैंने उस रात उसकी दोस्त के फ्लैट में उसको और उसकी दोस्त को भी चोदा जोकि अगली बार मैं आप लोगों को बताऊंगा।
मेरी कहानी कैसी लगी मुझे मेल ज़रूर करें।
मेरा ईमेल आई डी है : Antarvasna Sex Stories
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