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पिंकी का घर हमारे घर के बगल में ही है, हमारे घर की व पिंकी के घर की छत आपस में मिली हुई है, दोनों छतों के बीच में बस कमर तक ऊँचाई की एक पतली सी दीवार ही है इसलिए हम छत से भी एक दूसरे के घर चले जाते थे और पड़ोसी होने के नाते हमारा व पिंकी के घर काफी आना जाना था, जो अब भी वैसा ही है.
मगर उस समय मेरी व पिंकी की कभी नहीं बनती थी। बचपन से ही हम दोनों झगड़ते रहते थे। बचपन में मेरी नाक बहती थी इसलिये वो मुझे बहँगा कहती थी, और पिंकी को मैं छिपकली कहता था क्योंकि दुबले-पतले शरीर व बिल्कुल सफेद गोरे रँग के साथ साथ उसकी हरकतें छिपकली के जैसी ही थी जब भी उसे गुस्सा आता तो वो छिपकली की तरह चिपक जाती व नाखूनों और दाँतों से काट खाती थी।
बड़ा होने पर मेरी नाक तो बहनी बन्द हो गई मगर पिंकी की हरकतें बाद में भी बिल्कुल वैसी ही रही, झगड़ा होने पर वो अब भी नाखूनों व दाँतों से काट खाती थी।
हम दोनों में अब भी नहीं बनती थी, अभी तक हम दोनों एक दूसरे को बचपन के नाम से ही चिढ़ाते रहते थे। हम दोनों में से किसी को भी अगर चिढ़ाने का कोई मौका मिल जाये तो हम बाज नहीं आते थे।
जब भी पिंकी मुझे बोलती तो वो मुझे बहँगा ही कहकर बुलाती और मैं भी उसे छिपकली कहकर पुकारता था। पिंकी भी मेरे ही समान कक्षा में पढ़ती थी मगर वो लड़कियों के स्कूल में पढ़ती थी और मैं लड़कों के स्कूल में पढ़ता था।
पिंकी भी पढ़ने में काफी होशियार थी। हम दोनों में अब यह होड़ लगी रहती थी की परीक्षा में किसके नम्बर अधिक आयें।
पहले तो मैं भी पढ़ने में काफी अच्छा था मगर फिर बाद में तो आपको पता ही है भाभी के साथ सम्बन्ध बनने के बाद मैं पढ़ाई से काफी दूर हो गया था।
चलो अब कहानी पर आता हूँ.
सुमन के चले जाने के बाद मैं फिर से रेखा भाभी के साथ सोने लगा सब कुछ अच्छा ही चल रहा था कि एक दिन भाभी कपड़े सुखाना भूल गई, जब उन्हें याद आया तब तक शाम हो गई थी। उस समय भाभी खाना बनाने में व्यस्त थी इसलिए भाभी के कहने पर मैं ऊपर छत पर कपड़े सुखाने चला गया, मैं कपड़े सुखाकर छत पर से वापस आ ही रहा था कि तभी मेरी नजर सामने पिंकी के घर की तरफ चली गई, उनके घर में एक कमरा व लैटरीन बाथरुम ऊपर छत पर भी बना हुआ है.
कमरे की लाईट जल रही थी और खिड़की में से बेहद ही गोरी नंगी पीठ दिखाई दे रही थी, खिड़की से बस उसकी कमर के ऊपर का ही हिस्सा ही दिखाई दे रहा था मगर फिर भी दुबले पतले बदन से और बेहद ही गोरे रंग से मुझे पहचानने में देर नहीं लगी कि वो पिंकी है, वो नीचे झुकी और फिर हाथों में कुछ पकड़ कर सीधी हो गई. शायद उसने नीचे पायजामा (लोवर) पहना होगा, फिर उसने शमीज (लड़कियों के पहनने का अन्तः वस्त्र) पहना और फिर ऊपर से उसने गुलाबी रंग की टी-शर्ट डाल ली।
यह नजारा देखते ही मेरा लिंग उत्तेजित हो गया, फिर तभी उस कमरे की लाईट बन्द हो गई। शायद वो बाहर आने वाली थी इसलिये मैं भी चुपचाप नीचे आ गया मगर उस नजारे को देखकर मेरे तन बदन में आग सी लग गई। मैं चुपचाप भाभी के कमरे में आकर ऐसे ही लेट गया और पिंकी के बारे में सोचने लगा.
मैंने पिंकी को कभी भी इस नजर से नहीं देखा था, और देखता भी कैसे?
वो किसी भी तरीके से लड़की नहीं लगती थी…
क्योंकि उसके दुबले पतले शरीर पर कही भी मांस नहीं दिखाई देता था, बस सीने पर हल्के से उभार ही दिखाई देते थे, जो छोटे निम्बू के समान ही होंगे। उसके शरीर के साथ साथ वो रहती भी लड़कों की तरह ही थी, लड़कों की तरह बाल कटवाना, लड़कों की तरह ही कपड़े पहनना, और तो और स्कूल की वर्दी भी उसने पेंट-शर्ट की ही बनवा रखी थी। उसके स्कूल में सब लड़कियाँ शलवार कमीज पहनी थी मगर वो स्कूल में भी पेंट-शर्ट पहनती थी। घर में वो हमेशा लोवर और टी-शर्ट पहने रहती, और जब कभी बाहर जाती तो पैंट-शर्ट या जीन्स के साथ टी-शर्ट पहन कर बाहर निकलती थी।
मैंने कभी भी उसे लड़कियों के कपड़े पहने हुए नहीं देखा था, मगर आज मैंने उसकी सफेद कोरे कागज जैसी नंगी पीठ को देखा था मेरे तन बदन में आग सी लग गई थी। मैं उसके बेहद ही सफेद दूधिया गोरे रंग का कायल सा हो गया था, मैं सोच रहा था कि अगर उसका बदन ही इतना गोरा है तो उसके नन्हे उरोज व उसकी प्यारी सी योनि कैसी होगी?
यह बात मेरे दिमाग में आते मैं रोमांच से भर गया और मेरा लिंग अपने चर्म उत्थान पर पहुँच गया।
मैं पिंकी के ख्यालों में इतना खोया हुआ था कि पता ही नहीं चला कब भाभी कमरे में आ गई। मेरी तन्द्रा तो तब टूटी जब भाभी ने मुझे टोकते हुए पूछा- कहाँ खोये हुए हो?
भाभी के बात करने पर भी मैं बस हा ना में ही उनकी बात का जवाब दे रहा था।
मेरे व्यवहार से भाभी समझ गई कि कुछ ना कुछ बात है इसलिये भाभी ने फिर से मुझे पूछा- क्या बात है आज तबीयत खराब है क्या?
मगर मैं सोच रहा था कि भाभी को पिंकी के बारे में कहूँ या ना कहूँ?
तभी बाहर से ‘भाभी… भाभी… पायल भाभी…’ पुकारते हुए पिंकी की आवाज सुनाई दी और भाभी उसका जवाब देती उससे पहले ही पिंकी हाथ में किताबे पकड़े कमरे में आ गई, उसने वो ही गुलाबी टी-शर्ट पहन रखी थी जिसे अभी अभी छत पर मैं पिंकी को पहनते हुए देखकर आ रहा था।
पिंकी ने आते ही ‘ओय… बहंगे पैर हटा…’ कह कर एक हाथ से मेरे पैरों को उठा कर पीछे पटक दिया और भाभी की बगल में बैठ गई।
दरअसल पिंकी, मेरी भाभी से सवाल का हल निकलवाने के लिये आई थी। पिंकी व उसके घर वालों को पता था कि मेरी भाभी ने बी.एस.सी. तक पढ़ाई की हुई है इसलिये वो बहुत सी बार भाभी के पास पढ़ने के लिये आती रहती थी। पिंकी और उसके घरवाले तो चाहते थे कि मेरी भाभी उसे ट्यूशन पढ़ा दे मगर भाभी घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी इसलिये उन्होंने मना कर दिया था।
मैंने पिंकी को कुछ नहीं कहा, बस अपने पैर पीछे खींच लिये, पिंकी भी भाभी को अपनी किताबे देकर सवाल समझने लगी और मैं बस उसे देखे जा रहा था।
पिंकी का इस तरह से बोलना आज मुझे बुरा नहीं लगा था, नहीं तो अभी तक मैं भी उसे दो-चार सुना चुका होता। पता नहीं क्यों पिंकी मुझे आज बहुत अच्छी व खूबसूरत लग रही थी इसलिये मैं बस उसे देखे ही जा रहा था.
गोल व मुस्कराता चेहरा जिसे देखते ही हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाये, लड़कों की तरह कटिंग किये हुए काले बाल जिन्होंने उसके आधे से ज्यादा माथे को ढक रखा था, नीली व बड़ी बड़ी आँखें, लम्बी पतली सी नाक, बिल्कुल सुर्ख गुलाबी व पतले पतले होंठ उसके दूधिया गोरे चेहरे पर अलग ही छटा सी बिखेर रहे थे और मुस्कुराते होंठों के बीच बिल्कुल सफेद दाँत जो मोतियों से दमक रहे थे, लम्बा कद और सबसे बड़ी बात उसका बिल्कुल सफेद दूधिया गोरा रंग अगर हल्का सा उसके बदन को कोई जोर से छू भी ले तो अलग ही निशान बन जाये।
भगवान ने पिंकी पर नैन-नक्श और रंग-रूप की दौलत तो दिल खोल कर लुटाई थी मगर बस एक ही जगह पर कंजूसी कर दी थी कि उसका शरीर बिल्कुल भी भरा नहीं था। सच कहूँ तो अगर पिंकी का शरीर थोड़ा सा भी भर जाये और वो अपने बाल बढ़ा ले तो स्वर्ग की अप्सरा से कहीं ज्यादा ही खूबसूरत लगेगी।
पिंकी का सारा ध्यान भाभी से सवाल समझने में था मगर मैं अब भी बस उसे ही देखे जा रहा था… तभी मेरे दिमाग में एक योजना ने जन्म ले लिया, मैं सोच रहा था क्यों ना पिंकी को पढ़ने के लिये रोजाना हमारे घर बुला लिया जाये और वैसे भी पिंकी और उसके घर वाले तो चाहते भी यही हैं कि मेरी भाभी पिंकी को ट्यूशन पढ़ा दे…
मगर मेरी यह योजना तभी कामयाब हो सकती थी जब भाभी मेरा साथ दे!
भाभी से सवाल का हल निकलवा कर पिंकी अपने घर चली गई मगर मैं उसी के ख्यालों में ही खोया रहा। पिंकी के जाने के बाद भाभी फिर मुझसे पूछने लगी- आज इतने गुमसुम सा क्यों हो?
मैंने जो योजना बनाई थी उसमें भाभी को शामिल किये बिना मैं कामयाब नहीं हो सकता था इसलिये मैंने भाभी को सारी बात बता दी.
एक बार तो मेरी बात सुनकर भाभी भड़क गई और कहने लगी- रोजाना तुम्हें नई-नई कहाँ से मिलेगी?
मगर मेरे बार बार विनती करने पर भाभी मान गई और मेरा साथ देने की लिये तैयार हो गई।
मेरे कहे अनुसार भाभी ने बातों बातों में पिंकी को रोजाना पढ़ने आने का इशारा सा कर दिया।
पिंकी और उसके घरवाले तो यही चाहते थे कि मेरी भाभी पिंकी को पढ़ा दिया करे इसलिये पिंकी रोजाना भाभी के पास पढ़ने के लिये आने लगी।
सुबह शाम भाभी को घर के काम करने होते थे इसलिये भाभी ने पिंकी को पढ़ाने के लिये दोपहर का समय चुना। भाभी पिंकी को अपने कमरे में ही पढ़ाती थी।
वैसे तो मैं कभी भी पढ़ सकता था मगर मेरी योजना के अनुसार मैं भी पिंकी के साथ साथ पढ़ने के लिये बैठने लगा ताकि अधिक से अधिक पिंकी के पास रह सकूँ। मेरी भाभी भी इसमे मेरा साथ देती थी वो हमें किताब से थोड़ा बहुत पढ़ा देती और बाकी हमें खुद ही पढ़ने का बोलकर कमरे से बाहर चली जाती।
इसी तरह गणित विषय के भी एक तो सवाल समजा देती और बाकी का हमें हल करने का बता देती, जब कभी हमें कुछ समझ में नहीं आता तो हम भाभी से पूछ लेते थे।
भाभी के कमरे से जाने के बाद मैं और पिंकी अकेले ही होते थे जिसका फायदा पिंकी मुझे चिढ़ा कर या छेड़ कर उठाती और मैं उसका सामिप्य पाकर उठाता था।
पिंकी को जब भी मुझे चिढ़ाने का मौका मिलता वो मुझे चिढ़ाने से बाज नहीं आती थी मगर मुझे उसका चिढ़ाना व छेड़ना अब अच्छा लगता था। पिंकी के चिढ़ाने पर मैं उसे कुछ भी नहीं कहता बस किसी ना किसी बहाने से उसके कोमल बदन को छूने की कोशिश करता रहता था। मेरी कोशिश रहती कि मैं अधिक से अधिक पिंकी के कोमल बदन को स्पर्श कर सकूँ।
मैं और पिंकी बैड पर साथ साथ ही बैठकर पढ़ाई करते थे और मैं जानबूझ कर पिंकी के बिल्कुल पास होकर बैठता ताकि पिंकी के कोमल बदन को छुता रहूँ!
मैं जानबूझ कर पिंकी के कोमल हाथों को छू लेता तो कभी उसकी मखमली बदन से अपने शरीर का स्पर्श करवा देता मगर पिंकी इस पर कोई ध्यान नहीं देती थी, उसके लिये तो ये सब कुछ हँसी मजाक ही था।
इसी तरह करीब दो हफ्ते गुजर गये मगर पिंकी ने मुझ पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था इसलिये एक दिन पढ़ाई करने के बाद पिंकी जब घर जाने लगी तो मैंने उसके गाल को चूम लिया और उसे कह दिया- मैं तुमसे प्यार करता हूँ…!
मेरी इस हरकत से पिंकी बुरी तरह से गुस्सा हो गई और अपने घर में मेरी शिकायत करगी, ऐसा बोलकर जल्दी से अपने घर चली गई।
शिकायत की बात सुनकर मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई और मैं बुरी तरह घबरा गया। मैंने जब ये सारी बात भाभी को बताई तो भाभी भी मुझ पर गुस्सा हो गई और कहने लगी- तुम मुझे भी फंसवा दोगे, तुम्हें इतनी जल्दी ये सब करने की क्या जरूरत थी।
मेरे साथ साथ भाभी को भी डर था कि इसके लिये कहीं उनका नाम ना आ जाये।
डर के मारे मेरी हालत अब तो और भी खराब हो गई।
इसके बाद भाभी तो घर के काम में व्यस्त हो गई मगर मैं कमरे में ही बैठा रहा और भगवान से दुआ करने लगा कि भगवान बस आज बचा ले, आज के बाद कभी भी ऐसा कुछ नहीं करुँगा,
और शायद भगवान ने मेरी सुन भी ली…!
क्योंकि रात होने तक पिंकी के घर से मेरी कोई शिकायत नहीं आई।
अगले दिन सुबह भी सब कुछ सामन्य ही रहा मगर दोपहर को पिंकी पढ़ने के लिये हमारे घर नहीं आई। पिंकी का पढ़ने के लिये नहीं आने से मेरे दिल में अब भी डर बना रहा, इसी तरह दो दिन गुजर गये मगर पिंकी के घर से ना तो मेरी कोई शिकायत आई, और ना ही पिंकी हमारे घर पढ़ने के लिये आई।
पिंकी के घर जाने की तो मुझ में हिम्मत नहीं थी मगर मैं उसके घर के बाहर से ही उसे देखने की कोशिश करता रहता था मगर मुझे पिंकी कहीं भी दिखाई नहीं देती थी, पिछले दो दिन से शायद वो स्कूल भी नहीं जा रही थी।
मेरे दिल में अब भी डर बना हुआ था मगर फिर तीसरे दिन मैं भाभी के कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहा था, पढ़ाई तो क्या कर रहा था बस ऐसे ही बैठकर भाभी से बातें कर रहा था कि तभी हाथों में किताब पकड़े पिंकी आ गई, अचानक से पिंकी को देखकर मैं घबरा सा गया और चुपचाप पढ़ाई करने लगा।
पिंकी भी नजर झुकाकर चुपचाप पढ़ने के लिये मेरे पास बैड पर बैठ गई।
भाभी के पूछने पर पिंकी ने बताया कि वो रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी इसलिये दो दिन तक पढ़ने के लिये नहीं आ सकी थी।
पिंकी की बात सुनकर मेरी जान में जान आ गई।
पिंकी अब फिर से रोजाना पढ़ने के लिये आने लगी मगर पिंकी से दोबारा बात करने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। पिंकी ने भी मुझसे बात करना बन्द कर दिया था, भाभी के सामने तो फिर भी जरूरत होने पर वो कभी कभी बात कर लेती मगर अकेले में हमारी कोई बात नहीं होती थी।
इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया, मेरी पिंकी से बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई मगर इस हफ्ते भर में मैंने देखा कि पिंकी के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था। पहले तो वो बात बात पर मुझसे झगड़ा करती रहती थी मगर अब जब कभी हमारा सामना होता तो वो नजर झुका लेती थी, उसने मुझे चिढ़ाना भी बन्द कर दिया था और जब कभी मेरा हाथ या पैर गलती से पिंकी को छू जाता था तो वो मुझसे दूर हट जाती थी मगर मुझे कुछ कहती नहीं थी।
मुझे पिंकी से डर तो लगता था मगर फिर भी मेरे दिल में उसके लिये नये नये ख्याल आते रहते थे।
एक दिन बातों बातों में ऐसे मैंने यह बात जब भाभी को बताई तो वो हंसने लगी और कहा- लगता है अब तेरा काम बन जायेगा।
मैंने उत्सुकता से पूछा- कैसे…?
तो भाभी कहने लगी- बुद्धू… पिंकी को तेरी शिकायत ही करनी होती तो कब की कर देती…!
भाभी की बात सुनकर मुझ में फिर से एक नई जान सी आ गई, मगर इस बार मैं जल्बाजी में कोई गलती नहीं करना चाहता था, इसलिये मुझे धीरे धीरे आगे बढ़ना ही सही लगा, और इसके लिये सबसे पहले तो मैं पिंकी से फिर से बाते करने की कोशिश करने लगा। मैं जानबूझ कर पढ़ाई के बारे में या किसी और के बारे में पिंकी से कुछ ना कुछ पूछने की कोशिश करता रहता, पहले पहल तो पिंकी मेरी बातों पर कम ही ध्यान देती थी और मेरी बातों का बहुत कम जवाब देती थी मगर फिर धीरे धीरे वो भी मेरी बातों का जवाब देने लगी।
मैं भी पिंकी से कुछ ना कुछ पूछता ही रहता और जानबूझ कर उससे बातें करने की कोशिश करता रहता था, पिंकी को भी पता चल गया था कि मैं जानबूझ कर उससे बात करने की कोशिश करता हूँ इसलिये जवाब देते समय उसके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान आ जाती थी, इससे मेरी हिम्मत बढ़ने लगी।
इसी तरह हफ्ता भर गुजर गया, पिंकी अब मेरी बातों का जवाब तो दे देती थी मगर वो खुद पहल करके मुझसे कभी बात नहीं करती थी।
धीरे धीरे मैं अब फिर से पिंकी के पास होकर बैठने लगा और कभी कभी जानबूझ कर उसके हाथ पैरों को छू देता जिससे पिंकी शर्मा कर हल्का सा मुस्कुरा देती और अपने हाथ पैरों को मुझसे दूर कर लेती।
पहले तो एक दूसरे को छूना पिंकी के लिये हंसी मजाक ही था मगर उस दिन के बाद से पिंकी भी समझ गई थी कि मेरे दिल में उसके लिये क्या है इसलिये मेरे छूने पर पिंकी अब शर्माने लगी थी। पिंकी की जो भावनाएँ सोई हुई थी, जिसके बारे में उसने शायद कभी सोचा भी नहीं था, उनको मैंने जगा दिया था।
इससे मेरी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी इसलिये कभी कभी तो मैं अब बातों बातों में जानबूझ कर पिंकी का हाथ भी पकड़ लेता जिससे पिंकी बुरी तरह घबरा सी जाती और अपना हाथ मुझसे छुड़वाकर शर्म से सिकुड़ जाती, मगर मुझे कुछ कहती नहीं थी।
इसी तरह एक हफ्ता और बीत गया और मेरी हिम्मत बढ़ती गई…
फिर एक दिन पढ़ाई के बाद पिंकी जब अपने घर जाने लगी तो मौका देखकर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे फिर से कह दिया- मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
अचानक से मेरे ऐसा करने पर पिंकी बुरी तरह घबरा गई, घबराहट के कारण वो कुछ बोल तो नहीं पा रही थी मगर मुझसे अपना हाथ छुड़ाने के लिये हाथ पैर चलाने लगी जिससे उसके हाथ से किताबें भी छुट कर फर्श पर गिर गई।
इससे पहले कि पिंकी मुझसे छुड़ाकर भाग जाये, मैंने पिंकी को पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया और धीरे धीरे उसके मखमली बदन को सहलाते हुए उसके नर्म मुलायम गोरे गालों को चूमना शुरू कर दिया, अब तो डर व घबराहट से पिंकी का पूरा बदन कंपकपाने लगा, वो ऐसे ही हाथ पैर चला रही थी मगर तब तक पिंकी के बदन को सहलाते हुए मैंने उसे दीवार से सटा लिया और धीरे धीरे पिंकी के गाल को चूमते हुए उसके गुलाब की पंखुड़ियों की तरह सुर्ख लाल व कोमल होंठों की तरफ बढ़ने लगा.
पिंकी के दिल की धड़कन अब तेज हो गई थी और साँस भी तेजी से चल रही थी… डर व घबराहट के मारे पिंकी ठीक से कुछ बोल तो नहीं पा रही थी, बस धीमी आवाज में कराह सी रही थी
‘इश्श… च.छ.ओ.ड़..अ… च.छ.ओ.ड़..अ… म…उ..झ…ऐ…’
मगर फिर तभी बाहर किसी की आहट सुनाई दी, शायद मेरी भाभी होगी, इससे मेरा भी ध्यान बँट गया और तभी पिंकी ने अपनी पूरी ताकत से मुझे धकेलकर अलग कर दिया।
मैंने भी पिंकी को दोबारा पकड़ने की कोशिश नहीं की, बस चुपचाप उसे देखता रहा।
पिंकी बहुत ज्यादा घबरा गई थी वो जल्दी से नीचे बैठकर अपनी किताबें समेटने लगी, किताबें समेटते हुए वो अभी तक अपनी उफनती साँसों को काबू करने की कोशिश कर रही थी।
किताबें उठाने के बाद पिंकी जब कुछ सामान्य हुई तो मुझ पर गुस्सा करने लगी और आज फिर से मेरी शिकायत करने की कहने लगी… मगर पिंकी की उखड़ती साँसें व आँखों में तैरते उत्तेजना के गुलाबी डोरे कह रहे थे कि मेरी हरकत से उसे भी मजा आ रहा था इसलिये शायद वो ऐसा कुछ नहीं करेगी, उसका गुस्सा भी मुझे झूठमूठ का ही लग रहा था।
मुझ पर गुस्सा दिखा कर पिंकी अपने घर चली गई…
और जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ पिंकी ने किसी से कुछ नहीं कहा।
अगले दिन पिंकी जब पढ़ने के लिये हमारे घर आई तो उस समय भाभी कमरे में नहीं थी इसलिये मैंने भी मौका पाकर पिंकी को फिर से पकड़ लिया और उससे पूछने लगा- तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?
मुझसे छुड़ाने का प्रयास करते हुए पिंकी कहने लगी- कौन सी बात?
मैंने बताया- जो कल कहा था, उसी का?
इस पर पिंकी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और शर्माते हुए कहा- मुझे नहीं पता…!
तब तक मेरी भाभी कमरे में आ गई और पिंकी मुझसे छुड़वा कर बैड पर जाकर बैठ गई, पिंकी ने कोई जवाब तो नहीं दिया था मगर पिंकी की शर्म हया से मुझे मेरा जवाब मिल गया था, बस अब तो धीरे धीरे उसे पटरी पर लाना था, और इसके लिये मैं पिंकी के बिल्कुल पास होकर बैठता, और जब भी मुझे मौका मिलता मैं पिंकी के गोरे गाल को चूम लेता, तो कभी उसके हाथ पैरों को सहला देता था जिसका पिंकी बनावटी गुस्से से हल्का सा विरोध करती मगर किसी से कुछ कहती नहीं थी।
मेरी हरकतों से बचने के लिये पिंकी मुझसे दूर होकर भी बैठने का प्रयास करती मगर मैं खिसकर उसके पास हो जाता था। पिंकी के गालों को चूमना तो अब सामन्य सा हो गया था जिसका पिंकी ने भी विरोध करना कम कर दिया था, वो बस झुठमुठ का बनावटी गुस्सा करके हंसने लगती थी।
इसी तरह दो हफ्ते और बीत गये, मैं भी अब धीरे धीरे करके पिंकी के गुप्तांगों तक पहुँच गया था, मौका मिलने पर कभी कभी मैं कपड़ों के ऊपर से ही उसके छोटे छोटे उरोजों को सहला देता था, यहाँ तक कि एक बार तो मैंने कपड़ों के ऊपर से पिंकी की योनि को भी सहला दिया था जिस पर पिंकी बस बनावटी गुस्से से कहती- सुधर जा… नहीं तो मैं सही में तेरी शिकायत कर दूँगी!
मगर मुझे पता था कि मेरी हरकतों से उसे भी मजा आता है इसलिये वो किसी से कुछ नहीं कहेगी।
और फिर एक दिन मुझे अच्छा सा मौका मिल ही गया, उस दिन मेरे पापा गाँव गये हुए थे और मम्मी के बारे में तो आपको पता ही है जो कि बीमार होने के कारण अधिकतर अपने कमरे में ही रहती थी।
मेरी भाभी को भी उस दिन घर के काम देर हो गई थी इसलिये दोपहर को पिंकी जब पढ़ने के लिये आई तो भाभी ने हमें कुछ देर तक तो पढ़ाया और बाकी की पढ़ाई अपने आप करने के लिये बोलकर कपड़े धुलाई करने के लिये चली गई।
मैंने भी भाभी को जाते समय आँख से इशारा करके बता दिया कि वो जल्दी से कमरे में ना आयें!
भाभी के जाते ही मैंने पिंकी को पकड़कर अपनी बांहों में भर लिया और धीरे धीरे उसके गोरे गालों को चूमने लगा जिससे पिंकी झूठमूठ का गुस्सा करते हुए ‘छोड़… छोड़ मुझे… मैं घर जा रही हूँ…मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…’ इसी तरह पिंकी ना-नुकर करते हुए मुझसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर मैंने उसे पकड़ कर बैड पर गिरा लिया.
पिंकी मुझे धकेलकर उठने की कोशिश तो कर रही थी मगर मैं उसे ऐसे ही दबाये रहा और अपना एक हाथ कपड़ों के ऊपर से ही उसके छोटे छोटे उभारों की ओर बढ़ा दिया। पिंकी के उभार बहुत ही छोटे थे जो मुश्किल से नीम्बू के समान ही होंगे। पिंकी के उभारों को कस के रगड़ने मसलने के बजाय मैंने उसके ज़वानी के दोनों छोटे छोटे फूलों को हल्के से सहलाना शुरू कर दिया जैसे कोई भौंरा कभी एक फूल पे बैठे तो कभी दूसरे पर…
मेरे हाथ भी यही कर रहे थे, साथ ही मैं पिंकी की गर्दन व गालों को भी चूम रहा था जिसका पिंकी अपने सर इधर उधर हिलाकर मेरे चुम्बन से बचने का प्रयास कर रही थी।
पिंकी एक किशोरी थी जो पहली बार यौवन सुख का स्वाद चख रही थी इसलिये उसका शर्माना, झिझकना जायज ही था मगर मेरा भी काम उसे पटाना, तैयार करना और वो लाख ना ना करे उसे कच्ची कली से फूल बनाना था।
पिंकी के गालों को चूमते हुए धीरे धीरे मैं उसके गुलाबी रसीले होंठों पर आ गया और हल्के बहुत ही हल्के से उसके रसीले होंठ चूसने लगा।
पिंकी की साँसें भी अब गहरी होने लगी थी और उसका विरोध भी कुछ हल्का पड़ने लगा था।
मैंने अपनी जीभ पिंकी के मुँह में डाल दी जिसका पहले तो वो अपनी गर्दन को इधर उधर हिलाकर बचने का प्रयास करती रही मगर मैंने भी एक हाथ से उसके सर को कस के पकड़ लिया और उसके मुंह में अपनी जीभ को ठेले रखा.
और फिर कुछ देर की ना नुकुर के बाद ..पिंकी की जीभ ने भी हरकत करना शुरू कर दिया, वो अब हल्के से मेरे जीभ के साथ खिलवाड़ करने लगी। उसके रसीले होंठ भी अब मेरे होंठों को धीरे धीरे कभी कभी चूमने लगे थे.
मगर मैं ऐसे छोड़ने वाला थोड़े ही था, मैं आज पहले से कुछ आगे बढ़ना चाहता था इसलिये मेरा हाथ जो अब तक उसके छोटे छोटे उभारों से खेल रहा था वो पिंकी के बदन पर से रेंगता हुआ उसकी दोनों जाँघों के बीच आ गया मगर तभी पिंकी ने मेरे हाथ को पकड़ लिया और साथ ही मेरे होंठों पर से अपना मुँह हटा कर ‘ नहीं नहीं… छोड़… ना…’ कहने लगी लेकिन मैंने उसको छोड़ा नहीं बल्कि हल्के हल्के उसके गाल पर फिर से चूमने लगा, साथ ही मेरा हाथ पकड़े जाने के बावजूद भी थोड़ी सी जबरदस्ती करके मैं धीरे धीरे उसकी योनि को भी सहलाने लगा।
‘अआआ…ह्ह्हह… बस्स्स… अ..ओओ..य.. हो.. गय..आ… अआआ…ह्ह्हह… ..प्लीज..अअआ… ह्ह्हहहहह.’
वो बुदबुदा रही थी।
पिंकी की आवाज में घबराहट और डर तो था लेकिन साथ ही कही ना कही उसकी भी थोड़ी बहुत इच्छा हो रही थी।
मैंने उसके गालों को छोड़ा नहीं बल्की हल्के से उसी जगह पे एक हल्का सा चुम्बन किया और…
और फिर एक झटके से मैंने अपना हाथ छुड़वाकर पिंकी के लोवर व पेंटी में डाल दिया जिससे पिंकी ने ‘अ..अ..ओ…य… न..नहीं..इई.. इ…इईई…श्शशश.. क्क्क…क्या… कर रहा है…’
कहकर पकड़ने की कोशिश करने लगी मगर तब तक मेरा हाथ पिंकी की लोवर व पेंटी को भेद कर उसमें में उतर चुका था।
पहले तो पिंकी ने अपने घुटने मोड़ने चाहे मगर उसके दोनों पैरों को मैंने अपने पैर से दबा रखा था, फिर पिंकी ने दोनों जाँघों को भींच कर अपनी योनि को छुपाने की कोशिश की… मगर उसकी जांघें इतनी मांसल भरी हुई नहीं थी कि उसकी योनि को छुपा सके, उसकी जाँघों को बन्द करने के बाद भी दोनों जाँघों के बीच इतनी जगह रह गई कि मेरी दो उंगलियां उसकी योनि को छू गई जो योनिरस से हल्की सी गीली हो रही थी।
पिंकी की योनि बिल्कुल सपाट व चिकनी लग रही थी जिस पर ना तो कोई उभार था और ना ही कोई बाल महसूस हो रहे थे। मेरी जो दो उंगलियाँ पिंकी कि योनि को जितना छू रही थी उन्हीं से मैं योनि को छेड़ने लगा, साथ में ही योनि को उंगलियों से हल्के हल्के दबा भी रहा था, जिससे पिंकी शर्म से दोहरी हो गई और ‘इईईई…श्शशश…नहीं..इई.. अ..ओ.ओय.. वहां से हाथ हटा…प्लीज… बात… मान.. वहां नहीं… छोड़ ना… अब बहुत हो तो गया… बस्सस…’ करके मेरे हाथ को बाहर निकालने की कोशिश करने लगी।
मगर मैं कहाँ मानने वाला था, मैं धीरे धीरे ऐसे ही पिंकी की योनि को उंगलियों से दबाता सहलाता रहा जिससे कुछ ही देर में पिंकी की योनि पर असर हो गया क्योंकि मेरी उंगलियाँ कामरस से भीगने लगी और पिंकी के मुँह से भी अब हल्की हल्की कराहें निकलना शुरु हो गई।
पिंकी ने अब भी मेरा हाथ पकड़ रखा था मगर अब वो उसे निकालने की इतनी कोशिश नहीं कर रही थी। मेरा हाथ पकड़े हुए वो अब भी यही बुदबुदा रही थी ‘अ..अ.. ओ…य… न..नहीं..इई.. ना.. इ…इईई… श्शशश… क्क्क…क्या… कर रहा है… इईईई…श्शशश… नहीं..इई.. छोड़ ना… प्लीज.. बस्सस… अब बहुत हो तो गया… बस्सस…’
पिंकी की जांघों की पकड़ भी अब कुछ हल्की होती जा रही थी और धीरे धीरे मेरी उंगलियाँ पिंकी की जाँघों के बीच जगह बनाकर नीचे की तरफ बढ़ती जा रही थी, तब तक पिंकी की योनि भी काम रस से लबालब हो गई। मैंने फिर से पिंकी के होंठों को मुँह में भर लिया और हल्के हल्के उन्हें चूसना शुरू कर दिया. इस दो तरफा हमले को पिंकी ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकी और उसके बदन ने उसका साथ छोड़ दिया, पिंकी की जांघें अब फैलने लगी और वो भी अब कभी कभी मेरे होंठों को हल्का हल्का दबाने लगी थी, तब तक मेरी उंगलियाँ योनि के अनार दाने तक पहुँच गई और मैंने उसे हल्का सा मसल दिया जिससे पिंकी जोर से ‘इईई…श्शशश… अ..अआआ…ह्ह्हहहह…’ करके चिहुंक पड़ी और जोर से मेरे हाथ को दबा लिया. मगर मैं रुका नहीं, धीरे धीरे मेरी उंगलियाँ योनि के प्रवेश द्वार तक पहुँच गई जो योनिरस से भीगकर बिल्कुल तर हो गया था।
पिंकी ने भी अब अपनी जांघें फैलाकर समर्पण कर दिया जिससे मेरे हाथ का पूरी योनि पर अधिकार हो गया और मैं खुलकर पिंकी की योनि को रगड़ने मसलने लगा… पिंकी के मुँह से भी अब सिसकारियाँ निकलनी शुरु हो गई।
मैं पिंकी की योनि को रगड़ते मसलते हुए धीरे धीरे योनिद्वार पर भी हल्का से अन्दर की तरफ दबाने लगा, बस उंगली का एक पौरा भर ही अन्दर कर रहा था, मगर पिंकी अब खुद ही मेरे हाथ को पकड़ कर जोर से दबाते हुए ‘इईई…श्शशश… अआआ…ह्ह्ह… इईई…श्शश… अआआ…ह्ह्हहह…’ करने लगी ताकि मेरी उंगली उसकी गुफा में समा जाये, लेकिन मैं उंगली को योनिद्वार में ज्यादा अन्दर तक नहीं डाल रहा था क्योंकि अन्दर योनि की गुफा काफी संकरी थी।
पिंकी बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी उत्तेजना के वश वो नहीं जान पा रही थी कि वो क्या कर रही है। इसलिये मैं जितनी मेरी उंगली योनि में जा रही थी उसे ही योनिद्वार के अन्दर बाहर करने लगा मगर अब मैंने थोड़ी गति बढ़ा दी थी जिससे पिंकी की सिसकारियाँ भी तेज हो गई और वो जोर से ‘इईई… श्शशश… अआआ… ह्ह्हह… इईईई…श्शश… अआआ…ह्ह्ह…’करते हुए मेरे हाथ को अपनी योनि पर दबाने लगी साथ ही वो अपनी दोनों जाँघों को भी कभी खोल रही थी, तो कभी जोर से भींच रही थी।
पिंकी ने मेरे होंठों को भी अब जोरो से काटना शुरू कर दिया था और फिर अचानक से पिंकी का बदन थरथरा गया उसने जोर से ‘इईईई…श्शशश… अआआ…ह्ह्हहहहह… ईई…श्शश… अआआ… ह्ह्ह…’ की किलकारी सी मारते हुए मेरे हाथ को अपनी योनि पर दबा कर जोर से दोनों जाँघों से भींच लिया और उसकी योनि ने मेरे हाथ पर उबलता हुआ सा लावा उगलना शुरू कर दिया।
पिंकी तीन-चार किश्तों में अपने योनिरस के लावे से मेरे हाथ को नहला कर बेसुध सी हो गई। मैं भी कुछ देर तक ऐसे ही बिना कोई हरकत किये खामोशी से पिंकी को देखता रहा मगर मेरा हाथ अब भी पिंकी की पेंटी में ही था।
पिंकी आँखें बन्द करके लम्बी लम्बी सांसें ले रही थी, चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव साफ नजर आ रहे थे जैसे की कोई बहुत लम्बी दौड़ को जीतने की खुशी के बाद आराम कर रही हो।
पिंकी का ज्वार तो मैंने शांत कर दिया था मगर मैं अब भी प्यासा ही था इसलिये मैंने धीरे से पिंकी के गाल को फिर से चूम लिया, जिससे पिंकी चौंक सी गई जैसे अभी अभी गहरी नींद से जागी हो, पिंकी ने मेरा हाथ पकड़कर अपने पजामे से बाहर निकाल दिया और मुझे धकेल कर जल्दी से उठकर बैठ गई।
मैंने उससे पूछा- क्या हुआ?
तो पिंकी ने अपने कपड़े ठीक करते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ बस एक बार मेरी तरफ देखा और फिर शर्माकर गर्दन नीचे झुका ली।
मैंने फिर से पूछा- क्यों… मजा नहीं आया क्या?
इस पर पिंकी ने हल्का सा मुस्कुराकर कहा- तू बहुत गन्दा है।
और शर्माकर फिर से गर्दन नीचे झुका ली।
मैं फिर से पिंकी को पकड़कर चूमना चाहता था मगर तभी बाहर से भाभी ने आवाज देकर मुझे छत पर जाकर कपड़े सुखाने को कहा!
तब तक पिंकी भी घर जाने के लिये जल्दी जल्दी अपनी किताबें समेटने लगी।
जाते समय मैंने फिर से पिंकी का हाथ पकड़ लिया और उससे कहा- आज रात को छत पर मिलेगी क्या?
इस पर पिंकी ने अपने कंधे उचकाकर हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- क्यों… किसलिये…?
और जल्दी से अपना हाथ छुड़वा कर भाग गई.
कहानी का पहला भाग : दोस्त की माँ, बुआ और बहन की चुदाई-1 Hindi sex stories
कहानी का तीसरा भाग : दोस्त की माँ, बुआ और बहन की चुदाई-3 Hindi sex stories
जब मेरी नींद खुली तो शाम के करीब 5 बज रहे थे. मैंने देखा कि, मेरा मोटा लण्ड तन कर कड़क हो कर खड़ा था और लुंगी से बाहर निकल कर मुझे सलामी दे रहा था.
इतने में बुआ जी कमरे में आईं. मैंने झट से आँखें बंद कर लिया.
थोड़ी देर बाद आँख खोल कर देखा कि, बुआ जी की नज़र मेरे खड़े हुए मोटे लण्ड पर टिकी थीं. हैरत भरी निगाहों से मेरे लम्बे और मोटे लण्ड को देख रही थीं.
कुछ देर बाद उन्होंने आवाज दे कर कहा, रामू बेटा उठ जाओ, अब घर चलना है!
मैंने कहा, ठीक है! और उठकर बैठ गया मेरा लण्ड अब भी लुंगी से बाहर था.
बुआ जी मेरी ओर देखते हुए बोलीं, रामू बेटा क्या तुमने कोई बुरा सपना देखा था क्या?
मैंने मुश्किल से कहा, नहीं तो बुआ जी क्यों क्या हुआ?
वो बोलीं, नीचे तो देखो! क्या दिख रहा है? जब मैंने नीचे देखा तो मेरा लण्ड लुंगी से निकला हुआ था.
मैं शर्म से लाल हो कर अपना लण्ड चड्डी में छूपा लिया. ऐसा करते समय बुआ जी हँस रही थीं.
बुआ जी की चुदाई करने का हसीन मौंका
हम करीब 6:30 बजे घर पहुँचे. रास्ते भर कोई भी बात चीत नहीं हुई. घर आकर मैंने कहा कि, मैं बाज़ार होकर आता हूँ और फिर बाज़ार जाकर 1 विस्की की बोतल ले आया.
जब घर पहुँचा तो रात के 9 बज रहे थे. मुझे आया देख कर बुआ जी ने आवाज दी, बेटा आकर खाना खालो.
मैं बोला, बुआ जी अभी भूख नहीं है थोड़ी देर बाद खा लूँगा.
फिर मैंने पूछा, माँ और सुमन कहाँ हैं? (क्योंकि माँ और सुमन ना तो रसोई घर में थे नहीं आँगन में थे)
बुआ जी ने कहा कि, हमारे रिस्तेदार के यहाँ आज रात भर भजन और कीर्तन है! इसलिए भाभी और सुमर रिस्तेदार के यहाँ गए है और सुबह 5-6 बजे लौटेंगे.
मैंने कहा, ठीक है! बुआ जी अगर आप बुरा ना मानो तो क्या मैं थोड़ी विस्की पी सकता हूँ.
बुआ बोलीं, ठीक है! तुम आँगन में बैठो मैं वही खाना लेकर आती हूँ. मैं आँगन में बैठ कर विस्की पीने लगा.
करीब आधे घण्टे बाद बुआ जी खाना लेकर आईं, तब तक मैं 3-4 पेग पी चुका था और मुझे थोड़ा विस्की का नशा होने लगा था.
बुआ ने मेरे लण्ड की तारीफ़ की
बुआ जी और मैं खाना खाने के बाद, हम दोनों बुआ जी कमरे में आ गए. मैंने पैंट और शर्ट निकाल कर लुंगी और बनियान पहन ली. बुआ जी भी साड़ी खोल कर केवल नाईटी पहनी हुई थीं.
जब बुआ जी खड़ी होकर पानी लाने गईं तो, मुझे उनके पारदर्शी नाईटी से उनका नक्शा दिखाई दिया.
उन्होंने नाईटी के अन्दर, ना तो ब्लाऊज़ पहना था ना ही पेटीकोट पहना था! इसलिए लाईट की रोशनी के कारण उनका जिस्म नाईटी से झलक रहा था.
जब वो पानी लेकर वापस आईं. हम बैठ कर बातें करने लगे.
बुआ जी: रामू, क्या तुम शहर में कसरत करते हो?
रामू: हाँ, बुआ जी रोज सुबह उठकर कसरत करता हूँ.
बुआ जी: इसलिए तुम्हारा एक एक अंग काफ़ी तगड़ा और तंदरुस्त है.
क्या तुम अपने बदन पर तेल लगा कर मालिश करते हो, खास तौर पर शरीर के निचले हिस्से पर?
रामू: मैं हर रोज़ अपने बदन पर सरसो का तेल लगा कर खूब मालिश करता हूँ!
बुआ जी: हाँ आज मैंने तुम्हारे शरीर के अलावा अन्दर का अंग भी दोपहर को देखा था, वाकईं काफ़ी मोटा लम्बा और तन्दरुस्त है! हर मर्दों का इस तरह का नहीं होता है.
बुआ जी की बात सुन कर मैं शर्म के मारे लाल हो गया. पूरे मकान में हम दोनों अकेले थे. और इस तरह की बाते कर रहे थें.
मैंने भी बुआ जी से कहा, बुआ जी आप भी बहुत सुन्दर हो! और आपका बदन भी सुडौल है.
बुआ जी: दींन मुझे ताड़ के झाड़ पर मत चढ़ाओ! तुमने तो अभी मेरा बदन पूरा तरह देखा ही कहाँ है?
मैंने बोला, आपने तो मुझे दिखाया ही नहीं? और मेरे शरीर के निचले हिस्से का दर्शन भी कर लिया!
इतना सुनते ही वो झट से बोलीं. मुझे कहाँ! अच्छी तरह से तुम्हारा नीचे का दर्शन हुआ.
चलो एक शर्त पर तुम्हें मेरे अंदरूनी भाग दिखा दूँगी, अगर तुम मुझे अपना नीचे का मस्त दिखाओगे तो!
बुआ की खुली नंगी चूत देखा
मैंने झट से लुंगी से लण्ड निकल कर उन्हें दिखा दिया. बुआ जी भी अपने वादे के अनुसार नाईटी ऊपर कर के अपनी चूत दिखा दीं, और मुस्कुराती बोलीं राजा बेटा खुश हो अब!
हाय! बड़ी जालिम चूत थी. चूत देखते ही मेरा लण्ड तन कर फड़फड़ाने लगा.
कुछ देर तक मेरे लण्ड की ओर देखने के बाद बुआ जी मेरे पास आईं, और झट से मेरी लुंगी खोल दीं.
फिर खड़े होकर अपनी नाईटी भी उतार दीं और नंगी हो गईं. फिर मुझे कुर्सी से उठ कर पलंग पर बैठने को कहा.
जब मैं पलंग पर बैठ कर बुआ जी की मस्त रसीली चूची को देख रहा था, तो मारे मस्ती के मेरा लण्ड चूत की और मुँह उठाए उनकी चूत को सलामी दे रहा था.
बुआ जी ने लण्ड चूस जन्नत दिखाया
बुआ जी मेरी जाँघों के बीच बैठ कर दोनों हाथों से मेरे लौड़े को सहलाने लगी. कुछ देर सहलाने के बाद अचानक! बुआ ने अपना सर नीचे झुका लिया और अपने रसीले होंठों से मेरे सुपाड़े को चूम कर उसको मुँह मे भर लिया.
मैं एकदम चौंक गया! मैंने सपने मे भी नहीं सोचा था की ऐसा होगा?
बुआ जी, यह क्या कर रही हो? मेरा लण्ड तुमने मुँह मे क्यों ले लिया है?
चूसने के लिए और किस लिए! तुम आराम से बैठे रहो और बस लण्ड चूसाई का मज़ा लो. एक बार चूसवा लोगे फिर बार-बार चूसने को कहोगे.
बुआ जी मेरे लण्ड को लोलीपॉप की तरह मुँह में लेकर चूसने लगी. मैं बता नहीं सकता हूँ! कि लण्ड चूसवाने मे मुझे कितना मज़ा आ रहा था.
बुआ जी के रसीले होंठ मेरे लण्ड को रगड़ रहे थे. फिर, बुआ जी ने अपना होंठ गोल कर के मेरा पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और मेरे आण्ड को हथेली से सहलाते हुए, सिर ऊपर नीचे करना शुरु कर दिया.
मानो! वो मुँह से ही मेरे लण्ड को चोद रही हो. धीरे-धीरे मैंने भी अपनी कमर हिला कर बुआ जी के मुँह को चोदना शुरु कर दिया.
बुआ जी ने मेरे वीर्य का रसपान किया
मैं तो मानो सातवें आसमान पर था! बेताबी तो सुबह से ही हो रही थी. थोड़ी ही देर मे लगा कि, मेरा लण्ड अब पानी छोड़ देगा.
मैं किसी तरह अपने ऊपर काबू कर के बोला, बुआ जी मेरा पानी छूटने वाला है!
बुआ जी ने मेरे बातों का कुछ ध्यान नहीं दिया बल्कि, अपने हाथों से मेरे चूतड़ को जकड़ कर और तेज़ी से सिर ऊपर-नीचे करना शुरु कर दिया.
मैं भी उनके सिर को कस कर पकड़ कर और तेज़ी से लण्ड उनके मुँह मे पेलने लगा. कुछ ही देर बाद मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया और, बुआ जी ने गटगट करके पूरे पानी को पी गईं.
सुबह से काबू में रखा हुआ मेरा पानी इतना तेज़ी से निकला कि, उनके मुँह से बाहर निकल कर उनके ठुड्डी पर फैल गया.
कुछ बूंदे तो टपक कर उनकी चूची पर भी जा गिरी. झड़ने के बाद मैंने अपना लण्ड निकाल कर बुआ जी के गालों पर रगड़ दिया.
क्या खुबसुरत नजारा था! मेरा वीर्य बुआ जी के मुँह गाल होंठ और रसीले चूची पर चमक रहा था.
बुआ जी ने अपनी गुलाबी जीभ अपने होंठों पर फिरा कर, वहाँ लगा वीर्य चाटा और फिर अपनी हथेली से अपनी चूची को मसलते हुए पूछा- क्यों दींन बेटा? मज़ा आया लण्ड चुसवाने मे!
मैं बोला- बहुत मज़ा आया बुआ जी! तुमने तो एक दूसरी जन्नत की सैर करवा दिया मेरी जान! आज तो मैं तुम्हारा सात जन्मों के लिए गुलाम हो गया.
कहो! क्या हुक्म है?
बुआ जी की स्वादिष्ट चूत चटाई
बुआ जी बोलीं, हुक्म क्या! बस अब तुम्हारी बारी है.
मैं कहा- क्या मतलब? मैं कुछ समझा नही!
बुआ जी बोलीं, मतलब यह कि अब तुम मेरी चूत चाटो!
यह कह कर, बुआ जी खड़ी हो गईं और अपनी चूत मेरे चेहरे के पास ले आईं. मेरे होंठ उनकी चूत के होंठों को छूने लगी.
बुआ जी ने मेरे सिर को पकड़ कर, अपनी कमर आगे की और अपनी चूत मेरे नाक पर रगड़ने लगी.
मैंने भी उनकी चूतड़ को दोनों हाथों से पकड़ लिया और, उनकी गांड सहलाते हुए उनकी रसीली चूत को चूमने लगा.
बुआ जी की चूत की प्यारी-प्यारी खुशबू मेरे दिमाग मे छाने लगी!
मैं दीवानों की तरह उनकी चूत और उसके चारों तरफ़ के इलाके को चूमने लगा. बीच-बीच में मैं अपनी जीभ निकाल कर उनकी रानों को भी चाट लेता.
बुआ जी मस्ती से भर कर सिसकारी लेते हुए अपनी चूत को फ़ैलाते हुए बोलीं- हाँय राजा अह्!
जीभ से चाटो ना! अब और मत तड़पाओ राजा! मेरी बुर को चाटो! डाल दो अपनी जीभ मेरी चूत के अन्दर! अन्दर डाल कर जीभ से चोदो!
अब तक उनकी नशीली चूत की खुशबू ने मुझे बुरी तरह से पागल बना दिया था. मैंने उनकी चूत पर से मुँह उठाए बिना, उन्हे खींच कर पलंग पर बैठा दिया.
उनकी जाँघों को फैला कर, अपने दोनों कंधो पर रख लिया और फिर आगे बढ कर, उनकी चूत के होंठों को अपनी जीभ से चाटना शुरु कर दिया.
बुआ जी मस्ती से बड़बड़ाने लगी! और अपनी चूतड़ को और आगे खिसका कर अपनी चूत को मेरे मुँह से बिल्कुल सटा दिया.
अब बुआ जी के चूतड़ पलंग से बाहर हवा मे झूल रही थी! और उनकी मखमली जाँघों का पूरा दबाव मेरे कंधो पर था.
मैंने अपनी जीभ पूरी की पूरी उनकी चूत में डाल दिया और, चूत की अंदरूनी दीवारों को जीभ से सहलाने लगा.
बुआ जी मस्ती से तिलमिला उठीं, और अपनी चूतड़ उठा उठा कर अपनी चूत मेरी जीभ पर दबाने लगी.
हाय! राजा, क्या मज़ा आ रहा है?
अब अपनी जीभ को अन्दर-बाहर करो ना! चोदो राजा चोदओ! अपनी जीभ से चोदो मुझे! हाय! राजा तुम ही तो मेरे असली सैंया हो!
पहले क्यों नहीं मिले! अब सारी कसर निकालूँगी. हाय! राजा चोदो मेरी चूत को अपनी जीभ से!
मुझे भी पूरा जोश आ गया और बुआ जी की चूत में, जल्दी जल्दी जीभ अन्दर-बाहर करते हुए उसे चोदने लगा.
बुआ जी अभी भी जोर-जोर से कमर उठा कर, मेरे मुँह को चोद रही थीं. मुझे भी इस चुदाई का मज़ा आने लगा.
मैंने अपनी जीभ कड़ी कर सिर आगे पीछे कर के, बुआ जी की चूत को चोदने लगा.
बुआ जी की चूत का अमृत रसपान
उनका मज़ा दोगुना हो गया. अपने चूतड़ को जोर-जोर से उठाती हुए बोलीं- और जोर से बेटा! और जोर से! हाय! मेरे प्यारे राजा आज से मैं तेरी रण्डी बुआ हो गई.
जिंदगी भर के लिए चुदाऊँगी तुझसे! अह्हह! उईई माआ!’
वो अब झड़ने वाली थीं. वो जोर जोर से चिल्लाते हुए अपनी चूत मेरे पूरे चेहरे पर रगड़ रही थीं.
मैं भी पूरी तेज़ी से जीभ लप-लपा कर उनकी चूत पूरी तरह से चाट रहा था, और बीच बीच में अपनी जीभ को उनकी चूत मे पूरी तरह अन्दर डाल कर अन्दर बाहर करने लगा.
जब मेरी जीभ बुआ जी की भगनाशा से टकराई तो, बुआ जी का बाँध टूट गया और मेरे चेहरे को अपनी जाँघों में जाकर कर उन्होंने अपनी चूत को मेरे मुँह से चिपका दिया.
कुछ देर बाद उनका पानी बहने लगा और, मैं उनकी चूत की दोनों फाँकों को अपनी मुँह मे दबा कर उनका अमृत-रस पीने लगा.
बुआ जी ने गांड मारने को बोला
मेरा लण्ड फिर से लोहे की रॉड की तरह सख्त हो गया था.! मैं उठ कर खड़ा हो गया और, अपने लण्ड को हाथ से सहलाते हुए बुआ जी को पलंग पर सीधा लेटा कर उनके ऊपर चढने लगा.
उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा- ऐसे नहीं मेरे राजा! चूत का मज़ा तुम चूस चूस के ले चुके हो! आज मैं तुम्हें दूसरे छेद का मज़ा दूँगी.
मैंने कहा- बुआ जी मेरी समझ में कुछ नहीं आया?
बुआ जी बोलीं- आज तुम अपने मोटे तगड़े लम्बे लौड़े को मेरी गांड में डालो, और उठ कर बैठ गईं.
मेरे हाथ को हटा कर, अपने दोनों हाथों से मेरा लण्ड पकड़ लिया और सहलाते हुए, अपनी दोनों चूचियों के बीच दबा-दबा कर लण्ड के सुपाड़े को चूमने लगीं.
उनकी चूची की गर्माहट पकड़ से मेरा लौड़ा और भी जोश में आकर सख्त हो गया.
बुआ की छोटी गांड देख चौंका
मैं हैरान था! इतनी छोटी सी गांड के छेद में मेरा लण्ड कैसे जाएगा?
मैं बोला- बुआ जी इतना मोटा लण्ड तुम्हारी गांड में कैसे जाएगा?
बुआ बोलीं- हाँ, मेरे राजा! गांड मे ही जाएगा, पीछे से चोदना इतना आसान नहीं है. तुम्हें पूरा जोर लगाना होगा.
इतना कह कर, बुआ जी ढेर सारा थूक मेरे लण्ड पर लगा दिया और, पूरे लण्ड की मालिश करने लगीं, पर बुआ जी गांड मे लण्ड घुसाने के लिए ज्यादा जोर क्यों लगाना पड़ेगा?
बुआ बोलीं- वो इसलिए, राजा! कि जब औरत गर्म होती है तो, उसकी चूत पानी छोड़ती है जिससे लौड़ा आने-जाने मे आसानी होती है.
पर गांड तो पानी नहीं छोड़ती इसलिए घर्षण ज्यादा होता है और, लण्ड को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है.
छोटी गांड में लौड़ा लेने का उपाय
गांड मारने वाले को भी बहुत तकलीफ़ होती है. पर राजा मज़ा बहुत है! मरवाने वाले को भी और मारने वाले को भी बहुत मजा आता है. इसीलिए गांड मारने के पहले पूरी तैयारी करनी पड़ती है.
मैंने कहा- क्या तैयारी करनी पड़ती है? बुआ जी मुस्कुरा कर पलंग से उतरीं और अपने चूतड़ को लहराते हुए ड्रेसिंग टेबल से वेसिलीन की शीशी उठा लाईं.
ढक्कन खोल कर, ढेर सारा वेसिलीन अपने हाथों में ले लीं और, मेरे लौड़े की मालिश करने लगी. अब मेरा लौड़ा रोशनी में चमकने लगा.
फिर मुझे शीशी दे दीं और बोलीं- अब मैं झुकती हूँ और तुम मेरे गांड में ठीक से वेसिलीन लगा दो! और वो पलंग पर पेट के बल लेट गईं और अपने घुटनों के बल होकर अपने चूतड़ हवा में उठा दिया.
देखने लायक नजारा था! बुआ के गोल मटोल चूतड़ मेरी आँखों के सामने लहरा रहे थे. मुझसे रहा नहीं गया और, झुक कर चूतड़ को मुँह में भर कर कस कर काट लिया.
बुआ जी की चीख निकल गईं. फिर मैंने ढेर सारा वेसिलीन लेकर उनकी गांड की दरार में लगा दिया.
बुआ बोली- अरे मेरे भोले सैंया! ऊपर से लगाने से नहीं होगा. उंगली से लेकर अन्दर भी लगाओ और अपनी उंगली पेल पेल कर अपने गांड के छेद को ढीला करो.
मैंने अपनी बीच वाली उंगली पर वेसिलीन लगा कर, उनकी गांड में घुसाने की कोशिश की. पहली बार जब नहीं घुसी तो दुसरे हाथ से छेद फैला कर दुबारा कोशिश की, तो मेरा उंगली थोड़ी सी उंगली घुस गई.
मैंने थोड़ा बाहर निकाल कर झटका दे कर डाला तो, घपाक से पूरी उंगली धंस गई. बुआ जी ने एकदम से अपने चूतड सिकोड़ लिया जिससे की उंगली फिर बाहर निकल गई.
बुआ बोलीं- इसी तरह उंगली अन्दर-बाहर करते रहो कुछ देर तक! मैं उनके कहे मुताबिक़ उंगली जल्दी से अन्दर-बाहर करने लगा. मुझे इसमें बड़ा मजा आ रहा था.
बुआ ने गांड में लौंडा डलवाया
वो भी कमर हिला-हिला कर मजा ले रही थीं. कुछ देर बाद बुआ जी बोलीं- चलो राजा! आ जाओ मोर्चे पर और मारो गांड अपनी बुआ की.
मैं उठ कर घुटनें के बल बैठ गया, और लण्ड को पकड़ कर बुआ की गांड के छेद पर रख दिया. बुआ जी ने थोड़ा पीछे होकर लण्ड को निशाने पर रखा. फिर मैंने उनकी चूतड को दोनों हाथों से पकड़ कर धक्का लगाया.
बुआ जी की गांड का छेद बहुत टाइट था.
मैं बोला- बुआ जी मेरा लण्ड आप की गांड में नहीं घुस रहा है. बुआ जी ने अपने दोनों हाथों से अपने चूतड़ों को खींच कर गांड की छेद को फैला दिया और दुबारा जोर लगाने को कहा.
इस बार मैंने थोड़ा और जोर लगाया, और मेरा सुपाड़ा उनकी गांड की छेद में चला गया. बुआ जी की कसी गांड को चीरता हुआ मेरा आधा लण्ड बुआ जी की गांड में दाखिल हो गया.
बुआ जी जोर से चीख उठी- उई माँ! दुखता है मेरे राजा! पर मैंने उनकी चीख पर कोई ध्यान नहीं दिया, और लण्ड थोड़ा पीछे खींच कर जोरदार शॉट लगाया.
मेरा 9′ का लौड़ा उनकी गांड को चीरता हुआ पूरा का पूरा अन्दर दाखिल हो गया. बुआ जी फिर चीख उठीं.
वो बार बार अपनी कमर को हिला हिला कर मेरे लण्ड को बाहर निकालने की कोशिश कर रही थीं. मैंने आगे को झुक कर उनकी चूची को पकड़ लिया और उन्हें सहलाने लगा.
लण्ड अभी भी पूरा का पूरा उनकी गांड के अन्दर था. कुछ देर बाद बुआ जी की गांड में लण्ड डाले डाले उनकी चूची को सहलाता रहा.
जब बुआ जी कुछ नार्मल हुए तो अपने चूतड हिला कर बोलीं- चलो राजा! अब ठीक है!
बुआ की दमदार गांड चुदाई
उनका सिग्नल पाकर मैंने दुबारा सीधे होकर उनकी चूतड पकड़ कर धीरे-धीरे कमर हिला कर लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया. बुआ जी की गांड बहुत ही टाइट थी.
इसे चोदने में बड़ा मजा आ रहा था. अब बुआ भी अपना दर्द भूल कर सिसकारी भरते हुए मजा लेने लगीं. उन्होंने अपनी एक उंगली अपनी चूत में डाल कर कमर हिलाना शुरू कर दिया.
बुआ जी की मस्ती देख कर मैं भी जोश में आ गया और धीरे-धीरे अपनी रफ्तार बढ़ा दी. मेरा लण्ड अब पूरी तेजी से उनकी गांड में अन्दर-बाहर हो रहा था.
बुआ जी भी पूरी तेजी से कमर आगे पीछे करके मेरे लण्ड का मजा ले रही थीं.
लण्ड ऐसे अन्दर-बाहर हो रहा था मानो इंजन का पिस्टन. पूरी कमरे में चुदाई का थप थप की आवाज गूँज रही थी.
जब बुआ जी के थिरकते हुए चूतड से मेरी जाँघें टकराती थी तो लगता कोई तबलची टेबल पर थाप दे रहा हो.
बुआ जी पूरी जोश में पूरी तेजी से चूत में उंगली अन्दर-बाहर करती हुई सिसकारी भर रही थी.
हम दोनों ही पसीने पसीने हो गई थे पर कोई भी रूकने का नाम नहीं ले रहा था.
बुआ मुझे बार बार ललकार रही थी- चोद लो मेरे राजा चोद लो अपनी बुआ की गांड. आज फाड़ डालो इसे. शाबाश मेरे शेर, और जोर से राजा और जोर से. फाड़ डाली तुमने मेरी तो.
मैं भी हुमच हुमच कर शॉट लगा रहा था. पूरा का पूरा बाहर खींच कर झटके से अन्दर डालता तो उनकी चीख निकल जाती. मेरा लावा निकलने वाला था.
उधर बुआ भी उंगली से चूत को चोद चोद कर अपनी मंजिल के पास थी. तभी मैंने एक झटके से लण्ड निकाला और उनकी चूत में जड़ तक ठुंस दिया.
बुआ जी इसके लिए तैयार नहीं थीं. इसलिए उनकी उंगली भी चूत में ही रह गई थी. जिससे उनकी चूत टाइट लग रहा था.
मैंने बुआ जी के बदन को पूरी तरह अपनी बाहों में समेट कर दनादन शॉट लगाने लगा.
वो भी संभल कर जोर जोर से अहह उह्ह करती हुई चूतड आगे-पीछे करके अपनी चूत में मेरा लण्ड लेने लगी.
हम दोनों की साँसें फूल रही थीं. आखिर मेरा ज्वालामुखी फूट पड़ा और मैं बुआ की पीठ से चिपक कर बुआ की चूत में झड़ गईं. हम दोनों उसी तरह से चिपके हुए पलंग पर लेट गए और थकान की वजह से सो गए.
उस रात मैंने बुआ की चूत कम से कम चार बार और चोदा.
बुआ और हमारी चुदाई का राज खुला
सुबह करीब 10 बजे सुमन (दोस्त की बहन) ने मुझे उठा कर चाय दी और कहा रामू भैया फ्रेश हो कर नाहा धो लो और मैं नाश्ता बनाती हूँ.
घर में केवल उसे देख कर कहा- माँ और बुआ जी कहाँ गए? वो बोली वो दोनों कब के खेत चले गए हैं.
यहाँ आवाज होगी, इसलिए माँ रात की नींद खेत में ही पूरी करेंगी और वो लोग शाम से पहले लौटने वाले नहीं हैं.
मैं फ्रेश होकर नाहा धो कर नाश्ता करने लगा. सुमन अपने काम में लग गई. मैं कमरे में आकर किताब पढ़ने लगा. मुझे कहीं बाहर जाना नहीं था इसलिए मैं केवल तौलिया और बनियान में था.
करीब एक घंटे बाद सुमन अपना काम निबटा कर कमरे में बिस्तर ठीक कर आई और मुझसे बोली भैया आप उधर कुर्सी पर बैठ जाओ मुझे बिस्तर ठीक करना है.
मैं उठ कर कुर्सी पर बैठ गया और वो बिस्तर ठीक करने लगी.
चादर पर पड़े मेरे लण्ड और बुआ और बुआ जी की चूत के पानी के धब्बे रात की कहानी सुना रहे थे. सुमन झुक कर निशान वाली जगह को सूंघ रही थी.
मेरी तो ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे रह गई!
थोड़ी देर बाद सुमन उठी गई और मेरी तरफ देखती हुई अदा से मुस्कुरा दी.
सुमन की चूत चुदाई का मौका
फिर इठलाते हुए मेरे पास आई और आँख मार कर बोली- लगता है रात बुआ जी के साथ जम कर खेल खेला है. मैं हिम्मत कर के बोला- क्या मतलब?
वो मुझसे सटती हुई बोली- इतने भोले मत बनो. जानबूझ कर अनजान बन रहे हो.
क्या मैं अच्छी नहीं लगती तुम्हें?
मैंने कुछ नहीं कहा और केवल मुस्कुरा दिया और मैंने गौर से देखा उसको.
मस्त लौंडिया थी! साँवली से रंग, छरहरा बदन! उठी हुई मस्त चूचियाँ!
उसने अपना पल्लू सामने से लेकर कमर में दबाया हुआ था, जिससे उसकी चूची और उभर कर सामने आ गई थी.
वो बात करते करते मुझसे एकदम सट गई, और उसकी तनी तनी चूची मेरी नंगी बाहों से छूने लगी.
यह सब देख कर मेरा लण्ड जोश में फड़फड़ा उठा. मैंने सोचा कि, इसे ज्यादा अच्छा मौका फिर नहीं मिलने वाला. साली खुद ही तो मेरे पास चुदवाने आई हुई है.
मैंने हिम्मत करके उसे कमर से पकड़ लिया और अपने पास खींच कर अपने से चिपका लिया और बोला- चल सुमन थोड़ा सा खेल तेरे साथ भी हो जाए!
वो एकदम से घबरा गई और अपने को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी, पर मैं उसे कस कर पकडे हुए चूमने की कोशिश करने लगा.
वो मुझ से दूर हटने की कोशिश करती जा रही थी पर वो बेबस थी, पर साथ में चिपकी भी जा रही थी.
इसी दौरान मेरा तौलिया खुल गया और मेरा 9′ का फनफनाता हुआ लौड़ा आजाद हो गया.
मैंने कहा- देखो मजे लेने है! तो चलो बिस्तर पर और उसे अपने बाहों में उठा कर बिस्तर पर लेटा कर, अपना लण्ड उसकी गांड में दबाते हुए मैंने अपनी एक टांग उसकी टांग पर चढ़ा दिया और उसे दबोच लिया
दोनों हाथों से चूचियों को पकड़ कर मसलते हुए बोला- नखरे क्यों दिखाती है?
खुदा ने हुस्न दिया है और क्या मार ही डालोगी?
अरे हमे नहीं दोगी तो क्या आचार डालोगी, चल आजा और प्यार से अपनी मस्त जवानी का मजा लेते हैं.
सुमन की चूत में उंगली का मजा
कहते हुए उसके ब्लाउज को खींच कर खोल दिया. फिर एक हाथ को नीचे ले जाकर उसके पेटीकोट के अन्दर घुसा दिया, और उसकी चिकनी चिकनी जाँघों को सहलाने लगा, धीरे धीरे हाथ उसकी चूत पर ले गया.
पर वो तो दोनों जाँघों को कस कर दबाए हुए थी, और साथ में मस्ती से हाय हाय भी कर रही थी.
मैं उसकी चूत को ऊपर से कस कस कर मसलने लगा और उंगली को किसी तरह चूत के अन्दर डाल दिया.
उंगली अन्दर होते ही वो कस कर छटपटाते हुए, और बाहर निकालने के लिए कमर हिलाने लगी. उससे उसकी चूत चुदने जैसी होने लगी. इससे उसका पेटीकोट ऊपर उठ गया.
मैंने कमर पीछे कर के अपने लण्ड को नंगे चूतड की दरार में लगा दिया. क्या फूले फूले जवान चिकने चूतड थे.
अपना दूसरा हाथ भी उसकी चूची पर से हटा कर उसके चूतड को पकड़ लिया और अपने लण्ड से उसकी गांड की दरार में रख कर!
उसकी चूत को मैंने उंगली से चोदते हुए गांड की दरार में, लण्ड थोड़ा थोड़ा धंसा दिया था!
कुछ ही देर में वो ढीली पड़ गई, और जाँघों को ढीला कर के कमर हिला हिला कर आगे पीछे कर के चुदाई का मजा लेने लगी.
क्यों रानी मजा आ रहा है? मैंने धक्का लगाते हुए पूछा.
हाँ भैया, बहुत ही मजा आ रहा है. उसने जाँघें फैला दी जिससे कि मेरी उंगली आसानी से अन्दर-बाहर होने लगी.
सुमन मेरे मोटे लण्ड को देख चौंकी
उसके मुँह से मस्ती भरी उई उई निकालने लगा.
फिर उसने अपना हाथ पीछे करके मेरे लण्ड को पकड़ लिया और उसकी मोटाई को नाप कर बोली- हाय जी इतना मोटा लण्ड. चलो मुझे सीधा होने दो, फिर चोद देना, कहते हुए वो चित लेट गई.
अब हम दोनों अगल बगल लेटे हुए थे. मैंने अपनी टांग उसकी टांग पर चढ़ा लिया और लण्ड को उसकी जाँघ पर रगड़ते हुए चूचियों को चूसने लगा.
पत्थर जैसी सख्त! थी उसकी चूची. एक हाथ से उसकी चूची मसल रहा था और दुसरे हाथ की उंगली से उसकी चूत को चोद रहा था.
सुमन के अधनंगी बदन में चुदाई का मजा
वो भी लगातार मेरे लण्ड को पकड़ कर अपनी जाँघों पर घिस रही थी. जब हम दोनों पूरी जोश में आ गए तब सुमन बोली- अब मत तडपाओ! भैया, चोद ही डालो न अब मुझे.
मैंने झटपट उसकी साड़ी और पेटीकोट को कमर से ऊपर उठा कर उसकी चूत को पूरा नंगा कर दिया.
वो बोली- पहले मेरे सारे कपड़े तो उतारो तो ही तो चुदेगी मेरी चूत!
मैं बोला- नहीं तुझे अध नंगी देख कर जोश और डबल हो गया है, इसलिए पहली चुदाई तो कपड़ों के साथ ही होगी.
फिर मैंने उसकी टांगें अपनी कंधों के ऊपर रखी, और उसने मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रख लिया और बोली- आईय! शुरू हो जाओ न भैया.
मैंने कमर आगे करके जोर दार धक्का दिया, और मेरा आधा लण्ड दनदनाता हुआ उसकी चूत में धंस गया.
वो चिल्ला उठी. आहिस्ते! भैया आहिस्ते! अब दर्द हो रहा है और उसने अपनी चूत को सिकोड़ ली और, मेरा लण्ड उसकी चूत से बाहर निकल आया.
मैंने उसकी सख्त चूची को पकड़ कर मसलते हुए, फिर अपना लण्ड उसकी चूत पर रख कर एक और शॉट लगाया.
मेरा सुपाड़ा उसकी चूत में घुस गया, और कुछ देर तक मैंने कुछ हरकत नहीं की और उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा.
उसकी आँखों से अब भी आँसू निकल रहे थे. थोड़ी देर बाद वो थोड़ा शांत हुई, और अब मैंने दुसरा शॉट लगाया तो मेरा बचा हुआ लौड़ा भी जड़ तक उसकी चूत में धंस गया.
मारे दर्द के उसकी चीख निकल गई और बोली- बड़ा जालिम है! तुम्हारा लौड़ा. किसी कुँवारी छोकरी को इस तरह से चोदोगे तो वो मर जाएगी. सम्भाल कर चोदना.
मैं उसकी चूचियों को पकड़ कर मसलते हुए, धीरे-धीरे लण्ड चूत के अन्दर-बाहर करने लगा. चूत तो इसकी भी टाइट थी!
दोस्तों, यह थी मेरी बिल्कुल सच्ची कहानी जो मैंने आपके सामने रखा! आशा करता हूँ कि इस कहानी से आप लोग अत्यधिक रोमांचित हुए होंगे. अपने विचारों से हमें अवगत कराएं!
कैसे हैं आप सब? एक बार फ़िर से आरज़ू Hindi porn Stories अपनी अधूरी कहानी पूरी करने आप सबके सामने हाज़िर है.
मेरी कहानी का पहला भाग जिसका टाइटल था
भाई और बहन की आपस में चुदाई-1
तो हाज़िर है इसी कहानी का पार्ट 2
उस दिन छत पर जब हम दोनों चुदायी लीला कर रहे थे तब ही मेरी मुमानी की बड़ी लड़की अफ़रोज़ छत पर आ गयी थी और चुपके से छुप कर हमारी बातें सुन रही थी और देख भी रही थी.
भाई ने मुझे बांहों में भर लिया और अपना तना हुआ लंड मेरी चूत से रगड़ने लगे. मैं अफ़रोज़ को दिखाने के लिये मादक सिसकियां निकाल रही थी मुंह से- आआययीई … भाई जान, बहुत गुदगुदी हो रही है … आआह्हह प्लीज़ … अब घुसा दीजिये अपना लंड मेरी चूत में!
और मैंने अपने दोनों हाथ से भाई का लंड पकड़ लिया और मसलने लगी.
भाई भी अफ़रोज़ को दिखाने के लिये ज़ोर ज़ोर से कराह रहे थे ताकि इसकी चूत में भी खुजली होने लगे और वो भाई की टांगों के नीचे खुद ब खुद चूत फ़ैला कर पसर जाये. अब उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूत को फ़ैलाया और अपने लौड़े का मुहाना मेरी चूत पर रख कर मुझसे धीरे से बोले देखो- इस तरह की एक्टिंग करना कि अफ़रोज़ पूरी तरह से चुदासी हो जाये! पता है कि तुम्हारी चूत ढीली हो चुकी है मगर फ़िर भी नाटक करना कुंवारी होने का!
इतना कहकर भाई ने जरा सा लंड ही अंदर ठेला था कि मैं चिल्ला पड़ी- आआह्हह भाईईजान … बहुत दर्द कर रहा है प्लीज़ आहिस्ता आहिस्ता कीजिये आराम से!
भाई ने अपने होठों में मेरी चूची भर ली और चूसने लगे और एक धक्का और मारा. इस बार उनका करीब 5″ लंड अंदर समा गया. मैंने उनकी कमर जोर से पकड़ ली और अपनी दोनों टांगें उनकी पीठ से किसी कैंची की तरह फ़ंसा ली और अपने चूतड़ को ऊपर की तरफ़ उछालने लगी- आआआ आह्हह्ह ह्ह भाई … बहुत मज़ा आ रहा है. अब तो घुसा दीजिये अपना पूरा बाकी का बचा हुआ लंड भी! अययीईई आअह्हह … कसम से जवानी में चुदवाने का मज़ा ही अलग है!
ये सब मैं अफ़रोज़ को सुनाने के लिये कह रही थी जिसे वो सुन भी रही थी और बहुत मज़े लेकर हम दोनों को देख भी रही थी. उसे नहीं पता था कि हम लोग उसे देख चुके हैं.
तब ही भाई ने अपना पूरा लंड मेरी चूत में जोरदार धक्के के साथ घुसेड़ दिया. मैं आआय यययीईई इस्सस्स इस्सस्स अम्मी माआअर्रर डालाआआअ भाईईइ बहुत दर्द हो रहा है. आप ज़रा भी तरस नहीं खाते अपनी बहन पर … पूरे जल्लाद बन जाते हैं. चोदते वक्त कहीं इतनी जोर से भी धक्का मारा जाता है?
और तब ही भाई मेरी निप्पल को दांत से दबाते हुए बहुत ही आराम से धक्के मारने लगे. अब मैं ऊऊओफ़्फ़ ऊऊओफ़्फ़ फ़्फ़फ़ कर रही थी और अब इस तरह दर्शा रही थी कि मुझे बहुत मस्ती मिल रही है.
“आअहाआ भाई … बहुत मज़ा आ रहा है. थोड़ा और जोर से धक्का मारो ना प्लीज़! तुम्हें अपनी बहन की कसम है … आज सारी ताकत झोंक देना मेरी चूत में! ज़रा भी तरस ना खाना! साली बहुत कुलबुलाती रहती है.”
फ़िर तो भाई ने धक्कों की झड़ी लगा दी, फ़चा-फ़च की आवाज़ निकल रही थी और मैं भी अपने चूतड़ को उछाल रही थी.
तब ही भाई का लंड झड़ने के करीब आया और भाई ने कहा- आरज़ू बहन, अब मैं झड़ने वाला हूँ. तुम्हारी क्या पोजिशन है?
मैंने कहा- क्या बात है, आज आप मुझसे पहले डिस्चार्ज हो रहे हैं? वरना तो मेरा पानी दो बार निकलता था तब कहीं आप झड़ते थे?
भाई ने कहा- बहुत दिन बाद आज चुदायी कर रहा हूँ ना, इसलिये ऐसा हो रहा है. क्या बतायें, वहां घर की बात ही और थी यहां तो साला मौका ही नहीं मिलता है.
तब मैंने कहा- यहां किसका डर है?
भाई ने कहा- कहीं मुम्मानी की लड़कियां न देख लें! या मामुजान को पता न चल जाये.
अब हम लोग काम की बात पर आये थे. तब मैंने भाई से कहा- भाई अफ़रोज़ भी तो जवान है, उसका भी तो मन करता होगा अपनी जवानी का मज़ा लेने का! रही मुमानी की बात … तो उनको तो मैं अकसर मामुजान से चुदाते हुए देखती हूँ. वो अब भी टांगें उठा उठा कर बहुत मज़े से चुदवाती हैं मामुजान से … और मामु जान भी कम नहीं हैं बहुत दम है उनके लौड़े में … इस उमर में भी थका डालते हैं मुमानी को! उस दिन तो मैंने देखा कि वो मुमानी की गांड मार रहे थे और मुमानी चिल्ला रही थी.
भाई ने बड़ी हैरत से पूछा- अच्छा, मामूजान भी गांड मारते हैं? शकल से तो बहुत शरीफ़ नज़र आते हैं.
तब मैंने कहा- भाई, पता है मैंने मुमानी की बातें भी सुनी थी, वो कह रही थी मामु से कि अब आप में पहले की तरह मज़बूती नहीं रह गयी. पहले तो सारी रात ही पड़े रहते थे मेरी ओखली में अपना मूसल डाले … अब पता नहीं क्या हो गया है आपको. तब मामू ने कहा ‘क्या बतायें बेगम, अब बच्चियां जवान हो गयी हैं, डर लगा रहता है कहीं हम दोनों की चुदायी देख कर बहक ना जायें. तब मुमानी ने कहा ‘अरे वो अपने रूम में सो रही हैं तुम उनकी फ़िकर क्यूं करते हो, जम कर मारो आज मेरी गांड!’ और फ़िर मामू ने बहुत जोरदार गांड चोदी थी मुमानी की!
मैं आगे बोली- मुझे तो अफ़रोज़ और आज़रा पर तरस आता है कि बेचारी इतनी कातिल जवानी लेकर भी प्यासी हैं.
तब भाई ने कहा- क्या किया जा सकता है?
तब मैंने कहा- भाई अगर अफ़रोज़ तुमसे चोदने को कहे तो क्या तुम चोदोगे उसे?
तब भाई ने कहा- हां क्यूं नहीं, कहीं न कहीं तो वो अपनी चूत की प्यास बुझायेगी ही तब घर में ही क्यूं नहीं. अम्मी का कहना भी यही है कि चुदायी की पहल हमेशा घर से ही करनी चाहिये. तभी तो मैं हमेशा तुम्हारा ख्याल रखता हूँ.
तभी मैं भी झड़ने के करीब आ गयी और भाई से कहा- अब बातें बाद में चोदना, मैं झड़ रही हूँ, पहले मुझे सम्भालो!
भाई बातें भूल कर फ़िर से मुझे चोदने लगे और मैं झड़कर एक तरफ़ लेट गयी.
मैंने भाई से कहा- भाई, मैं अफ़रोज़ से बात करुंगी. हो सकता है काम बन जाये, बेचारी को तरसना ना पड़े!
और फ़िर धीरे से दरवाज़े की तरफ़ देखा तो अफ़रोज़ नीचे जा चुकी थी.
तब ही मैंने हंस कर कहा- साले बहुत मज़ेदार नाटकबाज़ हो तुम! खूब जोरदार चुदायी का नाटक करते हो.
तब भाई ने कहा- साली रण्डी, तू भी किसी कुतिया से कम नहीं है. ऐसे चिल्ला रही थी जैसे पहली बार मरवा रही हो चूत! अच्छा ये बताओ कि अब क्या अफ़रोज़ की चूत में खलबली हुई होगी?
तब मैंने कहा- 100% खलबली हुई होगी. अरे तुम्हारा हलब्बी लंड देखकर अफ़्फ़ो क्या उसकी तो अम्मी भी अपनी चूत पसार देगी तुम्हारे आगे! ये तो अच्छा ही हुआ कि उसने हमारी चुदायी देख ली अब मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. काम आसान हो गया है साली खुद ही राज़ी हो जायेगी.
तब भाई ने कहा- ये तो अच्छा हुआ कि अफ़रोज़ ही आयी थी. अगर कहीं मामु जान आय होते तो क्या होता?
मैंने कहा- तुम्हारा क्या होता? जो होता मेरा होता वो अपना बम पिलाट लंड लेकर आ जाते और मेरी खुली चूत में डाल देते. हालत मेरी खराब होती!
तब भाई ने कहा- हालत क्यूं खराब होती मेरी जान? तुम्हें तो मैं इतना एक्सपर्ट कर चुका हूँ कि तुम तो चार लंड एक साथ अपनी चूत में ले चुकी हो. फ़िर भला मामू किस खेत की मूली हैं.
मैंने कहा- साले मूली नहीं, पूरा बांस है उनका लंड मैंने देखा है कितना लम्बा है. अगर तेरी गांड में डाल दे तो बरदाश्त नहीं कर पायेगा. बातें चोद रहा है!
तब भाई ने हंसते हुए कहा- अच्छा अच्छा मेरी छिनाल बहन, अब कपड़े पहन लो क्योंकि मामू को तो तुम्हारी चूत झेल लेगी. अगर कहीं अफ़रोज़ अपनी अम्मी और बहन दोनों के साथ आ गयी तो मेरा लंड अभी इस हालत में नहीं है कि मैं उन तीनों को एक साथ झेल जाऊँ.
मैंने कहा- सिर्फ़ तीन क्यों? मुझे नहीं गिन रहे हो? चारों को चोदना पड़ेगा तुम्हें!
और ये कह कर मैं हंसने लगी और भाई भी हंसने लगे.
मैंने पहले वहीं छत की नाली पर जाकर पेशाब किया तो भाई भी वहीं खड़े हो कर मूतने लगा.
तब मैंने कहा- यार आराम से बैठ कर मूतो, अभी अभी नहा कर आयी हूँ तुम्हारी छींटें आ रही हैं.
तब भाई भी वहीं बैठ कर मूतने लगा. हम दोनों ने साथ में मूतकर अपने अपने कपड़े पहने.
वह तो पूरे कपड़े पहन कर नीचे चला गया पर चूंकि मैं सिर्फ़ तौलिये में थी और अब तक नीचे मामूजान आ चुके थे तो मैंने अफ़रोज़ को अवाज़ दी कि मेरे कपड़े लेकर ऊपर चली आये और जब अफ़्फ़ो उपर आयी तो मुझे देख कर शरमा रही थी. मैं समझ रही थी कि ये साली क्यूं शरमा रही है. उसकी आंखें अभी भी गुलाबी हो रही थी और होंठ थरथरा रहे थे.
वो कांपते हाथों से मुझे कपड़े देकर नीचे जाने लगी तो मैंने कहा- जरा रुको, मैं भी चेंज कर लूं तो साथ साथ चलते हैं.
और उसके सामने मैंने तौलिया वहीं उतार दिया. वो बहुत गौर से मेरे दोनों बूब्स देखने लगी जो उसकी चूची से काफ़ी बड़े थे और मेरी बुर को भी अज़ीब नज़रों से निहार रही थी.
तब मैंने उसकी जम्पर के ऊपर से हाथ रखते हुए कहा- क्या देख रही हो इतने गौर से?
वो घबरा गयी पर खामोश रही. मैं उसकी चूची पर थोड़ा सा जोर देकर फ़िर से बोली- आखिर देख क्या रही थी तुम? जो मेरे पास है वो तुम्हारे पास भी तो है.
तब उसने झिझकते हुए कहा- पर आपा आपकी तो हमसे बहुत बड़ी हैं?
मैंने कहा- बतायेगी भी क्या?
तब उसने मेरी चूची पर हाथ रख कर कहा- ये!
मुझे हंसी आ गयी उसके भोलेपन पे, मैंने कहा- नाम नहीं पता है इसका?
उसने शरमाते हुए कहा- दुधू है!
तब तो मुझे बहुत जोरदार हंसी आयी फ़िर मैंने उसकी चूची को कपड़े के ऊपर से ही जोर से दबा कर कहा- धत्त बेवकूफ़ लड़की, दुधू नहीं चूची कहते हैं इसे! इतनी बड़ी हो गयी है, अभी तक नाम नहीं पता, क्या देखती है तू टीवी वगैरह में?
तब उसने कहा- आपा यहां कहां टीवी देखने देते हैं अब्बु जान … उन्हें तो सिर्फ़ न्यूज़ ही पसंद है.
मेरा चूची मसलना उसे शायद अच्छा लग रहा था, वो कुछ बोल नहीं रही थी और मैं अपना काम कर रही थी.
मैंने कहा- मैं तेरी चूची सहला रही हूँ तो कैसा लग रहा है?
उसने शरमाते हुए कहा- अच्छा लग रहा है.
तब मैंने कहा- अभी तो कपड़े के ऊपर से ही मसल रही हूँ. अगर पूरी नंगी होकर चूची दबवाओगी तो बहुत मज़ा आयेगा.
अब वो थोड़ी थोड़ी खुल रही थी और अपने हाथ धीरे से मेरी चूची पर रखते हुए बोली- आपा, आपकी चूची इतनी बड़ी कैसे हो गयी? जबकि आपकी उमर भी मेरे बराबर ही है.
तब मैंने कहा- ये सब मेरे अब्बु और भाई की करतूत है.
उसने चौंकते हुए पूछा- क्या मतलब?
मैंने कहा- मेरी नन्ही जान, जब जवानी की प्यास लगती है तब चुदवाने का मन करता है. और जब घर में लंड मौजूद हों तो बाहर का रुख नहीं करना चाहिये. ज़माना बड़ा खराब चल रहा है. हमारी अम्मी का कहना है कि भले ही घर में चुदवा लो, पर बाहर वालों से नहीं क्योंकि साला आजकल एड्स का बहुत लफ़ड़ा है.
मेरे मुंह से चूत और लंड की बात सुनकर उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया, वो बोली- हाय आपा, आप कैसे गंदी बात करती हो? आपको शरम नहीं आती?
तब मैंने कहा- जो लड़की अपने भाई और अब्बु से चुदवा चुकी हो, वो भी अपनी अम्मी के सामने … उसे शरम कहां आयेगी. शरम तो तुझ ऐसे कुंवारी कमसिन छोकरियों को आती है. अब देख तू भी मज़े लेना चाहती है पर शरमा भी रही है. अगर तू शरमा न रही होती तो तुझे थोड़ा सा मज़ा तो मैं ही दे देती.
उसे लाइन पर लाने की गरज़ से मैंने कहा तो वो एकदम से बोली- कहां शरमा रही हूँ आपा आप दबाइये न मेरी चूची … बहुत मज़ा आ रहा है मुझे. प्लीज़ दबाइये न!
मैं समझ गयी अब साली भाई से चुदवा लेगी!
और मैंने उसकी समीज़ भी उतार दी उसकी छोटी छोटी संतरे की तरह चूची एकदम टाइट थी और उसके निप्पल तने हुए थे. मुझे उसकी चूची देखकर अपनी पुरानी चूचियों की याद आ गयी जब मेरी चूची भी कड़ी हुआ करती थी. एक तरह से मुझे उससे जलन का एहसास होने लगा था मगर मैं उसकी निप्पल को मसलते हुए बोली- पता है लड़कियों की जब निप्पल लड़के लोग मसलते है तब उनकी जवानी फ़ड़क उठती है.
और फ़िर मैंने सोचा कि आज तक मैंने कभी किसी लड़की के साथ सेक्स का मज़ा नहीं लिया है क्यों ना आज इसका भी अनुभव कर लिया जाये!
यही सोच कर उसके हाथ अपनी चूची पर रखे और उससे कहा- इन्हें मसल डालो, जोर जोर से दबाओ मेरी चूची को!
वो मेरी चूची दबा रही थी, तब ही मैंने उसकी सलवार की तरफ़ हाथ बढ़ाया तो उसकी सलवार मुझे भीगी भीगी सी लगी. मैं समझ गयी कि साली अभी थोड़ी देर पहले भाई और मेरी चुदायी का नज़ारा देख कर झड़ी है.
मैंने उसकी बुर को सलवार के ऊपर से सहलाते हुए कहा- ये गीली कैसे है अफ़रोज़?
पहले तो उसने वहां से मेरा हाथ हटाया और फ़िर अपने पैर सिकोड़ते हुए बोली- पता नहीं!
तब मैंने उसकी सलवार का इजारबंद (नाड़ा) खोलते हुए कहा- अभी बताती हूँ कि ये गीली क्यों है.
वो अपने दोनों हाथ से मेरा हाथ पकड़ते हुए बोली- नहीं आपा, मैं नंगी हो जाऊँगी. प्लीज़ इसे मत खोलो!
मैंने हंसते हुए कहा- मेरी रानी, मुझे देख, मैं भी तो नंगी हूँ.
और उसके इजारबंद को खोल डाला, उसकी सलवार सरसरा कर पैरों में आ गिरी जिसे मैंने निकाल दिया.
उसकी बुर पे अभी हल्के हल्के सुनहरे बाल थे जो बहुत खूबसूरत लग रहे थे. मुझे इस तरह से अपनी बुर को निहारते देख कर उसने अपने दोनों हाथ से अपनी बुर छुपा ली. मैंने उसकी दोनों चूची को मसलते हुए एक निप्पल मुंह में भर ली और चुभलाने लगी. वो सिसकियां लेने लगी और अपने हाथ अब बुर से हटा कर मेरे सर को अपने सीने पर दबाने लगी.
मैं तो यही चाहती ही थी, मैंने उसकी चूची की चुसायी कायदे से करना शुरु कर दी. मैंने अपने हाथ उसकी बुर की तरफ़ सरकाना शुरु कर दिया और जब हाथ को उसकी बुर पर रख कर सहलाया तो वो बहुत जोर से सिसक पड़ी- ईईस्स स्सस्सस्स आपा … क्या कर रही हैं आप? बहुत गुदगुदी हो रही है!
उसकी बुर बहुत फ़ूली हुई थी और गोल्डन बाल तो कयामत का मंज़र लग रहे थे.
मैंने उसकी झांटें सहलाते हुए उसकी बुर की फ़ांक फ़ैलायी तो अंदर का गुलाबी हिस्सा देख कर मेरा भी मन उसकी बुर चाटने का करने लगा. मैंने सोचा कि आज पहली बार किसी लड़की की बुर चाट कर मज़ा लिया जाये.
और फ़िर उसकी चूची मुंह से बाहर निकाल कर अपने चेहरे को उसकी जांघों के बीच में लकर उसकी बुर की खुशबू लेने लगी. मैंने उससे कहा- अफ़्फ़ो, तुम ऐसा करो कि लेट जाओ, तब ज्यादा मज़ा आयेगा.
मैंने ऐसा इसलिये कहा क्योंकि मुझे अपनी भी चूत तो उससे चुसवानी थी.
और ये कह कर अफ़रोज़ वहीं फ़र्श पर लेट गयी. मैंने उसके बुर की तरफ़ अपना मुंह ले जाकर पहले अपनी जबान से उसकी बुर की फ़ांक को सहलाया, फ़िर धीरे से अपने होंठों में उसकी बुर की फ़ांकों को रख कर चूसने लगी और अपनी चूत को उसके मुंह पर रखते हुए उससे कहा- अफ़्फ़ो, तुम भी ऐसे ही करो मेरे साथ!
उसने कहा- नहीं आपा, मुझे घिन आती है.
तब मैंने उसकी बुर की चिकोटी काट कर कहा- वाह मेरी चुद्दो रानी, मैं चूस रही हूँ तेरी गीली बुर और तुझे शरम आ रही है? चल जल्दी से चुम्मा ले चूत का!
और ये कह कर अपनी चूत को ज़बरदस्ती उसकी मुंह पर अड़ा दिया. वो न चाहते हुए भी चूमने लगी मगर मैं तो बहुत चाव से उसकी छोटी सी बुर को चूस रही थी और अब वो आह आह करने लगी थी, उसकी बुर से बहुत ढेर सारा रस बाहर निकल पड़ा जिसे मैं चूस कर चाट गयी. फ़िर जब उसकी बुर पूरी तरह से चिकनी हो गयी तब उसमे मैंने अपनी एक उंगली घुसेड़ दी.
वो कराह उठी- आआआह आपाजान … क्या कर रही हैं? बहुत दर्द हो रहा है.
तब मैंने कहा- मेरी रानी, अभी बहुत अच्छा लगेगा तुम्हें जरा बरदाश्त करो!
और फ़िर दो उंगली एक साथ उसकी बुर में डाल दी और आगे पीछे करने लगी. अब तो अफ़्फ़ो को भी मज़ा आने लगा, वो मेरी चूत को जोर से शिप करते हुए अपनी चूतड़ को उछालने लगी. मैं भी अपनी अपनी उंगली को बहुत तेज़ी के साथ डालने लगी थी.
तभी वो एक बार और झड़ी और फ़िर सुस्त हो गयी.
तब मैंने पूछा- क्यों रानी मज़ा आया?
उसने कहा- अल्लाह कसम आपा, बहुत मज़ा आया!
तब मैंने कहा- रानी, अगर तुम थोड़ी देर पहले आ जाती तो भाई से चुदवा भी देती तुझे! अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने चुदवाया है.
वो बोली- मैं देख चुकी हूँ आपा आपकी चुदायी! मेरी सलवार तभी गीली हुई थी.
मैंने कहा- हां मुझे पता है तू छुप कर सारा तमाशा देख रही थी. मैंने देखा था. ऐ तुझे आ जाना चाहिये था न! चलो कोई बात नहीं, अब तो तू खुल ही गयी है. मैं भाई से कह दूंगी वो तुझे मज़ा देगा
तब अफ़रोज़ ने कहा- आपा बहुत दर्द होता है क्या चुदवाने में?
मैंने कहा- नहीं, पहले तो थोड़ा सा होगा बाद में सब ठीक हो जायेगा.
“पर आपा, भाई का हथियार भी तो बहुत मोटा ताज़ा है!”
तब मैंने कहा- देख अफ़रोज़, अगर हमारे साथ रहना है तो सब बात खुल कर करनी होंगी. बता उसको क्या कहते हैं?
तब वो शरमाते हुए बोली- लौड़ा कहते हैं आपा.
मैंने कहा- ये हुई न बात! चल अब जल्दी से कपड़े पहन लेती हूँ, भूख भी बहुत लगी है.
तब अफ़रोज़ ने कहा- किस चीज़ की भूख लगी है आपा?
मैं उसकी शरारत समझ गयी, बोली- ज्यादा शरारत न करो. वरना भाई से कह कर तेरी नन्ही सी बुर की धज्जियां उड़वा दूंगी.
तब वो माफ़ी मांगते हुए बोली- रहम करना मेरी आपा, अपनी बहन की इस नाजुक सी चूत पर!
और फ़टाफ़ट हम लोग कपड़े पहन कर नीचे चले आये.
उसके बाद की कहानी मैं अगली बार बताऊँगी.
ओ के तो फ़्रेंड्स … हर बार की तरह इस बार भी मुझे बताइयेगा की कैसी रही मेरी कहानी! Hindi porn Stories
आसाम की हरी भरी वादियों में यदि आप जायें Antarvasna तो आपका मन झूम उठेगा। मैं अपने पति के साथ आसाम के एक ओयल फ़ील्ड में हूं। 15 दिनों तक लगातार यहाँ फ़ील्ड में रहना होता है। केम्प से 3 किलोमीटर दूर ड्रिलिंग मशीन काम कर रही है। उसके लिये उन्हें लाने ले जाने के लिये वाहन की व्यवस्था है।
दिन भर बस दिल कुछ करने को चाहता है। अकेलेपन का अभी कोई साथी नहीं है।
इनके एक अच्छे दोस्त है, मैं उनका असली नाम नहीं बताऊँगी, हम उन्हें करण कहेंगे। 25 वर्ष का हट्टा कट्टा नौजवान है! अभी तक उसकी शादी नहीं हुई है। वो कभी कभी शाम को इनके साथ ड्रिन्क करने आ जाता है। मेरी तरफ़ बडी हसरत भरी निगाहों से देखता रहता है कि शायद कभी कोई इशारा मिल जाये।
मैं समझ कर भी उसे टाल जाती हूं। पर देखिये तो … मौसम की मार … दिल भटकने लग जाता है.
सब कुछ पास में है, फिर भी ये दिल मांगे मोर … मोर …और मोर …
आखिर दिल हार बैठी … मैं करण की ओर देख कर मुस्करा उठी.
उसकी तो जैसे बांछें खिल उठी।
हंसी तो फ़ंसी के आधार पर हमारी गाड़ी आगे बढ़ चली।
जब भी वो शाम को आता तो मैं उसका दरवाजे पर इन्तजार करती, पर वो समझ कर भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
मैं इन्तज़ार करती रही.
पर कब तक … वो तो आगे ही नहीं बढ रहा था।
मैंने उसे अन्त में एक कागज का टुकड़ा लिख के उसे थमा ही दिया।
वो पहले तो घबरा ही गया, फिर उसने मुझे देखा … मेरी आंखों में उसे बस लाल लाल वासना के डोरे दिखे।
‘सुनील कहाँ है?’
‘अन्दर है… आ जाओ… नहा रहे हैं…’ मैंने उसे आंख मार कर इशारा किया।
जैसे ही वो अन्दर आया, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया … मैंने लाज शरम छोड दी.
वो कांप उठा।
‘लड़की हो क्या … ऐसे क्यों कांप गये?’
‘जी… पहली बार किसी ने छुआ है ना!’
‘कल सुनील के जाने के बाद आओगे ना?’
उसने कहा कुछ भी नहीं … बस हाँ में सर हिला दिया।
आज उसकी रात बेचैनी में गुजरी. मेरी भी हालत उत्तेजना के मारे वैसी ही थी।
सुनील के ओफ़िस जाते ही करण आ गया.
कल की उसकी घबराहट देख कर नहीं लग रहा था कि वो आयेगा।
मैंने दरवाजा खोला और उसका हाथ पकड़ कर जल्दी से अन्दर खींच लिया, और फिर से दरवाजा बन्द कर लिया।
‘करण… हाय… तुम आ गये!’ उसका मुख सूखने लगा था।
‘जी…जी… आप ने लिख कर बुलाया था ना…’ करण अटकता हुआ बोला।
‘नहीं तो… कब लिखा था…’
‘ये… है ना…’ वो झेंप गया… और कागज का टुकडा निकाल कर मुझे दिखाया।
मैंने कहा- अरे हाँ … ये तो मैंने ही लिखा है.’ उसे मैंने पढ़ा … और उसे फाड़ कर फ़ेंक दिया.
उसे देख कर लगा कि मुझे ही बेशरमी पर उतरना पडेगा।
‘करण कागज़ क्या है… मैंने तो खुद ही तुम्हें बुलाया था ना…’ मेरी आंखों में फिर वासना के डोरे खिंचने लगे… उसे सामने देख कर मेरी चूचियाँ कड़ी होने लगी।
‘ नेहा जी… आप बहुत अच्छी है… सुन्दर हैं!’
‘सच… फिर से कहो…’ मैं खुश हो उठी… उसे पास बुला कर सटा लिया और उसके गले में हाथ डाल दिया।
‘नेहा जी…मैं आपसे प्यार करता हूं…’
‘अच्छा… तो फिर चलो प्यार ही करो ना… या मैं ही सब कुछ करूं…’ मेरे स्वर में वासनामय विनती थी.
उसने हरी झन्डी पाते ही मुझे धीरे से लिपटा लिया।
मेरे नर्म होंठों पर उसके होंठ रगड़ खाने लगे। मेरा काम सफ़ल हो गया।
अब एक कुँवारा लण्ड मुझे चोदने के लिये तैयार था।
उसने मेरे निचले होंठ को चूमना और चूसना चालू कर दिया।
उसका लण्ड बुरी तरह से फ़ड़क रहा था, इतना कठोर हो गया कि लगता था कि पैन्ट फ़ाड देगा।
‘करण… देखो तुम्हारा नीचे से पैन्ट फ़ट जायेगा… लण्ड तो बाहर निकाल लो!’
‘क्… क्… क्या कहा… लण्ड… हाय’ वो मेरी भाषा से उत्तेजित हो गया…
‘हाँ… देखो तो कितना जोर मार रहा है… मेरी चूंची दबा दो करण…’
‘हाय… नेहा जी… आप कितना सेक्सी बोलती हैं… लण्ड चूची … नेहा जी चूत भी है ना…’
वो मेरी चूची बेदर्दी से दबाने लगा… चूची में दर्द हुआ…पर अनाड़ी का मजा कहीं ज्यादा होता है… मैंने उसका लण्ड पैन्ट से बाहर निकाल दिया… मैं उसे देख कर ही मस्त हो गयी… लम्बा और मोटा सुनील की तरह ही था। मैंने उसके लण्ड को देखा उसकी सुपारे की झिल्ली सही सलामत थी… मैंने जोश में उसे मसलना चालू कर दिया… कस कस कर उसे मुठ मारने लगी।
‘नेहा जी… आऽह हा… बस बस… हाय…’ और ये क्या… उसका वीर्य निकल पड़ा… वो जोर लगा कर वीर्य निकालने लग गया। और हाँफ़ने लगा। मेरी आंखो में वासना के डोरे और खिंच गये… वो मुझसे लिपट पड़ा।
‘नेहा जी… माफ़ करना… ये कैसे हो गया?’
‘पहले कभी लड़की को नहीं चोदा क्या?’
‘नहीं… ये पहली बार आपके साथ मजा आया है.’ उसने सर झुका लिया।
उसकी मासूमियत पर मुझे प्यार आ गया- कोई बात नहीं पहली बार ऐसा होता है… देखना दूसरी बार तुम मुझे पूरा चोद दोगे!
मैं उसे ताबड़तोड़ चूमने लग गयी।
इतना कुँवारा … कि किसी ने उसे छुआ तक नहीं।
मैं तो ये सोच कर ही आनन्दित हो रही थी कि फ़्रेश माल मिल गया है … कोई सेकन्ड हेण्ड नहीं।
मैंने उसका पैन्ट उतार दिया और उसे पूरा नंगा कर दिया।
वो अपना लण्ड छुपा कर सोफ़े पर बैठ गया। उसका सिर नीचे झुका हुआ था।
उसकी एक एक अदा पर मुझे प्यार आने लगा। कुंवारे लण्ड और अनछुए जिस्म का मजा पहले मैं लूंगी… ये सोच सोच कर ही मेरी चूत पानी छोड़े जा रही थी।
‘नेहा जी आप भी तो… कपड़े …’ मेरी बेशर्मी उसे भा रही थी.
मैं मुसकरा उठी … मैंने कमीज़ ऐसी स्टाईल से उतारी कि मेरे बोबे उछल कर बाहर आ गये… फिर जीन्स उतार कर एक तरफ़ रख दी.
मुझे इस तरह नंगी देख कर उसकी आंखें फ़टी की फ़टी रह गयी। उसके मुँह से एक आह निकल पड़ी।
मैं भी चुदने को उतावली हो रही थी।
मैंने उसके पास आकर उसका लण्ड पकड़ लिया… उसे फिर से अच्छी तरह से देखा … सुपारे की चमड़ी धीरे से ऊपर कर दी… सच में उसका मोटा लाल सुपारा और उसकी लगी हुयी स्किन उसकी कुंवारेपन को दर्शा रही थी.
मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में भर लिया… और उसका मर्द जाग उठा… टन से उछल कर खड़ा हो गया… जैसे मैं चूसती, उसका लण्ड मोटा होता जा रहा था… बेहद टाईट हो कर फ़ुंफ़कार उठा… मैंने बेशरमी से उसे न्योता दिया…
‘करण… आओ बिस्तर हमारा इन्तजार कर रहा है… चलें…’
‘जी…जी… क्या करेंगी… बिस्तर पर…’
‘अरे… क्या बुद्धू हो…’ मैं हंस पड़ी ‘चलो चुदाई करते है…’
‘जी… मैंने कभी किया नहीं है ऐसा… सुनो बाद में करेंगे…’
‘क्या… क्या कहा… हाय मर जाऊँ… मेरे राजा…’ मैं उसकी अदा पर बिछ गयी… उसके ऐसा कहने से मैं तो और उत्तेजित हो गयी… उसका हाथ पकड़ कर उसे मैंने बिस्तर पर लिटा दिया।
‘बस पड़े रहो ऐसे ही… तुम कुछ मत करो… ‘
उसके बिस्तर पर सीधे लेटते ही उसका लण्ड ऐसे खड़ा हो गया जैसे कोई लोहे की रोड हो। मैं करण के ऊपर आ गयी… और अपनी चूत को उसके मुख पर रख दिया… और हल्के से चूत दबा दी… मेरी गीली चूत ने उसके होंठ गीले कर दिये-
‘ये तो गीली है… चिकना पानी है.’ उसने अपना मुख एक तरफ़ कर दिया।
‘चाट जाओ करण… पीते जाओ और… जीभ घुसा दो…’ मैंने फिर से चूत को उसके मुख पर चिपका दिया।
मेरा हाथ पीछे लण्ड पर गया… हाय कितना बेचैन हो रहा है… उसने अब मेरी चूत अच्छे से चूसना चालू कर दिया।
मैं भी अब अपनी चूत को उसके होठों पर रगड़ने लगी थी.
अचानक करण ने मेरी चूतड़ों की फ़ान्कों को पकड़ लिया और सहलाने लगा.
उसकी उंगलियां चूतड़ों की दरार में घुसने लगी… अब उसकी एक उंगली मेरी गाण्ड में घुसने लगी थी.
मैं मदहोश होने लगी। मैंने अपनी गाण्ड ढीली छोड़ दी.
उसने पूरी उंगली अन्दर घुसा दी। मैं हौले हौले से अपनी चूत उसके होंठों पर रगड़ रही थी। उसका लण्ड झूम रहा था। उसकी उंगली मेरी गाण्ड को अन्दर घुमा घुमा कर चोद रही थी।
मुझ पर मस्ती चढ़ने लगी थी। उसकी जीभ मेरी चूत में अन्दर बाहर हो रही थी। मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया… एक दम कड़क… टन्नाया हुआ… अनछुआ लण्ड।
अब मैंने अपनी चूत धीरे से हटा ली…
‘करण… मेरी गाण्ड से उंगली निकाल लो प्लीज़ …’
उसने धीरे से अपनी उंगली बाहर निकाल ली…
मैंने अब उसकी कमर के दोनों ओर अपने पैर करके उसके लण्ड पर धीरे से बैठ गयी। उसका लण्ड भी चिकना पानी छोड़ रहा था… मेरी चूत तो वैसे ही चिकनी और गीली हो रही थी।
करण से रहा नहीं गया… उसने नीचे से अपनी चूतड़ उछाल कर लण्ड को मेरी चूत में घुसेड़ दिया… मैंने भी साथ ही ऊपर से जोर लगा कर अन्दर तक बैठा दिया… उसकी चीख निकल पड़ी… उसके लण्ड की चमड़ी फ़ट चुकी थी…
‘नेहा… जलन हो रही है…हटो ना… ‘
‘कुछ नहीं है… करण … सब ठीक हो जायेगा … हाय रे मेरे राजा…’ उसका कुँवारापन टूट चुका था… उसका दर्द मुझे असीम खुशी दे रहा था… उसके कुंवारेपन की कराह मुझे मदहोश कर रही थी।
मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी… और ऊपर से धक्के चालू रखे… वो कराहता रहा…मैं मजे लेती रही…मैंने अब चूतड़ों को उसके लण्ड पर तेजी से मारना चालू कर दिया… अब उसकी कराह खुशी की सिसकारी में बदलने लगी… उसने मेरे बोबे भींच लिये… और अब नीचे से उसके चूतड़ भी उछलने लगे… मैं सातवें आसमान पर पहुंच गयी।
‘मेरे करण… मजा आ रहा है…क्या मस्त लण्ड है… चोद दे रे…’
‘नेहा…मेरी रानी… हाय पहली बार किसी ने…मुझे इतना प्यार दिया है…’
‘मेरे राजा…’
‘नेहा…जोर से धक्के मारो ना…हाय… मुझे ये क्या हो रहा है…’
मैंने भी अब अपनी चूत को भींच भींच कर और टाईट करके चोदने लगी… उसकी चरमसीमा आने वाली थी… मैंने अपनी चूत को उसके लण्ड पर जोर से दबा डाला… मेरी चूत में एक बार तो लण्ड जड़ तक पहुंच गया.
मैंने लण्ड को दबाये ही रखा…और मैंने एक अंगड़ाई ली और करण पर बिछ गयी… मैं झड़ रही थी… मेरी चूत में लहरें उठने लगी थी… और झड़ती जा रही थी… करण का लण्ड भी चूत से भींचा हुआ था… कब तक बचता… उसने भी नीचे से जोर लगाया… और एकबारगी उसका पूरा शरीर कांप गया…
और फिर उसके लण्ड ने चूत की गहराई में अपना वीर्य छोड़ना चालू कर दिया… उसके लण्ड का फ़ूलना पिचकना… और रस छोड़ना बड़ा ही आनन्द दे रहा था.
मैं उस पर थोड़ी देर लेटी रही.
जब हम दोनों पूरे ही झड़ गये तो मैं उस पर से उठी और बिस्तर से नीचे आ गयी.
उसका वीर्य थोड़े से खून के साथ मेरे तौलिये पर गिरने लगा।
लाल लाल खून भरा वीर्य मुझे बहुत सन्तोष दे रहा था।
मैंने कपड़े पहन लिये और करण को निहारती रही।
आखिर वो भी उठा और कपड़े पहन कर तैयार हो गया.
‘नेहा जी… आज आपने मुझे सही मर्द का दर्जा दे दिया… बहुत मजा आया.’
‘आओ एक बार प्यार कर लो… फिर शाम को तो मिलोगे ही!’
‘नेहा जी… कल दिन को…’
‘अभी अपने लण्ड को ठीक तो कर लो… फिर मजे तो करेंगे ही!’
करण ने हाथ हिला कर विदा ली.
मैं आज की चुदाई से खुश थी. Antarvasna
दोस्तो, मेरी यह Hindi Porn Stories पहली और सच्ची कहानी है। मैंने इंटर कर लिया था और मेरा सेलेक्शन एयर फोर्स में हो गया था। मेरा सेलेक्शन १९९३ में हुआ था उसके बाद मैं दिल्ली में अपने मामा के घर रहता था। १९९४ में मुझे किसी कारणवश एयर-फोर्स से निकाल दिया क्योंकि दुबारा मेडिकल हुआ था और मैंने रिश्वत नहीं दी थी। एयर फोर्स वाले ऐडवांस में सेलेक्शन करते हैं और जैसे जैसे जरूरत होती हैं बुलाते रहते हैं।
एयरफोर्स से निकलने के बाद मेरा मूड काफी बिगड़ा हुआ था। मैं सुबह ५:३० पर नहा लेता था। फरवरी का महीना था।
मैं एक रोज सुबह नहा रहा था तो देखा कि एक लड़की जिसका नाम सपना था, वो अपनी छत पर खड़ी थी और मेरी तरफ इशारा कर रही थी। मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया क्योंकि मैं इन चीजों की तरफ खास तवज्जो नहीं देता और मेरे मामा का काफी रुतबा है। मुझे वैसे भी उनसे डर लगता था। इसी वजह से मैंने उसे ठीक तरह से नहीं देखा और सोचा कि शायद मेरे मामा के किसी बच्चे की तरफ देख रही होगी। उस वक्त मेरी उम्र अट्ठारह के आस पास होगी और उसकी उम्र भी मुझसे किसी भी सूरत में ज्यादा नहीं होगी।
अगले दिन वह अपनी छत पर खड़ी थी और मैं नहा रहा था। मैंने देखा तो वह मेरी तरफ इशारा कर रही है। मैंने अपने पीछे देखा कि कोई बच्चा तो नहीं खड़ा है, जिसकी तरफ वह इशारा कर रही है। मेरे पीछे कोई बच्चा नहीं था। अब मुझे पक्का यकीन हो गया कि वो मेरी तरफ ही इशारा कर रही है।
दोपहर बाद सपना मुझे मिली तो मेरी उससे बात करने की हिम्मत नहीं हुई और मेरा दिल धड़कने लगा, मैं उससे नहीं बोला। वह शाम को मुझसे मिली और उस वक्त अँधेरा हो रहा था, कहने लगी- तुम तो बिलकुल बुद्धू हो और कहने लगी मेरे साथ चलो ! मैं भैसों के लिए खल लेने जा रही हूँ।
मैं पहले भी उनके घर जाता आता रहता था क्योंकि मैं उसकी माँ को मौसी बोलता था और सभी को पता था कि मैं एक शरीफ लड़का हूँ, मैं कोई शरारत भी नहीं करता था, मेरा चाल-चलन भी अच्छा था !
मैं सपना के साथ बाज़ार चला गया! रास्ते में काफी प्लाट खाली पड़े थे। सपना मुझसे लिपटने लगी परन्तु मैं बहुत डर रहा था! फिर उसने मेरा लंड पकड़ लिया। वो तो एकदम से तोप की तरह सलामी दे रहा था। मैं सपना की चूचियाँ उसके सूट के ऊपर से ही दबाने लगा तो वह सिसकारी मारने लगी- आ आह ! और जोर से दबाओ ! इन्हें मसल डालो !
मैं और जोर से मसलने लगा क्योंकि मुझे कोई तजुर्बा नहीं था। अतः वह सिसकारी जोर जोर से भरने लगी। जाड़ा पड़ रहा था और जो घर पड़ोस में बने थे कभी उनमें आवाज न चली जाए इसलिए मैं काफी हद तक डर रहा था परन्तु वह नहीं डर रही थी। उसने अपनी सलवार और कमीज़ दोनों उतार दिए जिसके नीचे उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था! मैं उसकी चूत पर हाथ फेर रहा था और वो मेरे लंड पर हाथ फेर रही थी क्योंकि मैंने लुंगी बांध रखी थी और उसके नीचे अंडरवीयर पहन रखा था। मैंने अपना अंडरवीयर नहीं उतारा। उसने कहा- मेरी चूत में अपना लंड बाड़ दो !
मैंने उसे नीचे लिटा लिया और उसके ऊपर लेट कर लंड उसकी फ़ुद्दी में घुसाने लगा पर वो तो अन्दर जा ही नहीं रहा था।
मैंने काफी कोशिश की परन्तु मैं इस काम के बारे में बिलकुल अनाड़ी था। मैंने उससे कहा- सपना, तुम खल लेकर आ जाओ, फ़िर दो घंटे बाद घर के बाहर मिलते हैं !
क्योंकि मुझे डर था कि मामा या मामी मुझे खाना खाने के लिए न ढूँढ रहे हो !
और ऐसा ही हुआ। मुझे घर जाकर पता लगा कि मेरे छोटे मामा जो बंगलौर में फार्मेसी की पढ़ाई कर रहे हैं, वो आने वाले हैं !
छोटा मामा मुझसे केवल दो साल बड़ा है, मुझे बड़ी ख़ुशी हुई! जब मामा आ गया तो मैंने उससे सपना का जिक्र किया क्योंकि मैं और मामा आपस में एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाते और मित्रों जैसा बर्ताव करते हैं।
मामा एक नम्बर का चुदक्कड है, बचपन से ही यह बात मैं अच्छी तरह से जानता हूँ ! मामा सपना की बात सुनकर मुझे कुरेद कुरेद कर पूछ रहा था कि कहीं मैं झूठ तो नहीं बोल रहा हूँ।
मैंने उसे बताया और यकीन दिलाया। परन्तु सपना ने मुझसे कहा था कि यह बात मैं किसी को भी न बताऊँ, परंतु मुझे तो आग लगी थी और कुछ हो भी नहीं पाया था!
मामा ने अपने मकान की बाहर की तरफ किराये के लिए दो दुकानें बना रखी थी जिनमें एक दोतरफ़ा खुलती थी जिसमें कोई दरवाजा अथवा शटर नहीं था। जबकि दूसरी दुकान में दरवाजा बंद रहता था, जिसमे भैंसों के लिए खल पड़ी होती थी, क्योंकि मामा १०-१२ भैंसे रखते थे और दूध भी सप्लाई करते थे और सरकारी नौकरी भी थी। वे दिल्ली में एक स्कूल में टीचर हैं!
मैंने सपना को उस बंद दुकान में आने के लिए कह दिया और घर में मैंने और छोटे मामा ने दुकान में लेटने के लिए कह दिया। मामा योजना के अनुसार पहले दुकान में जाकर छिप गया। हमने दुकान की लाइट भी बंद कर दी थी। मैं सपना का बाहर ही इंतजार करता रहा, तब तक मामा दुकान में सो गया! कुछ देर बाद सपना आई तो मैंने उसे दुकान में अन्दर कर लिया और मामा के बराबर में ही उससे लिपट गया।
उसने पूछा- यह कौन है?
तो मैंने बताया- छोटा मामा है !
तो वह डर गई और जाने का लिए कहने लगी। मैंने कहा- यह तो सफ़र से आया है और थका होने का कारण सो गया है, यह नहीं जागेगा !
मैं सपना और अपने कपड़े उतार कर उसकी टांगो बीच आकर अपना लंड उसकी चूत पर लगा कर झटके मारने लगा। मेरे लंड का सुपाड़ा ही अन्दर जा पाया था। वह धक्का देने लगी और चिल्लाने लगी- मैं मर जाउंगी ! अपना लंड बाहर निकालो !
मैं भी डर गया, परन्तु मैंने चालाकी से मामा के पैर पर अपना घूँसा मार दिया जिससे मामा की नींद खुल गई। मामा जागते ही सारा किस्सा समझ गया और खुद सपना के ऊपर सवार हो गया और मुझसे कहा- इसका मुंह बंद करले नहीं तो रास्ता चल रहा है, हम मारे जायेंगे ! क्योंकि यह चिल्लाएगी, क्योंकि सपना की यह पहली चुदाई होने जा रही थी!
मामा ने जबरजस्ती उसकी चूत में अपना लंड घुसेड़ दिया। फिर धीरे धीरे सपना शांत हो सकी और मस्ती लेने लगी और अपनी गांड उठा उठा कर नीचे से धक्के देने लगी। हमेशा से मैं और मामा एक साथ सोते थे! अब तो हमारी रोज की दिनचर्या बन गयी सपना रोज रात को १२ बजे के बाद आती और मैं और मामा उसे तबियत से चोदते !
यह सिलसिला हमारा लगभग एक साल तक चलता रहा। परन्तु उसके घर वालो को शक हो गया और हमने उससे मना कर दिया ताकि हमारी वहां बदनामी न हो सके, क्योंकि वो रात रात भर घर से गायब रहने लगी थी और शराब भी पीने लगी थी क्योंकि उसने कहीं और भी सम्बन्ध बना लिए थे।
हमारे बीच वाले मामा और बीच वाली मामी को पता लग गया था। मामा ने कहा कि कोई बात नहीं है, बच्चे हैं, इस उम्र में ऐसा होता है !
परन्तु हमारी बीच वाली मामी बोली कि तुम्हारी मम्मी और बड़ी मामी को बता देगी क्योंकि हमारी बड़ी मामी बड़ी कड़क और गुस्से वाली है। तो बड़े मामा को भी पता चलता और मेरे पापा को भी पता चलता ! परन्तु हम फिर भी मौका देखकर सपना के साथ सेक्स कर लेते थे।
उसके बाद उसकी शादी हो गई।
दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसे लगी जरूर लिखियेगा। यह मेरी पहली कहानी है और मैं कोई लेखक नहीं हूँ. जैसे जैसे विचार आते रहे, मैं लिखता गया ! जल्दी ही आपसे रूबरू होता हूँ। आपके जवाब और विचार के इंतजार में !! Hindi Porn Stories
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