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मेरा नाम स्मिथ है। जो Antarvasna मैं कहानी आप को सुनाने जा रहा हूँ वो बिल्कुल सच्ची है। मैं हिमाचल में रहता हूँ मनाली में ! अन्तर्वासना पढ़ने वालों को सभी को मालूम होगा मनाली की हसीन वादियों के बारे में !
मेरा मनाली में अपना साइबर कैफे था। अगर साइबर कैफे है तो वहाँ पर लड़के और लड़कियों का आना-जाना तो लगा ही रहता था। मैंने वो कैफ़े चार साल तक चलाया। उस समय मेरी उम्र 24 साल की थी।
मेरे कैफ़े में बहुत सी लड़कियाँ आती थी और मैं उन्हें देख कर बहुत खुश होता था। कभी वो मुझसे पूछती- स्मिथ बताओ न कि यह फाइल मैं कैसे सेंड करूँ? या ये फोटो मैं कैसे डाउनलोड करूँ ! तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता था। मैं उनके साथ केबिन में बैठ जाता और उन्हें बताने लगता और कभी कभी मैं अपनी बाजू उनके स्तन पर लगा देता। कुछ तो मुझे अनदेखा कर देती पर कुछ बोल देती- भैया, क्या कर रहे हो !
तो मैं जल्दी से उन्हें सॉरी बोल देता और वो भी इट्स ओके बोल कर मान जाती ! पर मैं था भी स्मार्ट 5.8 और मेरा पप्पू था छोटा तकरीबन 5 इंच !
तभी मेरे कैफे में एक लड़की जिसका नाम शालिनी था, उसने आना शुरू कर दिया था। वो बड़ी सेक्सी थी। शुरू में जब वो आती तो नेट पर थोड़ी देर ही बैठती थी और चली जाती थी। वो मुझे अच्छी लगती थी। फिर उनसे आना बंद कर दिया।
तकरीबन एक महीने बाद वो आई तो मैंने उससे पूछ लिया- शालिनी, बहुत दिनों के बाद आई हो !
तो उसने कहा- क्यूँ? मेरी याद आ रही थी क्या?
तो मैं भी मुस्कुरा कर बोला- हाँ, आ तो रही थी !
तो वो मुझे बताने लगी- मैं घर गई थी ! मेरा घर रेवाल्सर में है।
फिर वो रोज़ मेरे कैफे में आ जाती और 3-4 घंटे तक बैठी रहती।
एक दिन उसने मुझे बुलाया और कहा- मुझे आपकी मदद चाहिए ! मैं फाइल कैसे डाउनलोड करूँ?
मैं उसे बताने लगा और साथ में मैंने अपनी बाजू उसके स्तन पर रख दी और की-बोर्ड पर टाइप करते हुए मैं उसके वक्ष को छूने लगा, मेरा छोटा सा पप्पू 5 इंच का खड़ा हो गया। उसे भी अच्छा लग रहा था और उसने भी मुझे कुछ नहीं कहा।
तभी बाहर 1-2 ग्राहक आ गए तो मुझे उठ कर जाना पड़ा और मैं उसे छोड़ कर चला गया।
शालिनी अब रोज़ मेरे पास आ जाती और किसी न किसी बहाने से मुझे अपने पास बुला लेती। पर मुझे भी अच्छा लगता था और फिर वही मैं टाइप करते करते उसको छू लेता था और मेरा पप्पू सलामी देने लग जाता।
मैं दिन में 3 से 4 बजे तक लंच करने जाता था। वो एक दिन आ गई और कहने लगी- मुझे अभी नेट पर जरूरी काम है !
मैंने कहा- मैं तो अभी लंच करने जा रहा हूँ !
तो कहती- प्लीज़ ! थोड़ी देर !
फिर मैंने कहा- शालिनी, कोई और ग्राहक आ गया तो मैं उसे भी मना नहीं कर पाऊँगा !
तो मैंने उसे कहा- मैं शॉप बन्द कर देता हूँ और तुम अंदर बैठ जाओ !
तो उसने कहा- ठीक है, पर मुझे आपकी मदद भी तो लेनी है !
मैंने कहा- ठीक है !
और मैं शॉप बंद करके उसके साथ बैठ गया। खुश तो मैं आज बहुत था कि शायद कुछ बात बन जाये और मैं उसके साथ थोड़ा चिपक कर बैठ गया।
दोस्तो, आप को पता ही है कि मनाली में बर्फ गिरती है तो सर्दी भी बहुत थी। मैंने शालिनी को शालू कह कर बुलाया तो वो कहने लगी- मुझे बहुत अच्छा लगा आपने मुझे शालू कहा !
और हम बातचीत करने लग गए। तभी मैंने कहा- शालू आप को बुखार देखना आता है?
तो कहने लगी- हाँ !
मैंने अपनी बाजू उसके हाथ में दे दी और वो देखने लग गई, बहुत देर तक उसने मेरी बाजू को पकड़े रखा। जब उसने मेरी बाजू पकड़ी हुई थी तो मैंने आँखें बंद कर ली और मेरा छोटा पप्पू तन गया। मन में मैं सोच रहा था कि यह ऐसी ही मुझे पकड़ कर रखे ! अच्छा लग रहा था !
और तभी जब मेरी आँखें बंद थी तो शालू ने अपने पतले पतले होंठ मेरे होटों पर रख दिए।
मैंने कहा- शालू, यह क्या कर रही हो?
कहती- चुप रहो ! जैसे तुम्हें पता न हो !
मुझे अच्छा लग रहा था, मैं भी उसके होटों को बहुत देर तक चूमता रहा और मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। अब तो मानो ऐसा लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ ! तभी मैंने धीरे धीरे अपने हाथ उसके स्तन पर रख दिए।
शालू ने नीली ज़ीन्स और गुलाबी स्वेटर पहनी थी। मैं उसके स्तनों को छू कर रहा था स्वेटर के ऊपर से ! तभी मैंने अपना हाथ उसके स्वेटर के अंदर से डाला और मैं अपना हाथ उसके पेट पर फ़ेरने लगा और धीरे धीरे उसकी ब्रा तक पहुँच गया।
वो भी गर्म हो रही थी, उसे भी अच्छा लग रहा था।
मैंने कहा- शालू, मेरी जान !
तो शालू बोलती- बोलो मेरी जान !
मेरा मन करता है कि मैं आप को ऐसी ही चूमता रहूँ !
शालू कहती- तो करो न ! मैंने कब आप को मना किया !
और शालू ने अब मेरा पप्पू मेरी जींस के ऊपर से पकड़ लिया। उस समय तो मैं पागल हुए जा रहा था। तभी मैंने शालू की स्वेटर उतार दी। वो सिर्फ़ ब्रा के ऊपर स्वेटर पहनी हुई थी। मैंने पहली बार किसी लड़की को ब्रा में देखा था।
मैं उसके स्तनों पर चुम्बन करने लग पड़ा। उसके मुँह से आः आआआआ ह़ा आःआआ की आवाज़ आने लगी।
तभी मैं उसकी ब्रा खोलने की कोशिश करने लगा पर मुझसे उसके हुक नहीं खुल रहे थे। 2-3 मिनट तक लगा रहा तो उसने कहा- ब्रा खोलनी नहीं आती है क्या?
तो मैंने कहा- पहली बार खोल रहा हूँ !
वो मुस्कुरा दी और खुद ही खोल दी। अब मैं उसके चुचूक को अपने मुँह में लेकर चूस रहा था और वो भी मज़ा ले रही थी। मेरा तो मन कर रहा था कि उसको खा जाऊं पर उसकी चूचियाँ थोड़ी छोटी छोटी थी।
तभी शालू कहती- अपनी पैंट खोल दो न !
मैंने कहा- आप ही खुद खोल दो !
तो उसने मुझे खड़ा किया और मेरी पैंट खोल दी। उस दिन मैंने अण्डर्वीयर नहीं पहना था और शालू मेरे पप्पू को चूसने लगी। क्या बताऊँ जिन्दगी का पहला अनुभव था वो मेरा !
मैंने कहा- शालू, अपनी ज़ीन्स खोल दो !
तो उसने भी झट से खोल दी और मैं उसको पागलों की तरह जांघों पर चूमने लगा। उसे भी बहुत अच्छा लग रहा था। तभी मैंने उसकी पैन्टी उतार दी और उसकी फुद्दी में ऊँगली डाल दी।
वो चीख पड़ी, मुझे कहने लगी- स्मिथ अब करो न ! जल्दी अपना प्यारा सा पप्पू मेरे अंदर डाल दो !
मैंने कहा- मेरे पास कंडोम नहीं है !
तो कहती- कोई बात नहीं ! डाल दो न जल्दी से !
तो मैंने उसको अपनी गोद में बिठाया और अपना लण्ड उसकी फुद्दी में डालने लगा और वो चीखने लगी- धीरे धीरे करो न !
पर उस समय तो मुझे कुछ नहीं सुनाई दे रहा था और मैंने शालू की फुद्दी के अंदर अपना पप्पू डाल दिया और लगा मैं उसे अंदर-बाहर करने !
अब वो भी पूरा मज़ा ले रही थी और हम पागलों की तरह घुच-घुच कर रहे थे। लगभग दस मिनट तक सेक्स करने के बाद मैंने कहा- शालू, अब मैं अपना माल निकालने वाला हूँ, मुझसे कण्ट्रोल नहीं हो पा रहा है !
तो वो बोली- निकालो न जल्दी से ! पर मेरी फुद्दी के अंदर मत निकालना !
पर मेरे से अपना पप्पू बाहर नहीं निकाला गया और मैंने अंदर ही छोड़ दिया।
मैं और शालू थोड़ी देर तक वैसे ही बैठे रहे। अब 4 बजने वाले थे और मुझे शॉप को खोलना था।
तो मैंने कहा- शालू, चलो अब चलते हैं !
तो वो भी मान गई। अब तो हम दोनों खुश थे। वो दिन में आ जाती और हम अब रोज़ सेक्स किया करते थे।
दोस्तो, कैसे लगी आपको मेरी कहानी? Antarvasna
सोनू सो चुकी थी। श्याम Antarvasna के सात बज चुके थे। मेरे दोस्त के आने का भी समय हो चुका था। मैंने अपने दोस्त को फ़ोन करके सब बता दिया था। वो ठीक सात बजे आ गया। सोनू नंगी ही सो रही थी।
मेरे दोस्त राहुल ने आकर उसे निहारा और उसे उठा दिया। हमने उसे बाथरूम मैं जा कर फ्रेश होने को कहा। वो फ्रेश हो कर आई और मेरे दोस्त राहुल से अपनी नंगे बदन को छुपाने लगी। हमने उसके कपड़े छुपा दिये थे। वो नंगी ही घूम रही थी। हमने उसको अपने पास बैठाया और बातें करते हुए सब चाय पीने लगे। मेरे दोस्त ने उसका मम्मा पकड़ते हुए कहा- बहुत सेक्सी हो ! अब तुम हम दोनों से चुदोगी !
वो डर गई।
मैंने कहा- घर फ़ोन कर दो कि आज रात तुम अपनी सहेली के यहाँ रुक रही हो।
वो कहने लगी- मुझे घर जाने दो ! मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ !
मैंने कहा- साली ! तुम्हारे कपडे तो हमारे पास हैं नंगी जाना हैं तो जा !
मैंने सोनू की सोते वक्त नंगी फोटो निकाल ली थी। मैंने जब उसकी फोटो दिखाई तो वो डर गई और रात भर हमारे साथ सोने तैयार हो गई। उसने अपनी बहन सुनयना को फ़ोन कर दिया कि वो रात को घर नहीं आएगी, अपनी सहेली के यहाँ रुक कर टेस्ट की तैयारी करेगी।
जब वो सुनयना को फ़ोन कर रही थी तो मैंने अपने दोस्त को कहा कि सोनू के बाद इसकी बहन सुनयना को चोदना है।
मेरे दोस्त ने कहा- पहले इसे तो ठंडा कर दे, फिर इसकी बहन को भी देख लेंगे और हम हँस पड़े। मेरे दोस्त ने सोनू की ओर देखा और लण्ड पर हाथ लगाया और उसको आंख मारी। वो शरमा गई और चेहरा नीचे कर लिया।
मेरे दोस्त ने उसको पकड़ा और बेड पर लेटा दिया। मैं भी उसके साथ लेट गया। हम दोनों ने उसका एक एक मम्मा संभाल लिया और चूसने लगे।
वो सिसकियाँ ले रही थी और बोल रही थी- सोरी ! थैंक्यू ! मुझे माफ़ कर दो ! शाबाश ! स्स्स्स् !
मैं अपनी जीभ से उसके मम्मे की डोडी चूस रहा था। एक हाथ से मैंने मम्मा पकड़ा था तो दूसरे हाथ से उसका पेट सहला रहा था।
मेरे दोस्त ने भी एक हाथ से उसका मम्मा पकडा था और दूसरे हाथ से उसकी चूत सहला रहा था। वो आहें भरती जा रही थी। आधा घंटा हम उसका जिस्म सहलाते रहे। बाद में मेरा दोस्त उठा और हमने अपने कपडे उतार दिये। हमने अपने अंडरवियर उतारे और अपने कड़क लोडों से उसको सलामी दी। फिर हमने उसका कसा हुआ बदन हाथो में लिया और सहलाने लगे।
मैं उसकी चूत चाटने लगा और मेरा दोस्त उसे चूमने लगा। वो बुरी तरह तड़प रही थी और पागल हो रही थी। मेरा दोस्त कभी अपनी जीभ उसके मुंह में डाल देता तो कभी उसकी जीभ मुँह में लेकर चूसता। मैं उसकी जांघों पेट पर हाथ और मुँह फिरा रहा था।
अब वो कहने लगी- प्लीज़ ! मुझे और न तड़पाओ और मुझे चोदो।
हम हँस पडे और उसको छोड़ दिया और चल पड़े।
वो कहने लगी- कहाँ जा रहे हो?
मैंने कहा- सोने जा रहे है !!
वो चिल्ला रही थी- मुझे अधूरा मत छोड़ो !
हमने ध्यान नहीं दिया। वो रो रही थी और हमसे लंड की भीख मांग रही थी।
मैंने कहा- एक शर्त पर तुझे चोदेगे ! तू हमारे लौड़े चूसेगी और उनका पानी भी पीयेगी ! और आज तुझे ब्लू फ़िल्म भी बनवानी पड़ेगी।
वो पहले तो नहीं मानी पर बाद में लंड की प्यास ने उससे हां करवा ली। हम अपनी कामयाबी पर खुश थे।
मैंने दोस्त का डिज़ी-कैम सेट किया। उसको दोबारा कपड़े पहनाए और सेक्स शुरू किया। मैंने और मेरे दोस्त ने फिर वो सब किया जो पहले किया था। अब वो नग्न थी और हम भी नग्न थे। वो लंड को भू्खी शेरनी की तरह तरस रही थी। मेरे दोस्त ने अपना लौड़ा उसके मुँह में डाल दिया। वो पन्दरह मिनट उसे चूसती रही। कभी सुपारा मुंह में डालती तो कभी पूरा लंड लॉलीपोप की तरह चूसती।
मेरे दोस्त ने कहा- बस कर मेरी कुतिया ! अब साली ! रण्डी ! मादरचोद ! तेरे को चोदेगे।
वो कहने लगी- गालियाँ मत दो मुझे !
मेरे दोस्त ने कहा- और क्या तेरी पूजा करें रांड ! साली रंडी बन कर तू ही हमारे से चुदवाने आई थी और उसे बेड पर पटक दिया। मेरे दोस्त ने मुझे इशारा किया और मैं उसके मुँह की तरफ़ जा कर बैठ गया। मेरे दोस्त ने उसकी चूत पर हाथ फेरा और अपना लंड उसकी चूत पर लगाया। उसका लंड मेरे से भी कही ज्यादा लंबा और मोटा था।
उसने जैसे ही लंड उसकी चूत में डाला, वो चिल्लाई जैसे ही उसका मुँह खुला मैंने अपना लंड उसके मुंह में डाल दिया और उसकी छाती पर बैठ गया। मैं उसके मुंह को चोद रहा था और दोस्त उसकी चूत ठोक रहा था। मुँह में लंड होने की वज़ह से वो चिल्ला नहीं पा रही थी, केवल गु गु ही कर रही थी।
१५ मिनट बाद मेरा उसके मुँह में ही छुट गया। वो सारा जब तक उसके गले में नहीं उतर गया तब तक मैंने अपना लंड बाहर नहीं निकाला। अब मैं जैसे ही नीचे उतरा, वो चिल्लाने लगी- मुझे माफ़ कर दो ! मुझे छोड़ दो ! जाने दो।
मेरा दोस्त बोला- रांड ! चुप अभी तो शुरूआत है ! पूरी रात तेरे को चोदेंगे ! मुश्किल से इतना गोरा और सेक्सी माल हाथ लगा है !
मेरा दोस्त आधे घंटे बाद शान्त हुआ।
अब मैं फ़िर तैयार हो गया।
वो माफ़ी मांग रही थी और सोना चाहती थी। मैंने कहा- रांड ! कुतिया ! तेरे को सोने के लिए नहीं रखा है ! चल अभी तो तेरी गांड भी मारनी है ! फिर हमने उसे बारी बारी ५-५ बार चोदा। सुबह चार बजे हमने कुछ आराम किया, फिर हम गांड मारने को तेयार हो गए। वो थक चुकी थी, पर हम कहाँ मानने वाले थे।
मेरे दोस्त ने उसे घोड़ी बनाया और अपना लंड तेल लगा कर उसकी गाण्ड के अन्दर डालना चालू किया। सोनू चिल्ला रही थी और नहीं ! नही ! बोल रही थी। दोस्त दनादन चोद रहा था और बोल रहा था- चल मेरी रांड ! लम्बी रेस की घोड़ी !
बाद में मैंने उसकी गांड मारी। ६ बजे हम सो गए।
९ बजे हम सब उठ कर नहाए धोए। फ़िर सोनू को उसकी फ़िल्म दिखायी। बहुत ही बढ़िया मूवी बनी थी। मेरे दोस्त ने कहा- अब तू है हमारी ! हम जब भी तेरे को बुलाएँगे, चुप करके आ जाना ! नहीं तो सारे मुहल्ले में तेरी फ़िल्म दिखा देंगे और अगली बार अपनी बहन सुनयना को भी लेकर आना, उसे भी अपनी रांड बनाएँगे ! नहीं तो हम से बुरा कोई नहीं होगा।
वो हमारी मिन्नतें करने लगी और अगली बार बहन और ख़ुद हमेशा आने का वादा करके इजाजत मांगने लगी। हमने उसे बारी बारी चूम, चाट, भींच, दबा कर उसे भेज दिया।
सुनयना की पिटाई और चुदाई और सोनू की चाचा जी से चुदाई और समूह में दोनों बहनों की चुदाई दोस्तों अगली बार लिखूँगा।
मेरी कहानी कैसी लगी ? Antarvasna
लकी प्रोजेक्ट गाइड ‘ मेरी Sex Stories ज़िन्दगी का वो रूहानी अनुभव है जिसे मैं ताज़िन्दगी नहीं भूल पाऊंगा… उसे शब्दों में बयाँ कर पाना बहुत मुश्किल है। मैंने सोचा नहीं था कि कहानी इतनी लंबी हो जायेगी कि उसे दो-तीन किश्तों में लिखना पड़ेगा… इसीलिये मैंने उसे सिर्फ़ “लकी प्रोजेक्ट गाइड” नाम दिया था.. पर अब तो उसे “लकी प्रोजेक्ट गाइड-१” ही कहना पड़ेगा…
खैर.. “लकी प्रोजेक्ट गाइड” में आपने पढ़ा कि हम दोनों ऑर्गाज़्म पर पहुँच चुके थे… पसीने से तर-बतर हो चुके थे.. मेरा लंड शशि की चूत द्वारा निचोड़ा जा चुका था…. मैंने उसकी कमर के खम को पकड़ा और एक झटके से पूरे लंड को बाहर निकाल दिया…शशि के योनिपटों पे घिसटता हुआ लंड जैसे ही बाहर निकाला.. उसके नितंब थरथराये और उसके मुंह से एक संतुष्ट और मादक आवाज़ निकली…”आऽऽऽऽऽऽह…..”
हम दोनों फ़र्श पर ही लेट गये…निर्वस्त्र…उनींदी आँखों से छत को ताकते हुये…
जाने कब मेरी आँख लग गई थी पता ही नहीं चला….
अचानक खुली तो देखा कि शशि मेरे सुकड़े हुये लंड का फ़ोरस्किन खिसका रही थी…और सुपाड़े के सुराख को (जहाँ से वीर्य निकलता है) बड़े प्यार से निहार रही थी….
और धीरे-धीरे अपने जीभ के अग्रभाग को नुकीला सा करके उसमें मानो घुसेड़ने की कोशिश कर रही थी…
नसों में फ़िर से संचार शुरू हो गया…. और इतनी तेज़ हुआ कि कुछ ही पलों में मेरा लंड अपनी पूरी लम्बाई में आ गया…
उसने फ़ोरस्किन को पूरा नीचे खींच दिया…. सुपाड़ा बड़ा ही भयावह लग रहा था… लाल… खूब फ़ूला हुआ…
उसने अपना थ्री-मेगापिक्सेल कैमरे वाला मोबाइल उठाया… क्लिक… क्लिक… क्लिक… अलग-अलग कोणों से तकरीबन दस फ़ोटो लिये…. कैमरा एक तरफ़ रखा…. अपनी दोनों टाँगों को मेरे पूरी अदा से इठलाते हुये मेरे कमर के आजू-बाजू रखा….. अपना मुँह मेरी तरफ़ झुकाया… अपने सुडौल स्तन मेरी छाती पे दबाए…. चुम्बन लिया… इस तरह उसके नितम्ब थोड़ा ऊपर हुये…. मेरा लंड अपने हाथ से पकड़ा…. और सुपाड़े को योनिद्वार पर रगड़ने लगी….
जितनी सिसकारियाँ उसके मुँह से निकल रही थीं उससे ज़्यादा मेरे मुँह से निकल रही थीं…. रहा नहीं जा रहा था… हाय ये भूख…. जितना खाओ उतनी ही बढ़ती है…. हाय ये प्यास… कभी ना खत्म होने वाली प्यास…
आधे घंटे पहले लग रहा था कि बस आज के लिये काफ़ी हो गया.. और अब… देर करने का मन नहीं हो रहा था…. मैं बेसाख़्ता उसके होठों को चूसने लगा… उसकी गर्दन चाटते हुये मेरी जीभ उस दरार में पेवस्त होने लगी जिसे वो ऑफ़िस में छलकाती दिखाती थी…. मेरी नाक भी दोनों स्तन के बीच आ गई थी….और मैं उस खुश्बू से मदहोश होता जा रहा था….दोनों हाथों से उसके स्तन अगल-बगल से इस तरह भींचा..कि मेरी नाक…मेरा मुँह….मेरी जीभ…और मेरा पूरा वज़ूद उसके अमृत कलशों के बीच समा गया…मुझे लगा…स्वर्ग अगर कहीं है….तो यहीं है…यहीं है…बस यहीं है….
अचानक मुझे लंड पे कुछ नमी का अहसास हुआ….
“आय एम ड्रिपिंग”…. उसने वही शोख…. वही मादक… वही सरसराती सी आवाज़ में मेरे कान में कहा…..
और आहिस्ता-आहिस्ता मेरा सुपाड़ा उसकी गहराइयाँ नापने लगा…. अंदर काफ़ी लसलसापन था.. गर्माहट थी….
उसने कुछ सेकंड के लिये अपने चूतड़ों को वैसे ही हवा में रखा…. फ़िर धीरे धीरे इस तरह ऊपर-नीचे हिलाने लगी कि लंड का सिर्फ़ तीन-चार इंच अंदर-बाहर हो रहा था…..
करीब उसके बीस बार ऐसा करने के बाद मैं इतना उत्तेजित हो गया कि अपने कूल्हे की सारी मांस्पेशियों की ताकत इकट्ठा करके एक जोरदार झटका ऊपर की ओर दिया..
कि पूरा का पूरा लंड सरसराता हुआ अंदर हो गया….
“ओ माय गॉड”…वो चीखी…
और भरभराते हुये मेरे लंड को चूत में निगलते हुये बैठ गई….
लंड को अंदर लिये-लिये ही अपने चूतड़ों को आगे-पीछे और गोल-गोल घुमाने लगी…..
उसकी झाँटें मेरी झाँटों को रगड़ते हुये अजीब उत्तेजना पैदा कर रही थी….. पन्द्रह-बीस मिनट तक यही चलता रहा। कभी मैं उसके दोनों स्तनों को पकड़ता… उन्हें चूसता… चाटता…. और कभी उसके चूतड़ों में चपत लगाता… उन्हें मसल देता फिर नीचे को ओर(अपनी ओर) धक्का देता..।
अब मैं भी अपनी गांड़ का छेद सिकोड़कर अपनी चूतड़ों को ऊपर नीचे कर रहा था… वो और जोर सी चीखने लगी… चीखते-चीखते उसका पूरा शरीर मेरे ऊपर गिर सा पड़ा…. धड़कनें और साँसें धौंकनी की मानिन्द चल रही थीं….वो अभी भी चूतड़ों को धीरे-धीरे हिला रही थी….उसकी चूत से निकला कामरस मेरी झाँटों और अंडों को भिगोता हुआ अनवरत बहता जा रहा था ….
कुछ देर में वो निश्चेष्ट सी मेरे ऊपर पड़ी थी, अचानक मैंने अपने चूतड़ उछालने की स्पीड बढ़ा दी….करीब पच्चीस धक्कों के बाद मैं इतने जोर से स्खलित हुआ कि एक तेज़ धार उसके चूत के अंदर के दीवारों पर पड़ी और वो चिहुँक उठी….मैं धीरे-धीरे हिलाता हुया शांत हो गया…..पुरसुकून शांत…संतुष्ट और तृप्त…!!
शशि….अगर तुम कहीं यह पढ़ रही हो… तो शुक्रिया… मुझे वह शाम देने के लिये… वो यादगार लम्हा देने के लिये… ( और अपनी दो और सहेलियाँ देने के लिये..)
काफ़ी देर तक वैसे ही पड़े रहने के बाद हम दोनों उठे… चाय बना के पी … और मैं उसे एक और शाम का वादा करके उसके कज़िन के घर छोड़ आया… मेरे लंड की फ़ोटो उसके पास रह गई थीं… उसके चूत की यादें मेरे साथ आ गईं थीं।
समय अपनी गति से चलता रहा… प्रोजेक्ट अपनी गति से चलता रहा….
उस दिन मैं शाम को ऑफ़िस से लेट लौट रहा था…. ट्रैफ़िक बहुत ज़्यादा थी… मेरी बाइक बस स्टॉप के ठीक सामने थी… अचानक पीछे से आवाज़ आई.. “सर”
मैंने ध्यान नहीं दिया… एक हाथ ने मेरे कंधे को छुआ… वो स्मिता थी… साँवली… बड़ी-बड़ी आँखों वाली… ढीला-ढाला सा सलवार कुर्ता पहने हुये… दुपट्टा पूरे वक्षस्थल को ऐसे ढके हुये कि जिसमें देखकर लगता था कि अंदर खाली है।…कुर्ता इतना ढीला और बड़ा था कि नितम्भ का आकार भी नहीं दिखता था। कुल मिला कर उसमें कोई सेक्स-अपील नहीं नज़र नहीं आती थी।
“स्मिता?… हियर?… व्हाट हैप्पेंड?… मिस्ड योर बस?”
“यस सर…वुड यू प्लीज़ ड्रॉप मी टू नेक्स्ट स्टॉप?”
“ओह श्योर?” ऊपर से उत्साहित और अंदर से खीझा हुआ मैं बोला।
स्मिता पीछे क्रॉस-लेग (टाँगों को दोनों तरफ़ करके) बैठी, जैसे ही ट्रैफ़िक कम हुआ, मैंने बाइक बढ़ा दी। मैं उसको जल्दी से पहुँचा देना चाहता था पर अफ़सोस कि अगले स्टॉप में भी कोई बस नहीं थी। रिमझिम बारिश शुरू हो गई थी।
“अब क्या करें?” मैंने कहा।
“सर… मैं अपना मोबाइल भूल गई… आपके मोबाइल से एक कॉल कर लूँ?”
“श्योर..”
तब तक बारिश कुछ तेज हो गई थी, हम दोनों भीगने से बचने की नाकाम कोशिश करते रहे।
बादल छाये रहने के कारण शायद मोबाइल में नेटवर्क नहीं था, आसपास कोई बूथ भी नज़र नहीं आ रहा था।
“अर्जेंट है?” मैंने पूछा।
“हाँ…” उसने कहा।
मेरा घर वहाँ से सौ कदम पे था।
मैंने बेमन से कहा,”चलो मेरे घर.. लैंडलाइन से कर लेना !”
सुनते ही उसकी आँखों में अजीब सी चमक आई…
खैर हम लोग घर पहुँचे…. काफ़ी भीग चुके थे… उसने फ़ोन लगाया और जाने क्या-क्या बातें करती रही… मैं भीतर जाकर कपड़े बदल कर आ चुका था, वो तब भी फ़ोन पे लगी हुई थी… बात करते-करते अनजाने में (यह मुझे तब लगा था… बात में पता चला कि वह हरकत जान-बूझकर की गई थी) उसने भीगा दुपट्टा निकालकर एक तरफ़ रख दिया और मेरे पूरे शरीर में एकबारगी झुरझुरी सी हो गई…. सामने का नज़ारा ही कुछ ऐसा था…
उसने लो-कट (गहरे गले वाला) कुर्ते के अन्दर एक महीन सा शमीज़ पहन रखी थी जो कि पानी में उसके बदन से चिपक गई थी और उसके ठंड से नुकीले हो चुके काले-काले निप्प्ल साफ़ नज़र आ रहे थे ! पॉपिन्स के साइज़ का ऐरोला भी दिखाई दे रहा था और झटका खाने वाली बात यह थी कि उसके स्तन एकदम तने हुये बहुत बड़े-बड़े थे, इतने बड़े जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी, जिनको वो ढीले-ढाले कुर्ते और दुपट्टे के नीचे ढकी रहती थी। स्तनों का आकार साफ़ दिखाई दे रहा था और मेरी हालत वैसी ही हो रही थी जैसे उपवास के दिन मिठाइयों को देखकर होती है…
उसने फ़ोन रखा और अचानक अपना सर ऊपर उठाया और मेरी चोरी पकड़ी गई (तब तक तो मैं उसे चोरी ही समझ रहा था…. मुझे थोड़ी पता था कि जाल बिछा हुआ था… मैं दाना चुग रहा था… और सैयाद की आँखों में चमक थी… शिकार को दाना चुगते देखने की चमक….. या खुदा…. इन लड़कियों के लिये कितना आसान होता है लड़कों को पटाना…)
कातिल मुस्कुराहट के साथ उसने पूछा,”सर आपके पास आयरन बॉक्स है?”
“य.य..यस….है !” मेरी तंद्रा भंग हुई…
“मैं ये कुर्ता आयरन कर लेती हूँ…थोड़ा सूख जायेगा… तब तक इफ़ यू डोंट माइन्ड… आपका कोई शर्ट पहन लूंगी !”
“नो प्रॉब्लम…”
मैं आगे-आगे बेडरूम की तरफ़ चला… वो पीछे-पीछे आई… मैं एक शर्ट निकालने लगा… वो मेरी तरफ़ पीठ करके कुर्ता उतारने लगी… मैंने शर्ट उसको दिया..
“प्लीज़ बाहर जाइये ना !”
तब तक भी मैं उसे शर्मीली सी लड़की समझ रहा था।
मैं हॉल में चला गया… अंदर एक तूफ़ान सा उठा हुआ था… स्मिता के निप्पल.. ऐरोला.. पुष्ट स्तन… मेरी आँखों के सामने घूम रहे थे और मन ही मन आत्मग्लानि भी हो रही थी कि मैं इतनी सीधी-साधी लड़की के बारे में इस तरह से सोच रहा था। अचानक स्मिता आ गई… मेरी शर्ट पहने हुये…. चुस्त… इतना चुस्त कि दूसरे नम्बर का बटन जैसे खुला जा रहा था… वक्ष बाहर छलक रहे थे… थोड़ी सी झिर्री से स्तन की अंदर की मादक दरार और गोलाइयाँ झाँक रहे थे… और मेरी नज़र हट नहीं रही थी…. हालांकि स्मिता साँवली सी थी पर उसके स्तनों का रंग गोरा-गोरा था…
शर्ट चूँकि शॉर्ट-शर्ट थी…. उसकी कमर तक ही आ रही थी और कमर के नीचे का हिस्सा सिर्फ़ भीगे हुई सी सलवार में ढका था…… उस जगह मुझे चूत का त्रिकोण साफ़ दिखाई दे रहा था…उस त्रिकोण का रंग थोड़ा गहरा था, शायद उसकी झाँटें भी भीगकर कपड़े से चिपक गई थीं… त्रिकोण…. जादुई त्रिकोण..!! मेरी नीयत डोल चुकी थी…. अगर स्मिता सीधे मेरी आँखों में देखती तो लाल डोरे मेरी चुगली कर देते।
“इसको कहाँ लटका दूँ?” उसने अपना कुर्ता हवा में लहराया…
“उस कमरे में…! चलो…!” मैंने दूसरे कमरे की तरफ़ इशारा किया…
वो आगे-आगे चली…और मानो कयामत ही आ गई…उसके पुष्ट नितम्बों के आगे शशि के नितम्ब कुछ भी नहीं थे… मस्त उभरे हुये… गोल-गोल आकार के… जैसे साँचे में ढले हुये… कसे हुये… एक लय में ऊपर नीचे होते हुये… तीव्र इच्छा हुई कि इन्हें छू लूँ.. सहला लूँ… भींच लूँ…… उस दरार को महसूस कर लूँ जो इन मदभरी घाटियों के बीच है…
मैं कितना ग़लत था…. स्मिता में सेक्स अपील था… और गज़ब का सेक्स अपील था…. बस छुपा हुआ था…. अनछुआ था… आवृत था… और यहाँ मैं बेचैन था… उसे छूने उघाड़ने के लिये… छूने के लिये… अनावृत करने के लिये…
“यहाँ?”….उसने पूछा…एक रस्सी बांध रखी थी मैंने…कपड़े सुखाने के लिये…
“यस !”
उसके हाथ ऊपर उठाये….स्तन और भी तन गए…अब मैं जायजा लेने और भी करीब पहुँच गया… वह रस्सी तक नहीं पहुँच पा रही थी… पास पड़ा स्टूल खिसकाया.. उसपे चढ़ के सुखाने लगी…. मैं उसके सामने खड़ा था…उसके मधुघटद्वय के ठीक नीचे… उसने दोनों हाथ उठाये और सन्तुलन खोने के कारण भरभरा के मेरे ऊपर आई… मैं इस अप्रत्याशित घटना के लिये तैयार नहीं था.. प्रतिक्रिया में मैंने अपने दोनों हाथ उठाये.. ठीक वैसे ही जैसे कोई चीज़ सिर पे गिरने वाली हो और आप बचना चाहते हों….
स्टूल एक तरफ़ लुढ़का… वो मेरे ऊपर गिरी… उसके दोनों सुरा-कलश मेरे हाथों में आ गये… मैं उन्हें पकड़े-पकड़े नीचे गिर पड़ा…. उसके लम्बे-घने-खुशबूदार बाल मेरे चेहरे पर आ गये… उसके गाल मेरे गाल से सट गये… उसके होंठ मेरे कनपट्टी के नीचे… और मैं उसकी तेज़-तेज़ चलती साँसों को महसूस कर रहा था।
उसने अपने स्तनों को छुड़ाने की चेष्टा नहीं की.. मैंने खुद ही अपने हाथ हटा लिये… उसके स्तन मेरे सीने से चिपट गये और मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने धीरे से मेरे गर्दन में चूमा हो..
मेरे पूरे शरीर में करंट दौड़ गया… लंड की नसों और रगों में गरम खून उफ़नने लगा…. मेरा लोवर पतले वूलकॉट का होने के कारण लंड का कठोरता का अहसास स्मिता को हो चुका था और मुझे उसकी चूत के उभार का… उसने अपने चूत को लंड के ठीक ऊपर लाकर थोड़ा सा दबाव बढ़ाया… दिल की धड़कन… लंड की फ़ड़कन और चूत का स्पंदन… तीनों तेज हो गये थे…
अब मैं समझ चुका था कि स्मिता चाहती क्या है….
मैंने उसके मांसल नितम्बों को पकड़कर अपने लंड पे और दबाव बढ़ाया… उसने मुझे इतनी जोर से भींचा कि उसके स्तन पिघलने से लगे… और उसकी गर्मी से मैं पिघलने लगा…
उसने अपने सुलगते हुये होंठ मेरे होंठों पे रख दिये और मैं बेसाख्ता उन्हें चूसने लगा…
उसने अपने चूतड़ हिलाना शुरू कर दिया… उसने अपने हाथ फ़र्श पर टिकाये और चेहरा और कंधा ऊपर उठाया…मैंने उसके शर्ट के ऊपर के दोनों बटन खोल दिये और दोनों गोलाइयों को अपने हाथ में ले लिया… थोड़ा सहलाया… चुचूक पे चुटकी काटी और मुँह में लेकर चूसने लगा…
स्मिता सिसकारी भरते हुये अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करने लगी।
उसने मेरे लोवर के अंदर हाथ डाल कर मेरा लंड पकड़ लिया… अपनी तर्जनी से सुपाड़े के सुराख का जायजा लिया जिसमें लसलसा प्रि-कम निकल रहा था….
अचानक वो नीचे की तरफ़ सरकी, मेरा लोवर पूरा उतार दिया और मेरे तन्नाये हुये लंड को चूमने-चाटने लगी…
मैं बेकाबू होता जा रहा था… लंड चूसते-चूसते उसने अपनी गांड घुमा के मेरे मुँह के सामने कर दिया.. मैं इशारा समझ गया… उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसकी पैंटी सरका दी..
एक मदहोश कर देने वाली सुगंध से मेरे नथुने भर गये… उसकी टाँगों को चौड़ा करके मैंने अपनी जीभ उसकी योनि की पंखुड़ियों के बीच धंसा दी… बीच-बीच में अपनी उंगली उसकी चूत में घुसेड़कर उसके जी-स्पॉट को छेड़ देता था और फ़िर जीभ की नोक से उसके क्लाइटोरिस को चाटने लगा….
स्मिता अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे हिलाने लगी… दस मिनट के बाद हम वुमन-ऑन-टॉप पोज़िशन पे आ गये… स्मिता जैसे ही सीधी होकर मेरे ऊपर आई मैंने उसने चूचकों को अपने मुँह के हवाले कर दिया। वो अपने चूतड़ उठाकर मेरे लंड के सुपाड़े को चूत के फ़ाँकों में रगड़ने लगी। जब चूत पूरी तरह गीली हो गई तो उसने धीरे से सुपाड़ा चूत के अंदर ले लिया…
थोड़ी देर तक ऐसे ही पूरे तरह फ़ूले हुये सुपाड़े का साइज़ नापने के बाद और हाथ से पकड़ कर लंड की लम्बाई का अंदाजा लगाने के बाद, पूरी तरह इस बात से आश्वस्त होने के बाद कि वो इस लम्बाई को झेल लेगी, वो धीरे से नीचे बैठी और मेरा लंड करीब चार इंच अंदर धंस गया।
“आआआह” वो थोड़ा सा तड़पी… और उतना ही अंदर डाले-डाले करीब दो मिनट तक ऊपर-नीचे हिलती रही, फ़िर एक झटके के साथ पूरा नीचे बैठ गई और उसकी चूत ने मेरा पूरा साढ़े आठ इंच का लंड निगल लिया… पूरा साढ़े आठ इंच…. चूत की लीला अपम्पार है!
एक चीख सी निकली स्मिता के कंठ से और शरीर ऐंठने सा लगा… चुपचाप बैठकर… लंड को निगले हुये वो दर्द पीती रही… जब दर्द का अहसास कम हुआ तो फ़िर से चूतड़ हिला-हिलाकर मुझे चोदने लगी… जिन आंखों में चंद लम्हों पहले असीम दर्द था… अब उनमें चमक थी… मस्ती थी… नशा था… उन्माद था…
जिस चूत में सुपाड़ा भी बमुश्किल जा रहा था उसमें मेरा पूरा लंड बल्कि मेरा पूरा वज़ूद समाया हुआ था…!
कॉलेज में किसी ने ये लाइनें सुनाई थीं:
पहले तो न जाती थी कील चूत में
और अब तो बन गई है झील चूत में
एक दिन घुस गई चील चूत में
वहाँ उसको मिल गया वकील चूत में
वकील ने ठोक दी अपील चूत में
कि मैंने तो लगाई थी सील चूत में
फ़िर किसने बना दी झील चूत में
इतना कोमल होती है यह चूत कि एक इंच का कड़ा सुपाड़ा भी उसके लिये कष्टप्रद होता है…और इतनी लचकदार होती है यह चूत कि चार इंच से लेकर आठ-नौ इंच के लंड को निगल सकती है….!
हे चूत…तुझे नमन है…प्रचंड लंड का नमन…!!!
फ़िलोसॉफ़ी बहुत हुई… बहरहाल… जब उसके दर्द का अहसास कम हुआ तो फ़िर से चूतड़ हिला-हिलाकर मुझे चोदने लगी..
और मैं भी नीचे से पिल पड़ा… कभी उसके चूतड़ों को भींचकर… कभी उसके स्तनों को भींचकर…
चालीस मिनट के जद्दोज़हद के बाद आखिर हमें मंज़िल मिल ही गई… स्मिता निढाल होकर मेरे ऊपर लेट गई… ना वो मेरी प्रोजेक्ट स्टूडेंट रही… ना मैं उसका गाइड रहा… सब बराबर हो गया था… कोई अंतर नहीं था…
करीब दस मिनट बाद मैंने उसका चेहरा उठाया और चूम लिया… और उसने मुझे बांहों में कस लिया…
बाहर बारिश भी थम चुकी थी…
हम दोनों उठे… उसके कपड़े सूख चुके थे… उसने कपड़े पहने….
अपना पर्स उठाया.. मुझे किस किया और शोखी से मुस्कुराये हुये कहा,”अगर मैं आपको एक राज़ की बात बताऊँ तो आप नाराज़ तो नहीं होंगे?”
“नहीं…बोलो !”
उसने अपना पर्स खोला और अपना मोबाइल निकालकर दिखाया..
मैं भौंचक..”तो तुमने झूठ कहा था कि तुम अपना मोबाइल भूल गई थी ?”
“सर आपने वादा किया था… आप नाराज़ नहीं होंगे… जबसे शशि ने मुझे आपके किंग साइज़ प्राइवेट पार्ट्स के फ़ोटो दिखाये थे तबसे मैंने ठान लिया था.. कि अगर मेरी जवानी किसी के लिये बेनकाब होगी, बेपर्दा होगी..तो इसी के लिये होगी”
“तो वो तुम्हारा बस छूटना…”
“सब प्लानिंग थी सर… मैं तो अपनी स्कूटी लेकर आती हूँ…” उसने खिलखिलाते हुये राज खोला।
मैं उल्लू की तरह उसे देख रहा था… फ़िर मैंने पूछ ही लिया,”तुमने तो इतना खूबसूरत शरीर पाया है… आज अगर तुम यहाँ नहीं आती तो मुझे पता भी नहीं चलता.. लेकिन तुम ये सब इतना छुपा-छुपा के क्यों रखती हो…?”
“मेरा परिवार थोड़ा दकियानूसी ख़यालों वाला है.. और हमें अपने आपको अच्छा दिखाने का अधिकार नहीं है !”
“बट यू आर फ़ैबुलस.. !”
“थैंक्स फ़ॉर द कॉम्प्लिमेंट… और आप भी सर.. कितने अच्छे हैं.. .कितने पैशनेट और पावरफ़ुल लव्हर हैं…. आपकी बीवी कितनी खुशकिस्मत होगी !”
हम दोनों ने एक दूसरे को बांहों में भरा… उसने फ़ुसफ़ुसाते हुये मेरे कानो में कहा,”आपके फोटोग्राफ़्स नेहा ने भी देखे हैं… और वो जल जायेगी जब मैं उसको आज की बात बताऊँगी… बाय सर !”
“टेक केयर !”…मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया…
फ़िर नेहा का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया… और मेरे होठों पे एक भेदभरी मुस्कान ना चाहते हुये भी आ ही गई !
शब्दार्थ :
मधुघटद्वय- मधु यानि शहद, घट यानि घड़ा, द्वय यानि जोड़ा !
शहद भरे घड़ों का जोड़ा ! Sex Stories
एक बार फिर आपके लिए Sex Stories इस साईट पर आया हूँ।
आपने इतना प्यार दिया है, तभी तो एक और कविता लिख पा रहा हूँ।
तो दोस्तों, मामला है एक सेक्स भरी रात का,
किस्सा है ये एक चुदाई की रात का।
उस रात मेरे मन में जाने क्या झमेला था,
क्योंकि मैं घर पर एकदम अकेला था।
अकेलेपन में मैं तन्हाई के गीत गुनगुना रहा था,
और बीच-बीच में अपने लंड को भी हिला रहा था।
क्योंकि किसी कन्या का ख़्याल आते ही ये दिल बड़ा हो जाता है,
यह मासूम लंड भी, उसकी तमन्ना समझते हुए ख़ुद ही खड़ा हो जाता है।
अब है तो खड़ा होगी ही,
छोटा है तो बड़ा होगा ही।
अचानक मुझे लगा कि कोई बुदबुदा रहा है,
दिमाग गन्दा हो तो लगता है कि कोई चुदवा रहा है।
मैंने दरवाज़ा खोला तो वहाँ एक गोरी थी,
उसके मम्मे और गाँड देखकर लग रहा था कि आज तक कोरी थी।
-मैंने उसे अपना घर में अन्दर बुला लिया,
ठंड बहुत थी, सो मैंने कुन्डा लगा लिया।
मैंने माज़रा पूछा तो पता चला, वो रास्ता भूल गई थी,
मेरी हिम्मत भी उसकी हालत देखकर खुल गई थी।
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया था,
क्योंकि उसे चोदने का इरादा पक्का कर लिया था।
वो मेरी बाँहों में आकर शरमा रही थी,
और मेरी साँसों की गरमी से वो भी गरम हुई जा रही थी।
मैंने धीरे से अपना एक हाथ उसके मम्मों पर धर दिया,
इन हाथों ने ही उसका सारा काम कर दिया।
मेरा दूसरा हाथ उसकी चूत पे था,
मेरा ध्यान उसकी सूट पे था।
आख़िर उसकी जवानी को जो सँवारना था,
इसलिए उसका सूट भी उतारना था।
मैंने उसकी कमीज़ उताकर उसके मम्मे दबाने शुरु कर दिए,
सलवार को अलग कर दिया और शॉट लगाने शुरु कर दिए।
वो आहें भर के मज़ा दे रही थी,
या यूँ कहें कि लड़की होने की सज़ा ले रही थी।
मेरा लंड उसकी चूत के अन्दर था,
ये भी मज़े का एक और मंज़र था।
वो कह रही थी कि चोदते रहो-चोदते रहो और चूत को फाड़ डालो,
आज अपने लंड के झंडे मेरी चूत में गाड़ डालो।
मैं भी पूरे दम से उसे चोदे जा रहा था,
और चूत-चुदाई के इस खेल में दोनों को मज़ा आ रहा था।
मेरे लंड से पानी निकला तो वह सन्तुष्ट हो गई,
नंगी ही वो मुझसे लिपट करके सो गई।
थोड़ी देर बाद उसने मेरे लंड को पकड़ लया,
मुझे कुछ समझ आता, इससे पहले ही अपने होठों से जकड़ लिया।
वो मेरे लंड को चूस रही थी इसलिए लंड बड़ा हो गया,
एक बार फिर से ये लंड चुदाई के लिए खड़ा हो गया।
अब उसे अपनी गाँड मुझसे मरवानी थी,
उसकी चूत की तरह उसकी गाँड भी सुहानी थी।
मैंने भी पूरी ताक़त से अपना लंड उसकी गाँड में डाला,
और एक ही बार में उसकी गाँड को फाड़ डाला।
उसकी चीख़ ने मुझे झिंझोड़ दिया,
साथ ही मेरे लंड ने एक बार फिर से पानी छोड़ दिया।
अब मुझे पता चला मैं कहाँ था,
जिसमें मैं था वो एक दूसरी ही जहाँ था।
मैंने गाँड और चूत दोनों ही मारी थी,
लेकिन यारों सच तो यह है कि मैंने सपने में मुठ मारी थी।
मेरा अंडरवियार एकदम गीला हो गया था,
मुठ इतनी ज़ोर से मारी कि लंड भी नीला हो गया था।
यारों सपना ही सही लेकिन मज़ा तो किया,
अपने लंड को चूत के अन्दर तो दिया।
कोई जिए या कोई मरे,
आप कृपया मुझे टिप्पणी मेल करें।
मेरा लंड हमेशा आ*की गाँड के पीछे है,
ग़ौर से देखो मेरा मेल आईडी नीचे है Sex Stories
रमेश, दोस्तो Hindi sex stories , लड़की को उत्तेजित करके चोदने में बड़ा मज़ा आता है। बस उत्तेजित करने का तरीका ठीक होना चाहिये।
मैंने अपनी घर की नौकरानी को ऐसे ही उत्तेजित कर खूब चोदा।
अब सुनो उसकी दास्तान।
मेरा नाम है रमेश।
मैं लखनऊ यू पी का हूं, मेरे घर में ऊल-ज़ुलूल नौकरानियों के काफ़ी अरसे बाद एक बहुत ही सुंदर और सेक्सी नौकरानी काम पर लगी।
22-23 साल की उमर होगी।
सांवला सा रंग था।
मीडियम हाईट की और सुडौल बदन,
फ़ीगर उसका रहा होगा 33-26-34
शादी शुदा थी।
उसका पति कितना किस्मत वाला था, साला खूब चोदता होगा।
बूब्स यानि चूचियाँ ऐसी कि बस दबा ही डालो।
ब्लाउज़ में समाती ही नहीं थी।
कितनी भी साड़ी से वो ढकती, इधर उधर से ब्लाउज़ से उभरते हुई उसकी चूचियाँ दिख ही जाती थी।
झाड़ु लगाते हुए, जब वो झुकती, तब ब्लाउज़ के उपर से चूचियों के बीच की दरार को छुपा न सकती।
एक दिन जब मैंने उसकी इस दरार को तिरछी नज़र से देखा तो पता लगा कि उसने ब्रा तो पहना ही नहीं था।
कहां से पहनती, ब्रा पर बेकार पैसे क्यों खर्च किये जायें।
जब वो ठुमकती हुई चलती, तो उसके चूतड़ हिलते और जैसे कह रहे हों कि मुझे पकड़ो और दबाओ।
अपनी पतली सी सूती साड़ी जब वो सम्भालती हुई सामने अपने बुर पर हाथ रखती तो मन करता कि काश उसकी चूत को मैं छू सकता।
करारी, गर्म, फूली हुई और गीली गीली चूत में कितना मज़ा भरा हुआ था।
काश मैं इसे चूम सकता, इसके मम्मे दबा सकता, और चूचियों को चूस सकता।
और इसकी चूत को चूसते हुए जन्नत का मज़ा ले सकता।
और फिर मेरा तना हुआ लौड़ा इसकी बुर में डाल कर चोद सकता।
हाय! मेरा लंड ! मानता ही नहीं था।
बुर में लंड घुसने के लिये बेकरार था।
लेकिन कैसे।
यह तो मुझे देखती ही नहीं थी।
बस अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती।
मैंने भी उसे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसे चोदने के लिये बेताब है।
अब चोदना तो था ही।
मैंने अब सोच लिया कि इसे उत्तेजित करना ही होगा।
धीरे धीरे उत्तेजित करना पड़ेगा वरना कहीं मचल जाये या नाराज़ हो जाये तो भांडा फूट जायेगा।
मैंने उससे थोड़ी थोड़ी बातें करनी शुरु की।
उसका नाम था नीरू।
एक दिन सुबह उसे चाय बनाने को कहा।
चाय उसके नर्म नर्म हाथों से जब लिया तो लंड उछला।
चाय पीते हुए कहा- नीरू, चाय तुम बहुत अच्छी बना लेती हो।
उसने जवाब दिया- बहुत अच्छा बाबूजी।
अब करीब करीब रोज़ मैं चाय बनवाता और बड़ाई करता।
फिर मैंने एक दिन कोलेज जाने के पहले अपनी शर्ट प्रेस करवाई।
‘नीरू, तुम प्रेस भी अच्छा ही कर लेती हो।’
‘ठीक है बाबूजी!’ उसने प्यारी सी आवाज़ में कहा।
जब कोई नहीं होता, तब मैं उससे इधर उधर कि बातें करता, जैसे- नीरू, तुम्हारा आदमी क्या करता है?
‘साहब, वो एक मिल में नौकरी करता है।’
‘कितने घंटे की ड्युटी होती है?’ मैंने पूछा।
‘साहब, 10-12 घंटे तो लग ही जाते हैं। कभी कभी रात को भी ड्युटी लग जाती है।’
‘तुम्हारे बच्चे कितने हैं?’ मैंने फिर पूछा।
शरमाते हुए उसने जवब दिया- अभी तो एक लड़की है, 2 साल की।
‘उसे क्यों घर में अकेला छोड़ कर आती हो?’ मैं पूछता रहा।
‘नहीं, मेरी बूढ़ी सास है न। वो सम्भाल लेती हैं।’
‘तुम कितने घरों में काम करती हो?’ मैंने पूछा।
‘साहब, बस आपके और एक नीचे घर में।’
मैंने फिर पूछा- तो क्या तुम दोनो का काम तो चल ही जाता होगा?
‘साहब, चलता तो है, लेकिन बड़ी मुश्किल से। मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बर्बाद कर देता है।’
अब मैंने एक हिंट देना उचित समझा।
मैंने सम्भलते हुए कहा- ठीक है, कोई बात नहीं, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।
उसने मुझे अजीब सी नज़र से देखा, जैसे पूछ रही हो – क्या मतलब है आपका?
मैंने तुरंत कहा- मेरा मतलब है, तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊंगा।
‘ठीक है साहब!’ कहते हुए उसने ठंडी सांस भरी।
इस तरह, दोस्तो, मैंने बातों का सिलसिला काफ़ी दिनों तक जारी रखा और अपने दोनो के बीच की झिझक को मिटाया।
एक दिन मैंने शरारत से कहा- तुम्हारा आदमी पागल ही होगा। अरे उसे समझना चाहिये, इतनी सुंदर पत्नी के होते हुए, शराब की क्या ज़रूरत है।
औरत बहुत तेज़ होती है दोस्तों।
उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी एहसास नहीं होने दिया अपनी ज़रा सी भी नाराज़गी का।
मुझे भी ज़रा सा हिंट मिला कि ये तस्वीर पर उतर जायेगी।
मौका मिले और मैं इसे दबोचूं तो चुदवा लेगी।
और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा।
कहते हैं ऊपर वाले के यहां देर है लेकिन अंधेर नहीं।
रविवार का दिन था।
पूरी फ़ैमिली एक शादी मैं गयी थी।
मैं पढ़ाई में नुकसान की वजह बताकर नहीं गया।
माँ कह कर गयी थी- नीरू आयेगी, घर का काम ठीक से करवा लेना।
मैंने कहा- ठीक है!
और मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे और लौड़ा खड़ा होने लगा।
वो आयी, दरवाज़ा बंद किया और काम पर लग गयी।
इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बंद कर दिया था।
मैंने हमेशा कि तरह चाय बनवाई और पीते हुए चाय की बड़ाई की।
मन ही मन मैंने निश्चय किया कि आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी।
कैसे पहल करें?
आखिर में ख्याल आया कि भाई सबसे बड़ा रुपैया।
मैंने उसे बुलाया और कहा- नीरू, तुम्हे पैसे की ज़रूरत हो तो मुझे ज़रूर बताना। झिझकना मत।
‘साहब, आप मेरी तनख्वाह से काट लोगे और मेरा आदमी मुझे डांटेगा।’
‘अरे पगली, मैं तनख्वाह की बात नहीं कर रहा। बस कुछ और पैसे अलग से चाहिये तो मैं दूंगा मदद के लिये। और किसी को नहीं बताऊंगा। बशर्ते तुम भी न बताओ तो।’
और मैं उसके जवाब का इन्तज़ार करने लगा।
‘मैं क्यों बताने चली। आप सच मुझे कुछ पैसे देंगे?’ उसने पूछा।
बस फिर क्या था।
कुड़ी पट गयी।
बस अब आगे बढ़ना था और मलाई खानी थी।
‘ज़रूर दूंगा नीरू… इससे तुम्हे खुशी मिलेगी न!’ मैंने कहा।
‘हां साहब, बहुत आराम हो जायेगा।’ उसने इठलाते हुए कहा।
अब मैंने हल्के से कहा- और मुझे भी खुशी मिलेगी। अगर तुम भी कुछ न कहो तो। और जैसा मैं कहूं वैसा करो तो? बोलो मंज़ूर है?
ये कहते हुए मैंने उसे 500 रुपये थमा दिये।
उसने रुपये टेबल पर रखा और मुसकुराते हुए पूछा- क्या करना होगा साहब?
‘अपनी आंखें बंद करो पहले।’ मैं कहते हुए उसकी तरफ़ थोड़ा सा बढ़ा- बस थोड़ी देर के लिये आंखें बंद करो और खड़ी रहो।
उसने अपनी आंखें बंद कर ली।
मैंने फिर कहा- जब तक मैं न कहूं, तुम आंखें बंद ही रखना, नीरू। वरना तुम शर्त हार जाओगी।
‘ठीक है, साहब!’ शरमाते हुए आंखें बंद कर वो खड़ी थी।
मैंने देखा कि उसके गाल लाल हो रहे थे और होंठ कांप रहे थे।
दोनो हाथों को उसने सामने अपनी जवान चूत के पास समेट रखा था।
मैंने हल्के से पहले उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन किया।
अभी मैंने उसे छुआ नहीं था।
उसकी आंखें बंद थी।
फिर मैंने उसकी दोनो पल्कों पर बारी बारी से चुम्बन रखा।
उसकी आंखें अभी भी बंद थी।
फिर मैंने उसके गालों पर आहिस्ता से बारी बारी से चूमा।
उसकी आंखें बंद थी।
इधर मेरा लंड तन कर लोहे की तरह कड़ा और सख्त हो गया था।
फिर मैंने उसकी थुड्ठी पर चुम्बन लिया।
अब उसने आंखें खोली और सिर्फ़ पूछते हुए कहा- साहब?
मैंने कहा- नीरू, शर्त हार जायोगी। आंखें बंद।
उसने झट से आंखें बंद कर ली।
मैं समझ गया, लड़की तैयार है, बस अब मज़ा लेना है और चुदाई करनी है।
मैंने अब की बार उसके थिरकते हुए होंठों पर हल्का सा चुम्बन किया।
अभी तक मैंने छुआ नहीं था उसे।
उसने फिर आंखें खोली और मैंने हाथ के इशारे से उसकी पल्कों को फिर ढक दिया।
अब मैं आगे बढ़ा, उसके दोनो हाथों को सामने से हटा कर अपनी कमर के चारों तरफ़ घुमाया और उसे अपनी बाहों में समेटा और उसके कांपते होंठों पर अपने होंठ रख दिये और चूमता रहा।
कस कर चूमा अबकी बार।
क्या नर्म होंठ थे मानो शराब के प्याले।
होंठों को चूसना शुरु किया और उसने भी जवाब देना शुरु किया।
उसके दोनो हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे और मैं उसके गुलाबी होंठों को खूब चूस चूस कर मज़ा ले रहा था।
तभी मुझे महसूस हुआ कि उसकी चूचियाँ जो कि तन गयी थी, मेरे सीने पर दब रही हैं।
बायें हाथ से मैं उसकी पीठ को अपनी तरफ़ दबा रहा था, जीभ से उसकी जीभ और होंठों को चूस रहा था, और दायें हाथ से मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दिया।
दायाँ हाथ फिर अपने आप उसकी दायीं चूची पर चला गया और उसे मैंने दबाया।
हाय हाय क्या चूची थी। मलाई थी बस मलाई।
अब लंड फुंकारे मार रहा था।
बायें हाथ से मैंने उसके चूतड़ को अपनी तरफ़ दबाया और उसे अपने लंड को महसूस करवाया।
शादीशुदा लड़की को चोदना आसान होता है क्योंकि उन्हे सब कुछ आता है, घबराती नहीं हैं।
ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, ब्लाउज़ के बटन पीछे थे, मैंने अपने दायें हाथ से उन्हे खोल दिया और ब्लाउज़ को उतार फेंका।
चूचियाँ जैसे कैद थी, उछल कर हाथों में आ गयी।
एकदम सख्त लेकिन मलाई की तरह प्यारी भी।
साड़ी को खोला और उतारा।
साया बस अब बचा था।
वो खड़ी नहीं हो पा रही थी।
मैं उसे हल्के हल्के खींचते हुए अपने बेडरूम में ले आया और लिटा दिया।
अब मैंने कहा- नीरू रानी, अब तुम आंखें खोल सकती हो।
‘आप बहुत पाजी हैं साहब!’ शरमाते हुए उसने आंखें खोली और फिर बंद कर ली।
मैंने झट से अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया।
लंड तन कर उछल रहा था।
मैंने उसका साया जल्दी से खोला और खींच कर उतारा।
उसने कोई अंडरवेअर नहीं पहना था।
मैंने बात करने के लिये कहा- ये क्या, तुम्हारी चूत तो नंगी है। चड्ढी नहीं पहनती।
‘नहीं साहब, सिर्फ़ महीना में पहनती हूं।’ और शरमाते हुए कहा- साहब, पर्दे खींच कर बंद करो न। बहुत रोशनी है।
मैंने झट से पर्दों को बंद किया जिससे थोड़ा अंधेरा हो और उसके ऊपर लेट गया।
होंठों को कस कर चूमा, हाथों से चूचियाँ दबाई और एक हाथ को उसके बुर पर फिराया।
घुंगराले बाल बहुत अच्छे लग रहे थे चूत पर।
फिर थोड़ा सा नीचे आते हुए उसकी चूची को मुंह में ले लिया।
आहा, क्या रस था। बस मज़ा बहुत आ रहा था।
अपनी एक उंगली को उसकी चूत के दरार पर फिराया और फिर उसके बुर में घुसाया।
उंगली ऐसे घुसी जैसे मक्खन में छूरी।
गर्म और गीली थी।
उसकी सिसकारियाँ मुझे और भी मस्त कर रही थी।
मैंने छेड़ते हुए कहा, नीरू रानी, अब बोलो क्या करूं?
‘साहब, मत तड़पाइये, बस अब कर दीजिये।’ उसने सिसकारियाँ लेते हुए कहा।
मैंने कहा- ऐसे नहीं, बोलना होगा, मेरी जान।
मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा- साहब, डाल दीजिये न।
‘क्या डालूं और कहां?’ मैंने शरारत की।
दोस्तों चुदाई का मज़ा सुनने में भी बहुत है।
‘डाल दीजिये न अपना ये लौड़ा मेरे अंदर।’ उसने कहा और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका लिये।
इधर मेरे हाथ उसकी चूचियों को मसलते ही जा रहे थे। कभी खूब दबाते, कभी मसलते, कभी मैं चूचियों को चूसता कभी उसके होंठों को चूसता।
अब मैंने कह ही दिया- हां रानी, अब मेरा ये लंड तेरी बुर में घुसेगा… बोलो चोद दूं।
‘हां हां, चोदिये साहब, बस चोद दीजिये।’
और वो एकदम गर्म थी।
मैंने कहा- ऐसे नहीं, बोलना होगा, मेरी जान !
फिर क्या था, मैंने लंड उसके बुर पर रखा और घुसा दिया अंदर।
एकदम ऐसे घुसा जैसे बुर मेरे लंड के लिये ही बनी थी।
दोस्तों, फिर मैंने हाथों से उसकी चूचियों को दबाते हुए, होंठों से उसके गाल और होंठों को चूसते हुए, चोदना शुरु किया।
बस चोदता ही रहा।
ऐसा मन कर रहा था कि चोदता ही रहूं।
खूब कस कस कर चोदा।
बस चोदते चोदते मन ही नहीं भर रहा था।
क्या चीज़ थी यारों, बड़ी मस्त थी। उछल उछल चुदवा रही थी।
‘साहब, आप बहुत अच्छा चोद रहे हैं, चोदिये खुब चोदिये!’
चोदना बंद था, टांगे उसने मेरे चूतड़ पर घुमा रखी थी और चूतड़ से उछल रही थी।
खूब चुदवा रही थी और मैं चोद रहा था।
मैं भी कहने से रुक न सका- नीरू रानी, तेरी चूत तो चोदने के लिये ही बनी है। रानी, क्या चूत है। बहुत मज़ा आ रहा है। बोल न कैसी लग रही है ये चुदाई।
‘साहब, रुकिये मत, बस चोदते रहिये, चोदिये, चोदिये, चोदिये।’
इस तरह हम न जाने कितनी देर तक मज़ा लेते हुए खूब कस कस कर चोदते हुए झड़ गये।
क्या चीज़ थी, एकदम चोदने के लिये ही बनी थी शायद।
दोस्तों मन नहीं भरा था।
20 मिनट बाद मैंने फिर अपना लंड उसके मुंह में डाला और खूब चुसवाया।
हमने 69 पोसिशन ली और जब वो लंड चूस रही थी मैंने उसकी चूत को अपनी जीभ से चोदना शुरु किया।
खास कर दूसरि बार तो इतना मज़ा आया कि मैं बता नहीं सकता क्योंकि अब की बार लंड बहुत देर तक चोदता रहा।
लंड को झड़ने में काफ़ी समय लगा और मुझे और उसे भरपूर मज़ा देता रहा।
कपड़े पहनने के बाद मैंने कहा- नीरू रानी, बस अब चुदवाती ही रहना। वरना ये लंड तुम्हे तुम्हारे घर पर आकर चोदेगा।
‘साहब, आप ने इतनी अच्छी चुदाई की है, मैं भी अब हर मौके में आपसे चुदवाउंगी। चाहे आप पैसे न भी दो।’
कपड़े पहनने के बाद भी मेरे हाथ उसकी चूचियों को हल्के हल्के मसलते रहे। और मैं उसके गालों और होंठों को चूमता रहा।
एक हाथ उसके बुर पर चला जाता था और हल्के से उसकी चूत को दबा देता था।
‘साहब अब मुझे जाना होगा।’ कह कर वो उठी।
मैंने उसका हाथ अपने लंड पर रखा- रानी, एक बार और चोदने का मन कर रहा है। कपड़े नहीं उतारूंगा।
दोस्तों, सच में लंड खड़ा हो गया था और चोदने के लिये मैं फिर तैयार।
मैंने उसे झट से लिटाया, साड़ी उठाई, और अपना लौड़ा उसके बुर में पेल दिया।
अबकी बार खचखच चोदा और कस कर चोदा और खूब चोदा और चोदता ही रहा।
चोदते चोदते पता नहीं कब लंड झड़ गया और मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया।
चूमते हुए चूचियों को दबते हुए, मैंने अपना लंड निकाला और उसे विदा किया। Hindi sex stories
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