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मैं मुंबई का रहने वाला Antarvasna हूँ, मेरा कद 5 फ़ुट 9 इन्च है। मेरे शरीर का रंग गोरा है और 7″ का लंड है. मेरी उमर 26 साल है। मैं अपनी एक कहानी आप लोगों के सामने पेश कर रहा हूँ जो मेरे साथ एक हफ्ते पहले हुई थी। मेरे घर में सब शादी की तैयारी के लिए बाहर गए थे और मैं अकेला घर पर था।
उसी समय लड़के वालों के घर से एक लड़की आई। उसने दरवाजे की घण्टी बजाई तो मैंने दरवाजा खोलकर देखा तो वो मिठाई लेकर आई थी। मैंने उसे अन्दर बुलाया और बैठने को कहा। वो बैठ गई। मैं उसके लिए एक ग्लास पानी लेकर आया। लड़की का नाम रीफा था, वो देखने में तो बहुत सुंदर थी और उसकी उम्र लगभग बीस साल की लग रही थी। मैं उसे देखते ही बेचैन हो गया। वो बहुत शरमा रही थी पर वो मुझे लाइन भी मार रही थी, इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूँ।
फिर मैं भी उसके साथ बैठकर बातें करने लगा। मैंने कुछ देर बाद उससे पूछा- तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड है क्या?
उसने ना में जवाब दिया। फिर वो जाने के लिए खड़ी हो गई। मैंने जल्दी से उसका फ़ोन नंबर पूछ लिया। फ़ोन नम्बर बोलकर वो चली गई। मैं तो उसे देखकर बेताब हो गया था।
हमारे घर की नौकरानी का आने का समय हो रहा था और मुझे काफी नींद आ रही थी। मैं फिर अपने कमरे में जाकर सो गया। मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद करने भूल गया था और मैं बनियान- चड्डी में सो गया(बिना पैंट और शर्ट के)। हमारी नौकरानी को पूरे घर का झाड़ू-पोचा करना था। वो मेरे कमरे में आ गई, मुझे तब तक नींद नहीं आई थी। मैं सिर्फ लेटा था। नौकरानी सिर्फ एक साड़ी पहने थी। वो मेरे बेड के पास आकर खड़ी हो गई और मेरी चड्डी उतारने लगी पर मैं उठा नहीं, मैं सोने का नाटक कर रहा था। वो मेरे लंड को चूसने लगी और मेरे हाथ को पकड़कर अपनी बुर में लगाने लगी। उसकी बुर और साड़ी पूरी तरह गीली हो गई थी।
फिर मैंने अपना नाटक ख़त्म किया और उठ गया। नौकरानी डर गई थी। मैंने उठते ही उसे ब्लाऊज़ उतारने को कहा, उसने उतार दिया।
बाप रे बाप ! इतनी बड़ी उसकी चूचियाँ थी कि पूछो मत ! भले ही वो सुंदर न थी पर उसकी काली चूची मुझे बहुत पसंद आई और चूची पर बड़े बड़े चुचूक थे। मैं उन्हें बहुत देर तक चूसता रहा।
फिर मैंने नौकरानी को बोला- चलो, अब बस करते हैं।
वो एक विधवा औरत थी और कहने लगी- मैं बहुत प्यासी हूँ, मेरी प्यास बुझा दो ना !
मैंने कहा- हाँ, बुझा दूंगा ! पर आज नहीं कल !
फिर मैं सो गया और शाम को मैंने उस लड़की रीफ़ा दो फ़ोन किया जो आई थी और अपने घर बुलाया। पहले तो वो मना कर रही थी पर कुछ देर में मान गई।
शाम सात बजे वो घर पर आई। मैं इस बार उसे अपने बेडरूम में ले गया और उसे लेटने को कहा। वो लेट गई।
मैंने फिर हिम्मत करके उसे पूछा- तुमने कभी सेक्स किया है ?
वो बोली- नहीं !
मैंने फिर पूछा- तुम फिर अपने पति के साथ सुहागरात कैसे करोगी? कुछ तो एक्सपेरिएंस रहना चाहिए ना?
वो भी प्यासी थी, उसने मेरे इस सवाल का जवाब नहीं दिया और अचानक मुझसे चिपक गई और होठों को चूमने लगी। मैं भी उसका पूरा साथ दे रहा था। यह सब 5 मिनट चलता रहा। फिर मैंने उसकी कमीज़ उतार दी। उसकी ब्रा बहुत कसी थी। जैसे मैंने उसकी ब्रा उतारी तो मैं पागल हो गया। उसकी चूची बहुत बड़ी थी, हमारी नौकरानी से भी बड़ी ! और दूध के से जैसे सफ़ेद रंग की थी। चुचूक गुलाबी रंग के थे।
फिर मैं उन्हें दस मिनट तक चूसता रहा। फिर उसने मेरे कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ चड्डी में था। मैंने फिर उसकी सलवार उतार दी और पैंटी दोनों भी। मैं फिर उसकी चूत चाटने लगा।
वह बोली- अब बस करो और मेरी इच्छा पूरी करो !
फिर मैने उसकी चूत में अपना लंड रखा और एक जोर का धक्का मारा। उसकी सील टूटी नहीं थी इसके कारण उसे बहुत दर्द हो रहा था।
वह चिल्लाई- बस बस ! निकालो, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, अहहहहहहहहहहह !!!!!!!! निकालो जल्दी।
दर्द के कारण उसकी आँखों में आंसू आ गए। मैंने फिर एक जोर का धक्का मारा और वो फिर चिल्लाई। उसका गोरा रंग होने के कारण उसकी चूत पूरी गुलाब के जैसी लाल हो गई थी और उसमें से खून आ रहा था।
जब मैंने तीसरा धक्का मारा तो उससे रहा ना गया और उसने अपनी चूत टाईट कर ली और मेरा लंड बुरी तरह अटक गया था, अब मुझे भी दर्द होने लगा।
फिर मैंने धीरे-धीरे करके लंड निकला और लगातार पाँच-छः धक्के मारे। वो चिल्ला-चिल्ला कर पागल हो गई थी। फिर कुछ देर में उसे भी मज़ा आने लगा और मुझे भी।
कुछ देर बाद वो झड़ गई और मेरा लंड पूरा गीला हो गया पर हम दोनों अभी भी कर रहे थे। फिर मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया। वो टेंशन में आ गई और कहने लगी- कहीं मैं प्रेग्नंट हो गई तो ? मैं बोला- तुम फिकर मत करो, मैं तुम्हें दवाई ला दूँगा।
हम दोनों फिर एक साथ बाथरूम में गए और लंड और चूत को साफ़ करके अपने कपड़े पहन लिए।
अगले दिन सुबह हमारी नौकरानी आ गई अपनी प्यास बुझवाने !
उसके साथ भी बहुत मज़ा किया !
और जानने के लिए मुझे मेल करो दोस्तो ! Antarvasna
दोस्तो, मेरी कहानियाँ Sex Stories सभी को ख़ूब पसन्द आई; बहुत से ईमेल आए।
मेरी सभी कहानियाँ किसी और के जीवन से ली गई हैं, जिन्हें मैं आपसे बाँटता हूँ।
इस बार फिर आपको एक मस्त कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
रामजीलाल एक 58 साल के व्यक्ति हैं जिनकी पत्नी इस दुनिया में नहीं हैं।
उनकी दो बेटी हैं जिनका नाम सरिता और सीमा हैं।
बड़ी बेटी सरिता की उम्र 24 साल हैं जो शादीशुदा है।
छोटी लड़की अभी 19 साल की है जो पढ़ाई कर रही है।
बड़ी बेटी सरिता की शादी को एक साल ही हुआ था। उसके ससुराल में जाने के बाद रामजीलाल अपने घर में अपनी लड़की के साथ रहते हैं। लड़की छोटी होने के कारण उन्होंने जल्दी वी आर एस ले लिया जिससे लड़की की पढ़ाई तथा परवरिश में कोई कमी न होने पाए।
रामजीलाल दिन का समय तो किसी तरह निकाल लेते लेकिन रात निकालनी उनके मुश्किल हो जाती।
इस उम्र में भी उन्हें सेक्स का कीड़ा काटता था। कभी-कभी अंग्रेज़ी फिल्म देख लिया करते।
लेकिन इससे उनकी सेक्स की भूख और भी बढ़ जाती। इसलिए अपना हाथ जगन्नाथ मानकर किसी तरह अपनी बेचैनी को कम करना उनकी मज़बूरी थी।
सेक्स का कीड़ा तो बाथरूम में जाते और मूठ मारकर अपना पानी निकाल लेते। इसी तरह उनके दिन कट रहे थे।
एक दिन उनकी बड़ी बेटी सरिता घर पर आई। साथ में सरिता का देवर अमर तथा उसकी सासु माँ अनुपमा भी थी।
अनुपमा देखने में तेज़-तर्रार और सेक्स बदन की मालकिन थी।
उम्र तो उसकी 40 के आसपास थी लेकिन उसका भरा-पूरा बदन और उस पर गोरी रंगत कमाल ढाती थी। वह चलती तो उसकी चूतड़ इस अन्दाज़ में हिलती कि देखने वाला भी हिल जाए।
इसके विपरीत अमर, जो अनुपमा का बेटा तथा सरिता का देवर है, वह देखने में सीधा-सादा मासूम बच्चा नज़र आता है। उसकी उम्र 18-19 के आसपास है।
सीमा अपनी बहन को देखकर खुश हो गई।
रामजीलाल भी उन्हें देखकर खुश हो गए क्योंकि बहुत दिनों बाद वे घर पर आए थे।
पूरा दिन सबने बातों में ही निकाल दिया। सरिता, सीमा और अमर आपस में ख़ूब बातें करते रहे।
इधर रामजीलाल भी अनुपमा से गप्पे लड़ाने में कम नहीं थे।
रामजीलाल को अनुपमा से बातें करके अपनी पत्नी की याद आ रही थी। उन्हें लगा कि वह जैसे उनकी पत्नी ही है, बस चोदने की देर है।
लेकिन वह अनुपमा के गुस्से से डरते थे। अनुपमा के सामने अच्छे-अच्छों की बोलती बन्द हो जाती थी फिर रामजीलाल क्या चीज़ है।
शाम को सभी ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए। सरिता और सीमा एक ही कमरे में सोने चले गए तथा अमर और उसकी माँ अनुपमा भी एक कमरे में चले गए।
रामजीलाल भी अपने कमरे में जाकर सोने का प्रयास करने लगे।
लेकिन उन्हें नींद कहाँ आने वाली थी। आज फिर अपने को तड़पता हुआ पाया।
अनुपमा से बातें करके उन्हें अपनी पत्नी की याद आ रही थी कि किस तरह वह अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर उसके नरम नरम होंठों को चूसा करते थे।
अपनी पत्नी के साथ बिताए सेक्स के पलों को याद करके वह और भी अधिक तड़पने लगे। उनका लंड खड़ा हो गया।
वे फिर मूठ मारने बाथरूम में गए, पर आज उनका मूड इसमें भी नहीं लगा। वे हॉल में आकर सोफे पर बैठ गए।
अभी घड़ी में 12 बज रहे थे और पूरी रात उनके सामने पड़ी थी।
रामजीलाल ने टीवी चालू कर लिया और फिल्म देखने लगे।
तभी अमर भी हॉल में आ गया। वह भी बोर हो रहा था। इसलिए टीवी देखने हॉल में आ गया था। वह भी सोफे पर बैठ गया। दोनों टीवी देखने लगे।
फिल्म में एक चुम्बन-दृश्य आया। रामजीलाल ने यह दृश्य देखा तो बेचैन हो गए। उनका लौड़ा उनकी पैन्ट में ही खड़ा होकर अपनी उपस्थिति बताने लगा।
इधर अमर भी यह दृश्य देखकर बेचैन तो हुआ पर उसने जाहिर नहीं होने दिया।
रामजीलाल ने अमर से पूछा- बेटा, पढ़ाई कैसी चल रही है?
अमर- अच्छी चल रही है।
रामजीलाल- अच्छा तुम्हारी मम्मी क्या कर रही है?
अमर- मम्मी थक गई थी इसलिए जल्दी नींद आ गई।
रामजीलाल- अच्छा। और तुम्हारी कितनी गर्लफ्रेण्ड हैं?
अमर थोड़ा चौंका … लेकिन फिर सँभल कर बोला- एक भी नहीं है।
रामजीलाल- क्या बात कर रहे हो बेटा! इतने बड़े हो गए और एक भी गर्लफ्रेण्ड नहीं! भई मैं जब तुम्हारी उम्र का था तो मेरी चार-चार गर्लफ्रेण्ड हुआ करती थीं।
अमर- अच्छा? मैं अभी-अभी कॉलेज में गया हूँ। इसलिए कोई गर्लफ्रेण्ड नहीं है मेरी।
रामजीलाल- वह तो ठीक है। मैं तुम्हें बताऊँगा कि गर्लफ्रेण्ड कैसे पटाते हैं। लड़कियों को प्रभावित करने के लिए अच्छे साफ-सुथरे और स्टाईलिश कपड़े पहनो और अपनी एक अलग पहचान बनाओ। लड़कियाँ ख़ुद तुम्हारे साथ दोस्ती करेगी और तुम जो चाहोगी वह भी करेगी।
अमर- आप तो बहुत अनुभवी लगते हैं। पर गर्लफ्रेण्ड हमारे लिए क्या कर सकती है?
रामजीलाल- बेटा तुम बहुत भोले हो। लड़कियाँ यदि ख़ुद आकर पटेंगी तो तुम जो कहोगे वह करेगी। मेरा मतलब सेक्स से है। तुम्हें भी सेक्स का अनुभव होना चाहिए। वरना शादी के बाद तुम्हारी पत्नी तुम्हें ताना देगी कि तुम्हें कुछ भी नहीं आता।
अमर- वह तो ठीक है। लेकिन शादी के पहले यह सब करना ठीक होता है क्या?
रामजीलाल- बेटा, अनुभव बुहत बड़ी चीज़ होती है। शादी के पहले यह करना ठीक तो नहीं है लेकिन यदि लड़कियाँ ख़ुद अपनी मर्ज़ी से दें तो इसमें बुरा क्या है? तुम्हें कुछ करना आता भी है या नहीं?
अमर शरमाकर बोला- नहीं। थोड़ा बहुत जानता हूँ लेकिन पूरी तरह मालूम नहीं है कि क्या करते हैं।
अमर अब थोड़ा सा खुल गया था।
रामजीलाल- तो मैं तुम्हें बताता हूँ कि सेक्स में क्या करते हैं। सेक्स में किसका महत्त्व है। लड़की के गालों पर, माथे पर, गर्दन पर, और होंठों पर किस करने का मज़ा ही कुछ और है। फिर उनका नाज़ुक चिकना बदन तो पागल कर देता है। उनकी चूचियाँ दबाओ, उन्हें चूसो। उनके पूरे कपड़े खोलकर नंगा कर देना अपने-आप में बहुत मज़ेदार होता है। उनकी चूत में अपना लंड डालो तो समझो कि स्वर्ग जीत लिया।
अमर हकलाते हुए- हाँ यह सब तो बहुत मज़ेदार होगा।
रामजीलाल- अरे … इससे ज़्याद मज़ा तब आता है जब वो तुम्हारा लंड मुँह में लेकर चूसती है। इस आनन्द की तो बात ही निराली है।
अमर- क्या? वह हमारी इस गंदी चीज़ को भी मुँह में लेती है।
रामजीलाल- गंदी चीज़? अरे इससे प्यारी चीज़ तो कोई होती ही नहीं है। तुम कैसे मर्द हो? औरतें तो इसे लॉलीपॉप की तरह चूसती हैं।
अमर- आप मुझसे बहुत गंदी-गंदी बातें कर रहे हैं। मैं आपकी बातों का भरोसा नहीं कर सकता।
रामजीलाल- यदि तुम्हें यकीन नहीं आता तो तुम ख़ुद चूसकर देख लो।
रामजीलाल ने अपना पत्ता फेंका था। वह सोच रहे थे कि अनुपमा न सही, उसका बेटा तो कम से कम मेरा लंड चूस सकता है।
अमर- मैं तो जा रहा हूँ, अपने कमरे में। आपसे मुझे कोई बात नहीं करनी।
रामजीलाल अमर के गुस्से से डर गए। यदि कहीं उसने अपनी माँ अनुपमा को बता दिया तो गज़ब हो जाएगा।
रामजीलाल- बेटा मैं सच कह रहा हूँ। यदि तुम अभी नहीं सीखोगे तो कब सीखोगे। तुम ख़ुद अनुभव लेकर देखो। यदि मैं झूठा निकला तो कभी भी बात मत करना।
अमर पशोपेश में था। आख़िरकार उसने रामजीलाल का लंड मुँह में लेने का निश्चय कर लिया।
रामजीलाल ने टीवी बंद कर दिया और अमर को अपने कमरे में ले गए। रामजीलाल ने अपनी पूरी पैंट खोल दी। उनका 6 इंच लम्बा और मोटा लंड अपनी पूरी औक़ात में तना हुआ था। रामजीलाल बिस्तर पर लेट गए और अमर को लंड मुँह में लेने को कहा।
अमर ने धीरे से लंड को पकड़ा। उसके हाथों में लंड की गर्मी आने लगी। उसे लंड पकड़ना अच्छा लगा।
थोड़ी देर लंड को सहलाने के बाद अमर ने लंड के सुपाड़े को अपने मुँह में ले लिया। उसके मुँह में लंड की गर्मी भरने लगी।
सुपाड़ा चूसते-चूसते उसने लंड को मुँह में भर लिया और मजे ले-लेकर चूसने लगा।
रामजीलाल तो आँखें बन्द करके ज़न्नत की सैर कर रहे थे। अचानक रामजीलाल का लंड कड़क हो गया।
वह समझ गए कि पानी निकलने ही वाला है, लेकिन लंड मुँह से निकालने के पहले ही सारा माल अमर के मुँह में चला गया। माल मुँह में जाते ही अमर का दिमाग ख़राब हो गया। उसने वहीं पर उल्टी कर दी।
रामजीलाल भी उसकी हालत देखकर डर गए।
किसी तरह अमर सँभला और रामजीलाल पर बिगड़ गया और यह कहकर चला गया- आप बहुत गंदे इंसान हो।
इसके जाने के बाद रामजीलाल ने राहत की साँस ली।
वे यही सोच रहे थे कि यह लड़का समझदार निकले और इस बारे में किसी से कहे नहीं। वर्ना उनकी इज्ज़त ख़राब होगी और अच्छा-ख़ासा हंगामा हो जाएगा।
रामजीलाल ने सारे कपड़े खोल दिए और दूसरी अण्डरवियर पहनकर पलंग पर लेट गए।
तभी दरवाज़े पर उनकी समधन अनुपमा ने आवाज़ लगाई।
रामजीलाल उनकी आवाज़ सुनकर डर गए; घबराते हुए दरवाज़ा खोला।
वह यह भी भूल गए कि वे सिर्फ अण्डरवियर में ही हैं।
अनुपमा दरवाज़ा धकेलते हुए अन्दर आई और बोली- क्या पिला दिया है तुमने मेरे छोरे को? वह उल्टी पर उल्टी किए जा रहा है। अपनी उम्र देखो और मासूम बच्चे को देखो। ज़रा सा भी ख़्याल नहीं आया आपको यह गंदी हरक़त करते हुए।
रामजीलाल डर गए और गिड़गिड़ाकर अनुपमा से बोले- मुझे माफ़ कर दो। आइन्दा मैं कभी ऐसी ग़लती नहीं करूँगा। कृपया मेरी पहली और आख़िरी भूल समझकर मुझे क्षमा कर दो। मैं क़सम खाता हूँ कभी अमर से अकेले में भी नहीं मिलूँगा। अब मेरी इज्ज़त आपके हाथ में है।
रामजीलाल को गिड़गिड़ाता हुआ दखकर अनुपमा बोली- आपका काम माफ़ करने के लायक नहीं है। ज़रा मैं भी तो देखूँ कि तुम्हारे लंड में कितना दम है।
रामजीलाल यह सुनकर बुरी तरह चौंककर बोले- आप यह क्या कह रही हैं? Sex Stories
मैं राहुल जैन जयपुर Hindi Sex Stories में पढ़ाई कर रहा हूँ और मैं यहाँ किराये पर रहता हूँ। मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ।
मैं आपको अपनी पहली कहानी बताने जा रहा हूँ कि मैंने अपने दोस्त की भाभी को कैसे चोदा!
अन्तर्वासना की आदत मेरे एक दोस्त ने डाली और मुझे भी इसमें मजा आने लगा। मैं उसकी ही भाभी को चोदने के सपने देखने लगा। मैं उसमें सफल भी रहा।
मेरे दोस्त का फार्म-हाउस जयपुर से बाहर है, हम अकसर उनकी खेती बाड़ी देखने के लिए वहाँ जाते रहते हैं। उसकी भाभी बहुत सुन्दर है और सेक्सी है। उसकी गांड के उभार देख कर मेरा लण्ड तन जाता है।
एक बार मेरे दोस्त के फार्म हाउस पर एक कार्यक्रम था। तो उसके सभी घर वाले वहाँ काम सम्हलाने के लिए वहीं थे, उसके घर पर उसकी भाभी और भैया ही थे।
मेरे दोस्त का फोन मेरे पास आया- यार मेरी भाभी को शाम को फार्म हाउस पर लेकर आ जायेगा क्या?
तो मैंने उसको पूछा- भैया नहीं हैं क्या?
तो उसने कहा- भैया तो दुकान पर हैं और वो तो रात को सात बजे तक आयेंगे।
मैंने तुरन्त हाँ कर दी और पूछा- भाभी को कब तक लेकर आना है?
उसने कहा- चार बजे तक उसके लेकर रवाना होना है!
मैं उसके घर पर दो घंटे पहले ही पहुँच गया और देखा कि भाभी जाने की तैयारी कर रही हैं पर खुद तैयार नहीं हुई हैं।
भाभी ने गाउन पहन रखा था।
भाभी मेरे लिए पानी लेकर आई और चाय के लिए रसोई में चली गई। मैं भी उनके पीछे-पीछे रसोई में चला गया और उनसे बातें करने लगा।
भाभी ने मुझसे पूछा- तुम मुझे अकसर घूरते क्यों रहते हो?
तो मैंने कहा- भाभी, आप बहुत सैक्सी हो!
भाभी की गांड देखते ही मेरा लण्ड खड़ा हो चला था। भाभी चोरी-छुपे मेरे लण्ड की तरफ देख रही थी, मैंने भाभी को कहा- क्या देख रही हो?
तो वो घबराने लगी, उन्होंने कहा- कुछ नहीं!
भाभी ने कहा- मैं तैयार होकर आती हूँ फिर अपन चलते हैं!
भाभी तैयार होने के लिए कमरे में चली गई। भाभी जब तैयार हो रही थी तो मैं उनको रोशनदान में से देख रहा था। उनके गोरे बदन को पैन्टी और ब्रा में देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी, मेरा दिमाग केवल उनको चोदने के बारे में सोच रहा था।
तभी भाभी की नजर मेरे ऊपर पड़ गई, उन्होंने कहा- क्या देख रहे हो?
मैंने कहा- भाभी मैं आपको चाहता हूँ।
तो भाभी बोली- सोचते बहुत हो! आ जाओ फटाफट और प्यार करो मुझे!
मैं उनके कमरे में गया और उनके गोरे बदन को अपनी बाहों में भरकर उनके गालों को, होंठों को चूमने लगा। उन्होंने भी मेरा पूरा साथ दिया और कहा- मैं तुमसे कई दिनों से चुदने के बारे में सोच रही थी लेकिन मौका नहीं मिल पा रहा था। आज मौका मिला है तो मेरी चूत को और गाण्ड दोनों को चोद दो।
मैंने उनकी पैंटी और ब्रा खोलकर अलग कर दी और उनके नंगे बदन के दर्शन किए। मेरी जिन्दगी में पहली बार नंगी लडकी या औरत को मैंने देखा था। मैं तो उनकी सफाचट चूत को देखकर पागल हो गया। मुझसे रहा नहीं गया और उनको बिस्तर पर बिठाकर उनकी टांगें चौड़ी करके उनकी चूत को चाटने लगा। उनको चूत चटवाने में बड़ा मजा आ रहा था।
उन्होंने कहा- मुझे भी तुम्हारा लण्ड चूसना है।
फिर हम दोनों 69 की दशा में आकर एक दूसरे को पागलों की तरह चाटने लग गये। मैंने उसकी भाभी के जोकि एकदम गोरी चिटटी थी, खूब मजे लिए। चाटते चाटते उसने मेरा और मैंने उनका पानी पी लिया।
फिर उन्होंने कहा- राजा अब फटाफट मेरी चूत में लण्ड डाल के चोद दो मुझे!
फिर मैंने उनकी दोनों टांगों को चौड़ा करके लण्ड को उनकी चूत पर रख दिया और एक झटके में उनकी चूत में मेरा लण्ड घुस गया। मेरा लण्ड पहली बार किसी की चूत के दर्शन कर रहा था।
मुझे तो जैसे स्वर्ग मिल गया हो, मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मुझे पहली बार में ही इतनी चिकनी चूत चोदने के लिए मिली।
मैंने मेरी पहली चुदाई दस-पन्द्रह मिनट तक की और उनके गोरे-गोरे स्तनों को खूब दबाया।
चूंकि हम जल्दी में थे इसलिए पहली बार इतनी सी चुदाई करके हमको संतुष्ट होना पड़ा।
फिर हम तैयार होकर मेरे दोस्त के फार्म हाउस पर पहुँचे। रास्ते में गाड़ी में मैंने उनकी चूत पर कई बार हाथ फिराया और बोबे भी दबाये।
उस कार्यक्रम में मैंने उनके कई बार बोबे दबाये। अब अक्सर जब भी मैं मेरे दोस्त के घर जाता हूँ तो मौका पाकर मैं उनके बोबे दबा देता हूँ।
इसके बाद तो मुझे चुदाई का ऐसा चस्का लगा कि मैंने अब तक पांच-सात लड़कियों और औरतों का चोदा है। मेरे टीचर की बहु को मैंने कैसे चोदा, अगली कहानी में लिखूंगा।
आपको मेरी पहली कहानी कैसी लगी, मुझे मेल अवश्य करें। Hindi Sex Stories
लकी प्रोजेक्ट गाइड ‘ मेरी Sex Stories ज़िन्दगी का वो रूहानी अनुभव है जिसे मैं ताज़िन्दगी नहीं भूल पाऊंगा… उसे शब्दों में बयाँ कर पाना बहुत मुश्किल है। मैंने सोचा नहीं था कि कहानी इतनी लंबी हो जायेगी कि उसे दो-तीन किश्तों में लिखना पड़ेगा… इसीलिये मैंने उसे सिर्फ़ “लकी प्रोजेक्ट गाइड” नाम दिया था.. पर अब तो उसे “लकी प्रोजेक्ट गाइड-१” ही कहना पड़ेगा…
खैर.. “लकी प्रोजेक्ट गाइड” में आपने पढ़ा कि हम दोनों ऑर्गाज़्म पर पहुँच चुके थे… पसीने से तर-बतर हो चुके थे.. मेरा लंड शशि की चूत द्वारा निचोड़ा जा चुका था…. मैंने उसकी कमर के खम को पकड़ा और एक झटके से पूरे लंड को बाहर निकाल दिया…शशि के योनिपटों पे घिसटता हुआ लंड जैसे ही बाहर निकाला.. उसके नितंब थरथराये और उसके मुंह से एक संतुष्ट और मादक आवाज़ निकली…”आऽऽऽऽऽऽह…..”
हम दोनों फ़र्श पर ही लेट गये…निर्वस्त्र…उनींदी आँखों से छत को ताकते हुये…
जाने कब मेरी आँख लग गई थी पता ही नहीं चला….
अचानक खुली तो देखा कि शशि मेरे सुकड़े हुये लंड का फ़ोरस्किन खिसका रही थी…और सुपाड़े के सुराख को (जहाँ से वीर्य निकलता है) बड़े प्यार से निहार रही थी….
और धीरे-धीरे अपने जीभ के अग्रभाग को नुकीला सा करके उसमें मानो घुसेड़ने की कोशिश कर रही थी…
नसों में फ़िर से संचार शुरू हो गया…. और इतनी तेज़ हुआ कि कुछ ही पलों में मेरा लंड अपनी पूरी लम्बाई में आ गया…
उसने फ़ोरस्किन को पूरा नीचे खींच दिया…. सुपाड़ा बड़ा ही भयावह लग रहा था… लाल… खूब फ़ूला हुआ…
उसने अपना थ्री-मेगापिक्सेल कैमरे वाला मोबाइल उठाया… क्लिक… क्लिक… क्लिक… अलग-अलग कोणों से तकरीबन दस फ़ोटो लिये…. कैमरा एक तरफ़ रखा…. अपनी दोनों टाँगों को मेरे पूरी अदा से इठलाते हुये मेरे कमर के आजू-बाजू रखा….. अपना मुँह मेरी तरफ़ झुकाया… अपने सुडौल स्तन मेरी छाती पे दबाए…. चुम्बन लिया… इस तरह उसके नितम्ब थोड़ा ऊपर हुये…. मेरा लंड अपने हाथ से पकड़ा…. और सुपाड़े को योनिद्वार पर रगड़ने लगी….
जितनी सिसकारियाँ उसके मुँह से निकल रही थीं उससे ज़्यादा मेरे मुँह से निकल रही थीं…. रहा नहीं जा रहा था… हाय ये भूख…. जितना खाओ उतनी ही बढ़ती है…. हाय ये प्यास… कभी ना खत्म होने वाली प्यास…
आधे घंटे पहले लग रहा था कि बस आज के लिये काफ़ी हो गया.. और अब… देर करने का मन नहीं हो रहा था…. मैं बेसाख़्ता उसके होठों को चूसने लगा… उसकी गर्दन चाटते हुये मेरी जीभ उस दरार में पेवस्त होने लगी जिसे वो ऑफ़िस में छलकाती दिखाती थी…. मेरी नाक भी दोनों स्तन के बीच आ गई थी….और मैं उस खुश्बू से मदहोश होता जा रहा था….दोनों हाथों से उसके स्तन अगल-बगल से इस तरह भींचा..कि मेरी नाक…मेरा मुँह….मेरी जीभ…और मेरा पूरा वज़ूद उसके अमृत कलशों के बीच समा गया…मुझे लगा…स्वर्ग अगर कहीं है….तो यहीं है…यहीं है…बस यहीं है….
अचानक मुझे लंड पे कुछ नमी का अहसास हुआ….
“आय एम ड्रिपिंग”…. उसने वही शोख…. वही मादक… वही सरसराती सी आवाज़ में मेरे कान में कहा…..
और आहिस्ता-आहिस्ता मेरा सुपाड़ा उसकी गहराइयाँ नापने लगा…. अंदर काफ़ी लसलसापन था.. गर्माहट थी….
उसने कुछ सेकंड के लिये अपने चूतड़ों को वैसे ही हवा में रखा…. फ़िर धीरे धीरे इस तरह ऊपर-नीचे हिलाने लगी कि लंड का सिर्फ़ तीन-चार इंच अंदर-बाहर हो रहा था…..
करीब उसके बीस बार ऐसा करने के बाद मैं इतना उत्तेजित हो गया कि अपने कूल्हे की सारी मांस्पेशियों की ताकत इकट्ठा करके एक जोरदार झटका ऊपर की ओर दिया..
कि पूरा का पूरा लंड सरसराता हुआ अंदर हो गया….
“ओ माय गॉड”…वो चीखी…
और भरभराते हुये मेरे लंड को चूत में निगलते हुये बैठ गई….
लंड को अंदर लिये-लिये ही अपने चूतड़ों को आगे-पीछे और गोल-गोल घुमाने लगी…..
उसकी झाँटें मेरी झाँटों को रगड़ते हुये अजीब उत्तेजना पैदा कर रही थी….. पन्द्रह-बीस मिनट तक यही चलता रहा। कभी मैं उसके दोनों स्तनों को पकड़ता… उन्हें चूसता… चाटता…. और कभी उसके चूतड़ों में चपत लगाता… उन्हें मसल देता फिर नीचे को ओर(अपनी ओर) धक्का देता..।
अब मैं भी अपनी गांड़ का छेद सिकोड़कर अपनी चूतड़ों को ऊपर नीचे कर रहा था… वो और जोर सी चीखने लगी… चीखते-चीखते उसका पूरा शरीर मेरे ऊपर गिर सा पड़ा…. धड़कनें और साँसें धौंकनी की मानिन्द चल रही थीं….वो अभी भी चूतड़ों को धीरे-धीरे हिला रही थी….उसकी चूत से निकला कामरस मेरी झाँटों और अंडों को भिगोता हुआ अनवरत बहता जा रहा था ….
कुछ देर में वो निश्चेष्ट सी मेरे ऊपर पड़ी थी, अचानक मैंने अपने चूतड़ उछालने की स्पीड बढ़ा दी….करीब पच्चीस धक्कों के बाद मैं इतने जोर से स्खलित हुआ कि एक तेज़ धार उसके चूत के अंदर के दीवारों पर पड़ी और वो चिहुँक उठी….मैं धीरे-धीरे हिलाता हुया शांत हो गया…..पुरसुकून शांत…संतुष्ट और तृप्त…!!
शशि….अगर तुम कहीं यह पढ़ रही हो… तो शुक्रिया… मुझे वह शाम देने के लिये… वो यादगार लम्हा देने के लिये… ( और अपनी दो और सहेलियाँ देने के लिये..)
काफ़ी देर तक वैसे ही पड़े रहने के बाद हम दोनों उठे… चाय बना के पी … और मैं उसे एक और शाम का वादा करके उसके कज़िन के घर छोड़ आया… मेरे लंड की फ़ोटो उसके पास रह गई थीं… उसके चूत की यादें मेरे साथ आ गईं थीं।
समय अपनी गति से चलता रहा… प्रोजेक्ट अपनी गति से चलता रहा….
उस दिन मैं शाम को ऑफ़िस से लेट लौट रहा था…. ट्रैफ़िक बहुत ज़्यादा थी… मेरी बाइक बस स्टॉप के ठीक सामने थी… अचानक पीछे से आवाज़ आई.. “सर”
मैंने ध्यान नहीं दिया… एक हाथ ने मेरे कंधे को छुआ… वो स्मिता थी… साँवली… बड़ी-बड़ी आँखों वाली… ढीला-ढाला सा सलवार कुर्ता पहने हुये… दुपट्टा पूरे वक्षस्थल को ऐसे ढके हुये कि जिसमें देखकर लगता था कि अंदर खाली है।…कुर्ता इतना ढीला और बड़ा था कि नितम्भ का आकार भी नहीं दिखता था। कुल मिला कर उसमें कोई सेक्स-अपील नहीं नज़र नहीं आती थी।
“स्मिता?… हियर?… व्हाट हैप्पेंड?… मिस्ड योर बस?”
“यस सर…वुड यू प्लीज़ ड्रॉप मी टू नेक्स्ट स्टॉप?”
“ओह श्योर?” ऊपर से उत्साहित और अंदर से खीझा हुआ मैं बोला।
स्मिता पीछे क्रॉस-लेग (टाँगों को दोनों तरफ़ करके) बैठी, जैसे ही ट्रैफ़िक कम हुआ, मैंने बाइक बढ़ा दी। मैं उसको जल्दी से पहुँचा देना चाहता था पर अफ़सोस कि अगले स्टॉप में भी कोई बस नहीं थी। रिमझिम बारिश शुरू हो गई थी।
“अब क्या करें?” मैंने कहा।
“सर… मैं अपना मोबाइल भूल गई… आपके मोबाइल से एक कॉल कर लूँ?”
“श्योर..”
तब तक बारिश कुछ तेज हो गई थी, हम दोनों भीगने से बचने की नाकाम कोशिश करते रहे।
बादल छाये रहने के कारण शायद मोबाइल में नेटवर्क नहीं था, आसपास कोई बूथ भी नज़र नहीं आ रहा था।
“अर्जेंट है?” मैंने पूछा।
“हाँ…” उसने कहा।
मेरा घर वहाँ से सौ कदम पे था।
मैंने बेमन से कहा,”चलो मेरे घर.. लैंडलाइन से कर लेना !”
सुनते ही उसकी आँखों में अजीब सी चमक आई…
खैर हम लोग घर पहुँचे…. काफ़ी भीग चुके थे… उसने फ़ोन लगाया और जाने क्या-क्या बातें करती रही… मैं भीतर जाकर कपड़े बदल कर आ चुका था, वो तब भी फ़ोन पे लगी हुई थी… बात करते-करते अनजाने में (यह मुझे तब लगा था… बात में पता चला कि वह हरकत जान-बूझकर की गई थी) उसने भीगा दुपट्टा निकालकर एक तरफ़ रख दिया और मेरे पूरे शरीर में एकबारगी झुरझुरी सी हो गई…. सामने का नज़ारा ही कुछ ऐसा था…
उसने लो-कट (गहरे गले वाला) कुर्ते के अन्दर एक महीन सा शमीज़ पहन रखी थी जो कि पानी में उसके बदन से चिपक गई थी और उसके ठंड से नुकीले हो चुके काले-काले निप्प्ल साफ़ नज़र आ रहे थे ! पॉपिन्स के साइज़ का ऐरोला भी दिखाई दे रहा था और झटका खाने वाली बात यह थी कि उसके स्तन एकदम तने हुये बहुत बड़े-बड़े थे, इतने बड़े जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी, जिनको वो ढीले-ढाले कुर्ते और दुपट्टे के नीचे ढकी रहती थी। स्तनों का आकार साफ़ दिखाई दे रहा था और मेरी हालत वैसी ही हो रही थी जैसे उपवास के दिन मिठाइयों को देखकर होती है…
उसने फ़ोन रखा और अचानक अपना सर ऊपर उठाया और मेरी चोरी पकड़ी गई (तब तक तो मैं उसे चोरी ही समझ रहा था…. मुझे थोड़ी पता था कि जाल बिछा हुआ था… मैं दाना चुग रहा था… और सैयाद की आँखों में चमक थी… शिकार को दाना चुगते देखने की चमक….. या खुदा…. इन लड़कियों के लिये कितना आसान होता है लड़कों को पटाना…)
कातिल मुस्कुराहट के साथ उसने पूछा,”सर आपके पास आयरन बॉक्स है?”
“य.य..यस….है !” मेरी तंद्रा भंग हुई…
“मैं ये कुर्ता आयरन कर लेती हूँ…थोड़ा सूख जायेगा… तब तक इफ़ यू डोंट माइन्ड… आपका कोई शर्ट पहन लूंगी !”
“नो प्रॉब्लम…”
मैं आगे-आगे बेडरूम की तरफ़ चला… वो पीछे-पीछे आई… मैं एक शर्ट निकालने लगा… वो मेरी तरफ़ पीठ करके कुर्ता उतारने लगी… मैंने शर्ट उसको दिया..
“प्लीज़ बाहर जाइये ना !”
तब तक भी मैं उसे शर्मीली सी लड़की समझ रहा था।
मैं हॉल में चला गया… अंदर एक तूफ़ान सा उठा हुआ था… स्मिता के निप्पल.. ऐरोला.. पुष्ट स्तन… मेरी आँखों के सामने घूम रहे थे और मन ही मन आत्मग्लानि भी हो रही थी कि मैं इतनी सीधी-साधी लड़की के बारे में इस तरह से सोच रहा था। अचानक स्मिता आ गई… मेरी शर्ट पहने हुये…. चुस्त… इतना चुस्त कि दूसरे नम्बर का बटन जैसे खुला जा रहा था… वक्ष बाहर छलक रहे थे… थोड़ी सी झिर्री से स्तन की अंदर की मादक दरार और गोलाइयाँ झाँक रहे थे… और मेरी नज़र हट नहीं रही थी…. हालांकि स्मिता साँवली सी थी पर उसके स्तनों का रंग गोरा-गोरा था…
शर्ट चूँकि शॉर्ट-शर्ट थी…. उसकी कमर तक ही आ रही थी और कमर के नीचे का हिस्सा सिर्फ़ भीगे हुई सी सलवार में ढका था…… उस जगह मुझे चूत का त्रिकोण साफ़ दिखाई दे रहा था…उस त्रिकोण का रंग थोड़ा गहरा था, शायद उसकी झाँटें भी भीगकर कपड़े से चिपक गई थीं… त्रिकोण…. जादुई त्रिकोण..!! मेरी नीयत डोल चुकी थी…. अगर स्मिता सीधे मेरी आँखों में देखती तो लाल डोरे मेरी चुगली कर देते।
“इसको कहाँ लटका दूँ?” उसने अपना कुर्ता हवा में लहराया…
“उस कमरे में…! चलो…!” मैंने दूसरे कमरे की तरफ़ इशारा किया…
वो आगे-आगे चली…और मानो कयामत ही आ गई…उसके पुष्ट नितम्बों के आगे शशि के नितम्ब कुछ भी नहीं थे… मस्त उभरे हुये… गोल-गोल आकार के… जैसे साँचे में ढले हुये… कसे हुये… एक लय में ऊपर नीचे होते हुये… तीव्र इच्छा हुई कि इन्हें छू लूँ.. सहला लूँ… भींच लूँ…… उस दरार को महसूस कर लूँ जो इन मदभरी घाटियों के बीच है…
मैं कितना ग़लत था…. स्मिता में सेक्स अपील था… और गज़ब का सेक्स अपील था…. बस छुपा हुआ था…. अनछुआ था… आवृत था… और यहाँ मैं बेचैन था… उसे छूने उघाड़ने के लिये… छूने के लिये… अनावृत करने के लिये…
“यहाँ?”….उसने पूछा…एक रस्सी बांध रखी थी मैंने…कपड़े सुखाने के लिये…
“यस !”
उसके हाथ ऊपर उठाये….स्तन और भी तन गए…अब मैं जायजा लेने और भी करीब पहुँच गया… वह रस्सी तक नहीं पहुँच पा रही थी… पास पड़ा स्टूल खिसकाया.. उसपे चढ़ के सुखाने लगी…. मैं उसके सामने खड़ा था…उसके मधुघटद्वय के ठीक नीचे… उसने दोनों हाथ उठाये और सन्तुलन खोने के कारण भरभरा के मेरे ऊपर आई… मैं इस अप्रत्याशित घटना के लिये तैयार नहीं था.. प्रतिक्रिया में मैंने अपने दोनों हाथ उठाये.. ठीक वैसे ही जैसे कोई चीज़ सिर पे गिरने वाली हो और आप बचना चाहते हों….
स्टूल एक तरफ़ लुढ़का… वो मेरे ऊपर गिरी… उसके दोनों सुरा-कलश मेरे हाथों में आ गये… मैं उन्हें पकड़े-पकड़े नीचे गिर पड़ा…. उसके लम्बे-घने-खुशबूदार बाल मेरे चेहरे पर आ गये… उसके गाल मेरे गाल से सट गये… उसके होंठ मेरे कनपट्टी के नीचे… और मैं उसकी तेज़-तेज़ चलती साँसों को महसूस कर रहा था।
उसने अपने स्तनों को छुड़ाने की चेष्टा नहीं की.. मैंने खुद ही अपने हाथ हटा लिये… उसके स्तन मेरे सीने से चिपट गये और मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने धीरे से मेरे गर्दन में चूमा हो..
मेरे पूरे शरीर में करंट दौड़ गया… लंड की नसों और रगों में गरम खून उफ़नने लगा…. मेरा लोवर पतले वूलकॉट का होने के कारण लंड का कठोरता का अहसास स्मिता को हो चुका था और मुझे उसकी चूत के उभार का… उसने अपने चूत को लंड के ठीक ऊपर लाकर थोड़ा सा दबाव बढ़ाया… दिल की धड़कन… लंड की फ़ड़कन और चूत का स्पंदन… तीनों तेज हो गये थे…
अब मैं समझ चुका था कि स्मिता चाहती क्या है….
मैंने उसके मांसल नितम्बों को पकड़कर अपने लंड पे और दबाव बढ़ाया… उसने मुझे इतनी जोर से भींचा कि उसके स्तन पिघलने से लगे… और उसकी गर्मी से मैं पिघलने लगा…
उसने अपने सुलगते हुये होंठ मेरे होंठों पे रख दिये और मैं बेसाख्ता उन्हें चूसने लगा…
उसने अपने चूतड़ हिलाना शुरू कर दिया… उसने अपने हाथ फ़र्श पर टिकाये और चेहरा और कंधा ऊपर उठाया…मैंने उसके शर्ट के ऊपर के दोनों बटन खोल दिये और दोनों गोलाइयों को अपने हाथ में ले लिया… थोड़ा सहलाया… चुचूक पे चुटकी काटी और मुँह में लेकर चूसने लगा…
स्मिता सिसकारी भरते हुये अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करने लगी।
उसने मेरे लोवर के अंदर हाथ डाल कर मेरा लंड पकड़ लिया… अपनी तर्जनी से सुपाड़े के सुराख का जायजा लिया जिसमें लसलसा प्रि-कम निकल रहा था….
अचानक वो नीचे की तरफ़ सरकी, मेरा लोवर पूरा उतार दिया और मेरे तन्नाये हुये लंड को चूमने-चाटने लगी…
मैं बेकाबू होता जा रहा था… लंड चूसते-चूसते उसने अपनी गांड घुमा के मेरे मुँह के सामने कर दिया.. मैं इशारा समझ गया… उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसकी पैंटी सरका दी..
एक मदहोश कर देने वाली सुगंध से मेरे नथुने भर गये… उसकी टाँगों को चौड़ा करके मैंने अपनी जीभ उसकी योनि की पंखुड़ियों के बीच धंसा दी… बीच-बीच में अपनी उंगली उसकी चूत में घुसेड़कर उसके जी-स्पॉट को छेड़ देता था और फ़िर जीभ की नोक से उसके क्लाइटोरिस को चाटने लगा….
स्मिता अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे हिलाने लगी… दस मिनट के बाद हम वुमन-ऑन-टॉप पोज़िशन पे आ गये… स्मिता जैसे ही सीधी होकर मेरे ऊपर आई मैंने उसने चूचकों को अपने मुँह के हवाले कर दिया। वो अपने चूतड़ उठाकर मेरे लंड के सुपाड़े को चूत के फ़ाँकों में रगड़ने लगी। जब चूत पूरी तरह गीली हो गई तो उसने धीरे से सुपाड़ा चूत के अंदर ले लिया…
थोड़ी देर तक ऐसे ही पूरे तरह फ़ूले हुये सुपाड़े का साइज़ नापने के बाद और हाथ से पकड़ कर लंड की लम्बाई का अंदाजा लगाने के बाद, पूरी तरह इस बात से आश्वस्त होने के बाद कि वो इस लम्बाई को झेल लेगी, वो धीरे से नीचे बैठी और मेरा लंड करीब चार इंच अंदर धंस गया।
“आआआह” वो थोड़ा सा तड़पी… और उतना ही अंदर डाले-डाले करीब दो मिनट तक ऊपर-नीचे हिलती रही, फ़िर एक झटके के साथ पूरा नीचे बैठ गई और उसकी चूत ने मेरा पूरा साढ़े आठ इंच का लंड निगल लिया… पूरा साढ़े आठ इंच…. चूत की लीला अपम्पार है!
एक चीख सी निकली स्मिता के कंठ से और शरीर ऐंठने सा लगा… चुपचाप बैठकर… लंड को निगले हुये वो दर्द पीती रही… जब दर्द का अहसास कम हुआ तो फ़िर से चूतड़ हिला-हिलाकर मुझे चोदने लगी… जिन आंखों में चंद लम्हों पहले असीम दर्द था… अब उनमें चमक थी… मस्ती थी… नशा था… उन्माद था…
जिस चूत में सुपाड़ा भी बमुश्किल जा रहा था उसमें मेरा पूरा लंड बल्कि मेरा पूरा वज़ूद समाया हुआ था…!
कॉलेज में किसी ने ये लाइनें सुनाई थीं:
पहले तो न जाती थी कील चूत में
और अब तो बन गई है झील चूत में
एक दिन घुस गई चील चूत में
वहाँ उसको मिल गया वकील चूत में
वकील ने ठोक दी अपील चूत में
कि मैंने तो लगाई थी सील चूत में
फ़िर किसने बना दी झील चूत में
इतना कोमल होती है यह चूत कि एक इंच का कड़ा सुपाड़ा भी उसके लिये कष्टप्रद होता है…और इतनी लचकदार होती है यह चूत कि चार इंच से लेकर आठ-नौ इंच के लंड को निगल सकती है….!
हे चूत…तुझे नमन है…प्रचंड लंड का नमन…!!!
फ़िलोसॉफ़ी बहुत हुई… बहरहाल… जब उसके दर्द का अहसास कम हुआ तो फ़िर से चूतड़ हिला-हिलाकर मुझे चोदने लगी..
और मैं भी नीचे से पिल पड़ा… कभी उसके चूतड़ों को भींचकर… कभी उसके स्तनों को भींचकर…
चालीस मिनट के जद्दोज़हद के बाद आखिर हमें मंज़िल मिल ही गई… स्मिता निढाल होकर मेरे ऊपर लेट गई… ना वो मेरी प्रोजेक्ट स्टूडेंट रही… ना मैं उसका गाइड रहा… सब बराबर हो गया था… कोई अंतर नहीं था…
करीब दस मिनट बाद मैंने उसका चेहरा उठाया और चूम लिया… और उसने मुझे बांहों में कस लिया…
बाहर बारिश भी थम चुकी थी…
हम दोनों उठे… उसके कपड़े सूख चुके थे… उसने कपड़े पहने….
अपना पर्स उठाया.. मुझे किस किया और शोखी से मुस्कुराये हुये कहा,”अगर मैं आपको एक राज़ की बात बताऊँ तो आप नाराज़ तो नहीं होंगे?”
“नहीं…बोलो !”
उसने अपना पर्स खोला और अपना मोबाइल निकालकर दिखाया..
मैं भौंचक..”तो तुमने झूठ कहा था कि तुम अपना मोबाइल भूल गई थी ?”
“सर आपने वादा किया था… आप नाराज़ नहीं होंगे… जबसे शशि ने मुझे आपके किंग साइज़ प्राइवेट पार्ट्स के फ़ोटो दिखाये थे तबसे मैंने ठान लिया था.. कि अगर मेरी जवानी किसी के लिये बेनकाब होगी, बेपर्दा होगी..तो इसी के लिये होगी”
“तो वो तुम्हारा बस छूटना…”
“सब प्लानिंग थी सर… मैं तो अपनी स्कूटी लेकर आती हूँ…” उसने खिलखिलाते हुये राज खोला।
मैं उल्लू की तरह उसे देख रहा था… फ़िर मैंने पूछ ही लिया,”तुमने तो इतना खूबसूरत शरीर पाया है… आज अगर तुम यहाँ नहीं आती तो मुझे पता भी नहीं चलता.. लेकिन तुम ये सब इतना छुपा-छुपा के क्यों रखती हो…?”
“मेरा परिवार थोड़ा दकियानूसी ख़यालों वाला है.. और हमें अपने आपको अच्छा दिखाने का अधिकार नहीं है !”
“बट यू आर फ़ैबुलस.. !”
“थैंक्स फ़ॉर द कॉम्प्लिमेंट… और आप भी सर.. कितने अच्छे हैं.. .कितने पैशनेट और पावरफ़ुल लव्हर हैं…. आपकी बीवी कितनी खुशकिस्मत होगी !”
हम दोनों ने एक दूसरे को बांहों में भरा… उसने फ़ुसफ़ुसाते हुये मेरे कानो में कहा,”आपके फोटोग्राफ़्स नेहा ने भी देखे हैं… और वो जल जायेगी जब मैं उसको आज की बात बताऊँगी… बाय सर !”
“टेक केयर !”…मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया…
फ़िर नेहा का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया… और मेरे होठों पे एक भेदभरी मुस्कान ना चाहते हुये भी आ ही गई !
शब्दार्थ :
मधुघटद्वय- मधु यानि शहद, घट यानि घड़ा, द्वय यानि जोड़ा !
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