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प्रीती अब बहुत खुश थी कि उसने Hindi Sex Stories महेश से अपना बदला ले लिया था। एक दिन उसने मुझसे कहा, “सुनील! मुझे अब एम-डी से बदला लेना है, लेकिन कोई उपाय नहीं दिख रहा।”
“तुम रजनी को सीढ़ी क्यों नहीं बनाती?” मैंने सलाह देते हुए कहा, “एम-डी उसे अपनी बेटियों से भी ज्यादा प्यार करता है।”
“हाँ!!! मैं भी यही सोच रही थी”, प्रीती ने जवाब दिया।
“लेकिन एक चीज़ ध्यान में रखना, वो पढ़ी लिखी और समझदार लड़की है, मीना और मेरी बहनों की तरह बेवकूफ़ नहीं।”
“क्या तुम उसे प्यार करते हो?” उसने पूछा।
“बिल्कुल भी नहीं! पर हाँ मुझे उससे हमदर्दी जरूर है, वो मेरी पहली कुँवारी चूत थी।” मैंने जवाब दिया।
“ठीक है… मैं चाँस लेती हूँ! लगता है मैं उसे समझाने में और मनाने में कामयाब हो जाऊँगी”, प्रीती ने कहा।
प्रीती के बुलाने पर एक दिन शाम को रजनी हमारे घर आयी। मैंने देखा कि वो बातें करने में झिझक रही थी ।
“रजनी! इसके पहले कि मैं तुम्हें बताऊँ कि मैंने तुम्हें यहाँ क्यों बुलाया है और मैं तुमसे क्या चाहती हूँ, ये जान लो कि मुझे तुम्हारे और सुनील के बारे में सब मालूम है और मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा।”
रजनी कुछ बोली नहीं और चुप रही।
“लेकिन एक बात मुझे पहले बताओ, क्या सुनील के बाद तुमने किसी से चुदवाया है?” प्रीती ने पूछा।
रजनी ने झिझकते हुए मेरी ओर देखा और मैंने गर्दन हिला कर उसे सहमती दे दी। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
“प्रीती, अगर तुम इतने खुले रूप में पूछ रही हो तो मैं बताती हूँ कि मैंने अपने कॉलेज के दो लड़कों से चुदवाया है पर सुनील जैसा कोई नहीं था।”
“मैं जानती हूँ! सुनील से चुदवाने में जो मज़ा आता है वो किसी से भी नहीं आता”, प्रीती ने जवाब दिया।
“अच्छा… अब मुझे बताओ तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है?” रजनी ने पूछा।
प्रीती भी सीधे विषय पर आते हुए बोली, “रजनी! मैं चाहती हूँ कि तुम एम-डी से चुदवा लो?”
“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है? तुम चाहती हो कि मैं अपने अंकल के साथ सोऊँ???” रजनी अपनी जगह से उठते हुए बोली।
“रजनी रुको! एक बार हमारी बात तो सुन लो”, मैंने उसे रोकना चाहा।
“ठीक है सुनील! तुम कहते हो तो मैं रुक जाती हूँ। अब बताओ, तुम क्या कहना चाहते हो?” रजनी अपनी जगह पर बैठते हुए बोली। रजनी के बैठते ही प्रीती ने पूरी दास्तान रजनी को सुना दी और ये भी बता दिया कि किस तरह महेश और एम-डी ने ऑफिस की सभी लड़कियों और औरतों को चोदा है।
सारी बात सुनने के बाद रजनी बोली, “मैं इसमें कुछ गलत नहीं मानती, वो पैसे वाले हैं और उन्होंने इंसान की कमजोरियों का फ़ायदा उठाया है, किसी के साथ जबरदस्ती तो नहीं की। गल्ती उनकी है जो राज़ी हो गये।”
“तुम नहीं जानती हो रजनी! एम-डी ने कैसे कुँवारी चूत को चोदने के लिये कई लोगों को फंसाया और धमकाया है!” प्रीती बोली।
“मैं नहीं मानती कि अपनी हवस मिटाने के लिये मेरे अंकल किसी भी हद तक गिर सकते हैं।”
“ठीक है! मैं तुम्हें विस्तार में बताती हूँ। तुम असलम को तो जानती होगी, हमारे ऑफिस में पियन का काम करता था।”
“वही असलम ना जिसे चोरी के इल्ज़ाम में पकड़ा गया था और फिर छूट गया था?”
“हाँ वही! लेकिन तुम्हें हकीकत नहीं मालूम?” प्रीती ने कहा।
“मैं और माँ जानते थे कि असलम निर्दोष है, इसलिये हमने अंकल से रिक्वेस्ट भी की थी कि उसे छोड़ दें।”
प्रीती रजनी की बात सुन कर हंसने लगी। “मैं तुम्हें हकीकत बताती हूँ”, प्रीती ने कहा, “एक दिन तुम्हारे अंकल ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया और कहा कि प्रीती, मैं असलम पर से सारे इल्ज़ाम वापस ले लूँगा अगर उसकी बेटी आयेशा चुदवाने को तैयार हो जाये। मुझे बुरा लगा और मैंने एम-डी को मना करना चाहा, तो उन्होंने गुस्से में कहा, तुम्हें ये काम करना है तो करो नहीं तो मैं किसी और से करवा लूँगा। उसकी चूत किसी ना किसी दिन तो फटनी ही है तो मैं क्यों ना करूँ। एम-डी मुझे इन सब काम के लिये पैसे दिया करता था तो मैंने सोचा क्यों ना मैं भी पैसा कमा लूँ”, प्रीती आगे बोली।
“मैं दूसरे दिन आयेशा को समझा बुझा कर और अच्छे कपड़ों और मेक-अप में तैयार करके तुम्हारे अंकल के सूईट, होटल शेराटन में लेकर पहुँच गयी। तुम्हारे अंकल और महेश ने बुरी तरह उसकी चूत को चोदा और उसकी गाँड भी फाड़ दी और वो बेचारी अपने बाप को बचाने के लिये हर ज़ुल्म सहती गयी।”
“प्लीज़ प्रीती! मुझे और नहीं सुनना है”, रजनी ने अपने हाथ अपने कान पर रखते हुए कहा। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
“नहीं! तुम्हें पूरी बात सुननी होगी। तुम्हें नहीं मालूम महेश और एम-डी ने कितनी लड़कियों को अपने जाल में फंसाया है?”
“नहीं!!! मुझे और नहीं सुनना और मैं तुम पर अब विश्वास करती हूँ, मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हूँ, मुझे बताओ मुझे क्या करना है?” रजनी बोली।
“ये मैंने पहले ही सोच रखा है, मैं एम-डी से कहुँगी कि तुम एक गरीब घर की गाँव की रहने वाली लड़की हो और तुम्हें अपनी विधवा माँ के इलाज के लिये पैसे चाहिये, तुम पैसों की तंगी की वजह से अपनी चूत तो दे चुकी हो लेकिन तुम्हारी गाँड अभी भी कुँवारी है।”
“वो तो अब भी है!” रजनी ने हँसते हुए कहा।
“मैं जानती हूँ, इसलिये जानती हूँ कि एम-डी तैयार हो जायेगा। मैं ये भी शर्त रखुँगी कि तुम अंधेरे में चुदवाना चाहती हो”, प्रीती ने कहा।
“ये सब तो ठीक हो जायेगा पर क्या सुनील ने आयेशा को चोदा था?”
“हकीकत में हाँ! लेकिन ये अलग कहानी है”, प्रीती ने जवाब दिया।
“बताओ मुझे, मैं जानना चाहती हूँ”, रजनी बोली।
“करीब पंद्रह दिन के बाद आयेशा मेरे घर आयी और बोली कि वो प्रेगनेंट है। मैंने उससे कहा कि अगर वो इस मुश्किल से बचना चाहती है तो उसे सुनील से चुदवाने पड़ेगा। वो मान गयी क्योंकि उसके पास दूसरा चारा नहीं था”, प्रीती ने कहा, “सुनील ने उस दिन उसे बड़े ही प्यार से चार बार चोदा। पहले तो वो उसका लौड़ा देख कर डर ही गयी थी, दीदी! इनका लंड तो कितना मोटा और लंबा है….. मैं तो मर ही जाऊँगी? मैं भी तो इनसे रोज़ चुदवाती हूँ और अभी तक जिंदा हूँ मैंने जवाब दिया। सुनील ने उसे बहुत ही नाजुक्ता और प्यार से चोदा, ऐसा चोदा कि वो इसके लंड कि दिवानी हो गयी। दूसरे दिन मैंने उसे डॉक्टर के पास ले जा कर उसका अबार्शन करा दिया। वो सुनील के लंड कि इतनी दिवानी हो गयी कि बराबर हमारे घर सुनील से चुदवाने के लिये आने लगी। इसी बीच सुनील ने उसकी गाँड का भी उदघाटन कर दिया।”
“क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि सुनील दूसरी लड़कियों को चोदता है?” रजनी ने पूछा।
“नहीं, जब तक वो मुझे बताकर करता है, मैं जानती हूँ वो मुझे भी चुदाई का मज़ा दे सकता है और दूसरों को भी और फिर मैं भी तो दूसरे मर्दों से चुदवाती हूँ”, प्रीती बोली।
“फिर तो मैं भी अपनी गाँड का उदघाटन सुनील से ही करवाना चाहुँगी!” रजनी उत्सुक्ता से बोली।
“नहीं रजनी! तुम्हारी गाँड तुम्हारे अंकल के लिये ही रहने दो… हाँ तुम सुनील से अपनी चूत चुदवा सकती हो! एक शर्त पर कि, मेरे सामने चुदवाओ!” प्रीती ने जवाब दिया।
“ये तो बहुत ही अच्छी बात है, हाँ अगर तुम हमारा साथ दो तो और मज़ा आयेगा”, रजनी ने कहा।
थोड़ी ही देर में मैं दो सुंदर औरतों के साथ नंगा बिस्तर पर था जिनकी चूत का उदघाटन मैंने ही किया था।
जैसे ही मेरा लंड रजनी की चूत में दाखिल हुआ, वो कामुक्ता भरी आवाज़ में बोल उठी, “ओहहहहहह सुनील तुम्हारा लंड कितना अच्छा है।” प्रीती हमें देख रही थी और उसने अपने हाथों को रजनी की चूत के पास रखा हुआ था, जिससे मेरा लंड उसके हाथों से होकर रजनी की चूत में जा रहा था।
थोड़ी ही देर में रजनी मस्ती में आ गयी थी। वो अपने कुल्हे उछाल कर मेरी थाप से थाप मिला रही थी। उसके मुँह से उन्माद भरी आवाज़ें निकल रही थी, “हाँआँआआआ सुनील!!! ऐसे ही चोदते जाओ, और तेजी से राआआआजा हाँआँ मज़ाआआआआ आ रहा है…… और जोर से।”
उसकी कामुक्ता भरी बातें सुन कर मेरे लंड में भी उबाल आने लगा। मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार धीमी कर दी। तभी उसने कहा, “ओहहहहह सुनील रुको मत….. मेरा थोड़ी देर में ही छूटने वाला है, हाँआँआँ सुनीला और जोर से, प्लीज़ और जोर से…… कितना मज़ा आ रहा है।” यह कहते हुए उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैंने भी दो चार धक्के लगा कर अपना वीर्य उसकी चूत में डाल दिया और हम अपनी अपनी साँसें संभालने लगे।
“तुम दोनों की चुदाई देख कर अब मुझसे रहा नहीं जाता, प्लीज़ सुनील! मेरी चूत की भी प्यास बुझा दो।” प्रीती ने मेरे लंड को पकड़ते हुए कहा।
“जान मेरी! थोड़ा वक्त तो दो…. फिर मैं तुम्हारी अभी की प्यास तो क्या….. जनमों की प्यास बुझा दूँगा”, मैंने जवाब दिया।
प्रीती मेरा लंड अपने मुँह में लेकर जोर से चूसने लगी। जब मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया तो मैंने इतनी जोर से उसे चोदा कि वो तीन बार झड़ गयी।
हम लोग अपनी उखड़ी हुई साँसों पर काबू पाने की कोशिश कर रहे थे कि रजनी ने अपने होंठ प्रीती की चूचियों पर रख कर चूसना शुरू कर दिया।
“ऊऊऊऊहहहहह ये क्या कर रही हो?” प्रीती बोली, लेकिन उसकी बातों को अनसुना कर के रजनी नीचे की ओर बढ़ती हुई अपनी जीभ को उसकी चूत पर रख कर चाटने लगी।
प्रीती कि सिसकरियाँ तेज हो रही थी, “हाँआआआआआ ऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ माँआँआआआआआआआ ये तुम क्या कर रही हो रजनी…… हाँ और जोर से चाटो”, कहते हुए प्रीती ने अपना पानी रजनी के मुँह में छोड़ दिया। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
इन दोनों की हरकत देख कर मेरा लंड फिर से तन कर खड़ा हो गया। “तुम में से पहले कौन इसका मज़ा लेना चाहेगा?” मैंने अपना लंड हिलाते हुए कहा।
“पहले प्रीती को चोदो”, कहकर रजनी ने मेरे लंड को प्रीती की चूत के छेद पर लगा दिया।
उस दिन मैंने कई बार बदल-बदल कर दोनों को चोदा।
“तो फिर कब मिलना है?” रजनी ने कपड़े पहनते हुए कहा।
“शनिवार की रात को, क्यों ठीक रहेगा ना?”
“ठीक है! शनिवार को मिलेंगे”, कहकर रजनी अपने घर चली गयी। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
शनिवार की शाम को मैंने सूईट के सब बल्ब निकाल दिये और खिड़की पर काले पर्दे चढ़ा दिये जिससे कमरे में अंधेरा हो और एम-डी रजनी को पहचान नहीं पाये।
“सर! आप अपने कपड़े उतार कर रूम में जा सकते हैं, नयी चूत आपका इंतज़ार कर रही है!” प्रीती ने एम-डी से कहा।
अपने कपड़े उतार कर एम-डी बेडरूम में दाखिल हो गया। “सुनील! मैं सब सुनना चाहती हूँ और रिकॉर्ड भी करना चाहती हूँ”, प्रीती ने अपने लिये एक बड़ा पैग ले कर सोफ़े पर बैठते हुए कहा।
मैंने टीवी का स्विच ऑन किया और देखने लगा। एम-डी अपना लंड रजनी की चूत में घुसा चुका था। “मैं तुम्हारी चूत के भी पैसे दे देता अगर तुम मेरे पास पहले आ जाती”, कहते हुए एम-डी रजनी की चूत को चोद रहा था।
रजनी के मुँह से कामुक सिसकरियाँ निकल रही थी। एम-डी अपना पूरा जोर लगा कर रजनी की चूत को चोद रहा था।
“तुझे चुदाई अच्छी लग रही है ना?” एम-डी ने पूछा।
“हाँआँआआ”, रजनी बोली।
“लगता है रजनी को मज़ा आ रहा है!” मैंने प्रीती से कहा।
“हाँ! एम-डी चुदाई बहुत अच्छे तरीके से करता है”, प्रीती ने सिगरेट का कश लेकर मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही दबाते हुए कहा।
टीवी पर रजनी की सिसकरियाँ गूँज रही थी, “ओहहहहहहह हाँआँआआआआआ जोर से… हाँआँआँ ऐसे ही।”
थोड़ी देर बाद कमरे में एक दम खामोशी सी छा गयी थी। सिर्फ़ उन दोनों की साँसों की आवाज़ आ रही थी।
“लगता है दोनों का काम हो गया है!” प्रीती बोली। प्रीती का तीसरा पैग चल रहा था और वो चेन स्मोकर की तरह लगातार सिगरेट पे सिगरेट फूँक रही थी।
इतने में एम-डी ने कहा, “काश तुम मेरे पास पहले आ जाती तो मैं तुम्हारी कुँवारी चूत चोद पाता, फिर भी तुम्हारी चूत अभी भी कसी हुई है। कोई बात नहीं….. चलो अब घोड़ी बन जाओ, अब मैं तुम्हारी गाँड मारूँगा।”
“म….म…म..म…म नहीं!!” रजनी ने थोड़ा विरोध किया।
“तुम डरो मत! मैं धीरे-धीरे करूँगा…… तुम्हें तकलीफ नहीं होगी”, एम-डी ने रजनी की चूचियों को सहलाते हुए कहा।
रजनी घोड़ी बन गयी और एम-डी ने अपना लंड उसकी कुँवारी गाँड में डाल दिया।
“ओहहहहहहह मर गयीईईईईई, निकालो बहुत दर्द हो रहा है, ऊऊऊऊऊऊऊऊ माँआँआआ”, रजनी की चींख सुनाई दी।
“सुनील! एम-डी ने रजनी की कुँवारी गाँड फाड़ दी लगता है!” अपनी सिगरेट एश-ट्रे में टिका कर और ग्लास टेबल पर रख कर प्रीती मेरे लंड को पैंट में से निकालते हुए बोली। “तुम्हारा लंड कितना तन गया है और मेरी भी चुदाई की इच्छा हो रही है…. मुझे चोदो ना…. देखो मेरी चूत कैसे बह रही है।”
मैं प्रीती को सोफ़े पर लिटा कर, कसके उसकी चुदाई करता रहा।
दो घंटे के बाद एम-डी बेडरूम से बाहर आया और अपने कपड़े पहन लिये। “प्रीती! तुम भी कमाल की औरत हो, कहाँ कहाँ से ढूँढ के लाती हो इतनी कुँवारी चूतों को? मज़ा आ गया!” एम-डी ने कहा, “उससे पूछो कि क्या वो और दस हज़ार कमाना चाहेगी?”
“आप अपने आप क्यों नहीं पूछ लेते?” रजनी ने कमरे में नंगे ही आते हुए पूछा।
“ओह गॉड! ये तुम थीं!” एम-डी ने रजनी को देखते हुए कहा। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
“हाँ मेरे प्यारे अंकल! ये सुन कर अच्छा लगा कि आपको मुझे चोदने में मज़ा आया…. मैं फिर से चुदवाना चाहती हूँ”, रजनी ने हँसते हुए कहा।
एम-डी धम से सोफ़े पर बैठ गया और अपने आपको कोसने लगा, “ये मैंने क्या किया? अपनी बेटी समान भतीजी को ही चोद दिया, हे भगवान मुझे माफ़ कर देना।” फिर वो प्रीती पर गुस्से से चिल्लाया, “ये सब तुम्हारा किया धरा है…. तुम क्या ये सब मज़ाक समझती हो?”
“हाँ! ये सब मैंने ही किया है। मैंने ही रजनी को तुमसे चुदवाने के लिये तैयार किया। जिस तरह तुमने मुझे चोदने के लिये मेरे पति को ब्लैकमेल किया था…. ये उसका बदला है”, प्रीती जोर जोर से हँस रही थी।
एम-डी प्रीती को गालियाँ दे रहा था, “कुतिया….. रंडी….. साली….. तूने ऐसा क्यों किया?” फिर रजनी की तरफ पलटते हुए बोला, “मैंने तुम्हारे साथ ऐसा क्या किया जो तुम इसके लिये तैयार हो गयी?”
“मेरे साथ नहीं किया, पर दूसरों के साथ तो करते आये हो! असलम को भूल गये? कैसे उसे चोरी के इल्ज़ाम में फँसा कर उसकी बेटी आयेशा को आपने और महेश ने चोदा था”, रजनी खीझती हुई बोली।
“ये सब झूठ है, इन्होंने तुम्हें बहकाया है”, एम-डी ने कहा।
“आप रहने दें, झूठ बोलने से कोई फ़ायदा नहीं है, मुझे सचाई का पता है, आप यहाँ से प्लीज़ जायें, मुझे आपको अपना अंकल कहते हुए भी शरम आ रही है।”
एम-डी चुपचाप उठा और धीमे कदमों से सूईट से बाहर चला गया।
“हम लोगों ने कर दिखाया”, रजनी खुशी से चिल्लाते हुए बोली। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
“हाँ कर तो लिया…. पर तुमने देखा एम-डी का चेहरा कैसे उतर गया था, मुझे दुख है लेकिन उसे सबक भी सिखाना जरूरी था”, प्रीती अपना ग्लास हवा में लहराते हुए बोली, “रजनी ये पैसे तुम रख लो… तुम्हारे हैं जो एम-डी ने तुम्हें चोदने के लिये दिये थे।”
“नहीं मुझे इनकी जरूरत नहीं है….. इसे तुम ही रखो”, रजनी ने पैसे लौटाते हुए कहा।
“तो फिर इनका क्या करें, ऐसा करते हैं ये पैसे असलम को दे देते हैं, कहेंगे आयेशा की शादी में काम आयेंगे”, प्रीती ने कहा।
“हाँ! ये ठीक रहेगा! लेकिन अब क्या करें?” रजनी बोली।
“तुम लोगों को जो करना है करो….. मुझे तो एम-डी पर दया आती है, मैं घर जाकर सोना चाहता हूँ।”
“ठीक है”, कहकर प्रीती ने रजनी को भी घर भेज दिया और हम लोग घर आकर सो गये।
दूसरे दिन एम-डी ऑफिस में नहीं आया। घर फोन करने पर पता लगा कि उनकी तबियत खराब है। एम-डी की तबियत दिन पर दिन खराब रहने लगी और उन्हें हॉसपिटल में भरती करना पड़ा।
ऑफिस का काम मैंने संभल लिया था। इसी तरह महीना गुजर गया। सब कुछ वैसे ही चल रहा था। मैं ऑफिस की औरतों को चोदता और प्रीती भी क्लबों और पार्टियों में दूसरे मर्दों से चुदवा कर ऐश कर रही थी।
एक दिन मैंने एम-डी को फोन किया, “सर! मैं सुनील बोल रहा हूँ, अब आपकी तबियत कैसी है?”
“मैं ठीक हूँ सुनील! एक काम करो… आज रात आठ बजे तुम मुझे मेरे सूईट में मिलो? ठीक टाईम पर पहुँच जाना, तुम आओगे ना?” एम-डी ने कहा।
“बिल्कुल पहुँच जाऊँगा सर”, मैंने जवाब दिया।
ठीक टाईम पर मैं सूईट में दाखिल हुआ तो क्या देखता हूँ कि एम-डी एकदम नंगा सोफ़े पर बैठा था, और दो औरतें, जो कि बिल्कुल नंगी थीं, उसके लंड को चूस और चूम रही थी।
“आओ सुनील!” एम-डी ने मेरी तरफ हाथ हिलाते हुए कहा।
एम-डी को बोलते सुन दोनों औरतें अपना नंगा बदन छुपाने के लिये सोफ़े के पीछे जा छुपीं। उनका सिर्फ़ चेहरा दिखायी दे रहा था। मैंने उन दोनों को पहचान लिया। एक एम-डी की पत्नी मिली थी और दूसरी रजनी कि मम्मी, मिसेज योगिता थी। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
“रजनीश! ये कौन है और यहाँ क्यों आया है? इसे फ़ौरन यहाँ से जाने को बोलो!” मिसेज मिली चिल्लाते हुए बोली और मिसेज योगिता ने शरमा कर अपनी गर्दन झुका रखी थी।
उसकी बातों को अनसुना कर के एम-डी ने कहा “सुनील! तुम इन दोनों से पहले भी मिल चुके हो….. लेकिन फिर भी मैं इनसे तुम्हारा परिचय कराता हूँ। ये मेरी बीवी मिली है और बिस्तर में भी उतना ही मिल जाती है, और ये मेरी दूर की कज़िन योगिता है…… ये थोड़ी शर्मिली है, लेकिन इसकी चूत एक दम आग का गोला है….. योगिता ये मिस्टर सुनील हैं…… हमारे अकाऊँट्स के जनरल मैनेजर।”
“आप दोनों से मिलकर खुशी हुई”, मैंने कहा।
दोनों औरतों ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप रही।
एम-डी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “सुनील! मैंने तुम्हारी पत्नी और बहनों को चोदा है, आज मैं हिसाब बराबर कर देना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरी पत्नी और बहन तुम्हारी बीवी और बहनों जितनी यंग तो नहीं है, लेकिन जैसी हैं तुम्हारी हैं। तुम चाहो जैसे इन्हें चोद सकते हो।”
“तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? तुम अपने नौकर से अपनी बीवी और बहन को चुदवाना चाहते हो?” मिली चिल्लाते हुए बोली। उसकी आवाज से साफ ज़ाहिर था कि उसने शराब पी रखी थी।
“इसके नौकर होने की तुम्हें तकलीफ हो रही है तो ठीक है….. इसे मैं आज से डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त करता हूँ, अब तो तुम्हें तकलीफ नहीं?” एम-डी ने हँसते हुए कहा।
“नहीं! मैं तैयार नहीं हूँ!” मिली वापस चिल्लायी। इतनी देर योगिता चुपचाप सब सुन देख रही थी।
“तुम तैयार हो कि नहीं…… बाद में देखेंगे।” एम-डी हँसा, “सुनील जरा इन्हें अपना लंड तो दिखाना!”
दोनों औरतें ४० साल के ऊपर थीं, फिर भी उनका बदन गदराया हुआ था और उन्हें चोदने को मेरा दिल मचल उठ था। मैंने अपने कपड़े उतारते हुए अपना लंड दिखाया।
“ओह गॉड! कितना मोटा और लंबा लौड़ा है तुम्हारा”, मिली ने अब आगे आकर मेरे लंड को अपने हाथों में जकड़ते हुए कहा। “तुम्हारा लंड तो महेश से भी लंबा है।”
“साली कुत्तिया! मेरे पीछे तुम महेश से चुदवाती रही हो?” एम-डी ने हँसते हुए कहा।
“हाँ… उसी तरह जैसे तुम उसकी बीवी को चोदते रहते थे”, कहकर मिली मेरे लंड को हिलाने लगी।
“योगिता क्या तुम इसके लिये तैयार हो?”
“नहीं! बिल्कुल नहीं!” योगिता बोली।
“योगिता प्लीज़ मान जाओ! नहीं तो मुझे सुनील के लिये किसी और चूत का इंतज़ाम करना होगा, रजनी की चूत कैसी रहेगी? मुझे मालूम है कि सुनील को रजनी की कुँवारी चूत चोदने में मज़ा आयेगा।” एम-डी हँसते हुए बोला।
“मेरी बेटी को इन सबसे दूर रखो! समझे?” योगिता जोर से चिल्लायी।
“तुम सोच लो, या तो तुम्हारी चूत या फिर रजनी की चूत, फैसला तुम्हारे हाथ में है।”
एम-डी की बात सुन कर योगिता भी सोफ़े के पीछे से बाहर आ गयी। सिर्फ काले रंग के हाई हील के सैंडल पहने, बिल्कुल नंगी, योगिता बहुत ही सैक्सी लग रही थी। एम-डी उसे देख कर बोला, “अच्छा अब तुम मान ही गयी हो तो सुनील का जरा अलग अंदाज़ में स्वागत करो।”
योगिता घुटने के बल मेरे पास बैठ गयी और मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने और चाटने लगी।
“चलो अब बेडरूम में चलते हैं”, एम-डी सोफ़े पर से उठते हुए बोला। हम चारों बेडरूम में आ गये। पहले हम सबने दो-दो पैग पीये और फिर मैंने दोनों को खूब चोदा। इतनी उम्र होने के बाद भी दोनों में सैक्स की आग भरी हुई थी। एम-डी सब कुछ देखता रहा। फिर एम-डी के कहने पर मैंने उन दोनों की गाँड भी मारी।
मैंने रात को घर पहुँच कर प्रीती को सब बताया तो वो खुश हुई और बोली, “अच्छा है! आज से एम-डी तुम्हें अपने बराबर समझेगा….. नौकर नहीं।”
एम-डी जब बिमार था तो रजनी बराबर आती रहती थी और मैं प्रीती के साथ उसकी भी जम कर चुदाई करता था, लेकिन जबसे मैंने उसकी माँ योगिता को चोदा, उसने आना बंद कर दिया था। इस कहानी के लेखक सुनील अग्रवाल है!
एक दिन मैं घर पहुँचा तो देखता हूँ कि रजनी और प्रीती शराब की चुस्कियाँ लेती हुई बातें कर रही हैं।
“हाय सुनील! कैसे हो और आज कल क्या कर रहे हो…. मेरी मम्मी को चोदने के अलावा?” रजनी बोली।
“तो तुम्हें पता चल गया”, मैंने कहा।
“तुम्हें कैसे पता चला?” प्रीती ने पूछा।
“वही तो बताने आयी हूँ, सुनील का ही इंतज़ार कर रही थी”, रजनी बोली।
“अब तो सुनील आ गया है….. चलो शुरू हो जाओ।”
“कुछ दिनों से मैं देख रही थी कि मम्मी कुछ खोयी-खोयी सी रहती थी। अब ना तो वो पहले के जैसे हँसती थी और ना ही उनका काम में मन लगता था। पहले वो कभी-कभी ही, पार्टी वगैरह में ड्रिंक करती थीं पर अब कुछ दिनों से रोज़ ड्रिंक करने लगी थीं।”
“मेरे बहुत जोर देने पे वो बोलीं, रजनी मेरी बातें सुनकर हो सके तो मुझे माफ़ कर देना….. रजनी! मैं बचपन से ही बहुत सैक्सी थी, मुझे सैक्स हमेशा चाहिये होता था, तुम्हारे पिताजी के मरने के बाद मैं अकेली पड़ गयी और मेरी सैक्स की भूख शाँत नहीं होती थी। एक दिन मेरी एक सहेली ने मुझे रबड़ का नकली लंड खरीद कर लाके दिया।”
“मम्मी! आपके पास क्या नकली लंड है? मुझे दिखाओ ना! मैं बीच में बोली।”
“अभी नहीं बाद में, मम्मी बोली पर मैंने जोर दिया तो मम्मी बेडरूम से नकली लंड ले आयी…. प्रीती! पूरा दस इंच का काला और मोटा लंड है, अच्छा है पर सुनील के असली लंड जैसा नहीं।”
“आगे क्या हुआ, वो बता”, प्रीती सिगरेट का धुँआ छोड़ती हुई रजनी से बोली।
“मम्मी ने बताया कि एक दिन शाम को वो अपने नकली लंड से मज़े ले रही थी कि मेरी आँटी मिली ने उन्हें देख लिया और बोली, ‘योगिता नकली लंड से कुछ नहीं होगा, मेरे पास आओ मैं तुम्हें असली मज़ा दूँगी।’ उसकी बातें सुन कर मम्मी आगे बढ़ी तो उसने उन्हें बाँहों में भर कर चूमना शुरू कर दिया। मम्मी को भी मज़ा आने लगा और थोड़ी ही देर में दोनों एक दूसरे की चूत चाट रही थीं, जब उनका पानी छूट गया तो मम्मी ने मिली आँटी से पूछा, ‘मिली! तुम्हें भी चुदाई का बड़ा शौक है ना?’ ‘हाँ! योगिता बहुत है लेकिन रजनीश मुझे कभी-कभी ही चोदता है।’ उस दिन के बाद से वो दोनों रोज़ एक दूसरे को नकली लंड से चोद कर मज़ा लेतीं और एक दूसरे की चूत को खूब चाटतीं।”
“एक दिन मम्मी बिस्तर पर आँखें बंद किये लेटी थी। उनकी टाँगें हवा में उठी हुई थी और मिली आँटी के चोदने का इंतज़ार कर रही थी। ‘मिली! अब जल्दी भी करो मेरी चूत में आग लगी हुई है…. मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।’ मम्मी की बात सुन कर मिली आँटी ने नकली लंड उनकी चूत में घुसा दिया, लेकिन जैसे ही लंड घुसा कि मम्मी समझ गयी कि नकली नहीं असली लंड है। मम्मी ने आँखें खोली तो देखा कि रजनीश अंकल अपना लंड घुसाये उन्हें चोद रहे थे। मम्मी ने बिस्तर से उठना चाहा तो अंकल ने उन्हें कस कर बाँहों में पकड़ कर चोदते हुए कहा, ‘योगिता! जब ये असली लंड है तो तुम्हें नकली लंड से चुदवाने की क्या जरूरत है?’ मम्मी ने भी कई दिनों से असली लंड का मज़ा नहीं लिया था। मम्मी भी उनका साथ देने लगी और मस्ती में चुदवाने लगी। बाद में मम्मी को पता लगा कि ये दोनों की मिली भगत थी। मम्मी ने बुरा नहीं माना। उस दिन से रजनीश अंकल मम्मी को अकसर चोदने लगे।”
“एक दिन अंकल मम्मी और मिली आँटी को होटल के सूईट में ले आये और बोले कि आज यहाँ मज़े करेंगे। अंकल ने मम्मी और मिली आँटी को खूब शराब पिलायी। मम्मी ने मुझे आगे बताया कि हम लोग मस्ती कर रहे थे कि हमारी कंपनी से कोई सुनील आया और तुम्हारे अंकल ने हम दोनों को उसे सौंप दिया…. चोदने के लिये क्योंकि तुम्हारे अंकल ने उसकी बीवी और बहन को चोदा था। मैं साथ नहीं देना चाहती थी लेकिन जब मिली ने सुनील के लंड को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। मैंने मना करना चाहा तो तुम्हारे अंकल ने कहा कि या तो मैं मन जाऊँ नहीं तो वो तुम्हारी चूत सुनील को दे देंगे। फिर मैं भी मान गयी और सुनील ने एम-डी के सामने ही हम दोनों को चोदा, उसने हमारी गाँड भी मारी। बस उस दिन से मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं रंडी बन गयी हूँ।”
“मम्मी! सुनील का लंड बहुत मोटा और लंबा है ना? चुदवाने में बहुत मज़ा आता है ना? मैंने मम्मी से कहा। तुमने सुनील का लंड कब देखा और चखा? मम्मी ने पूछा। तब मैंने मम्मी को पूरी कहानी सुनाई, सुनील से चुदवाने से लेकर अंकल से चुदवाने तक। मेरी कहानी सुन कर मम्मी बोल पड़ी कि काश मैं भी प्रीती कि तरह तुम्हारे अंकल से बदला ले सकूँ। ‘मम्मी! आप चिंता ना करें….. मैं आपके साथ हूँ’, ‘मगर हम किस तरह बदला लेंगे?’ मम्मी ने पूछा। अंकल की दोनों बेटियाँ है ना! ६ महीने बाद बड़ी बेटी इक्कीस साल की हो जायेगी और छोटी वाली एक साल के बाद। उनके इक्कीस्वें जन्मदिन पर उनका तोहफा होगा….. मोटा और लम्बा लंड उनकी चूत और गाँड में।”
“तुम्हारे दिमाग में कोई इंसान है? मम्मी ने पूछा। हाँ! मैं सुनील को तैयार कर लूँगी…. अब तुम लोग समझ गये होगे कि मुझे कैसे पता चला और क्या तुम दोनों मेरा साथ दोगे?”
“रजनी! एम-डी से बदला लेने में हम तुम्हारा पूरा साथ देंगे…..” मैंने उसे बाँहों में भरते हुए कहा।
“तुम्हारा प्लैन क्या है?” प्रीती ने पूछा।
“मेरा प्लैन ये है कि….” Hindi Sex Stories
घर में हम तीन लोग Antarvasna ही रहते थे- मैं, मेरी भाभी और भैया। मेरा अधिकतर समय कॉलेज में या खेलने कूदने में ही निकलता था।
मेरा एक दोस्त उस समय एक छोटी सी दुकान से अश्लील पुस्तकें लाया करता था। वो किताब उसने मुझे भी पढ़ने दी। धीरे धीरे मुझे सेक्स की उन अश्लील किताबों को पढ़ने मे मजा आने लगा था। उस मित्र ने उस दुकान वाले से मेरी जान पहचान करवा दी थी। अब मैं भी, जब पैसे होते थे, तब पढ़ने को पुस्तक ले आया करता था। पढ़ते समय ज्यादातर मेरा लण्ड खड़ा हो जाया करता था।
एक बार रात को जब मैं पुस्तक पढ़ रहा था तब मेरा लण्ड खड़ा हुआ था। अनजाने में मेरा हाथ लण्ड पर आ गया और मैंने उसे दबा डाला। फिर मुझे उसे ऊपर नीचे करने में मजा आने लगा। तभी मेरे लण्ड में से जोर से कुछ गाढ़ा सा सफ़ेद लसलसा सा छूट पड़ा। मैं हैरान रह गया… पर पुस्तक में पढ़ा था कि जब जोर की मस्ती चढ जाती है तो वीर्य स्खलित हो जाता है। यह मेरा प्रथम स्खलन था। मैंने जल्दी से जाकर अपनी चड्डी बदल ली। पर भूल गया कि भाभी इसे कपड़े धोते समय धोएंगी। भाभी ने उसे अवश्य देखा होगा धोते समय क्योंकि अब भाभी मुझ पर नजर रखने लग गई थी।
एक दिन भाभी ने झिझकते हुये मुझसे कह ही दिया,”भैया, आजकल आप बिगड़ते जा रहे हो।”
“न…न… नहीं तो भाभी … क्या हो गया ?”
“आजकल आप चड्डी बहुत बदलते हो…”
मैं बुरी तरह से हड़बड़ा गया,”वो भाभी, आजकल जाने कैसे, कुछ हो जाता है और…!”
“चड्डी बदलनी पड़ती है, है ना? ऐसी पुस्तकें पढ़ोगे तो यह सब होगा ही…”
इसका मतलब भाभी ने मेरी अनुपस्थिति में मेरे बिस्तर के नीचे से वो अश्लील पुस्तकें ढूंढ ली थी और उसे पढ़ा था।
“वो … मेरा दोस्त है ना … उसने पढ़ने को दी थी।”
“अब नहीं लाते हो क्या?”
“जी… मेरे पास पैसे नही रहते ना…” मुझे भाभी का यह पूछना कुछ सकारात्मक सा लगा।
“ओह हो … बस पैसे की बात थी … मेरे से ले जाया करो… मुझे भी ये पुस्तकें अच्छी लगती हैं।”
यह सुनते ही मेरी तो बांछें खिल गई,”आप पढ़ेंगी ? भैया को मत बता देना… !”
अब तो रोज मैं अश्लील कहानी की पुस्तकें लाने लगा। भाभी उसे दिन में पढ़ती थी और मैं रात को पढ़ता था। अब भाभी मुझे भैया से छुपा कर ज्यादा जेब खर्च देने लगी थी।
उन्हीं दिनों मेरे उसी मित्र ने मुझे बताया कि अब पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है, ये तो कम्प्यूटर में अन्तरवासना में फ़्री में पढ़ने को मिल जाया करती हैं। तब मैं ये कहानियाँ अन्तर्वासना पर पढ़ने लगा। भाभी को भी मैंने अन्तर्वासना के बारे में बता दिया। इसमें कहानी पुस्तकों से बहुत अच्छी पढ़ने को मिलती थी, मजा भी खूब आता था। अब तो बस जब इच्छा हुई, कहानी पढ़ ली। बस मजे की बात यह हुई कि भाभी को कहानियाँ पढ़ने के लिये मेरे कमरे में आना पड़ता था। फिर कहानी पढ़ते समय उसकी हालत देखने योग्य हो जाती थी। उसकी छातियां यूं ऊपर नीचे होने लगती थी कि बस मन करता था कि दबा दूँ जाकर।
इन दिनों मुझ में बहुत बदलाव आता जा रहा था। मेरी नजर भाभी पर पड़ने लगी थी। मुझे उसके स्तन उत्तेजक लगने लगे थे। मेरी नजरें हमेशा उसके पेटीकोट में कुछ ढूंढती रहती थी। मुझे लगता था कि भाभी जानकर के मेरे सामने कम कपड़ों में आती है। ना तो चूंचियां छिपाती है और ना ही अपने अन्य अंग।
एक दिन ऐसे ही मेरे दोस्त ने मुझे ब्ल्यू सीडी लाकर दी। मैंने यह शुभ सूचना भाभी को दी और देखने के लिये बीस रुपये भी किराये का बहाना कर के ले लिये। पर अब वो फ़िल्म अपने टीवी पर देखा करती थी। यहां से आरम्भ होता है भाभी के साथ मेरा अंतरंग प्रसंग…।
भाभी अश्लील मूवी देख रही थी। मेरे कमरे में आने का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ा, बस मुझे एक बार देखा और फिर से फ़िल्म देखने में तल्लीन हो गई। मैं भी एक तरफ़ सोफ़े में बैठ गया और फ़िल्म देखने लगा। कुछ ही देर में मेरा लण्ड पजामे में से फ़ुफ़कारने लगा। मैंने अपना लण्ड थाम लिया। मैंने अपने आप को बहुत रोका पर मन बावला हो गया था। मैं धीरे से उठा और भाभी के पीछे आ गया। बहुत साहस जुटा कर मैंने अपने दोनों हाथ उसके कंधे पर रख दिये। भाभी का शरीर गर्म था, मेरे हाथ रखने उसने कुछ नहीं कहा। मेरा साहस और बढ़ गया, तब मैने अपना हाथ नीचे सरका कर भाभी के कठोर और उन्नत उरोजों पर रख दिया।
मैंने हिम्मत करके स्तनों को धीरे से सहला कर दबा दिया। भाभी के मुख से एक प्यारी सी सिसकी निकल पड़ी, पर उसने मुझे कुछ नहीं कहा। मुझे उसने पीछे मुड़ कर देखा और अपनी नशीली आंखों से आंखें मिला दी। मैंने कुछ नही कहा, बस हौले हौले कठोर पत्थरों को सहलाता रहा। उसने मेरा हाथ थाम लिया और अपने पास बैठने का इशारा किया। मैं घूम कर वापस उसके पास आ गया और साथ में बैठ गया। उसकी पीठ की तरफ़ से हाथ डाल कर फिर से भाभी की चूचियाँ दबाने लगा।
मेरे मन में विचित्र सा आभास होने लगा था। भाभी की दिल की धड़कनें मुझे अब महसूस होने लगी थी। मेरे सफ़ेद पतले से पजामे मे मेरे लण्ड का उभार देख कर उसे पकड़ लिया। भाभी का मुख मेरी ओर बढ़ चला … अधरों से अधर मिल गये। चुम्बन और मर्दन का काम एक साथ चलने लगा था। मैंने टीवी बन्द कर दिया। बस कमरे में अब तेज सांसो की आवाज आ रही थी, बीच बीच में भाभी सिसक उठती थी। लण्ड मसलने से मुझे बहुत ही मजा आने लगा था, मेरे शरीर में जैसे आग सी लग गई थी। मैंने अपना हाथ भाभी की चूत की तरफ़ बढ़ा दिया। उसने अपना पेट पिचका कर मुझे हाथ पेटीकोट के अन्दर घुसाने दिया और धीरे से अपनी टांगें फ़ैला कर आमन्त्रित किया। जैसे ही मेरा हाथ उसकी चूत तक पहुंचा वो तड़प सी गई।
मेरा हाथ उसकी चूत को सहलाने लगा। भाभी भी अपनी चूत को ऊपर कर के मेरी अंगुली को उसमें घुसवाने का प्रयत्न करने लगी। मेरे पजामे का नाड़ा उसने खोल दिया था और मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया था। उसने मेरा सुपाड़ा चमड़ी खींच कर बाहर निकाल लिया। ट्यूब लाईट में लाल टमाटर जैसा चमकदार सुपाड़ा जैसे उसके मन को भा गया। वो मेरे लण्ड पर मुठ मारने लगी। दोनों के शरीर वासना की मीठी अग्नि में जल उठे। कुछ ही समय में मेरा वीर्य छूट गया, शायद भाभी का भी रस निकल गया था, उसकी चूत में भी बहुत सा गीलापन आ गया था। भाभी ने अपना हाथ कपड़े से साफ़ कर लिया और अपने कपड़े ठीक से पहन कर चली गई। रात के दस बज रहे थे, भैया के आने का समय हो गया था। मैंने सीडी छुपा कर रख दी।
कुछ ही देर में भैया आ गये थे। सभी ने साथ भोजन किया और अपने अपने कक्ष मे चले गये।
कहानी के अगले भाग में भाभी और मैंने क्या क्या गुल खिलाये, जरा लण्ड थाम कर पढ़िये। Antarvasna
हाय दोस्तो! मैं राजू फ़िर कोलकाता से. Antarvasnaमेरी पिछली दो कहानियाँ
‘एक सच्ची कहानी’
और
‘पति के सामने बीवी की चुदाई‘
आप लोंगों ने जरूर पढ़ी होगी. ये दोनों कहानियाँ मेरे सच्चे अनुभव पर आधारित थीं.
इन दोनों कहानियों को पढ़़कर बहुत से लोगों ने मुझे मेल किया. उनमे से एक जिसका नाम मनु था उसने लिखा कि वो भी इस तरह का सेक्स करना चाहता है. उसकी उम्र 32 वर्ष और उसकी बीवी नीतू की 28 वर्ष है. मनु ने मुझसे कहा कि नीतू एक समय में दो- तीन मर्दों के साथ सेक्स करना चाहती है. ये लोग भी कोलकाता के रहने वाले हैं. लेकिन मनु की इच्छा स्वैपिंग की थी. मनु ने मुझसे कहा कि पहले तुम और मैं मिलकर नीतू को चोदेंगे फ़िर बाद में पूजा(मेरी बीवी को). लेकिन पूजा तैयार नहीं थी. इसलिए मैंने उनका परिचय सोनाली और सिया से करा दिया. जो लोग सोनाली और सिया के बारे में नहीं जानते उन्हें थोड़ा परिचय करा दूँ.
सोनाली- उम्र- 30, गोरा, लंबा
सिया- उम्र- 27, सुंदर, 34-25-32
ये दोनों पति- पत्नी हैं कोलकाता से ही. ये लोग तो वैसे पार्टनर बदल कर सेक्स करने के एक्सपर्ट हैं. लेकिन मैंने और सोनाली ने मिलकर एक दिन सिया को चोदा था. सिया बहुत ही हॉट और सेक्सी है. इसके बाद दोनों ने बताया की उन्होंने पार्टनर बदलकर सेक्स किया और उन्हें खूब मजा आया.
मेरी मुलाक़ात अभी तक नीतू और मनु से नहीं हुई थी. फ़ोन पर सोनाली और मनु ने मुझे सब बताया अपनी चुदाई के बारे में.
ये सब सुनकर मेरी भी इच्छा हो रही थी लेकिन मैं मजबूर था. क्योंकि मेरी बीवी तैयार नहीं हो रही थी.
कुछ दिनों के बाद एक दिन सोनाली ने मुझे फ़ोन किया कि तुम एक दिन का समय सकते हो? मैंने पूछा कि क्यों? तो सोनाली ने बताया कि सिया और मैंने तुम्हारी चुदाई की तारीफ मनु और नीतू के सामने की है और मैं और मनु चाहते हैं की एक ग्रुप का प्रोग्राम बनाया जाए.
ये सुनकर मैंने कहा की ठीक है लेकिन मैं अकेले ही शामिल हो पाऊँगा क्योंकि मेरी बीवी तैयार नहीं होगी. सोनाली ने कहा कि ठीक है हम प्रोग्राम बना रहे हैं. इसके कुछ दिन के बाद सोनाली का फ़ोन आया की शुक्रवार को चलना है. कोलकाता से करीब 100 किलोमीटर दूर एक रिसॉर्ट है वहीँ पर चलना है सुबह 7 बजे घर से निकलना है. मैंने कहा ठीक है. मैंने इसके लिए अपनी बीवी को एक दिन पहले ही मायके भेज दिया.
शुक्रवार को सोनाली ने सुबह 6 बजे फ़ोन किया और कहा कि तुम कहाँ पर रहोगे? मैंने एक जगह का नाम बताया. सोनाली के पास कार थी. ठीक जगह पर पहुँच मैं उन लोगों से मिला. मनु और नीतू से पहली बार मिला. सोनाली गाड़ी चला रहा था. बगल में मनु बैठा था. मैं पीछे नीतू और सिया के साथ बैठ गया. फ़िर मैंने नीतू को ध्यान से देखा. क्या माल थी यार? बूब्स- 36”, कमर- 34” और रंग गोरा, आँखें नशीली, देख कर जैसे चुदाई की भूख कभी शांत ही नहीं होती है.
फ़िर मैंने सिया को देखा करीब 6 महीने के बाद. वो पहले से भी ज्यादा सेक्सी लगी. फ़िर सोनाली ने मनु और नीतू से मेरा परिचय कराया. सिया कार में बांये यानि मनु के ठीक पीछे बैठी थी. नीतू बीच में और मैं दाहिनी तरफ़. मनु पहले सिया को चोद चुका था इसलिए वो दोनों खुलकर बातें कर रहे थे. करीब दो घंटे के बाद हम रिसॉर्ट में पहुंचे. इस बीच रास्ते में अच्छी तरह से बाते हुई. नीतू मुझसे खुलकर बातें करने लगी. रिसॉर्ट के बगल में एक पर्यटन स्थल था इसलिए वहाँ कमरा मिलना मुश्किल था लेकिन सोनाली ने पहले से ही एक डीलक्स रूम, डबल बेड का बुक करा लिया था. हम रूम में पहुँच कर पहले बारी- बारी से फ्रेश हुए .फ़िर नाश्ते का आर्डर दिए.
नाश्ता करने के बाद हम सभी बेड पर बैठ कर बातें करने लगे. फ़िर मनु और सोनाली ने अपनी चुदाई की कहानी चालू की. कैसे मनु ने सिया को चोदा और कैसे सोनाली ने नीतू को. इसे सुनकर हम सभी धीरे-धीरे उत्तेजित हो रहे थे. मनु ने कहा कि तुम और सोनाली मिलकर पहले नीतू को चोदों मैं और सिया बैठकर देखेंगे. मेरी बहुत दिन से इच्छा है कि नीतू को दो लोग मिलकर मेरे सामने चोदे. नीतू ने उस समय साडी पहनी थी. मनु सिया के साथ बेड से उठकर सोफे पर चले गए.
मैंने नीतू का हाथ पकड़ कर खड़ा किया और उसके पीछे जाकर लो कट ब्लोउज से निकली हुई नंगी पीठ को चूमने लगा. उसकी ऊँचाई मुझसे थोडी ही कम थी. उसके साथ उसकी दोनों चूचियों को भी हाथ से पकड़ कर दबाने लगा. क्या चूची थी! एक दम कठोर. फ़िर सामने से सोनाली आकर उसके होठों को चूसने लगा. फ़िर मैंने नीतू का मुंह थोड़ा सा तिरछा कर उसके होठों को चूसने लगा सोनाली उस समय उसकी चूचियाँदबा रहा था फ़िर मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उसके बड़ी गांड को ऊपर से सहलाने लगा.
इस बीच मनु उठकर आया और नीतू की साडी उतार दी और कहा कि जल्दी से चोदों इसको. फ़िर वो वापस चला गया सिया के पास. सिया के भी कुछ कपडे उतर गए थे. लेकिन हम लोगों के पास उधर देखने कि फुर्सत नहीं थी. फ़िर मैंने नीतू के ब्लोउज के हुक खोलकर उतार दिया. भीतर उसने काले रंग की ब्रा पहनी थी जिस्मी उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ आधी बाहर निकली थी. सोनाली ने उसके पेटीकोट का नाडा धीरे से खोल दिया और पेटीकोट को उसकी बड़ी गांड से उतार दिया. भीतर उसने काली पेंटी पहनी थी. उसकी बुर के पास भीगा हुआ था जो की पेंटी के ऊपर से ही दिखाई दे रहा था.इसके बाद हमने पोजीशन बदल ली. मैं नीचे की ओर गया और पेंटी से झनकती हुई गांड पर जीभ फिराने लगा. सोनाली ने उसकी ब्रा भी उतार दी और उसके पूरी तरह तने हुए निप्पल को एक -एक कर चूसने लगा.
नीतू की आँखें उस समय बंद थी और वो पूरी तरह उत्तेजित हो गई थी. फ़िर मैंने उसके पेट, नाभि, जांघों को चूमते हुए उसकी पेंटी उतारनी शुरू की. क्या मस्त बुर थी उसकी! एक दम साफ़ जैसे चुदाई के लिए तैयार की गई हो! मैंने बुर के ऊपर जीभ फिराना चालू किया तो वो बेड पर बैठ गयी. मैंने जमीन पर बैठ कर ही उसके टांगो को चौडा किया और उसकी बुर को चूसना शुरू किया. वो अपनी बुर को जैसे मुझे पूरा खिला देगी वैसे कर रही थी.
ऊपर सोनाली बेड पर बैठ उसकी चूचियाँ, होंठ, निप्पल बारी-बारी से दबा/ चूस रहा था. नीतू उत्तेजना के मारे धीरे-धीरे बड़बड़ाने लगी… या…आ…ई ईई… मजा… आ रहा है. वो पूरी तरह से उत्तेजित हो गयी थी. मैंने अपने पूरी जीभ उसकी बुर के भीतर तक घुसा दी थी. और एक अंगुली से उसकी क्लिट को रगड़ रहा था. वो बोलने लगी- हाँ… ऐसे… ही… आई…आ…जीभ चोदते रहो… सोनाली… तुम… मेरी चूचियों को और जोर से… और जोर से… दबाओ…
मनु अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था वो भी पूरी तरह से नंगा था.वो नीतू के पास आया और उसकी चूचियों को दबाने लगा. तब तक सोनाली ने अपने कपड़े उतार कर नीतू को अपना तना हुआ लंड पकड़ा दिया था. वो उसे जोर से सहला रही थी.
मैंने भी अपने कपडे उतारे और अपने लिंग पर एक कंडोम चढाया. और नीतू को डौगी स्टाइल में बेड पर औंधे लिटा दिया. यानि कमर के ऊपर का हिस्सा बेड के ऊपर. मैंने उसके पीछे से आकर उसकी रिसती हुई बुर में एक ही धक्का में अपना पूरा लंड घुसा दिया और जोर-जोर से चोदने लगा. बेड पर नीतू की मुंह की तरफ़ सोनाली बैठा था और उसका लंड नीतू मुंह में लेकर चूस रही थी. मैं जितना जोर से धक्का मारता वो उतना ही सोनाली का लंड अपने मुंह में भर लेती.
मनु पास में ही बैठ कर हमें और जोर से चोदने के लिए उसका रहा था. सिया भी पूरी तरह से नंगी होकर पास में ही बैठी थी मैंने कुछ देर तक उसे चोदा और झड़ गया. फ़िर सोनाली ने उसे बेड पर लिटाकर नोर्मल स्टाइल में चोदा. झड़ने के बाद वो भी बगल में आकर लेट गया.
शेष कहानी यानि हम पाँचों की एक साथ चुदाई अगले भाग में.
यह ग्रुप सेक्स स्टोरी आपको कैसी लगी जरूर बताना. Antarvasna
“लकी प्रोजेक्ट गाइड-२” में Sex Stories आपने पढ़ा कि स्मिता ने किस तरह मुझे बेवकूफ़ बनाया।
मुझे ‘पैशनेट और पावरफ़ुल लवर’ की संज्ञा देने के बाद उसने फ़ुसफ़ुसाते हुए मेरे कानों में कहा था “आपके फोटोग्राफ़्स नेहा ने भी देखे हैं…और वो जल जायेगी जब मैं उसको आज की बात बताऊँगी… बाय सर !”
“टेक केयर !” मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया था…
फ़िर नेहा का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया था…और मेरे होठों पे एक भेदभरी मुस्कान ना चाहते हुए भी आ ही गई थी…
नेहा की आँखें बड़ी-बड़ी थी…हिरणी जैसी…चेहरा गोल मासूम सा…प्यारा सा…बच्चों सा…। मैं उसको बच्चों की तरह ही समझता था…
पर अब जबसे स्मिता ने मुझे यह बताया था कि मेरा पूरा खड़ा प्रचंड लंड नेहा ने भी न सिर्फ़ देखा है…बल्कि ललचाई नज़रों से देखा है, तब से मेरी निगाहें बदल गई, मेरी नीयत बदल गई… मेरा नज़रिया बदल गया।
अब मैं उसके मासूम चेहरे को कम, उसके भरे और गदराये बदन को ज़्यादा देखता था। उसकी हिरणी जैसी आँखे मुझे सेक्सी लगने लगी थी। मैं कल्पना करता था कि उसके स्तन कितने बड़े होंगे… कितने भरे हुए…गोल-गोल.. सोचता था… उसके नितम्ब कितने पुष्ट होंगे….कितने मुलायम होंगे… सोचता था उसकी टांगें कितनी चिकनी होंगी….केले के तने जैसी।
मुझे उसके होंठ अब रसीले नज़र आने लगे थे। मैं जब भी उसको निहारता वो नज़रें झुका लेती थी… मेरी आँखों मे शायद कुछ और नज़र आने लगा था। मैं सोचता था जैसे शशि और स्मिता अपने आप आकर मेरी झोली में गिरी थीं नेहा भी गिरेगी.. और तब जबकि उसने मेरे दैत्यांग की तस्वीरें देखी थी।
मुझे तो यहाँ तक लगता था कि शशि और स्मिता ने अपनी कहानियाँ ज़रूर नेहा को सुनाई होगीं। पर नेहा तो नेहा थी… उसकी मासूमियत और औरतपन को पहले कदम बढ़ाना मंज़ूर नहीं था।
एक दिन लैब में मैं तीनों का सेशन ले रहा था… नेहा अचानक उठी और ‘एक्सक्यूज़ मी’ बोलकर बाहर टॉयलेट की तरफ़ जाने लगी। और मेरी निगाहें उसके नितम्बों पर जम गईं… मैं बोलना भूल गया… उन उठते-गिरते गोल-गोल उभरे नितम्बों को निहारता रहा।
अचानक मैंने देखा कि शशि और स्मिता मुझे देखकर मुस्कुरा रही हैं… मैं झेंप सा गया।
शशि ने कहा,”इसके लिये आपको खुद कोशिश करनी पड़ेगी .. शी इज़ डिफ़रेंट… वो खुद आपके पास नहीं आने वाली… थोड़ी शर्मीली है… बट आइ एम श्योर…. आप कुछ ना कुछ ज़रूर कर लेंगे।”
मैं ऑफ़िस में ऐसी बातें नहीं करना चाहता था, इसलिये मैंने कहा,”अब अपने काम की बात करते हैं !”
बात आई गई हो गई पर मेरे मन में नेहा को पाने की इच्छा तीव्र होती गई।
एक शनिवार को मैंने नेहा को अकेले पाकर पूछ ही लिया,”इस रविवार को क्या कर रही हो?”
“वंडर ला जा रहे हैं !” वंडर ला बैंगलोर से दस-बारह किलोमीटर दूर एक शानदार सा अम्यूज़मेंट पार्क है… जिसमें जॉय राइड्स के अलावा वाटर-पार्क्स भी हैं।
“बॉयफ़्रेंड के साथ?” मैंने भेदभरी मुस्कान के साथ पूछा।
“नहीं…परिवार के साथ…”
मैं मन ही मन खुश हुआ।
मैं रविवार को सुबह जल्दी उठा, नहाया-धोया, नाश्ता करके पिकनिक सैक उठाया और निकल पड़ा वंडर ला की ओर….अपने मंज़िल की तलाश में।
मैंने कुछ देर लेज़र शो देखा, क्रेज़ी राइड किया, टरमाइट राइड और न जाने क्या क्या किया पर सब बेमन से। मैं तो हर जगह सिर्फ़ नेहा को ढूंढ रहा था। चलते-चलते साइड-पाथ पे कोई भी आकर्षक पिछवाड़ा दिखता तो मैं तेजी से उसके आगे देखता कहीं नेहा तो नहीं। ग्यारह बज चुके थे और भीड़ बढ़ती जा रही थी। मैं जिगजैग राइड पे पहुंच गया जो घूमते-घूमते उलटी हो जाती है। दो चक्कर के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे फ़ाउन्टेन के पास कोई मेरी तरफ़ हाथ हिला रहा है। राइड रुकने के बाद मैंने उसे गौर से देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा…वो नेहा थी…परपल शॉर्ट स्कर्ट और पीकॉक टॉप में…सेक्सी नेहा।
राइड से उतरते ही मैं फ़टाफ़ट उसके पास गया !
“सर आप यहां कैसे?”
“तुम्हें ढूंढता हुआ चला आया..” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
उसने आंखें इस अंदाज़ में सिकोड़ी जैसे मेरे जुमले के पीछे छुपे मेरे इरादों को जानना चाह रही हो… और मेरे होंठों पर थी सिर्फ़ मुस्कान।
“आप बेशक मेरे साथ रहें पर इस तरह कि मेरे परिवार को पता नहीं चलना चाहिये कि आप और मैं एक दूसरे को जानते हैं !”
“ठीक है !”
सारा दिन मैं नेहा के साथ रहा और उसके साथ वालों किसी को पता नहीं चला। वाटर पार्क में हमने (खास तौर पर मैंने) बहुत मजे किये। शुरुआत मैंने की… वहाँ जहां पानी कमर तक था…पानी में डूबे-डूबे मैं अपने घुटने को उसकी नितम्बों के बीच रगड़ देता.. जब चार-पाँच बार के बाद कोई ऑब्जेक्शन नहीं हुआ तो मुझे लगा या तो यह इग्नोरेंट है या फिर घुटी हुई है।
जो भी हो.. शह पाकर बीच-बीच में मैं अपने घुटने उसकी चूत पे रगड़ देता। पहली बार में तो वो चिहुंक उठी पर ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही ना हो.. उसे पता ही नहीं चल पाया था शायद ! भीड़ के कारण शायद !
करीब आधे घंटे यही घटनाक्रम जारी रहा। अजीब पहेली होती जा रही थी ये नेहा, कुछ समझ में नहीं आ रहा थी चाहती क्या है?
फिर मैंने यही सिलसिला जारी रखा… नितम्ब, चूत और स्तनों को किसी भी ढंग से छू लेता। पानी के अंदर लावा जल रहा था…. मेरा लंड प्रचंड हो चुका था… पूरा लोहे का गरम रॉड… असाधारण और अनियंत्रित। मुट्ठ मारने की तीव्र इच्छा हो रही थी..पर मैं एक सार्वजनिक-स्थल में था… भीड़भाड़ में।
शाम चार बजे लहरें(वेव्स) शुरू होते हैं। ऐसा कृत्रिम माहौल बनाया जाता है जैसे समुद्र तट हो….लहरें आती और जाती हैं…फ़ेनिल उठता है और शांत हो जाता है…किनारे की रेत बह जाती है और वापिस आ जाती है….लोग गले तक जितने पानी में तैरने का मज़ा इस तरह उठाते हैं जैसे सागर तट उठाया जाता है।
मैं भी बह चला….इस जतन के साथ कि मेरा कमर के नीचे का हिस्सा कभी पानी के ऊपर ना आने पाये….और मेरा दुर्दांत लंड कहीं दिख न जाये…लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। जब लहरें उठी मैंने गोता लगाया…ऊपर आने ही वाला था कि मेरे लंड पे एक किसी के हाथ का कसाव महसूस हुआ। ऊपर आकर देखा कोई नज़र नहीं आया….
मैंने दुबारा गोता लगाया…..इस बार उस हाथ ने मेरी अंडरवियर खींचकर मेरे लंड को अपने हाथ में लिया। हाथ नाज़ुक सा था…..शर्तिया किसी लड़की का था। ऊपर आकर फिर वही शोर-शराबा और इतने चेहरे कि समझ में न आये कि ये हरकत है किसकी। मैं बहुत अच्छा तैराक या गोताखोर नहीं हूँ इसलिये ज़्यादा देर तक साँस रोक नहीं सकता फिर भी मैंने सोचा इस बार तो जान कर ही रहूँगा कि उस्ताद के साथ उस्तादी कर कौन रहा है।
मैंने फेफ़ड़ों में हवा भरा…गोता लगाया…और आँखे पानी के अंदर भी खोल के रखा…एक लहराते बालों वाला साया मेरे पास आया….और जैसे ही उसने मेरे लंड को पकड़ा मैंने उसके बाल पकड़ लिये। और पकड़े-पकड़े ही ऊपर आ गया और जैसे ही वह चेहरा ऊपर आया, मेरी आँखे फटी की फटी रह गईं और मुँह खुला का खुला….वो लड़की कोई और नहीं बल्कि सीधी-साधी दिखने वाली नेहा थी…
मंद-मंद मुस्कुराहट के साथ… शोख और नटखट मुस्कुराहट…. लंड मेरा उसने अभी भी पकड़ रखा था… हम दोनों आमने-सामने खड़े थे…. पानी लगभग छाती तक आ रहा था…. भीगी-भीगी नेहा और भी सेक्सी लग रही थी.. भीगे बाल… भीगे गाल… भीगे से होंठ… मेरा मन कर रहा था कि उन मुस्कुराते होंठों को चूम लिया जाये… चूस लिया जाय… पर हम बहुत लोगों के बीच में थे…
मैंने लगभग फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा,”आइ वान्ट टू किस यू !”
“यहाँ नहीं … इतनी भीड़ है… मेरे कज़िन लोग भी देख रहे होंगे !”
“हमारी तरफ़ कोई नहीं देख रहा है !”
“क्यों ना हम गोता लगायें?”
“गुड आइडिया !”
हमने साँस भरी… गोता लगाया…. पानी के अंदर मैंने उसके रसीले होठों को चूस डाला…. उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी… और अपनी आँखे बंद कर ली। हमारे आस-पास पानी ही पानी था…और हम प्यासे थे…।
साँस फूल गई और हम ऊपर सतह पर आ गये… ऊपर आकर थोड़ी दूरी बना ली ताकि किसी को शक न हो। दूर से ही एक दूसरे को इशारा करते…गोता लगाते…पानी के अंदर किस करते….मैं उसके स्तन दबाता… वो अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर मेरा लंड मसलती… मैं उसकी चूत की दरार को सहला देता। यह सिलसिला कुछ पाँच-छह बार चला।
अब मुझे एक नया विचार सूझा…
मैंने उसको डूबने का इशारा किया और अपना लंड पानी के अंदर निकालकर खड़ा हो गया…जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि नीचे कोई आया मैं उसके बाल पकड़कर उसका मुँह अपने लंड पर लगा दिया। वो जितनी देर सांस रोक सकती थी उतनी देर तक मेरा लंड चूसती रही।
क्या रोमांचक अहसास था… आस-पास भीड़… चेहरे ही चेहरे… आवाज़ें ही आवाज़ें… और वहां नीचे… पानी की गहराई और नीम अंधेरे में नेहा मेरा ८ इंच का लंड बाहर निकालकर बेसाख्ता चूस रही थी… और ऐसे चूस रही थी जैसे पूरा निगल जाना चाहती हो। वो एक अच्छी तैराक, अच्छी गोताखोर और एक अच्छी सकर (लंड चूसने वाली) थी…. और मैं बेकाबू हो रहा था….
नेहा बाहर आई… थोड़ी दूर जाकर उसने इशारा किया… मैंने पूरे फेफड़े भरकर गोता लगाया… जैसे ही एक जोड़ी गदराई टांगों के पास पहुंचा…उसने अपनी अंडरवीयर नीचे सरका दी… क्लीन शेव्ड चिकने.. पकौड़े की तरह फूले फांकों के बीच दो-ढाई इंच की दरार थी जो पानी के लहरों के साथ हिलकर अजीब सा रोमांच पैदा कर रही थी। मैंने नितम्बों को पकड़कर अपनी जीभ की नोक बनाकर धीरे से उस दरार में फिराया… उसके नितम्बों में एक कम्पन सी हुई और टांगें और चौड़ी हो गई जैसे निमंत्रण दे रही हों।
मैंने जीभ अंदर गुसेड़ा और भग्नासा को कुरेदने लगा… वो चूतड़ों को आगे-पीछे करने लगी.. इतने में मेरी सांस फूल गई और मैं बाहर आ गया…नेहा से दूर…
उसके चेहरे की तरफ़ देखा तो पाया कि वो बेचैन सी थी… शायद मैं अधूरा काम करके आ गया था…. शायद वो प्यासी रह गई थी…
अचानक सायरन बजा और लोग अपने-अपने कपड़े समेटने लगे… मैंने नेहा की तरफ़ देखा… उसकी आंखों में अतृप्ति थी और आमंत्रण था…।
बेमन से चेंज रूम में जाकर कपड़े बदले…. शाम के करीब छह बज चुके थे… लॉकर रूम से सामान लिया और बाहर आ गया… प्यासा…. अतृप्त…!
पार्किंग से अपनी गाड़ी उठाई… अनमना सा स्टार्ट किया…. और जैसे ही आगे बढ़ाने वाला था कि एक साया लपक के मेरे पास आया और पीछे वाली सीट पर बैठ गया… इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता… उसने अपने हाथ मेरे कमर पे कस दिये और धीरे से कहा “जल्दी चलिये..”
यह नेहा थी….
मैंने बाइक गियर में डाली और उड़ चला…. नेहा पीछे चिपक के बैठी थी, उसके उरोज मेरी पीठ में दब रहे थे… उसके बदन की गर्मी मेरे अंदर सिहरन पैदा कर रही थी…. उसके होंठ मेरी गर्दन पे आ गये थे और मैं उसके सांसों की बेचैनी महसूस कर सकता था… मन कर रहा था कि बाइक वहीं रोककर सारे बंधन तोड़ दो…
“कहाँ छोड़ दूँ तुम्हें?”
“सर आपके घर चलिये ना !” नेहा ने न शशि की तरह फोन करने का बहाना बनाया न ही स्मिता की तरह लिफ़्ट मांगने का। मेरी अधूरी हरकतों ने उसकी प्यास इस कदर बढ़ा दी थी कि उसमें शर्मो-हया या लिहाज कुछ भी बाकी नहीं रह गया था।
किसी ने एक बार मुझे बताया था “वुमन इज़ द सेकण्ड नेम ऑफ़ सरेन्डरिज़्म”…(औरत समर्पण का दूसरा नाम है)। नेहा ने मन समर्पण तो कर दिया था…अब तन समर्पण की बारी थी….
और मेरी बाइक हवा से बातें कर रही थी। एक घंटे का रास्ता हमने आधे घंटे में तय किया.. घर पहुँचे…साढ़े छह बज चुके थे…
दरवाजा खोलकर अंदर आये और अंदर आकर जैसे ही दरवाजा बंद किया नेहा मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे बरसों बाद मिली हो…. और जनम-जनम की प्यासी हो… अपने उन्नत उरोज उसने इस कदर मेरे छाती में दबा दिये जैसे उन्हें निचोड़ डालना चाहती हो… उसके हल्के-हल्के भीगे बाल मेरे चेहरे पे आ रहे थे… उसके होंठ मेरी गर्दन पर थे… और उसके पूरे शरीर में अजीब सा कम्पन थी… ऐसा कम्पन न तो शशि में था न ही स्मिता में…ऐसी तड़प और बेचैनी न तो शशि में थी न ही स्मिता में…
मैं अपने हाथों में उसके नितम्ब थामे हुए था…. न सिर्फ़ थामे हुए था बल्कि हौले-हौले सहला भी रहा था…
मेरा लंड इस कदर अकड़ चुका था कि लगता था अभी पैंट फाड़ के निकल पड़ेगा। नेहा मुझे इतने जोर से भींचे हुए थी कि उसकी फूली हुई चूत मेरे लंड के उभार को महसूस कर रही थी… और वो अपने चूतड़ धीरे-धीरे मेरे उभरे लंड पे रगड़ रही थी। मैंने उसका चेहरा अपनी गर्दन से हटाया.. दोनों हाथों से थाम कर उसके रस के प्यालों को अपने लबों के हवाले कर दिया….हमारे निचले अंग अभी भी कपड़ों के ऊपर से ही एक दूसरे का चुम्बन कर रहे थे।
जब नेहा से जब्त न हुआ तो अचानक वो अपने हाथ नीचे ले गई और मेरे पैंट के बटन खोलकर उसे नीचे गिरा दिया और अंडरवियर कि ऊपर से ही मेरे अंग का जायजा लेने लगी… उस अंग का जिसे उसने अभी तक सिर्फ़ फ़ोटो में देखा था… उस अंग का जिसे पाने की कल्पना ने उससे उसकी मासूमियत और शर्मीलापन छीनकर मेरे घर में… मेरे तसव्वुर में ला दिया था… उसकी दोनों आंखें बंद हो गई…शायद कल्पना में…मैंने उसकी बंद आंखों को चूम लिया।
उसने धीरे से…बहुत ही नज़ाकत के साथ मेरी अंडरवियर भी नीचे सरका दी.. और मेरे लंड को दोनों हाथों में दबोच लिया… दो लसलसी बूंदें लंड के टिप पे छलक आई थीं….नेहा ने अपनी उंगली मेरे लंड की गर्दन पे (जहां सुपाड़ा खत्म होता है और लंड का दंड शुरू होता है) फ़िराना शुरू कर दिया….
क्या कामोत्तेजक एहसास था…. पता नहीं नेहा ने यग जादू कहां सीखा था। उस दिन मुझे पता चला कि मेरा (और शायद सभी मर्दों का) सबसे सेन्सिटिव स्पॉट कहां होता….लंड की घिर्री पर जनाब !!!
मैंने नेहा को हर जगह चूमा… गाल पे… होंठों पे… कनपटी के नीचे… ईयरलोब्स पे… गले पे… कांख पे… पीठ पे… दोनों मधुघटद्वय के बीच दरार पे… तने हुए मुनक्के के आकार के चुचूकों पे…. नाभि पे (मेरी पसन्दीदा जगह)… नितम्बों पे… पिछली दरार पे… जांघों पे (आगे से भी.. पीछे से भी)… पिंडलियों पे… पैरों पे… तलवों पे… रानों पे… हर जगह…. तकरीबन हर जगह चूमा…
सिर्फ़ योनि को जान बूझ के छोड़ दिया…!!!
नेहा की उतेजना का कोई ठिकाना नहीं था… आहें…कराहें… और सिसकारियों का समां था… मैं नेहा को उसकी सहनशीलता की हद तक पहुँचा चुका था… ज्वालामुखी बस फटने ही वाला था…
अचानक नेहा ने मेरे सर के बाल पकड़े… मुझे झुकाया और अपने जांघों के बीच पहुँचा दिया… और जैसे ही मेरी नाक उस उभरी हुई योनि से टकराई… नेहा ऐंठने लगी.. और अपने कूल्हे हिलाने लगी… उसकी अंडरवियर नम को चुकी थी… उससे भीनी-भीनी खुशबू निकलकर मेरे नथुनों से टकरा रही थी… मैंने उसकी स्कर्ट उठाई… धीरे से अंडरवियर नीचे सरका दिया….और मेरे सामने था जानलेवा और कातिलाना दृश्य…
शफ़्फ़ाक….. क्लीन शेव्ड…मोटे-मोटे उभरे पकौड़ों के बीच.. एक छोटी सी घुंडी निकलने को आतुर हो रही थी… और उसके नीचे था कुछ दो-ढाई इंच का चीरा…छोटे-मोटे झरने की तरह बहता हुआ…
मैंने नेहा के दोनों नितम्ब थामे और उस घुंडी को कुरेदने लगा…
नेहा लगभग उछल रही थी… और उसी सामंजस्य में उसके दोनों घटक उछल रहे थे… कुछ देर तक योनि-कलिका को कुरेदने के बाद मैंने जीभ को पूरा चौड़ा करके दरार पे फ़िरा सा दिया..
नेहा ने पूरी ताकत से मेरे बालों को पकड़ा.. और इस तरह दबाया मानो मेरा पूरा सर अपनी योनि में घुसेड़ देना चाहती हो….
मैंने अपनी तर्जनी पे थूक लगाया और योनि में प्रविष्ट कर दिया…. नेहा ने अपने चूतड़ों के इस तरह आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया मानो वो मेरी अंगुली नहीं मेरा लंड हो…
मैंने सर उठाकर उसके मासूम चेहरे और उत्तेजना से बंद हुई आँखों को देखा…. इतना प्यार आया कि मैं अपनी अंगुली को आगे-पीछे हिलाते-हिलाते खड़ा हो गया… और उसके रसीले होंठों को चूसने लगा….
मेरा तन्नाया हुआ लंड उसकी रानों से टकराने लगा…
जैसे ही उसको इस बात का एहसास हुआ उसने मेरे लंड को पकड़ा और योनिद्वार पे… जहां मेरी तर्जनी आगे-पीछे हो रही थी.. वहां रगड़ने लगी… कामरस टपक रहा था… मैंने उसकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए अंगुली बाहर निकाल ली और उसकी एक टांग उठाकर अपने कमर के गिर्द लपेट लिया…योनिद्वार थोड़ा और खुल गया…
उसने अपने दोनों हाथ मेरे गर्दन पे लपेट दिये और अपना दूसरा पैर भी मेरी कमर पे लपेट दिया…मेरे नितम्बों के ऊपर उसने अपने दोनों पैरों से जकड़ बनाकर अपनी चूतड़ों को आगे-पीछे हिलाने लगी… इशारा समझते ही मैंने एक हाथ से उसके योनिपटों को फ़ैलाया…. और दूसरे हाथ से अपना लंड पकड़कर उसके अग्रभाग को नेहा के हल्के से खुले हुए योनिद्वार पे लगा दिया…
इस बार जैसे ही वो अपनी कमर को पीछे खींचकर आगे लाई… लंड का सुपाड़ा पट्ट से अंदर चला गया.. और नेहा “आआआआह” कहकर मुझसे चिपट गई… जब करीब तीस सेकंड तक वो ऐसे ही चिपकी रही तो मैं उसके नितम्बों को पकड़कर आगे-पीछे करने लगा… दस मिनट तक यूं करने के बाद नेहा की चूत काफ़ी पनीली हो गई और अब वो बहुत रफ़्तार से अपनी कमर हिलाने लगी…. धप्प..धप्प..धप्प…
धीरे-धीरे… इंच-दर-इंच मेरा पूरा लंड उसकी लसलसाई चूत में समा गया… जड़ तक समा गया…. सिर्फ़ टट्टे (अंडकोष) ही बाहर रह गये थे… और हर धक्के के साथ दोनों टट्टे उसकी गांड से ऐसे टकराते… मानो रूठ गये हों और शिकायत कर रहे हों और कह रहे हों,”हमको यहां तो अंदर जाने दो !”
तकरीबन बीस मिनट बाद नेहा ने बहुत जोर-जोर से धाप मारना शुरू कर दिया और…करीब पन्द्रह-बीस धक्कों के बाद मुझे पूरी ताकत से भींच कर चिपट गई…
उसने मुझे दोनों हाथों… दोनों पैरों और दोनों स्तनों से भींच रखा था….
मैं अभी भी अपने लंड को आगे-पीछे करने को जद्दोज़ेहद में लगा था…
एक बार बहुत जोर से मुझे भींचने के बाद जब वो निढाल सी हो गई तो मैंने उसे वैसे ही पकड़कर… अपना लंड उसकी चूत में फ़ंसाये हुए… बमुश्किल चलता हुआ बिस्तर पर ले आया…. वैसे ही उसकी कमर को पकड़कर लिटाया…और मिशनरी पोज़िशन में शुरू हो गया…
पांच मिनट बाद अचानक मैं इतनी जोर से धक्के लगाने…कि नेहा फिर से अपने गांड उछाल-उछालकर मेरा साथ देने लगी… दस मिनट बाद मेरा लंड उसकी चूत में फूलने-पिचकने लगा और मैंने एक जोरदार धक्का देकर पूरा लंड अंदर किया जो सीधा बच्चेदानी में जा टकराया… और उसके साथ ही एक हाई प्रेशर की पिचकारी उसके बच्चेदानी में छिड़काव करने लगी… और मैं भरभरा के नेहा की जवानी में समा गया…!
नेहा ने मुझे कस के अपनी बांहों में भर लिया और अपनी चूत का इस तरह संकुचन करने लगी जैसे कि मेरे लंड से निकला हुआ एक-एक क़तरा निचोड़ लेना चाहती हो… और फ़ुसफ़ुसाते हुए मेरे कानों में कहा,”देयर वाज़ नो एग्ज़ाजरेशन व्हाट स्मिता टोल्ड अबाउट यू !”(जो भी स्मिता ने आपने बारे में बताया उसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं थी)
थैंक यू शशि, स्मिता, नेहा…और वो तमाम लड़कियाँ जिन्होंने मुझे वो खुशगवार लम्हे दिये…और मुझे यह समाज-सेवा सिखाया। मैं आज भी समाज-सेवा में लगा हुआ हूं और तब तक लगा रहूंगा जब तक लड़कियों की रवानी है…सलामत मेरी जवानी है और लंड में पानी है। Sex Stories
वह मेरे दूसरे चुचूक Hindi Sex को अपने हाथ के नाखून से जोर जोर से कुरेद रही थी। एक तो चुचूक चूसे जाने की मस्ती दूसरा चुचूक कुरेदे जाने की वजह से होता दर्द ! इससे मैं तो स्वर्ग में पहुँच गया था। इस बेइंताह मस्ती के कारण मेरे मुँह से आह ओह की आवाज निकल रही थी। मैंने अपने हाथ उसकी पीठ और एक बाँह पर रख रखा था। एक हाथ से उसकी बाँह मसल रहा था और दूसरा हाथ उसकी पीठ और कमर पर फेर रहा था।
वो करीब 3-4 मिनट तक ऐसे ही करती रही। फिर रीमा बायाँ चुचूक छोड़ कर दायाँ चुचूक चूसने लगी और बाएँ चुचूक को नाखून से कुरेदने लगी।
दूसरे चुचूक को अच्छी तरह से चूसने के बाद ही उसने मेरे को छोड़ा। फिर मेरी ओर देख कर आँखो में आँखे डाल कर पूछा- कैसा लगा बेटा माँ का तुम्हारा चुचूक चूसना?
मैं बोला- क्या बताँऊ माँ ! बस इतना कह सकता हूँ कि तुम्हारे इस बेटे को तुमसे बहुत कुछ सीखना है। सीखाओगी ना माँ अपने इस अनाड़ी बेटे को?
रीमा बोली- जरूर बेटा, आखिर माँ होती किस लिये है। माँ का तो यह कर्तव्य है कि उसके बेटे की शादी से पहले उसे सेक्स की पूरी शिक्षा दे, प्रेक्टिकल के साथ जिससे कि उसकी पत्नी सुहागरात को यह ना कह सके कि उसकी माँ ने उसको कुछ भी नहीं सिखाया।
उसके मुँह से यह बात सुन कर मैं बोला- माँ, तुम्हारे विचार कितने उत्तम हैं। अगर तुम जैसी सबकी माँ हो तो किसी भी बेटे को रंडी के पास जाने की जरूरत ही नहीं।
सुन कर उसने मेरे होंठों को चूम लिया और बोली- तुम बिल्कुल मेरे बेटे कहलाने के लायक हो। चलो मैं अब तुम्हारा लंड पैन्ट से बाहर निकाल देती हूँ। यह भी मुझको गाली दे रहा होगा कि बात तो लंड को बाहर निकालने की कर रही थी और चुचूक को मजा देने लगी। कह रहा होगा कितनी निर्दयी है तुम्हारी माँ।
नहीं माँ, मेरा लंड तो बहुत खुश है कि मेरी माँ तुम हो। वह तो कह रहा है कि जिस तरह से तुम मेरी माँ हो, तुम्हारी चूत उसकी माँ हुई और जब तुम इतनी मस्त हो तो उसकी माँ और भी मस्त होगी । वो भी अपनी माँ से मिलने और उसकी बाँहों में जाने के लिये बेचैन है।
रीमा बोली- उसके लिये तो उसको थोडा इंतजार करना पड़ेगा। पहले मैं अपने बेटे को और उसके लंड को तो जी भर के प्यार कर लूँ और अपने बेटे से अपने आप को और लंड की माँ को प्यार करा लूँ, तब कहीं जाकर वो अपनी माँ से मिल सकता है ! समझे?
मैंने कहा- हाँ माँ, तुम ठीक कह रही हो।
इतना कह कर रीमा ने मेरी पैन्ट खोलनी शुरु कर दी। जब रीम मेरी पैन्ट खोल रही थी तो उसकी नजर मेरी तरफ थी। वह मेरी तरफ देख कर मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी। सबसे पहले उसने मेरी बेल्ट को निकाल कर फेंक दिया, फ़िर मेरी पैन्ट का बटन खोलने लगी। बटन ओर चैन खोल कर उसने कमर से पकड़ कर एक ही झटके में मेरी पैन्ट नीचे कर दी और साथ में खुद भी नीचे बैठ गई। मैंने भी अपने पैर उठा कर पैन्ट निकालने में उसकी मदद की।
उसने पैन्ट निकाल कर उसको भी एक कोने में फेंक दिया। मैंने अन्डरवीयर पहन रखा था। रीमा का मुँह बिल्कुल मेरे लंड के सामने था। मेरा लंड पूरी तरह से खड़ा था जो कि मेरे अन्डरवीयर के उभार से पता चल रहा था। उसने मेरी तरफ़ देखा और अपनी जीभ बाहर निकाल कर अपने होठों पर फिराने लगी जैसे कोई बहुत ही स्वादिष्ठ चीज देख ली हो।
और फिर एक दम से आगे बढ़ कर मेरे लंड को अन्डरवीयर के ऊपर से चूमने लगी। अन्डरवीयर की इलास्टिक से लेकर नीचे जाँघो के जोड़ तक।
फिर रीमा ने मेरे अन्डरवीयर की को कमर से पकड़ कर एक ही झटके में खींच कर उतार दिया।
मेरा लंड उत्तेजना के कारण मस्त होकर बुरी तरह से खड़ा हो गया था। जैसे ही रीमा ने मेरा अन्डरवीयर उतारा, मेरा लंड उसके मुँह के सामने एक लम्बे साँप की तरह फुँफ़कार मारते हुए नाचने लगा। मेरा लंड देख कर रीमा बोली- हाय रे ! इतना बडा लंड है मेरे बेटे का ?
फिर उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया। जैसे ही उसने मेरे लंड को अपने कोमल हाथो में पकड़ा, मुझे ऐसा लगा 440 वोल्ट का करंट लगा हो। मेरे लंड का यह हाल तब था जबकि उसने अभी तक एक भी कपड़ा अपने बदन से नहीं उतारा था।
मैं सोचने लगा कि जब मैं उसको नंगा देखूंगा तो मेरा क्या हाल होगा।
रीमा मेरे लंड को अपनी एक हथेली में रख कर दूसरे हाथ से उसको सहला रही थी जैसे किसी बच्चे को प्यार से पुचकारते हैं। थोड़ी देर तक इसी तरह मेरे लंड को पुचकारने के बाद रीमा उठ कर खड़ी हो गई और बोली- लो निकाल दिया मैंने तुम्हारे लंड को बाहर। अब हम चल कर बैठते हैं और थोड़ी प्यार भरी बातें करते हैं।
फिर मैं सोफे पर बैठ गया और रीमा से बोला- आओ माँ, मेरी गोदी में बैठ जाओ।
हम लोग जब चैट किया करते थे तब भी सबसे पहले मैं रीमा को अपनी गोदी में बिठा लेता था। रीमा थोड़ी सी मुस्कुराई और आकर मेरी गोदी में बैठ गई।
रीमा इस तरह से मेरी गोदी में बैठी थी कि मेरा लंड उसकी गाँड की दरार में फंसा था, जैसा कि मुझको मेरे लंड पर महसूस हो रहा था। उसने अपनी पीठ मेरे कंधे से लगा ली थी और अपनी गोरी दाईं बाँह मेरे गले के पीछे से निकाल कर दूसरे हाथ से पकड़ ली और मैंने पीछे से अपने हाथ उसके कमर में डाल कर उसके नंगे पेट को पकड़ लिया। उसके इस तरह से बैठने के कारण उसकी भारी भरकम चूचियाँ मेरे मुँह के सामने आ गई। साथ ही साथ उसके मस्ताने चूतड़ों का दवाब मेरे लंड पर पड़ रहा था। मैं अपने आपको बडा ही खुशकिस्मत समझ रहा था कि इतनी मस्तानी औरत मेरी गोद में बैठी थी।
मेरी नजर उसकी बड़ी-बड़ी गोलाइयों की तरफ़ थी। चूचियों के बीच की दरार ऐसी थी जैसे कि निमंत्रण दे रही हो कि आओ और घुसा दो अपना मुँह इस खाई के अन्दर।
फिर रीमा ने पूछा- अब बताओ बेटा, कैसी लगी तुमको अपनी यह बेशर्म माँ?
मैंने कहा- बहुत ही मस्तानी, सेक्सी, महा-चुदक्कड़ चुदासी और रस से भरपूर !
इस पर रीमा मुस्कुरा दी और बोली- ऐसे शब्द कोई भी औरत किसी मर्द से अपने बारे में सुने तो बस निहाल हो जाये और तुमने तो ये सब मेरे लिये कहा, अपनी माँ के लिये, सुनकर मेरा दिल गदगद हो गया। इसका मतलब है की मैं तुमको रिझाने में सफ़ल रही।
तुमने मुझको बताया था कि तुम्हारी उम्र 48 साल है पर देखने से तुम उससे दस साल छोटी दिखती हो।
यह तो तुम्हारी मुझे देखने की नजर है बेटा ! नहीं तो उम्र तो मेरी 48 ही है। लेकिन तुम्हारे मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मुझे बड़ा अच्छा लगा।
फिर मैं बोला- माँ, तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ।
रीमा बोली- पूछो !
मैं जब से आया हूँ, मैंने गौर किया है कि तुम्हारा ब्लाउज़ काफी तंग है, जिसकी वजह से तुम्हारी चूचियाँ ब्लाउज को फाड़ कर बाहर आने को तैयार हैं। लगता है कि एक हफ़्ते मुम्बई में रह कर चूचियाँ मसलवाने से बड़ी हो गई हैं जिसकी वजह से तुम्हारा ब्लाउज़ छोटा हो गया है।
मेरी बात सुनकर रीमा खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली- नहीं बेटा ! ब्लाउज़ तो मेरा एक दम नया है। मुम्बई आने से पहले सिलवाया है। मैंने जानबूझ कर एक इन्च छोटा बनवाया था जिससे मैं इसे तुमको रिझाने के लिये इस्तमाल कर सकूँ। जिससे मेरी चूचियाँ और भी बड़ी-बड़ी लगें। मुझे पता है कि तुमको ब्लाउज़ में से झाँकती चूचियाँ कितनी पंसन्द हैं। इसीलिये गले का कट भी थोड़ा ज्यादा रखा है। इस ब्लाउज़ को पहन कर मैं बाहर तो जा ही नहीं सकती, नहीं तो लोग मेरा सड़क पर ही देह शोषण कर देंगे। यह तो खास ब्लाउज़ है जो मैंने अपने बेटे के मस्ती बढ़ाने के लिये बनवाया है।
ओह माँ ! तुम अपने बेटे का कितना ख्याल रखती हो !
रीमा ने कहा- अगर माँ अपने बेटे का ख्याल नही रखेगी तो कौन रखेगा।
फिर मैंने कहा- कि तुम ठीक कह रही हो माँ। मैंने तुम्हारे काँख के बाल भी देखे, ऐसा लग रहा है कि जैसा तुम एक महीने पहले छोटे कराने को कह रही थी पर तुमने छोटे किये नहीं।
रीमा बोली- बेटा, मैं छोटे करना तो चाहती थी पर 2-3 दिन मेरे बॉस के कुछ कलाइन्ट आ रहे थे, तो मुझे उनको खुश करना था। इसलिये काट नहीं पाई, फिर मेरे बॉस ने बोला कि मुम्बई जाने का प्रोगाम बन सकता है, तो मैंने सोचा कि फिर तुमसे भी मिलना हो सकता है तो क्यों ना और बढ़ा लूँ। वैसे भी तुमको मेरे काँख के बाल बहुत पसन्द हैं और इतने बड़े बाल देख कर तो तुम बहुत खुश होगे।
हाँ माँ ! मैं बहुत ही खुश हूँ कि तुमने बाल नहीं काटे। माँ तुम्हारे होंठ भी बडे सुन्दर हैं, तुमने कभी बताया नहीं कि तुम्हारे होंठ बड़े-बड़े और इतने उभारदार हैं। मुझको इस तरह के होंठ बहुत पसन्द हैं। रीमा बोली- मैं सोचती थी कि सब मर्दों को पतले होंठ पसन्द होते हैं। अगर मैं तुम को बता दूंगी तो शायद तुम मुझसे बात करना पंसन्द करो या नहीं। तुम जैसे बेटे कहाँ मिलते हैं। मैं तुमको खोना नहीं चाहती थी इसलिये नहीं बताया।
मैंने पूछा- यह भी तो हो सकता था कि मैं यहाँ आकर तुम्हारे होंठ पसन्द नहीं करता और चला जाता।
रीमा ने कहा- मुझे उसका थोड़ा सा डर था इसलिये ही मैंने तुमको लुभाने के लिये कसा हुआ ब्लाउज़ बनवाया था। तुमको बुरा लगा क्या बेटा ? आई एम सॉरी बेटा।
ऐसा कह कर उसने अपनी आँखे नीची कर ली और उसका चेहरा उदास हो गया।
मैंने कहा- माँ, इसमें इतना उदास होने की बात क्या है। तुमको तो खुश होना चाहिये कि मुझे तुम्हारे होंठ पसन्द आये।
उसने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुरा दी और मुझको गले से लगा लिया और बोली- बेटा, तुम्हारी माँ अपनी असली जिन्दगी में चाहे जितनी भी बड़ी रंडी हो, पर तुमको बहुत प्यार करती है। मेरे अपना तो कोई बेटा है नहीं, लेकिन मैंने तुमको ही अपना बेटा माना है। अपनी माँ से कभी भी नफ़रत मत करना बेटा।
नहीं माँ ! कभी नहीं !
कह कर मैंने भी रीमा को अपनी बाँहो में जकड़ लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा।
अब तक मैं यही सोच रहा था कि हम दोनों के बीच सिर्फ वासना का रिश्ता पनप रहा है। लेकिन मुझे आज पता चला कि चाहे हम दोनों एक दूसरे के पास वासना कि वजह से आये हों पर रीमा सच में मुझे एक बेटे की तरह प्यार करने लगी थी और असली जिन्दगी में वह बहुत ही अकेली थी। अकेली होने की वजह से ही शायद इस समाज से लड़ने के लिये वो अपने बॉस की रंडी बनी हुई थी। मैंने भी सोच लिया था कि इन चार दिन में उसको इतना प्यार दूंगा कि वो इन दिनों को कभी भी नहीं भूल पायेगी।
फिर रीमा पहले की तरह बैठ गई और बोली- मैं भी क्या बात ले कर बैठ गई ! तुमको मेरे होंठ पसन्द आये, मैं बहुत खुश हूँ। और बताओ मेरे शरीर में और क्या क्या तुमको अच्छा लगता है।
मैंने कहा- माँ, मुझे तुम ऊपर बालों से लेकर पैरों तक पूरी की पूरी अच्छी लगती हो।
रीमा बोली- तो फिर बताओ हर अंग के बारे में ! तुम्हारे मुँह से मुझको अपनी तारीफ अच्छी लग रही है।
तुम्हारी ये गोरी गोरी माँसल बाँहे मुझे अच्छी लगती हैं ! इतना कह कर मैंने उसकी बाँहो हो कोहनी के ऊपर से चूम लिया। ऐसा ही मैंने दूसरी बाँह के साथ भी किया।
मुझे तुम्हारी ये बड़ी-बड़ी आँखें अच्छी लगती है, कितनी गहरी हैं और इन आँखो में मेरे लिये प्यार और वासना झलकती है। माँ के प्यार के साथ छुपी हुई एक अधेड़ उम्र की औरत की वासना इनको और भी रहस्यमयी बना देती है और मेरा मन करता है कि इनको प्यार करूँ।
रीमा ने कहा- तो कर लो प्यार ! कौन मना कर रहा है।
यह कह उसने अपनी आँखें बंद कर ली। फिर मैंने पहले दाईं आँख पर चूमा फिर बाईं आँख पर।
और फिर रीमा ने अपनी आँखें खोली और मेरे गाल पर चूम लिया और बोली- तुम बहुत ही प्यार बेटे हो।
फिर मैंने कहा- मुझे तुम्हारा यह नंगा पेट भी अच्छा लगा क्योंकि तुमने साड़ी नाभि के नीचे पहनी है और तुम्हारी बड़ी गहरी नाभि दिखाई दे रही है जो मेरी मस्ती को और भी बढ़ा रही है और मेरा लंड तुम्हारी गाँड के बीच में फंसा तड़प रहा है जैसे मछली पानी के बाहर तड़पती है।
इस पर रीमा ने कहा- ओह मेरे प्यारे बेटे, मैं तुम्हारे लंड को इस तरह से तड़पाना तो नहीं चाहती पर क्या करूँ अभी उसके मजा लेने का वक्त आया नहीं है। उसे तो अभी तड़पना होगा मेरे लिये क्योंकि मेरे को तो अभी अभी ही थोड़ा-थोड़ा मजा आना शुरू हुआ है। लेकिन अगर तुम कहोगे तो मैं तुम्हारे लंड को तड़पाउँगी नहीं। लेकिन अगर तुम मेरे कहे अनुसार चलोगे तो मैं तुमसे वादा करती हूँ कि तुमको बहुत मजा आयेगा।
मैंने कहा- माँ तुमको वादा करने की जरुरत ही नहीं है, मुझको पता है कि तुम मुझको बहुत मजा दोगी और मुझे उस में कोई शक नहीं है।
मेरी बात सुनकर वो बहुत खुश हुई और बोली- मुझे खुशी है कि तुम इस बात को समझते हो कि जल्दबाजी से ज्यादा मजा देर तक धीरे धीरे प्यार करने में आता है। चलो शुरू हो जाओ फिर से।
मैं धीरे से मुस्कुराया और बोला- मुझे तुम्हारा इस तरह बेशर्मी से गंदी गंदी बातें करना भी अच्छा लगता है।
इस पर रीमा ने कहा- मेरे बेटे, ये बातें गंदी कहाँ हैं, ये तो दुनिया की सबसे अच्छी बातें हैं। अगर दुनिया में सब लोग सबकुछ भूल कर सिर्फ सेक्स की बात करें तो यह दुनिया कितनी सुखी हो जाये।
पर बेटा तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारी यह माँ तुमको बेशर्म बनना सिखा देगी। तब तुम भी ऐसी ही गंदी गंदी बातें कर सकते हो।
माँ, मुझे चुदाई करते वक्त गलियाँ देना और सुनना पंसन्द है।
रीमा बोली- बेटा, यह तो बहुत ही अच्छी बात है क्योंकि गालियाँ तो मस्ती में हम उसी को देते हैं जिससे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। जितनी बड़ी और गंदी गाली, उतना ही ज्यादा प्यार झलकता है। समझ गया रंडी की औलाद?
उसके मुँह से गाली सुन कर मेरे लंड को एक झटका सा लगा जोकि उसकी चूतड़ों की दरार के बीच फंसा हुआ था।
क्रमशः… Hindi Sex
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